1. नीली राख की राह
दरभंगा से निकलती ट्रेन की खिड़की पर नीली धूल चिपकी थी।
रेल की आवाज़ों में एक अजीब-सी थरथराहट थी — जैसे हर डिब्बे में कोई अनदेखी रूह सफ़र कर रही हो।
दिल्ली जा रही थी प्रोफ़ेसर अनामिका मेहरा, दरभंगा विश्वविद्यालय की नई रिसर्च हेड।
वो उस रहस्य को समझना चाहती थी, जिसने “अधूरी किताब” के तीन लेखकों को मिटा दिया था — आर्यन, आर्या और अब मीरा दास।
अनामिका के पास मीरा का बैग था, जिसमें वही किताब थी — आधी जली, पर अब भी ज़िंदा।
ट्रेन के चलते ही किताब के पन्ने खुद-ब-खुद खुले —
और पहले पन्ने पर नीली स्याही से लिखा था —
> “जो कहानी दिल्ली जाएगी, वो लौटेगी नहीं…”
अनामिका ने डरते हुए किताब बंद की।
पर तभी बाहर खिड़की से किसी ने फुसफुसाया —
“तुम देर कर चुकी हो…”
उसने खिड़की की तरफ देखा —
पर वहाँ सिर्फ़ नीली राख उड़ रही थी।
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2. हवेली की दस्तक
दिल्ली पहुँचने के बाद वो राठौर हाउस पहुँची — वही पुरानी हवेली, जहाँ आर्यन घोष आख़िरी बार देखा गया था।
अब वह हवेली वीरान थी, पर उसके गेट पर एक पंक्ति खुदी थी —
> “लेखक मरे नहीं करते, बस रौशनी बदल लेते हैं।”
अनामिका ने अंदर कदम रखा।
दीवारों पर अधूरी पेंटिंग्स थीं — कुछ पर नीली स्याही से धब्बे बने थे।
अचानक हवेली की हवा भारी हो गई।
उसके सामने किताब अपने आप खुली और पन्ने पर शब्द उभरे —
> “वादा पूरा करो — नहीं तो रौशनी निगल जाएगी।”
वह काँप उठी, “कौन-सा वादा?”
पर जवाब देने के बजाय हवेली के लैंप अपने आप जल उठे — नीली रौशनी में।
और उसी पल, दरवाज़े के पास एक साया उभरा —
आर्यन घोष।
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3. रूह की वापसी
आर्यन की आँखों में वही नीला प्रकाश था।
“मैंने कहा था न, ये कहानी किसी के हाथ में नहीं रह सकती,” उसने कहा।
अनामिका ने धीमे स्वर में पूछा, “तुम मर चुके हो…”
आर्यन मुस्कुराया, “मृतक सिर्फ़ तब तक मरा रहता है, जब तक उसकी कहानी अधूरी है।”
“तो मीरा दास का क्या हुआ?”
“वो मेरी रचना थी — किताब ने उसे चुना था ताकि मैं लौट सकूँ।”
अनामिका पीछे हटी, “तो अब तुम क्या चाहते हो?”
“वादा निभाओ,” आर्यन बोला, “जो हमने उस रात किया था — कहानी को पूरी करने का।”
वह सिहर गई — उसे याद आया, जब सालों पहले दरभंगा में उसने आर्यन के साथ “संवेदन ऊर्जा” पर रिसर्च शुरू की थी।
उन्होंने कसम खाई थी कि अगर कोई एक मरेगा, तो दूसरा उसकी कहानी खत्म करेगा।
पर अब…
आर्यन तो रूह बन चुका था।
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4. काली रौशनी
अचानक हवेली की छत से नीले धुएँ का एक झोंका उतरा।
आर्या घोष की रूह वहाँ खड़ी थी — वही नीली आँखें, वही अधूरी मुस्कान।
“तुम दोनों अब भी नहीं समझे?”
उसने कहा, “यह किताब किसी इंसान की नहीं… यह भावनाओं की कब्र है।”
अनामिका ने घबराकर पूछा, “इसका मतलब?”
“जो लिखता है, वो अपनी आत्मा इसमें कैद कर देता है। हर अध्याय एक रूह बनाता है, और हर विराम… एक मौत।”
आर्यन ने कहा, “तो हमें कहानी बंद करनी होगी।”
“बंद?” आर्या हँसी, “तुम सोचते हो इसे रोक सकते हो?
यह किताब अब इंसान नहीं — वादा बन चुकी है।”
नीली रौशनी कमरे में घूमने लगी —
दीवारों पर शब्द उभरने लगे:
> “हर वादा पूरा होगा — चाहे रूहें क्यों न जलें।”
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5. इंस्पेक्टर आदित्य की वापसी
उसी समय हवेली के गेट पर किसी ने दस्तक दी।
अनामिका ने दरवाज़ा खोला — सामने इंस्पेक्टर आदित्य सिंह खड़ा था।
“मुझे लगा, ये सब खत्म हो गया,” अनामिका ने कहा।
“खत्म?” आदित्य ने ठंडी हँसी हँसते हुए कहा,
“जब मैंने आख़िरी पन्ना लिखा था, किताब ने खुद को मेरे खून से सील कर लिया था। अब वो फिर खुल गई है… तुम्हारी वजह से।”
अनामिका ने घबराकर पूछा, “क्या करना होगा?”
“हमें कहानी पूरी करनी होगी — वहीं जाकर, जहाँ ये शुरू हुई थी… दरभंगा की हवेली में।”
“लेकिन वो तो जल चुकी है!”
“नहीं,” आदित्य ने कहा, “वो अब दिल्ली में फिर से बन रही है — इस हवेली की नींव में।”
नीली रौशनी और तेज़ हो गई।
किताब ज़मीन पर गिरी और अपने आप खुली।
इस बार उस पर लिखा था —
> “आख़िरी अध्याय — काली रौशनी का वादा”
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6. विरासत का आह्वान
आर्यन ने कदम आगे बढ़ाया, “आदित्य, तुमने पहले इसे विराम दिया था, पर अब समय आ गया है इसे पूरा करने का।”
“कहानी किसकी है आखिर?” आदित्य ने पूछा।
आर्या ने उत्तर दिया, “उसकी… जिसने इसे शुरू किया था।”
कमरे में ठंडी हवा चली।
दीवार पर पुरानी स्याही से एक नाम उभरा —
“राठौर।”
अनामिका ने चौंककर कहा, “मतलब शौर्य राठौर? वही हवेली वाला?”
आर्या ने सिर झुकाया, “हाँ। वही इस किताब का असली लेखक था।
उसने अपनी अधूरी मोहब्बत को शब्दों में बंद किया था, जो अब रूहों की बेड़ियाँ बन चुकी है।”
आदित्य ने किताब उठाई — “तो अब हमें शौर्य को ढूँढना होगा।”
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7. अधूरी मोहब्बत की परछाई
रात के तीन बजे वे तीनों हवेली के नीचे के तहखाने में पहुँचे।
दीवार पर कुछ उभरे अक्षर चमक रहे थे —
“जहाँ मोहब्बत अधूरी रहे, वहीं कहानी शुरू होती है।”
वहाँ एक पुरानी मेज़ थी, जिस पर स्याही की बोतल अब भी रखी थी।
पर स्याही नहीं — खून था।
अनामिका ने काँपते हुए कहा, “यह… शौर्य का खून है…”
आर्यन ने कहा, “वो आख़िरी पन्ना लिखते हुए मरा था — अब वो ही इस किताब की आत्मा है।”
अचानक दीवार से एक भारी साँस की आवाज़ आई —
और अंधेरे में एक आकृति उभरी — शौर्य राठौर।
वह मुस्कुराया, “तो अब मेरी कहानी लिखने आए हो?”
अनामिका पीछे हट गई, “हम इसे खत्म करने आए हैं।”
शौर्य ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए,
“खत्म? नहीं… मैं इसे शुरू करने आया हूँ।”
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8. वादा जो निभाना था
नीली रौशनी अब काली हो चुकी थी।
किताब के पन्ने तेज़ी से घूमने लगे।
हर पन्ने पर एक नाम जल रहा था —
आर्यन… आर्या… आदित्य… अनामिका…
शौर्य ने कहा,
“किताब खत्म करने के लिए, किसी को अपना नाम आख़िरी पन्ने पर लिखना होगा — स्थायी स्याही से, यानी अपनी आत्मा से।”
आर्या ने कहा, “नहीं! ऐसा मत करना।”
पर अनामिका आगे बढ़ी।
उसने कहा, “अगर इस श्राप को खत्म करने के लिए एक को जलना है, तो मैं तैयार हूँ।”
उसने कलम उठाई, किताब के अंतिम पन्ने पर लिखा —
> “अधूरी किताब — अब खत्म।”
नीली लपट उठी और सब कुछ अंधेरे में समा गया।
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9. आख़िरी रोशनी
सुबह दिल्ली की हवेली राख में बदल चुकी थी।
पुलिस ने जब मलबे की जाँच की, तो एक ही चीज़ सही हालत में मिली —
किताब।
कवर पर नए अक्षर थे —
> “लेखक: अनामिका मेहरा।”
“अंतिम अध्याय लिखा गया।”
पर नीचे बहुत हल्के से चमकता था एक और वाक्य —
> “वादा अभी पूरा नहीं हुआ…”
और उसी रात, दिल्ली विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में किसी ने दीवार पर स्याही से लिखा देखा —
> “कहानी अब बनारस जाएगी — जहाँ अगला लेखक इंतज़ार कर रहा है…”
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🌑 एपिसोड 22 समाप्त
Next Hook – एपिसोड 23 की झलक:
> “गंगा किनारे की वह पुरानी हवेली, जहाँ रात के तीसरे पहर कोई किताब नहीं पढ़ता — क्योंकि वहाँ किताब खुद पढ़ती है… इंसानों को।”