Kohra A Dark Mystery - 7 in Hindi Horror Stories by MIHIR NISARTA books and stories PDF | कोहरा : A Dark Mystery - 7

Featured Books
Categories
Share

कोहरा : A Dark Mystery - 7

" Chapter 7 : दी फाइनल गेम “



कुर्षित हंसते हुए कहता है :
“ कैसे हो प्रोफेसर…? में तुमसे मिलने के लिए बेताब था। “

     प्रोफेसर घूर कर कुर्षित को देखते है, इसके बाद उनकी नज़र विनीता पर जाती है, प्रोफेसर को बुरा लगता है कि विनीता ने उन्हें धोखे से बुलाया, कुर्षित अपना चश्मा उतारता है, प्रोफेसर को उसकी अजीब तेज तरार, घनी काले रंग की और डरावनी आंखे दिखती है, प्रोफेसर को वो बिलकुल भी सही नहीं लगता। 

प्रोफेसर गुस्से में है :
“ विनीता… ये क्या मज़ाक है ? तुमने कहा था तुम्हारे घर पर कोई नहीं, अब ये क्या है ? कौन है ये ? “

विनीता :
“ सॉरी प्रोफ़ेसर, में कुछ नहीं जानती। “

कुर्षित :
“ शांत हो जाओ प्रोफेसर, इसने मेरे कहने पर ही तुम्हे यहां बुलाया है। “

प्रोफेसर :
“ लेकिन क्यों ? में तुम्हे नहीं जानता। “

कुर्षित :
“ तुम नहीं जानते पर जान जाओगे, मुझे तुमसे काफी जरूरी बात करनी है। “

प्रोफेसर :
“ कौनसी - कैसी जरूरी बात ? “

     तभी अचानक घर के दरवाजे पर बैल बजती है, लगता है बाहर कोई आया है, विनीता दरवाजे की ओर जाने लगती है तभी कुर्षित उसे रोकता है,

कुर्षित : 
“ कहा जा रही हो ? इतनी रात को कौन आया है ? “

विनीता :
“ मैने खाना ऑर्डर किया था, शायद वही होगा ? “

कुर्षित :
“ शायद ??? तुम रुको… उसे में देखता हु। “

    कुर्षित दरवाज़े की ओर जाता है, प्रोफेसर को कुर्षित के इरादे ठीक नहीं लगते, वो उसके नापाक इरादे को भाप लेते है, वो मौके का फायदा उठाने की तैयारी करते है, 

प्रोफेसर :
“ विनीता… क्या मुझे एक ग्लास पानी दे सकती हो, मेरा गला सुख रहा है। “

विनीता :
“ ओके बेबी, में अभी लाती हु। “

     प्रोफेसर को विनीता की ये बात अजीब लगती है, पर वो इस आखिरी मौके का फायदा उठाना चाहते है, वो जल्दी से मौका पा कर खड़े हो जाते है, वो इधर उधर देखते हुए जल्दी से एक बड़े कमरे में जाते है वहां एक खिड़की खोलते है, ये खिड़की घर के पीछे की ओर खुलती है और थोड़ी सी ही ऊंचाई पर है, प्रोफेसर उस खिड़की से कूद कर बाहर निकल जाते है, उन्हें पैर पर थोड़ी सी चोट लगती है।

     इसके बाद प्रोफेसर छुपते हुए घर के आगे की ओर आते हे, वहां कुर्षित डिलीवरी बॉय को पेमेंट कर के वापस दरवाज़ा बंद करता है, तभी प्रोफेसर मौके का पूर्ण उपयोग करते हुए जल्दी से अपनी कार में जाकर बैठ जाते है और कार स्टार्ट करते है।

      कुर्षित और विनीता प्रोफेसर को अंदर ढूंढने लगते है तभी गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज सुन कर वो दोनों बाहर दौड़ लगा ते है पर प्रोफेसर गाड़ी रिवर्स करके वहां से भागने में कामयाब होते है, कुर्षित विनीता पर चिल्ला कर गुस्सा करता है।

      प्रोफेसर डरे हुए है इस लिए पहली बार तेज़ रफ़्तार से कार दौड़ा रहे है, उनके लिए आज की रात काफ़ी अजीब और डरावनी रही, प्रोफेसर कुर्षित के बुरे इरादों को भाप गए थे, वो काफी डर गए थे, उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि वो वहां से बच कर निकल आए।

     कोहरे का स्तर बढ़ रहा है, पर अभी भी सब साफ देखा जा सकता है, रोड सुनसान है, प्रोफेसर कार चलाते हुए ईश्वर को याद करते है और अपनी रक्षा करने के लिए प्राथना करते है तभी पीछे से रोशनी चमकती है, एक तेज़ रफ़्तार काले रंग की कार प्रोफेसर का पीछा करती है ।

     प्रोफेसर की पुरानी गाड़ी उस तेज़ रफतार कार का मुकाबला नहीं कर पाती वो काले रंग की कार पास आती है और प्रोफेसर की कार को टक्कर मारती हैं, प्रोफेसर की कार अपना नियंत्रण खो देती है, प्रोफेसर ब्रेक लगाते है, कार की रफ्तार कम होती है पर फिर भी वो कार एक पेड़ से जा टकराती है ।

     वो इलाका वीरान है, आस पास झाड़ियां और अंडर कंस्ट्रक्ट इमारतें है, वो काले रंग की कार वहां आकर रुकती है और उसमें से कुर्षित बाहर निकलता है, वो चलते हुए प्रोफेसर की कार के पास जाता है, कार के अंदर प्रोफेसर सुरक्षित है, बस हल्की सी चोट लगी है, अंदर रह कर वो कुर्षित को देखते है।

कुर्षित : 
“ मुझसे खेल करोगे प्रोफेसर ? बहोंत भारी पड़ेगा, चलो बाहर निकलो अब। “

     प्रोफेसर डरे हुए है, वो कोई जवाब नहीं देते, कुर्षित अपनी जैकेट के अंदर से बड़ा और तेज़ तरार छुरा निकालता है, तभी फिरसे थोड़ी ही दूर अंधेरे कोहरे के बीच रोशनी चमकती हुई दिखती है, थोड़ी ही क्षण में एक ओर कार तेज़ रफ़्तार से वहां आती है और फिर वहां रोड पर कुर्षित से थोड़ी ही दूर आकर रुक जाती है।

     कुर्षित उस कार को घूर कर देखता है उसे समझ नहीं आता कि वो कौन है और क्या चाहता है, वो उस कार के सामने जाता है तभी अचानक वो कार तेज़ रफ़्तार से चल पड़ती है और कुर्षित को ठोक कर उड़ा देती है, कुर्षित जाकर गटर में गिर जाता है।

     वो कार रिवर्स हो कर रुकती है, उस कार में से कनिष्क बाहर निकलता है, कार में बैठे प्रोफेसर समझ नहीं पाते कि बाहर आखिर क्या चल रहा है, कनिष्क चलते हुए प्रोफेसर के पास पहुंचता है, वो कार के अंदर बैठे प्रोफेसर को देखता है।

     कनिष्क कार के काच पर नॉक करके दरवाज़ा खोलने का इशार करता है, प्रोफेसर परेशान है वो किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहते, पर वो बात करने के लिए थोड़ा सा कांच खोलते है, 

प्रोफेसर :
“ कौन हो तुम ? “

कनिष्क :
“ प्रोफेसर… मेरा नाम कनिष्क है, में यहां आपकी मदद करने आया हु, दरवाज़ा खोलिए। “

प्रोफेसर थोड़ा सोच कर कहते है :
“ क्या तुम्हे mr. वालिया ने भेजा है ? “

कनिष्क :
“ वालिया… जी हा… बिल्कुल, मुझे mr. वालिया ने ही भेजा है, उन्हों ने ही बताया कि आप मुसीबत है। “

     ये सुन कर प्रोफेसर को थोड़ी शांति मिलती है, वो गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर बाहर निकलते है, उन्हें हल्की सी चोट आई है, जिसमें कनिष्क उनको सहारा देता है।

प्रोफेसर :
“ में ठीक हु… में ठीक हु। “

कनिष्क :
“ पहले आप मेरी गाड़ी में बैठिए, कोहरा बढ़ रहा है, यहां बाहर खुले में रहना ठीक नहीं है। “

प्रोफेसर :
“ क्या ये कोहरा उस दरिंदे से ज्यादा ख़तरनाक हे जो मुझे मारना चाहता था ? “

कनिष्क :
“ हा, शायद। “


    प्रोफेसर कनिष्क की कार में बैठते है, इसके बाद कनिष्क कार को शहर के अंदर की ओर आगे बढ़ाता है।

प्रोफेसर :
“ क्या तुम जानते हो, वो खतरनाक आदमी कौन था ? “

कनिष्क :
“ नहीं, में उसे नहीं जानता, पर ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई पेशेवर कातिल हो। “

प्रोफेसर :
“ मुझे तो वो कोई आदमख़ोर दरिंदा लग रहा था, पता नहीं वो मुझसे क्या चाहता था। “

कनिष्क :
“ मुझे लगता है आपके पास जरूर कुछ खास है, जो उसे चाहिए, या फिर आप कुछ ऐसा जानते है जो आपको नहीं जान ना चाहिए। “

प्रोफेसर :
“ सही कहा, mr. वालिया सही थे, शायद वो मेरे मरे हुए भाई ( डॉ. चंद्रकांत ) की अजीब कहानियों वाली डायरी की वजह से मेरे पीछे पड़ा हुआ था, उसकी आंखे घनी काली और डरावनी थी। “

कनिष्क :
“ हा, ऐसा हो सकता है… मुझे इसके बारे mr. वालिया ने कुछ साफ नहीं बताया, क्या उस डायरी के बारे में आप मुझे ओर जानकारी दे सकते हे ? “

प्रोफेसर :
“ उस डायरी में जरुर कुछ बेहद खास राज़ छुपे हुए है, वो अजीब आदमी यही चाहता होगा मुझसे। “

कनिष्क :
“ तो बताइए वो डायरी कहा मिलेगी अभी ? “

प्रोफेसर :
“ वो मेरे भाई चंद्रकांत के घर पर है। “

कनिष्क :
“ तब तो हमे वहां अभी जाना चाहिए। “

प्रोफेसर :
“ इतनी रात को ? ये ठीक नहीं, कल सुबह जाते है। “

कनिष्क :
“ देखिए प्रोफेसर… ये जरूरी है, हमे अभी उस डायरी को वहां से लेकर सुरक्षित करना होगा। “

      कनिष्क प्रोफेसर पर दबाव बना कर उस डायरी तक पहुंचने के रास्ता बना देता है, प्रोफ़ेसर के बताए रस्ते पर कुछ देर ड्राइव करके वे लॉग शहर के एक बंगले पर पहुंचते है, वहां गेट बंद है, कनिष्क हॉर्न बजाता है ल।

     हॉर्न की आवाज़ सुन कर पास ही के एक छोटे केबिन से दो सिक्योरिटी गार्ड बाहर निकल कर आते है, वहां लाइट जलती है, दोनों गार्ड प्रोफेसर को देख कर उन्हें पहचान लेते है और गेट खोल देते है,

सिक्योरिटी गॉर्ड :
“ साहब, इतनी रात को कैसे आना हुआ ? “

प्रोफेसर :
“ कुछ जरूरी काम है, बाहर नज़र रखना। “

       इसके बाद कनिष्क और प्रोफेसर बंगले के अंदर जाते है, वो लॉग डॉ. चंद्रकांत के बेडरूम में जाते है, प्रोफेसर वहां दीवार पर लगी एक महंगी पेंटिंग को हटाते है जहां एक सीक्रेट लॉकर है, वो उस लॉकर को खोल कर उसमें से वो डायरी निकालते है।

प्रोफेसर :
“ ये हे वो डायरी। “

      कनिष्क प्रोफेसर से वो डायरी लेता है, और उसके पन्ने पलटता है, वो इसे ऊपर ऊपर से जल्दी से पढ़ता है।  

कनिष्क :
“ ठीक है, वाकई में इस किताब में काफी सारे राज़ छुपे हुए है, आपने इसे पढ़ा है ? “

प्रोफेसर :
“ ज़्यादा नहीं, बस थोड़ा सा ? “

कनिष्क :
“ आपने क्या पढ़ा इसमें ? “

प्रोफेसर :
“ इस किताब की कहानियों में इंसानों का ख़ून पी कर जीने वाले विचित्र लोगों के बारे में लिखा गया है, जो हजारों सालों से इंसानों के बीच छिप कर रहते आए है, और इन्हीं के बारे में है सब। “

कनिष्क गंभीरता से कहता है :
“ प्रोफेसर… आप तो काफी कुछ जान चुके है इसके बारे में, मतलब आप के भाई की तरह आप पर भी ये खतरनाक साबित हो सकता है, आपको अभी मेरे साथ आना होगा। “

प्रोफेसर :
“ लेकिन कहा ? “

कनिष्क :
“ एक सुरक्षित जगह पर, जहां mr. वालिया और में आपसे कुछ जरूरी डिस्कशन करेंगे, यहां या आपके घर पर आपको खतरा हो सकता है। “

     प्रोफेसर अभी मुश्किल से अपनी जान बचा कर लौटे है इसे लिए वो कनिष्क की बात मान लेते है, इसके बाद प्रोफेसर वापस से कनिष्क की गाड़ी में बैठ जाते है और फिर वो लोग डॉ. चंद्रकांत के घर से निकल जाते थे है।  

     रात के 10 बज रहे है, सड़क तो पहले ही सुनसान हो चुकी है, कोहरा फ़िरसे अपना आकर ले रहा है, कुछ देर बाद कनिष्क शहर से बाहर जाने वाले रॉड पर गाड़ी मोड़ता है, अचानक से कार में रेडियो चल पड़ता है जिसमें एक पुराना गाना बजने लगता है - 

         “ दुश्मन बहोत है यहां जान के…
          कई चेहरों में छिपा है एक कातिल… “

इस गाने की धुन कार में गूंजने लगती है।

प्रोफेसर चिंतित हो कर कहते है : 
“ कोहरा बढ़ रहा है, हम शहर से बाहर की ओर क्यों जा रहे है ??? “

कनिष्क भारी आवाज़ में कहता है :
“ प्रोफेसर… क्योंकि तुम वो जान चुके हों जो तुम्हे नहीं जान ना था। “

प्रोफेसर डरते हुए कहते है : 
“ मुझे यहां कुछ भी सही नहीं लग रहा है, क्या तुम मुझे मेरे घर पर छोड़ दोगे ??? “

कनिष्क :
“ नहीं… तुम अब मेरे साथ चलोगे। “

      कनिष्क अपना सफेद चश्मा निकलता है, उसकी आंखों से वो नकली लेंस निकल जाते है, इसके बाद वो प्रोफेसर की ओर मुड़ता है, वही काली घनी, तेज़ तरार और डरावनी आंखे जैसी कुर्षित की थी, प्रोफेसर डर के मारे सुन्न पड़ जाते है।
    
      कनिष्क ज़ोर से अजीब और डरावने ढंग से हंसने लगता है, इसके बाद कार तेज़ रफ़्तार से दौड़ते हुए कोहरे के धुएं में गायब सी हो जाती है। “


*वो लोग छुप कर रहते है, 
वो सामने नहीं आते,
वो शातिर है, 
वो ख़तरनाक है, 
वो साज़िश करते है,
अंधेरा उनका साम्राज्य है, 
अपने आस पास देखो और पहचानो कि वो कौन है।* 

The End…
                                                     
                                            Written by 
MIHIR NISARTA 




Note : इसी कहानी से जुड़ी हुई एक बड़ी नोवेल 
“ अंधेरे की दुनिया - Sign a pact with darkness “  
बहुत जल्द प्रकाशित होगी, 

अभी इस कहानी को पढ़ने के लिए धन्यवाद, अपना रिव्यू -रेटिंग जरुर दे ।