" Chapter 1 - घना कोहरा "
खूबसूरत ठंड के मौसम में पूनम की रात है, आसमान में चांद चमक रहा है पर चांद की रोशनी धरती की सतह तक नहीं छू पा रही क्योंकि धीमे कोहरे ने उसका रास्ता रोका हुआ है, शहर की ओर जाने वाले दो लेन वाले रोड़ पर एक कार धीमे कोहरे के बीच आगे बढ़ रही है, रात के 10 बज चुके है, रोड लग भग सुनसान है, शायद कोहरे की वजह से ।
कार में पुलिस हैड कांस्टेबल राकेश (उम्र 42), उसकी वाइफ रेखा और दो बेटे (12- 14 उम्र) जो पीछे बैठे हुए वीडियो गेम खेल रहे है, ये फैमिली अपने मामा के घर से डिनर पार्टी कर के घर की और वापस लौट रहे है ।
राकेश ड्राइव कर रहा है, कार सामान्य गति से शहर की ओर बढ़ रही है, रास्ते के आसपास झाड़ियां है, कुछ हरे भरे खेत है, चांदनी रात आसमान में थोड़े बादल और तारे, धीमे कोहरे के बीच का ये खूबसूरत नज़ारा और ये सफर बिल्कुल ऐसा लगता हे जैसे स्वर्ग की शेर कर रहे हो ।
रेखा नाराज़ हो कर कहती है :
“ मैने पहले ही कहा था जल्दी चलने को, लेकिन मेरी सुनता कौन है, इतनी रात गए हम अब तक इस सुनसान सड़क पर घूम रहे है । “
ड्राइव करते हुए राकेश जवाब देता है :
“ अब शांत हो जाओ, हम शहर से सिर्फ 9 किलोमीटर दूर है, बस अभी बीस पच्चीस मिनिट में घर पहुंच जाएंगे शहर । “
रेखा :
“ काफी देर हो गई, जरा देखो रोड़ पर कोई और गाड़ी भी नहीं दिख रही । “
राकेश :
“ कैसे दिखेगी, इतने कोहरे में भला 10 बजे कौन बाहर निकलेगा । “
रेखा :
“ मुझे तो इतनी रात में इस वीरान जंगल से जाना ठीक नहीं लग रहा । “
राकेश :
“ अरे काहेका जंगल, जरा ठीक से देखो ये बस झाड़ियां है इसके पीछे खेत और थोड़ी ही दूर गांव वालों के घर भी होंगे ।
“
रेखा :
“ हमे मामा के वहां ही रुक जाना चाहिए था… यही सही रहता । “
राकेश :
“ अरे… कल सुबह मेरी ड्यूटी है, तुम जानती हो पुलिस वालो को आसानी से छुट्टी नहीं मिलती, और ये तो मेरा रोज़ का काम है देर रात तक पैट्रोलिंग करना । “
रेखा :
“ ठीक है, जरा जल्दी करो… मुझे तो घर जाकर ही शांति होगी । “
राकेश :
“ घर जाकर क्या करोगी बाहर देखो कितना खूबसूरत नज़ारा है, अरे मूर्ख लड़कों तुम दोनों भी गेम से निकल कर जरा बाहर देखो चांदनी रात में कोहरा इतना खूबसूरत नज़ारा… “
रेखा :
“ ये खूबसूरत नहीं डरावना है… तुम ही देखो । “
लड़के कहते है :
“ आप हमे बस घर पहुंचा दो, नींद आ रही है अब । “
राकेश म्यूज़िक सिस्टम ऑन करता है और एक पुराना गाना प्ले करता है, इसके बाद वो एक हाथ से ड्राइव करते हुए सिगरेट निकलता है, तभी रेखा उसके हाथ से सिगरेट छीन लेती है और जल्दी घर पहुंचने के लिए ढंग से कार चालने को कहती है ।
थोड़ी देर बाद रेखा की नज़र बाहर के बदलते वातावरण पर पड़ती है, वो देखती है कि जैसे जैसे वो आगे बढ़ रहे है वैसे वैसे कोहरा और भी ज्यादा फेल रहा है, रेखा को ये ठीक नहीं लगता ।
रेखा कहती है :
“ एय राकेश… तुम देख रहे हो ? कोहरा और भी ज़्यादा बढ़ रहा है । “
राकेश :
“ हा में देख रहा हु, ये तो नॉर्मल है, गाड़ी में फॉग लाइट है, आराम से हम घर पहुंच जाएंगे । “
रेखा कहती है :
“ मुझे तो कुछ भी ठीक नहीं लग रहा है । “
राकेश :
अरे, तुम शांति रहो, तुम पहली बार ऐसी कोहरे वाली रात में सफ़र कर रही हो इस लिए डर लग रहा है, बी पॉजिटिव । “
कार आगे बढ़ रही है, रेखा की नज़र सामने के रास्ते पर है, वो जल्द से जल्द अपने घर पहुंचने के लिए बेचैन है, राकेश भी अपने घर पहुंचने के लिए कोहरे से लड़ते हुए कार ड्राइव कर रहा है ।
थोड़ा आगे जाकर उन्हें सामने कुछ ही दूरी पर रोड़ के साइड में लाल लाइटें जलती हुई दिखती है, कोहरे में कुछ भी साफ़ दिख नहीं रहा, राकेश गाड़ी की रफ़्तार कम करता है ।
रेखा परेशान हो कर कहती है :
“ वो क्या है ??? “
राकेश :
“ वो तो पास जाकर ही पता चलेगा । “
वहां थोड़ी ही पास जाकर राकेश और रेखा देखते है कि एक बड़े पेड़ से एक कार टकराई हुई है और उसकी पीछे की लाइटें जल रही है, कार के बोनट से धुआं निकल रहा है और वो भी कोहरे में घुल -मिल रहा है, राकेश गाड़ी रोक देता है ।
राकेश गंभीर हो कर कहता है :
“ अरे नहीं… यहां तो एक्सीडेंट हुआ है । “
रेखा परेशान हो कर कहती है :
“ मुझे पहले से ही यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा था, चलो जल्दी से यहां से चलते है । “
पीछे बैठे बच्चे भी राकेश को वहां से चलने के लिए कहते है, पर राकेश उन सबको शान्त रहने के लिए कहता है ।
राकेश कहता है :
“ देखो, में एक पुलिस वाला हु मुझे वहां चेक करना होगा कि कोई गाड़ी के अंदर फंसा तो नहीं… “
राकेश कार की सीट से लोहे की रॉड निकालता है, फिर रेखा के मना करने के बाद भी गाड़ी से नीचे उतर कर उस एक्सीडेंट वाली कार की ओर आस पास देखते हुए आगे बढ़ता है ।
राकेश कार के पास जाकर देखता है कि उसमें कोई भी नहीं, राकेश सोच में पड़ जाता है, फिर वो वापस अपनी कार के पास आता है ।
रेखा उत्सुकता से कहती है :
“ क्या हुआ ? वहां कोई है ? “
राकेश :
“ कार की लाइटें जल रही है, पर अंदर कोई नहीं, लगता है किसी और ने उन्हें बाहर निकाला होगा और शायद हॉस्पिटल ले गया हो । “
रेखा कहती है :
“ चलो यहां से जल्दी, हमे भी घर जाना है, कोहरा बढ़ रहा है मुझे यहां रुकना ठीक नहीं लग रहा । “
राकेश अपना फोन निकलता है और पुलिस स्टेशन पर कॉल करता है ये रिपोर्ट करने के लिए कि वहां एक एक्सीडेंट हुआ है, पर वहां नेटवर्क नहीं मिलता, इसके बाद राकेश अपनी कार में बैठ जाता है और फिर वो लोग शहर की ओर आगे बढ़ने लगते है ।
राकेश रेखा को भी पुलिस स्टेशन फोन करने के लिए कहता है, लेकिन उसके फोन में भी नेटवर्क नहीं आता, जैसे जैसे वो शहर की ओर आगे बढ़ रहे है वैसे वैसे कोहरा और भी ज़्यादा गहरा होने लगता है ।
थोड़ा आगे जाने के बाद अचानक कार में कुछ प्रोबलेम होती है, कार रुक रुक कर चलने लगती है और फिर बंद हो जाती है ।
राकेश गुस्से में कहता है :
“ अरे नहीं… इस खटारा गाड़ी को भी अभी बंद होना था । “
रेखा भी गुस्से में बोल पड़ती है :
“ अब हम घर कैसे जाएंगे ? तुम्हे पता है कितनी रात हो चुकी है । “
राकेश :
“ ओके, कोई बात नहीं तुम लोग शांति बनाए रखो, में इसे ठीक कर दूंगा, वैसे भी हम शहर से नजदीक है, शायद 5 किलोमीटर दूर । “
रेखा :
“ मुझे अब यहां डर लग रहा है, क्या तुम मदद बुला सकते हो कही ? “
राकेश :
“ फिकर मत करो, में ठीक कर दूंगा, वैसे भी यहां पास ही में एक ढाबा और पेट्रोल पंप है, हम वहां से मदद ले सकते हे । “
इसके बाद राकेश कार से नीचे उतरता है, रेखा और बच्चों को अंदर ही रुकने के लिए कहता है, राकेश कार के सामने जाकर बोनट खोलता है और उसमें टॉर्च से सब कुछ चैक करने लगता है, पर वो इस बात से अंजान है कि इस चांदनी रात पर घना कोहरा ग्रहण लगा रहा है ।
राकेश का ध्यान कार को ठीक करने में लगा हुआ है, कुछ ही देर में अचानक घने कोहरे की लहर वहां आती है, आस पास दो से तीन मीटर के दायरे में कुछ भी दिखाई देना बंद हो जाता है ।
वो कोहरा पूरी तरह से राकेश और पूरी कार को घेर लेता है, कार के अंदर बैठे रेखा और बाकी बच्चे ये सब देख कर काफी डर जाते है, वो समझ नहीं पाते कि ये सब क्या हो रहा है ।
रेखा को राकेश की फ़िक्र होती है, वो कार का थोड़ा सा शीशा खोल कर राकेश को आवाज़ देकर वापस कार में चले आने को कहती है, पर बाहर से कोई भी जवाब नहीं आती रेखा और भी परेशान हो जाती है, रेखा फिरसे आवाज़ देती है पर इस बार भी कोई जवाब नहीं मिलता ।
कुछ देर इंतजार करने के बाद परेशान रेखा खुद ही बाहर जाने का फैसला करती है, वो बच्चों को अंदर से कार लॉक करने ओर अंदर ही रहने को कहती है और फोन की टॉर्च जला कर कार से बाहर निकलती है ।
रेखा आवाज़ देते हुए कार के आगे जाती है, कार का बोनट खुला हुआ है पर वहां राकेश नहीं है ।
रेखा वहां आस पास जोर से चिल्ला कर राकेश को आवाज़ देती है पर उसे कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिलता, सिर्फ निशाचर पक्षियों की अजीब सी आवाजें सुनाई देती है ।
रेखा आवाज़ देते हुए थोड़ा चल कर आगे जाती है, वहीं एक बार फिरसे घने कोहरे की लहर वहां पर आती है और रेखा को घेर लेती है ।
दोनों छोटे लड़के अकेले कार में बैठे हुए है, वो दोनों इस बात से अंजान है कि बाहर क्या चल रहा है, काफ़ी देर होने के बाद भी उसके पिता और मां दोनों ही वापस नहीं लौटे तो उनका डर और भी बढ़ गया, बाहर कोहरा है इस लिए वो दोनों बाहर भी नहीं जाना चाहते ।
लग भग एक घंटा ऐसे ही बीतता है, बच्चे अकेले गाड़ी में बैठे रहते है और वापस कोई नहीं आता, कोहरा भी अब बिखर रहा है, धीमा पड़ रहा है, ऐसा लगता है जैसे सब कुछ पहले की तरह नॉर्मल हो रहा हो ।
बाहर अब फिरसे लग भग सब कुछ अच्छे से दिखने लगा है, पर बच्चे काफी परेशान और डरे हुए है क्योंकि उनके पिता और मां कही गायब है, वो दोनों कार से उतर कर उन्हें ढूंढना चाहते हैं पर डर के मारे वो ऐसा कर नहीं पाते ।
थोड़ी देर बाद पीछे से तेज रोशनी सी चमकती हुई दिखती है, बच्चे पीछे के शीशे में झाक कर देखते है, बच्चों को उम्मीद की एक किरन दिखाई देती है, एक गाड़ी पीछे से आती हुई लगती है, थोड़ी देर में काले रंग की लंबी सिडान कार वहां नजदीक आकर रुकती है ।
बच्चे उस कार को उत्सुकता से देखते हैं, उन बच्चों को भी ऐसा लगता है जैसे कोई उस सामने वाली कार में से उन्हें देख रहा हो, थोड़ी ही देर में उस कार में से एक आदमी बाहर आता है ।
कार में से बाहर निकला वो आदमी काफी अजीब लग रहा है, उसके लंबे बाल, काला जैकेट और इतनी रात में भी काले चश्मे लगा रखे है, वो आदमी चलता हुआ राकेश की कार के पास आता है ।
वो गाड़ी का खुला हुआ बोनट देखता है, इसके बाद वो अंदर झाक कर देखता है तो उसे दो छोटे लड़के दिखाई देते है, वो आदमी बंद कांच की खिड़की पर नोक कर के शीशा खोलने का इशारा करता है ।
बच्चे वहां पर अकेले है, उनके पास ओर कोई चारा नहीं, इस लिए वो आपस में कुछ बाते करते है और फिर शीशा खोल ने का फैसला करते है, बच्चे खिड़की का कांच खोलते है ।
वो आदमी मुस्कुराते हुए कहता है :
“ क्या हुआ बच्चों ? इतनी रात में यहां अकेले क्या कर रहे है ? तुम्हारे मां बाप कहा है ? “
बच्चे हिचकिचाते हुए कहते है :
“ हमारी कार खराब हो गई थी, वो पापा कार से बाहर निकले थे, काफी देर हो गई… पता नहीं… वो कहा चले गए । “
वो आदमी कहता है :
“ इट्स ओके, यहां पास ही में गांव है, शायद तुम्हारे मां बाप वहां चले गए हो, मेरा नाम *कुर्षित* है, में तुम्हारी मदद कर सकता हु । “
बच्चे थोड़ा सोच कर कहते है :
“ हमारे मम्मी पापा को ढूंढ सकते हो ? “
कुर्षित :
“ रात काफी हो चुकी है, मेरे पास ज्यादा वक़्त नहीं है, पर में तुम्हे किसी सैफ जगह पर ले जा सकता हु । “
बच्चे फिरसे सोच कर कहते है :
“ हमे पुलिस स्टेशन ले जा सकते हो ? “
कुर्षित मुस्कुरा कर केहता है :
“ तुम लॉग तो काफ़ी तेज हो, चलो ठीक है… हम ऐसा ही करते है । “
इसके बाद बच्चे अपनी कार से नीचे उतरते है, वो अभी भी थोड़े घबराएं हुए है, वो लोग कुर्षित की कार में बैठ जाते है, कुर्षित आस पास झाक कर देखता है और फिर कार में बैठ जाता है, कुर्षित कार को मोड़ कर वापस शहर की विरुद्ध दिशा में ले जाता है,
बच्चे ये देख कर कहते है :
“ शहर तो सामने है, आप हमे कहा ले जा रहे हो ??? “
कुर्षित कहता है :
“ यहां पीछे पास ही में मेरा घर है, मुझे काफी भूख लगी है, और तुम दोनों को देख कर मेरी भुख और भी बढ़ गई है… हा.. हा.. हा… । “
कुर्षित अजीब तहत से हसने लगता है, बच्चे ये सुन कर घबरा जाते है, वो काफी ज्यादा डर जाते है ।
कुर्षित फिरसे कहता है :
“ शांत हो जाओ, में तो बस मज़ाक कर रहा था, हा.. हा.. “
इसके बाद कुर्षित और उसकी कार उन दो बच्चों को लेकर कोहरे को चीरते हुए वहां से चली जाती है ।
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