Flight of courage in Hindi Motivational Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | हिम्मत की उड़ान

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हिम्मत की उड़ान

हिम्मत की उड़ान 
लेखक: विजय शर्मा एरी
(यह कहानी हौंसलों की ताकत पर आधारित है, जो एक छोटे से गांव के लड़के की महत्वाकांक्षा और संघर्ष की गाथा बुनती है। शब्द संख्या लगभग 1500।)
अध्याय 1: गांव की धूल और सपनों की उड़ान
हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से पहाड़ी गांव चंबा में, जहां सेब के बाग हवा में लहराते थे और नदियां गाती हुई बहती थीं, वहां एक लड़का रहता था जिसका नाम था हौंसला। हौंसला शर्मा, लेकिन गांव वाले उसे प्यार से 'हौंसलू' कहते थे। उसके पिता, रामलाल शर्मा, एक साधारण किसान थे जो सुबह से शाम तक खेतों में पसीना बहाते। मां, सरला देवी, घर संभालतीं और कभी-कभी सेब बेचने बाजार जातीं। घर में चार भाई-बहन थे, लेकिन हौंसला सबसे बड़ा था – जिम्मेदारियां उसके कंधों पर।
हौंसला का जन्म 1995 की एक ठंडी सर्दी में हुआ था। गांव की पुरानी किवदंती थी कि जब वह पैदा हुआ, तो बाहर घना कोहरा था, मानो आसमान ने उसके आने का स्वागत करने के लिए पर्दा डाल दिया हो। बचपन से ही हौंसला को आकाश आकर्षित करता था। शाम को जब सूरज ढलता, वह पहाड़ की चोटी पर चढ़ जाता और दूर उड़ते पक्षियों को देखता। "पापा, मैं भी उड़ना चाहता हूं," वह कहता। रामलाल हंसते, "बेटा, उड़ना तो सपना है, लेकिन जमीन पर पैर जमाकर ही उड़ान भरी जाती है।"
स्कूल गांव से दो किलोमीटर दूर था। हौंसला पैदल जाता, जूते फटे हुए, किताबें पुरानी। लेकिन उसकी आंखों में चमक थी। टीचर जी, मिस्टर ठाकुर, कहते, "हौंसलू, तू बड़ा आदमी बनेगा। पढ़ाई में कभी पीछे मत हटना।" हौंसला ने सुना। रात को लालटेन की रोशनी में किताबें पढ़ता। गांव में बिजली आती-जाती रहती, लेकिन उसके सपनों में हमेशा रोशनी होती। वह पायलट बनना चाहता था। आकाश में उड़ना, बादलों को छूना, दुनिया को ऊपर से देखना – यही उसका हौंसला था।
लेकिन जिंदगी आसान नहीं थी। बारहवीं कक्षा में पिता बीमार पड़ गए। फेफड़ों की पुरानी बीमारी ने रामलाल को लकवा मार दिया। अब खेत संभालने की जिम्मेदारी हौंसला पर आ गई। सुबह चार बजे उठकर खेत जोतता, फिर स्कूल। दोस्त हंसते, "हौंसलू, तू तो किसान बनेगा, पायलट नहीं।" लेकिन हौंसला जवाब देता, "हौंसला कभी हार नहीं मानता।"
बारहवीं में वह टॉप किया। गांव में जश्न हुआ। पंडित जी ने मंत्र पढ़े, मां ने लड्डू बांटे। लेकिन आगे की राह कठिन थी। इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए पैसे कहां से लाते? चाचा ने कहा, "बेटा, गांव छोड़ दे। शहर जाकर मजूरी कर।" लेकिन हौंसला ने सिर झुकाया नहीं। एक पुराने अखबार में उसने सरकारी स्कॉलरशिप के बारे में पढ़ा। रात-रात भर फॉर्म भरता, एग्जाम की तैयारी करता। आखिरकार, IIT दिल्ली में एडमिशन मिल गया। गांव ने विदाई दी – आंसुओं भरी। मां ने कहा, "बेटा, उड़ान भरना, लेकिन जड़ें मत भूलना।"
अध्याय 2: शहर की चकाचौंध और संघर्ष की आग
दिल्ली पहुंचा तो हौंसला दंग रह गया। ऊंची-ऊंची इमारतें, तेज रफ्तार कारें, लोग भागते हुए। गांव की शांति यहां शोर में बदल गई। हॉस्टल में कमरा छोटा सा, बिस्तर साझा। रूममेट राजेश, एक अमीर घराने का लड़का, हंसता, "भाई, तू तो गांव का लगता है। यहां सर्वाइव करना पड़ेगा।" हौंसला मुस्कुराया, "सर्वाइव तो कर लूंगा, फ्लाई तो करना है।"
इंजीनियरिंग के साथ हौंसला एविएशन कोर्स करने लगा। एविएशन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में एडमिशन लिया। फीस भारी थी – 50 हजार प्रति सेमेस्टर। स्कॉलरशिप से कुछ मिला, बाकी के लिए पार्ट-टाइम जॉब। सुबह कॉलेज, दोपहर में कैफे में वेटर। रात को पढ़ाई। थकान ऐसी कि आंखें बंद हो जातीं। एक बार तो एग्जाम में फेल हो गया। प्रोफेसर ने कहा, "शर्मा, फोकस कर। एविएशन आसान नहीं।"
हौंसला ने हार नहीं मानी। वह जिम जाता, रनिंग करता। फिटनेस उसके लिए हथियार था। दोस्तों का ग्रुप बना – 'उड़ान क्लब'। वे मिलकर मोटिवेशनल स्टोरीज शेयर करते। एक दिन, इंस्टीट्यूट में गेस्ट लेक्चर था। स्पीकर एक रिटायर्ड एयर फोर्स पायलट, कैप्टन विक्रम सिंह। उन्होंने कहा, "हौंसला वह नहीं जो सपना देखता है, बल्कि वह जो उसे उड़ाने का जज्बा रखता है।" हौंसला ने सवाल पूछा, "सर, अगर विंग्स टूट जाएं तो?" कैप्टन मुस्कुराए, "नई विंग्स उगाना सीखो।"
दूसरे साल में हौंसला को पहला ब्रेक मिला। इंडियन एयरलाइंस की स्कॉलरशिप। लेकिन खुशी अधूरी रही। घर से खबर आई – पिता की हालत बिगड़ गई। हौंसला ट्रेन पकड़ा, रात भर रोता रहा। गांव पहुंचा तो पिता बिस्तर पर। "बेटा, तू पढ़," रामलाल ने कहा, "मैं ठीक हो जाऊंगा।" लेकिन हौंसला जानता था, पिता का हौंसला टूट रहा है। उसने फैसला किया – कॉलेज बीच में छोड़ दूंगा। लेकिन मां ने रोका, "नहीं बेटा, तेरा हौंसला हमारा सहारा है।"
वापस दिल्ली लौटा। जॉब बढ़ाई – अब ट्यूशन भी पढ़ाता। महीने के 20 हजार कमाए। लेकिन तनाव बढ़ा। एक रात, हॉस्टल में झगड़ा हो गया। राजेश ने कहा, "तू गांव वाला, यहां फिट नहीं।" हौंसला ने जवाब दिया, "हौंसला जगह नहीं देखता, दिल देखता है।" वह बाहर निकला, पार्क में बैठा। सितारे देखे। याद आया – पक्षी कभी हार नहीं मानते।
तीसरे साल में चैलेंज उड़ा। सिमुलेटर ट्रेनिंग में फेल। इंस्ट्रक्टर ने कहा, "तुम्हारा कॉन्फिडेंस कम है।" हौंसला ने प्रैक्टिस बढ़ाई। दोस्तों से उधार लेकर प्राइवेट फ्लाइट लिया। पहली बार कॉकपिट में बैठा, हाथ कांपे। लेकिन जैसे ही इंजन चला, लगा जैसे आसमान बुला रहा हो। "यह मेरा हौंसला है," वह बुदबुदाया।
अध्याय 3: तूफान और नई सुबह
फाइनल ईयर में हौंसला को DGCA एग्जाम देना था। कमर्शियल पायलट लाइसेंस। तैयारी जोरों पर। लेकिन किस्मत ने फिर चकमा दिया। कोविड महामारी फैली। 2020। लॉकडाउन। कॉलेज बंद, फ्लाइट्स रद्द। हौंसला घर लौटा। गांव में सब डरे हुए। पिता की दवा बंद, मां चिंतित। हौंसला ने ऑनलाइन क्लासेस लीं, लेकिन इंटरनेट गांव में कहां? मोबाइल पर वीडियो डाउनलोड करता, रात में पढ़ता।
लॉकडाउन में उसने नया हुनर सीखा। गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। 'हौंसला क्लास' – खुले आसमान तले। बच्चे आते, हंसते-खेलते सीखते। एक लड़की, मीरा, बोली, "भैया, मैं भी पायलट बनूंगी।" हौंसला मुस्कुराया। उसके अंदर का शिक्षक जागा। लेकिन सपना तो उड़ान का था।
महामारी खत्म हुई, तो हौंसला वापस दिल्ली। लेकिन देरी हो चुकी थी। एग्जाम डेट मिस। दोस्त आगे निकल गए। डिप्रेशन आया। एक रात, वह पुल पर खड़ा। नीचे यमुना बह रही। "क्यों लड़ूं?" सोचा। लेकिन फोन बजा। मां का। "बेटा, तू हमारा हौंसला है। लौट आ।" वह रो पड़ा। फैसला लिया – हार नहीं मानूंगा।
नया प्लान। प्राइवेट एविएशन कंपनी में अप्लाई किया। इंटरव्यू में कहा, "मेरा हौंसला गांव से आया है, जहां पहाड़ उड़ान सिखाते हैं।" सेलेक्ट हो गया। ग्राउंड स्टाफ से शुरू। लेकिन सीखता रहा। छह महीने में को-पायलट बना। पहली फ्लाइट – दिल्ली से मुंबई। कॉकपिट में बैठा, हाथ स्थिर। "टेक ऑफ," पायलट ने कहा। हौंसला ने हैंडल थामा। प्लेन ऊपर उठा। बादल चीरते हुए। नीचे धरती छोटी लगी। आंसू आ गए। "पापा, देखो, उड़ गया।"
अध्याय 4: ऊंचाइयों की चोटी और जड़ों की याद
आज हौंसला कैप्टन है। इंडिगो एयरलाइंस में। सैकड़ों फ्लाइट्स उड़ा चुका। लेकिन सफलता ने उसे अहंकारी नहीं बनाया। वह गांव लौटता रहता। 'हौंसला फाउंडेशन' शुरू किया – गरीब बच्चों को एविएशन ट्रेनिंग। मीरा अब उसकी स्टूडेंट है। पिता ठीक हो गए, मां गर्व से कहतीं, "मेरा बेटा आकाश का राजा है।"
एक दिन, हौंसला ने अपनी पहली किताब लिखी – 'हौंसलों की उड़ान'। उसमें लिखा, "हौंसला वह पंख है जो टूटे भी उड़ जाता है। सपने देखो, संघर्ष करो, और उड़ान भर दो।"
गांव में एक बड़ा एयरपोर्ट बन रहा है। हौंसला ने डोनेशन दिया। बच्चे देखते हैं, सपने बुनते हैं। हौंसला पहाड़ पर चढ़ता है, पक्षियों से बात करता। "देखो, हम सब उड़ सकते हैं।"
(कहानी समाप्त। शब्द संख्या: 1487। यह काल्पनिक कहानी है, जो हौंसले की प्रेरणा पर आधारित है। यदि आप इसमें बदलाव चाहें, बताएं।)