Yashaswini - 23 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | यशस्विनी - 23

Featured Books
Categories
Share

यशस्विनी - 23


पिंटू ने पूछा ,"दीदी आपको कितने मास्क चाहिए"" मुझे सौ मास्क चाहिए….. ये लो पिंटू एडवांस पांच सौ रुपये…. इससे हो जाएगा….."" हां दीदी बिल्कुल।" "आपको मास्क चाहिए कब दीदी?"" आज शाम तक पर कल सुबह भी चलेगा।"" मिल जाएंगे दीदी, मुझे एक दिन का समय चाहिए जो आपने दे दिया है ।""हां पिंटू तुम समय ले लो …..एक दिन से अधिक लगेंगे तब भी चलेगा…."" नहीं दीदी, आपको कल इसी समय मिल जाएगा।" "तो तुम इतने मास्क बनाओगे कैसे? दुकान पर तो केवल 8-10 दिख रहे हैं।" "आज दिन भर और देर रात तक मैं और माँ दोनों मिलकर मास्क सिल लेंगे। बड़े गर्व के साथ छोटे उस्ताद ने बताया।" "अरे वाह यह तो बहुत बढ़िया बात है।"अचानक पुलिस की सायरन बजने पर पिंटू का ध्यान दूसरी ओर गया।" दीदी अभी कितने बजे हैं?"" 11:30" "ओह, तो लॉकडाउन में छूट की अवधि खत्म होने में केवल आधा घंटा है…. तो दीदी अब मुझे जाना होगा….।""वैसे तुम जाओगे कहां"" दीदी, कपड़े खरीदने।मुझे 12:00 बजे से पहले खरीदना होगा।""तो यह कपड़ा तुम्हें मिलेगा कहां?""रमेश अंकल की दुकान पर… "" दुकान तो बंद हो गई होगी।लॉकडाउन में तो केवल आवश्यक वस्तुओं को ही खोलने की अनुमति है...।"" मैं जानता हूं दीदी लेकिन रमेश अंकल से मेरा परिचय है। मैं सीधे उनके घर में जाकर उनसे मांगूंगा।""ओह, तो यह बात है। तब तो ठीक है। अरे भाई, मैं भी तो जा रही हूं... तो कल कहां पर होगी अपने छोटे उस्ताद से भेंट…..।""यहीं पर दीदी…... मैं सुबह 9:00 बजे आपको यही मिलूंगा….",ऐसा कहते हुए पिंटू लकड़ी के फ्रेम पर लगाई गई अपनी दुकान समेटने लगा। ठीक वैसे ही जैसे चश्मा बेचने वाले एक फ्रेम पर चश्मों को लटकाए रहते हैं।   उम्र और हालात ने पिंटू को समय से कहीं जल्दी और बहुत पहले ही बड़ा कर दिया था। अपनी इस चलती-फिरती दुकान को लेकर दौड़ते-भागते एक कोने की ओर जाते पिंटू को देखकर यशस्विनी का मन वात्सल्य और करुणा से भर उठा।   यशस्विनी भी छूट की अवधि पूरी होने से पहले ही घर लौट गई। वह इतने मास्क श्री कृष्ण प्रेमालय में रहने वाले बच्चों के लिए खरीदना चाहती थी।उसका मन छोटे उस्ताद पिंटू के साहस पर अति प्रसन्न हुआ। उसने सोचा, बड़े लोग सबल, सक्षम, समर्थ होते हुए भी थोड़ी सी विपरीत परिस्थिति के आने पर निराशा के गर्त में डूब जाते हैं और हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं लेकिन यह पिंटू है कि आठ-नौ साल की छोटी उम्र में ही कमाने के लिए घर से बाहर निकल पड़ा है। आज की डायरी में यशस्विनी ने लिखा……."....... एक अदने से वायरस ने सारी मानवता को बैकफुट पर ला दिया है। लगता है, लंबे समय तक लोगों को अपने घरों में ही रहना होगा और अब मास्क जीवन की अनिवार्य आवश्यकता में शामिल हो गया है…….. आज मैंने  देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान के निदेशक को टीवी पर बोलते हुए सुना कि अभी इस रोग का इलाज नहीं है…. इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत रखने और कुछ आवश्यक दवाइयों के सेवन से यह वायरस 14 दिनों के भीतर शरीर से निष्क्रिय हो जाता है…... अभी कोरोना रोग की सटीक दवा बनी भी नहीं है…... लोगों को धैर्य और संयम से काम लेना होगा। साथ ही हमें इसके इलाज के लिए वैक्सीन की संभावनाओं पर तेजी से काम करना होगा…… यशस्विनी ने आगे लिखा…… हालात कठिन हैं….. स्कूल, कॉलेज, धर्मस्थल ….अन्य संस्थान सब बंद हैं….. यह कठोर संयम और धैर्य का समय है…. नवरात्र पर मां के मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा नहीं हो रही है… अरबों की आबादी घरों में स्वनिर्वासन और एक तरह से कैद की स्थिति में है…... हे ईश्वर सभी घरों में चूल्हे जलते रहे….. आज मनकी का फोन आया था कि एक हफ्ते बाद मनकी के पति के कारखाने के मालिक ने श्रमिकों को आगे काम पर नहीं रखने और उनकी तनख्वाह नहीं देने का नोटिस दिया है…... उन्हें कंपनी की ओर से 20 दिनों का निःशुल्क राशन आगे और मिलेगा…बस...आज की डायरी का समापन यशस्विनी ने अपनी लिखी एक कविता से किया……शीर्षक:-  

कल,आज और कल  

(1)कल

 बच्चा था मनुष्य,

जबप्रकृति संतुलित थी,

हरे भरे पेड़,नदी, झरने,वन

और वह था इनकी गोद में

खेलता निश्छल,

इन्हीं जैसा,इनसे जुड़ा हुआ,

जितनी जरूरत उतनी लेता हुआ।

  (2)आज

 

मनुष्य ने

जीतना चाहा

प्रकृति को ही।

धरती से भी आगे

चंद्रमा के बाद मंगल और

उसके आगे के ग्रहों पर

विजय के सपने

और इनके लिए

शक्तिशाली रॉकेट।

इधर धरती पर

निष्कंटक होने

हजारों मील दूर से ही

विश्व के सबसे खतरनाक आतंकवादी

को मारने का साहसिक,

जोखिम भरा अभियान चलाने वाले,

इस दुनिया का स्वामी कहाते मनुष्य।

अघोषित भगवानों को

बस अपने भगवान होने की

घोषणा करने की देर थी,

कोरोना ने पानी फेर दिया।

लगा प्रश्नचिह्न

उस ब्रह्मांड विजयी मनुष्य के ऊपर,

जिसकी दुनिया में

जीवन रक्षक दवाइयों

मास्क, वेंटिलेटर और रोटी से

कहीं ज्यादा जरूरी हो चले थे,

घातक हथियार,

एके-47 से लेकर हाइड्रोजन बम,

हजारों मील दूर से

सटीक वार कर सकने वाली

निर्देशित मिसाइलें।

एक अदृश्य वायरस ने

ला दिया

सर्वशक्तिमान मनुष्य को

घुटने पर।

आज,

लगभग सुनसान और वीरान से हैं

अनेक धर्मस्थल।

भगवान

सामने आते हैं,

पीपीई सूट,मास्क पहने हुए,

डटे रहते हैं युद्ध के मोर्चे पर,

संक्रमितों का इलाज कर,

दुनिया के अब तक के

सबसे घातक शत्रु के खिलाफ,

डाल, स्वयं की जान जोखिम में।

जंग दूसरे मोर्चों पर भी है।

अज्ञानता के कारण कुछ लोगों द्वारा

कोरोना योद्धाओं पर

बरसाए जाते पत्थर,

तो कुछ लोगों की कोशिश

घोषित करने की-

कोरोना वायरस का धर्म

कोरोना वायरस की राष्ट्रीयता

और वश चले तो कोरोना की

कोई जाति और भाषा भी।

वैसे कोरोना ने

कर दिया था एक

गरीब-अमीर

सब बराबर थे

लेकिन बस कुछ ही दिन

और

फिर नजर आने लगा भेद

फिर आने लगे लोग

पटरियों के नीचे,या

पैदल दम तोड़ते…...

 

(3)कल

 

हारेगा कोरोना,

पुराना दौर लौटेगा,

फिर निकलेंगे

बूढ़े सुबह की सैर पर,

अपने परिवार की

ज़िम्मेदारी उठाने वाले लोग,

घरों से टिफिन ले के,

अपने कार्य स्थलों को,

बेख़ौफ़, बेहिचक।

और

फिर खुलेंगे स्कूल,

जहाँ,

हंसते-मुस्कुराते,पढ़ने

और खेलने लगेंगे,

फिर से बच्चे।"

(क्रमशः)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय