*अदाकारा 47*
शर्मिला द्वारा बनाई गई रिकॉर्डिंग देखने और सुनने के बाद जयसूर्या का काला चेहरा और भी काला हो गया।वह गुस्से से दहाड़ उठा।
"यह सब क्या है?"
"यह रेशम की डोर है बाबू।"
शर्मिलाने बड़ी शांति से जयसूर्या के गुस्से का जवाब दिया।लेकिन जयसूर्या को शर्मिलाके इस तरह के जवाब में कुछ समझ नहीं आया।
"मतलब?"
उसने पूछा।
तो शर्मिलाने अपने कंधे उचकाए और चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ बोली।
"क्या तुम्हें याद है कि एक दिन तुमने कहा था कि तुम मेरे लिए कोई भी गैरकानूनी काम करने को तैयार हो?"
"हाँ।मैंने जरूर ऐसा कहा था और अगर तेरे साथ रात गुज़ारने को मिलती हे तो मैं आज भी उसके लिए तैयार हूँ।"
शर्मिला जयसूर्या के पास आई और दोनों हाथों से उसका कॉलर पकड़कर उसे अपने नजदीक खींचते हुए बोली।
"लेकिन काम क्या है यह जानने के बाद तुम कहीं मुकर न जाओ इस लिए मैंने तुम्हारे इर्द गिर्द यह रेशमी डोर का जाल बुन लीया है। ताकि तुम इसमे से निकल न पाओ जानू।"
जयसूर्या का दिल अब शक ओर दहशत से तेज़ी से धड़क ने लगा।आखि़र यह औरत करना क्या चाहती है?
“ऐसा तो कोनसा काम है?"
शर्मिला मुस्कुराई और जयसूर्या की कमीज़ के बटन खोलते हुए शोले फिल्म के ठाकुर बलदेव सिंग की स्टाइल में बोली।
"काम जो में चाहूं ओर दाम जो तुम चाहो।"
जयसूर्या अब गुस्से से चिख पड़ा।
"बताती क्यों नहीं कि काम क्या है?"
जयसूर्या को चिढ़ते हुए देखकर,शर्मिला को ओर मज़ा आने लगा।वह अपने दिमाग को शांत रखते हुए बोली।
"इस प्रकार चिढ़ने से कुछ नहीं होगा सर।अब जब आपने इसे भिगो ही दिया है तो आपको मुंडन कराना ही होगा है ना?मुझे जो भी काम है अब तो वो करना ही होगा?"
"क्या कोई ज़बरदस्ती है?"
"हाँ।बिल्कुल है।"
"और अगर मैं ना करूं तो?"
जयसूर्याने शर्मिला से दूर हटने की कोशिश करते हुए कहा।
उसे शर्मिला के इरादे नेक नहीं लग रहे थे।
"तो ये रिकॉर्डिंग ओर ये विडियो एक तुम्हारे घर और दूसरा बृजेश के पास...."
शर्मिला ठंडे लहज़े से बोली।
"तो तु... क्या तु मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?”
"जो समझो।”
"एक पुलिसवाले को?क्या तुम्हें इसका अंजाम पता है?"
जयसूर्याने शर्मिला को धमकाया।
शर्मिला ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी।
"पुलिसवाले?हाँ।हाँ।हाँ।पुलिसवाले साहब, तुम्हें काम करना ही होगा।और मैं चाहूं तो तुमसे कोई फ्री मे भी यह काम करा सकती हूं।लेकिन नहीं में इस काम की तुम्हारी जो इच्छा है वहीं कीमत तुम्हें दूंगी।वो भी अभी ओर एडवांस में देने को तैयार हूँ।"
यह कहते हुए शर्मिला ने अपने गोरे बदन से लिपटा हुआ काला गाउन धीरे से सरका दिया।
"लो वसूल लो जी भरके।"
और जयसूर्या जो इतने दिनों से अपनी पसंदीदा हीरोइन के जिस्म को पाने के लिए तरस रहा था।शर्मिला का वह जिस्म उसकी आँखों के सामने था गोरा मक्खन जैसा।
मोम की तरह मुलायम ओर नाज़ुक शरीर जैसे उसे बुला रहा था।बिल्कुल नंगा।बिना कपड़ों के।बिलकुल वस्त्र हीन।
यह औरत उसके पास क्या काम करवाना चाहती है इसकी चिंता अपने दिमाग से हटाकर।आगे अंजाम क्या होगा उस काम का उसे नज़र अंदाज़ करके जयसूर्या।अपने अनजान काम की कीमत वसूलने मे लग गया।
सुबह शर्मिला जब शूटिंग पर जा रही थीं तो उसके मन में एक अजीब सी अनुभूति उठ रही थी।पिछली रात उसने जयसूर्या को पूरी तरह से अपने वश में कर लिया था।और जयसूर्या के वश में आनेसे उसे ऐसा लग रहा था जैसे अलाउद्दीन का जादुई चिराग उसके हाथ लग गया हो।जयसूर्या उसके लिए चिराग के जिन्न की तरह था।वो अब जब चाहें अपना मनचाहा काम जयसूर्या से करवा सकती थीं।
आज रंजन देव कल से ज़्यादा स्वस्थ लग रहा था।और मल्होत्रा द्वारा दिये गए डायलोग वे एक-दो बार में ही याद करके बोल लेता था।और जब भी सीन ठीक से हो जाता तो शर्मिला खुश होकर उसकी सराहना भी करतीं और उसे तालियां बजाकर शाबाशी भी देती।
शर्मिला का ये वाला अंदाज़ देखकर रंजन उत्साहित होने लगा था।
और एक बार रंजन की तारीफ़ करते हुए शर्मिलाने जब उसे गले लगा लिया।
"बहुत अच्छे रंजन।"
कहकर तभी रंजन की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसकी साँसें भी पूरी तेज़ी से चलने लगीं।
उसे वो शर्मिला याद आई जिसे उसने दो दिन पहले सपने में देखा था।अपनी पत्नी के रूप में।लाल शादी के लिबास में।
वह उसके साथ अपनी सुहागरात मनाने की तैयारी कर रहा था।उसने शर्मिला के लाल गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए थे।और फिर उसने अपनी दुल्हन शर्मिला के एक-एक करके कपड़े उतार दिए थे।कपड़े उतरते ही वह एक मोम की मूर्ति बन गई थी।और फिर किस तरह वह पिघलने लगी थी और खुद को निगलने लगी थी।और फिर वह डरकर बिस्तर से नीचे गिर पड़ा था।गिरने का वह दृश्य याद आते ही वह ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा।और उसे अचानक इस तरह हँसता देखकर शर्मिला ने पूछा।
"क्या हुआ?इस तरह हंसने की वजह?जरा हम भी तो सुने।"
(रंजन शर्मिला के इस सवाल का जवाब कैसे ओर क्या देगा?शर्मिला जयसूर्या से आखिर कैसा काम करवाना चाहती है?)