कमरा लाल गुलाबों की खुशबू से महक रहा था। बीच में रखे आईने के सामने आन्या बैठी थी — लाल रंग का लहंगा उसकी गोरी त्वचा पर ऐसे चमक रहा था जैसे सूरज की पहली किरण सिन्दूरी आसमान को छू गई हो।
ममता जी उसके बालों में गजरा सजा रही थीं। उनकी आंखें नम थीं, आवाज कांप रही थी —
"बेटा... हमे माफ़ तो कर दोगी ना?"
आन्या ने मुस्कुराकर उनका हाथ थामा, बोली —
"आपने मेरा प्यार समझा, मुझे समझा... मां, माफी क्यों मांग रही हैं? मुझे तो आपसे कोई शिकायत ही नहीं है।"
उसकी आवाज में मासूमियत थी, और दिल में सागर जितना स्नेह।
ममता जी बस उसे देखती रह गईं — वो बच्ची जो अब किसी की जीवनसंगिनी बनने जा रही थी।
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थोड़ी देर बाद, मण्डप सजा हुआ था। दीपों की रौशनी में आन्या और अभिमान एक-दूसरे के सामने बैठे थे।
सरस्वती जी ने प्रेम से आन्या के सिर पर चूनरी ओढ़ाई। आन्या की आंखों में नमी थी, पर होंठों पर मुस्कान — एक लड़की का आधा बचपन वहीं ठहर गया था।
अभिमान बस उसे देखे जा रहा था।
यकीन नहीं हो रहा था कि वो लड़की, जिसे उसने कभी अनजाने में रूला दिया था, आज उसकी किस्मत बनकर सामने बैठी है।
धीरे से झुककर उसने आन्या के माथे को चूमा।
आन्या का दिल भर आया। उसने अपना चेहरा अभिमान के सीने पर रख लिया और धीरे से रो पड़ी।
अभिमान के होंठों पर हल्की मुस्कान थी, मगर आंखों में गहराई। उसने उसके बालों को सहलाते हुए कहा —
"शांत हो जाओ ना, अनू... जानते हो ना मुझे तुम्हारे आंसू पसंद नहीं हैं।"
आन्या ने अपने आंसू पोंछे, हौले से बोली —
"पता नहीं क्यों, आज दिल रोना चाहता है..."
वो बात अधूरी छोड़कर उसकी आंखों में देखने लगी।
अभिमान ने उसका चेहरा दोनों हाथों में थाम लिया, उसके गालों पर बचे कुछ आंसू पोंछे और धीमे स्वर में कहा —
"अब बस करो... वर्ना सबके सामने अपनी बाहों में लेकर चुप कराना पड़ेगा।"
आन्या के गाल सुर्ख हो गए। नीचे झुककर उसने अपने दुपट्टे की पल्लू से मुंह छिपा लिया।
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"बेटा, अब अंगूठी पहनाओ," ममता जी की आवाज ने पल की चुप्पी तोड़ी।
अभिमान ने उसका हाथ थामा। वो हाथ नाजुक था, मगर उस पर पुराने जलने के निशान थे।
उसे देखकर अभिमान की आंखों में गुस्सा उतर आया —
"तुम अपना ख्याल नहीं रख सकती हो? बताया था ना, खुद को तकलीफ मत देना..."
आन्या बस चुप रही। ममता जी और तूकाराम जी थोड़े झेंप गए — आखिर वो जानते थे कि उनकी परंपरा में लड़कियों को प्यार से ज़्यादा ज़िम्मेदारी सौंपी जाती थी।
सरस्वती जी ने अभिमान के कंधे पर हाथ रखकर शांत स्वर में कहा —
"मान, अब अंगूठी पहनाओ।"
अभिमान ने गहरी सांस ली, फिर प्यार से उसकी उंगली में अंगूठी पहना दी।
आन्या की आंखों में चमक आ गई, जैसे कोई सपना हकीकत बन गया हो।
फिर बारी आई आन्या की — उसने भी कांपते हाथों से अभिमान की उंगली में अंगूठी पहनाई।
राघव ने मुस्कुराते हुए उन पलों की तस्वीरें खींच लीं।
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अभिमान ने जाते-जाते उसका चेहरा थामा और आंखों में देखते हुए बोला —
"प्रॉमिस करो... इन पांच दिनों में जितना वक्त अपनी मां और दादी के साथ बिताना है, बिता लो। उसके बाद मैं तुम्हें कभी यहां आने नहीं दूंगा।"
आन्या ने होंठों को गोल बनाते हुए बोला —
"ठीक है, एंग्री यंग मैन।"
अभिमान हंस पड़ा। उसने उसे सीने से लगाकर धीमे से कहा —
"एक किस तो दो।"
आन्या झट से बोली —
"नहीं!"
उसकी घबराहट देख अभिमान खिलखिलाकर हंस पड़ा।
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अमित जी, सरस्वती जी और राघव — तीनों हैरान थे। उन्होंने कभी अभिमान को इतना खुश नहीं देखा था।
अभिमान ने आन्या को अपनी बाहों में उठाया और घूमने लगा। आन्या ने अपने हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए, अपना माथा उसके माथे से टिका दिया।
दोनों की मुस्कानें एक हो गईं।
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ममता जी की आंखें फिर भर आईं —
"मैंने पहली बार आन्या को इतना खुश देखा है। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जी।"
तूकाराम जी चुप थे, शायद शब्द कम पड़ गए थे।
अभिमान ने आगे बढ़कर उनके पैर छुए और बोला —
"शुक्रिया... हमारा प्यार अपनाने के लिए।"
फिर ममता जी के भी पैर छुए। सरस्वती जी ने आन्या को गले लगाया और माथे पर चूमते हुए बोलीं —
"तुमने हमारे घर में खुशियां दी हैं बच्चा, अब हमारी बारी है तुम्हें दोगुनी खुशियां देने की।"
अमित जी ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा —
"हमेशा ऐसे ही मुस्कुराती रहो।"
आन्या की आंखों में नमी थी, हाथ कांप रहे थे, पर दिल में सुकून था।
ममता जी कार तक छोड़ने आईं। कामिनी जी ने दरवाज़ा खोला।
आन्या ने पलटकर अपने घर की ओर देखा — एक आंसू गिरा, मगर उसके होठों पर वही मासूम मुस्कान थी।
आज उसकी आंखों में सपना था — एक नया घर, एक नया जीवन, और वो इंसान... जो अब उसकी दुनिया था।
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