🌕 एपिसोड 21 : “अधूरी किताब – अब कौन लिखेगा
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1. राख की गंध
दरभंगा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी उस सुबह असामान्य रूप से शांत थी।
सूरज की हल्की किरणें पुराने शीशों से छनकर अंदर आ रही थीं, पर मेज़ नंबर 13 पर… सिर्फ़ राख पड़ी थी।
वही जगह — जहाँ कल तक आर्या घोष बैठी थी।
किताब, नोट्स, कॉफी कप — सब गायब। बस राख और एक हल्की स्याही की गंध।
लाइब्रेरियन मिसेज़ वर्मा ने घबराकर चौकीदार को बुलाया,
“किसने रात में लाइब्रेरी खोली थी?”
चौकीदार हकलाया, “कोई नइ सर… लेकिन रात के डेढ़ बजे लाइट जल उठी थी। सोचा बिजली का झटका होगा।”
वर्मा ने मेज़ के पास झुककर देखा —
राख के बीचोंबीच एक आधा जला पन्ना पड़ा था।
उस पर लिखा था —
> “हर लेखक की कहानी वहीं खत्म होती है,
जहाँ उसकी रूह लिखना छोड़ दे…”
और नीचे —
> “लेखक: आर्या घोष।”
वर्मा के हाथ काँप उठे।
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2. पुलिस और रहस्य
अगले दिन पुलिस पहुँची।
इंस्पेक्टर आदित्य सिंह ने आसपास का मुआयना किया।
वो दरभंगा के पुराने केसों में रह चुके थे — दरभंगा हवेली केस — जहाँ अनामिका सेन और आर्यन की रहस्यमयी मौत हुई थी।
उन्होंने धीरे से कहा, “इतनी पुरानी किताबें, वही नाम… आर्या घोष… ये सब कुछ déjà vu लग रहा है।”
उनके साथ रिसर्च हेड प्रोफेसर रमाकांत भी थे — वही जिन्होंने सबसे पहले किताब को लाइब्रेरी में देखा था।
रमाकांत ने धीमे स्वर में कहा, “सर, ये सब संयोग नहीं है।
मैंने उसे चेतावनी दी थी कि वो किताब शापित है।”
आदित्य ने किताब का जला हुआ कवर उठाया।
हल्की राख उड़ी और कवर पर अक्षर उभर आए —
> “अधूरी किताब – भाग पाँच”
“भाग पाँच?” आदित्य ने हैरानी से कहा, “लेकिन इसका लेखक कौन है?”
नीचे स्याही में धीरे-धीरे अक्षर उभरने लगे —
> “तुम।”
कमरा ठंडा हो गया।
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3. इंस्पेक्टर का श्राप
आदित्य ने किताब को झोले में डाला और ऑफिस लौट आया।
पर उस रात वह सो नहीं पाया।
हर बार जब वो आँखें बंद करता, तो नीली लौ और आर्या का चेहरा दिखाई देता।
रात के करीब दो बजे उसके कमरे में हल्की फुसफुसाहट हुई —
“कहानी तुमसे खत्म नहीं होगी… तुमसे शुरू होगी।”
आदित्य ने उठकर लाइट ऑन की — पर लाइट flicker करने लगी।
टेबल पर किताब खुली पड़ी थी — अपने आप।
पहले पन्ने पर लिखा था:
> “कभी-कभी जांच करने वाला ही अगला लेखक बन जाता है।”
उसने झटके से किताब बंद की —
“किसी ने ये सब लिखा है मेरे साथ खेल खेलने के लिए।”
पर तभी कमरे में हवा का एक झोंका आया।
किताब के पन्ने अपने आप पलटे और एक तस्वीर उभरी —
आर्या घोष की।
वह मुस्कुरा रही थी।
“क्या अब तुम लिखोगे, इंस्पेक्टर?”
आदित्य की साँस रुक गई।
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4. किताब का असर
अगले कुछ दिनों में आदित्य के साथ अजीब घटनाएँ होने लगीं।
जहाँ भी वह जाता, राख के निशान मिलते।
उसकी कार की सीट पर, उसके ऑफिस टेबल पर, यहाँ तक कि उसके कपड़ों पर भी।
एक दिन उसके कमरे में आर्या की आवाज़ आई —
“मैं नहीं गई, बस किताब का हिस्सा बन गई हूँ…”
वह काँप उठा, “क्या चाहती हो तुम?”
“कहानी खत्म करो,” आवाज़ बोली,
“वरना अगले लेखक का चयन हो जाएगा।”
“मतलब?”
“हर बार जब लेखक मरता है, किताब खुद नया लेखक चुनती है… अब वो तुम हो।”
आदित्य ने गुस्से में किताब को आग में फेंक दिया।
पर राख की लपटें काली नहीं — नीली थीं।
और उसी नीली लौ से एक परछाई उभरी — अनामिका की।
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5. अनामिका की वापसी
“तुम…?” आदित्य ने कहा।
अनामिका की परछाई ने कहा,
“मैं इस किताब की पहली रूह हूँ। इसे कभी खत्म नहीं होना चाहिए था, पर अब ये किसी को नहीं छोड़ेगी।”
“तो फिर इस श्राप को खत्म कैसे किया जाए?”
“खत्म नहीं… बस विराम दिया जा सकता है। और वो विराम वही दे सकता है, जो सच्चाई लिखे — झूठ नहीं।”
“झूठ?”
“हर लेखक अपनी सच्चाई से भागता है। जो दर्द वो नहीं कह पाता, किताब उसे पूरा करवाती है। आर्या भी भाग रही थी — अब तुम भागोगे?”
अनामिका की आँखें नीली चमक उठीं।
“लिखो आदित्य… वरना अगला नाम राख में उभरेगा — तुम्हारा।”
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6. सत्य की इबारत
आदित्य ने कांपते हाथों से कलम उठाई।
“अगर मैं लिखूँ, तो क्या तुम मुक्त हो जाओगी?”
“नहीं,” अनामिका ने कहा, “लेकिन कहानी रुक जाएगी… कुछ समय के लिए।”
उसने किताब खोली और लिखना शुरू किया —
> “अनामिका, आर्यन और आर्या… तीन नाम, एक श्राप।
और अब यह श्राप मुझे बुला रहा है।
शायद हर कहानी को जीना पड़ता है, सिर्फ़ पढ़ना नहीं।”
जैसे ही उसने अंतिम शब्द लिखा, कमरे में सन्नाटा छा गया।
नीली लौ धीरे-धीरे बुझ गई।
आदित्य ने राहत की साँस ली।
“खत्म…”
पर तभी पन्ने पर एक नई लाइन उभर आई —
> “हर विराम, बस एक सांस का वक़्त होता है।”
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7. नई रूह
अगले दिन आदित्य विश्वविद्यालय लौटा।
रमाकांत ने उसे देखते ही पूछा, “क्या किताब अब खत्म हुई?”
“खत्म नहीं,” आदित्य ने कहा, “बस सोई है।”
लेकिन उसी वक्त पीछे से एक आवाज़ आई —
“सर, क्या ये किताब मुझे रिसर्च के लिए मिल सकती है?”
दोनों ने मुड़कर देखा —
एक नई लड़की, लाइब्रेरी असिस्टेंट, नाम था मीरा दास।
रमाकांत मुस्कुराए, “किताब बहुत पुरानी है बेटी, पर तू ले जा सकती है — संभालकर।”
मीरा ने किताब को झोले में रखा।
जैसे ही उसने उसे छुआ, किताब का कवर हल्का गर्म हो गया।
नीचे के हिस्से में अक्षर धीरे-धीरे उभरने लगे —
> “नया अध्याय – लेखक: मीरा दास।”
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8. फुसफुसाहट की वापसी
रात को मीरा अपने कमरे में बैठी थी।
उसने किताब खोली, और पहले पन्ने पर लिखा पाया —
> “हर नई रूह सोचती है, वो बस पढ़ेगी।
पर अधूरी किताब सिर्फ़ पढ़ने नहीं देती — लिखवाती है।”
मीरा ने चौंककर सिर उठाया —
खिड़की के बाहर वही नीली लौ झिलमिला रही थी।
किसी ने धीरे से फुसफुसाया —
“अब लिखेगा कौन?”
मीरा ने मुस्कुराते हुए कलम उठाई।
“शायद अब मैं…”
किताब के पन्ने अपने आप पलट गए।
नीले धुएँ में फिर वही तीन नाम उभरे —
अनामिका, आर्यन, और आर्या।
और उनके नीचे चौथा नाम चमका —
> “मीरा।”
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9. अंतिम दृश्य
अगली सुबह दरभंगा की हवा में राख की हल्की परत थी।
रमाकांत ने अख़बार खोला —
मुख्य खबर थी:
> “विश्वविद्यालय की नई असिस्टेंट मीरा दास रहस्यमय तरीके से लापता।”
वह ठिठक गया।
लाइब्रेरी की दिशा में देखा —
खिड़की से नीली लौ उठ रही थी।
उसने बुदबुदाया —
“फिर से वही चक्र…”
हवा में किताब के पन्ने उड़ते हुए बाहर निकले।
एक पन्ने पर आख़िरी वाक्य लिखा था —
> “अधूरी किताब कभी खत्म नहीं होती —
बस नया लेखक जन्म लेता है।”
और नीचे, नई स्याही से चमकता हुआ नाम उभरा —
> लेखक: मीरा दास
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🌑 एपिसोड 21 का अंत
(Next Hook – एपिसोड 22 की झलक)
> “मीरा के गायब होने के बाद, दरभंगा विश्वविद्यालय में किसी ने एक पुरानी दीवार पर स्याही से लिखा देखा —
‘कहानी अब दिल्ली जाएगी… जहाँ हवेली का असली लेखक अब भी ज़िंदा है।’”