यशस्विनी को लेकर दोनों के मन में अत्यंत कोमल भावनाएं थीं।एक गहरा वात्सल्य भाव था और इसी के चलते उन्होंने यशस्विनी के छठवीं कक्षा में पहुंचने पर उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि हम दोनों तुम्हें गोद लेना चाहते हैं। दोनों की आंखों में स्नेह और वात्सल्य को यशस्विनी ने अनुभव किया था। अपनी 10-11 वर्ष की अवस्था होने तक उसने हर पल न सिर्फ अपने प्रति बल्कि अनाथालय के हर बच्चे के प्रति महेश और गुरु माता माया के लाड़-प्यार और दुलार को देखा था।
अपनी शिक्षा पूरी होने और कैरियर निर्माण के लिए नौकरी के अनेक अच्छे प्रस्ताव आने के बाद भी जब यशस्विनी ने कृष्ण प्रेमालयम में ही रहने का निश्चय किया तो महेश बाबा ने मना किया और कहा- बेटी यहां तुम सीमित हो जाओगी। यहां से दूर रहकर तुम यहां के बच्चों की कहीं अधिक मदद कर पाओगी।तुममें आसमान की बुलंदियों को छूने की संभावना है। तुम जो करना चाहती हो वह करो। नौकरी, व्यापार से लेकर बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी….. हर कहीं हम तुम्हारा साथ देंगे लेकिन इस संस्थान के प्रति अगर तुम्हारे मन में मोह माया अत्यधिक रही तो फिर तुम अपने जीवन के बड़े उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाओगी…….
यशस्विनी ने धर्मपिता और धर्म माता की बात को शिरोधार्य किया और फिर यहीं शहर में ही रहकर अपना संघर्ष शुरू किया। उसने महेश बाबा से श्री कृष्ण प्रेमालय नाम के प्रयोग की अनुमति ले ली और फिर शहर में अपनी आजीविका के लिए पहले प्रयास के रूप में एक योग प्रशिक्षण संस्था की स्थापना की। न्यूनतम फीस पर वह योग प्रशिक्षण दिया करती। उसने फीस इसलिए रखी क्योंकि एक तो उसकी प्रारंभिक आजीविका की समस्या हल हो जाए और दूसरे अगर वह प्रशिक्षण निःशुल्क कर देगी तो "लोग मुफ्त की चीजों को गंभीरता से नहीं लेते" की तरह उसके प्रशिक्षण को भी उतनी गंभीरता से नहीं लेंगे। वह बच्चों और यहां तक कि बड़ों की भी काउंसलिंग और परामर्श की सेवाएं भी देने लगी।थोड़े ही दिनों में उसने किराए के घर में पेइंग गेस्ट बनकर रहने के बदले स्वयं का एक फ्लैट ले लिया।योग जैसे उसका पैशन था।अपनी संस्था के साथ-साथ श्री कृष्ण प्रेमालय में योग सत्र का संचालन वह खुशी-खुशी करती थी। अत्यधिक व्यस्तता के बाद भी उसने श्री कृष्ण प्रेमालय के स्कूल में योग शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं देने का प्रस्ताव दिया, जिसे तत्काल स्वीकार कर लिया गया था। आज सूर्य नमस्कार दिवस है और यशस्विनी मंच पर आसीन है। सबसे पहले उसने सूर्यनमस्कार के इतिहास और सिद्धांतों की विद्यार्थियों को विस्तारपूर्वक जानकारी दी।
सबसे पहले महेश बाबा ने विद्यार्थियों को यशस्विनी की एक बड़ी उपलब्धि की जानकारी दी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने यशस्विनी को विभिन्न देशों में आयोजित होने वाले योग प्रशिक्षण कार्यक्रमों का मुख्य प्रशिक्षक घोषित किया था। स्वयं प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर तेजस्विनी को इस चयन के लिए बधाई दी थी।
यशस्विनी के योग शिविर में सूर्य की प्रथम रश्मियों के साथ ही सूर्यनमस्कार का सामूहिक अभ्यास शुरू हुआ। सभी साधक योग मेट पर अपनी-अपनी जगह पर खड़े थे। रोहित ने प्रोजेक्टर के माध्यम से बैकग्राउंड में स्लाइडों का प्रदर्शन शुरू किया। सबसे पहले यशस्विनी ने सूर्य नमस्कार के इतिहास की जानकारी दी और इस आसन से होने वाले फायदों को बताया। उसने कहना शुरू किया:-
"आज हम सूर्य नमस्कार का अभ्यास करेंगे।क्या आप लोगों को पता है कि इसका नाम सूर्य नमस्कार क्यों है?"
- जी,इसलिए कि यह सूर्य के अभिमुख होकर किया जाता है और यह सूर्य को प्रणाम करना और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता का प्रदर्शन होता है।
" सही कहा आपने,सूर्य हमारे सौरमंडल का केंद्र है यह हमारे लिए जीवन का स्रोत है जिस सूर्य से सौरमंडल और इसके सारे ग्रह ऊर्जा ग्रहण करते हैं तो यह हमारे शरीर के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।उस सौर चक्र के साथ हमारा तालमेल होना अत्यंत आवश्यक है।"
एक साधक ने प्रश्न किया:-जब सूर्य इतनी दूर है तो उसका हमारे जीवन पर या हमारी मनोदशा पर क्या प्रभाव पड़ता होगा?
"सूर्य करोड़ों किलोमीटर दूर है फिर भी इसका हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव है। आप स्वयं सोचिए अगर सूर्य एक दिन न निकले तो धरती की क्या दशा होती है?" यशस्विनी ने जवाब देते हुए कहा।
" दीदी आपने सही कहा तब तो त्राहि-त्राहि मच जाएगी।"
" और एक दिन ही क्यों? जब ग्रहण लगता है तो केवल कुछ मिनटों के लिए ही सही,अंधेरा होने पर पूरी दुनिया में असहजता की स्थिति बन जाती है।जब सूर्य संपूर्ण पृथ्वी पर प्रभाव डालता है तो उसका हमारे शरीर और इसके ऊर्जा केंद्रों पर तो अवश्य असर पड़ता है। हमारे शरीर के ऊर्जा केंद्रों और चक्रों को ही संतुलित और जाग्रत करने का कार्य करता है ये सूर्य नमस्कार।"
"हम इसका एक उदाहरण समुद्र में उठने वाले ज्वार और भाटा से देख सकते हैं,जो सीधे चंद्रमा से संबंधित है। ऐसा ही प्रभाव सूर्य का भी हम पर पड़ता है और विशेष रूप से सौर चक्र की अवधि में जो 11 वर्षों से लेकर 14 वर्षों का होता है, हम इसे महसूस भी कर सकते हैं। इस अवधि में सूर्य की सतह में अनेक परिवर्तन,सौर तूफान आदि होते हैं और उनका प्रभाव कहीं न कहीं अन्य आकाशीय पिंडों पर पड़ता ही है। हम पृथ्वी में रहते हैं इसलिए हम उससे अप्रभावित नहीं रह सकते हैं।"
यशस्विनी के इस उद्बोधन ने लोगों में उत्सुकता जगा दी।यशस्विनी ने आगे कहा-"सूर्य नमस्कार हमारे शरीर के लिए अनुकूल और लाभकारी तो है ही,यह सूर्य से भी हमारा अनुकूलन करने में सहायक है।आखिर सूर्य ऊर्जा और प्रकाश के सबसे बड़े स्रोत तो हैं ही।"
यशस्विनी के उद्बोधन के साथ-साथ रोहित प्रोजेक्टर पर विभिन्न स्लाइडों के माध्यम से सारी चीजों को जीवंत भी कर रहे थे और एक तरह से यह दृश्य-श्रव्य समायोजन अत्यंत सुंदर दिख रहा था। स्वयं रोहित मंत्रमुग्ध से यशस्विनी की बातों को सुन रहे थे।
इसके बाद यशस्विनी ने सूर्य नमस्कार का आदर्श प्रदर्शन शुरू किया। अपने स्थान पर खड़ी होकर यशस्विनी ने सबसे पहले प्रणमासन मुद्रा से शुरुआत की।सभी 50 साधक और रोहित उन्हें देख रहे थे। बड़ी कलात्मकता के साथ यशस्विनी ने सूर्य नमस्कार का बाएं और दाएं दोनों पैरों के माध्यम से एक चक्र पूरा किया। 12 चरणों में से प्रत्येक अवस्था के पूरा होने पर वह संबंधित मंत्र का उच्चारण भी कर रही थी। यह सब मंत्रमुग्ध कर देने वाला था और लोग उनकी कला और अभ्यास पर चमत्कृत थे।
योगेंद्र