🌕 एपिसोड 20 : “अधूरी किताब – वो जो अभी खत्म नहीं हुई” 🌫️
1. राख के बाद की ख़ामोशी
दरभंगा की उस हवेली के स्थान पर अब बस राख और पत्थरों का ढेर था।
पर रात के ढलते ही, हवा में फिर वही पुरानी गंध उठने लगी — स्याही और खून की मिली-जुली महक।
रमाकांत ने अपने झोले से वो फटा हुआ पन्ना निकाला जो उसने उस दिन उठाया था।
धूप में तो वह बस राख-सा था, पर जैसे ही अंधेरा घिरा — उस पर अक्षर उभरने लगे।
> “जो कहानी अधूरी छोड़ी जाती है,
वो लेखक के साथ नहीं मरती —
वो अगली आत्मा को ढूँढती है।”
रमाकांत का दिल ज़ोर से धड़क उठा।
“मतलब… किताब अब भी ज़िंदा बा?” उसने खुद से कहा।
पास ही पुराने नीम के पेड़ से किसी ने जैसे ठंडी सांस छोड़ी हो।
हवा में धीमी आवाज़ गूँजी —
“कहानी खत्म नहीं हुई, बस लेखक बदल गया है…”
रमाकांत ने पीछे देखा — कोई नहीं था।
मगर ज़मीन पर एक काली छाया धीरे-धीरे उसकी तरफ़ रेंग रही थी…
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2. नई शुरुआत — आर्या का प्रवेश
दूसरे ही दिन, दरभंगा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में एक लड़की किताबों के ढेर में खोई हुई थी।
नाम था — आर्या घोष, अंग्रेज़ी विभाग की रिसर्च स्कॉलर।
उसे हमेशा अजीब पुरानी चीज़ों में दिलचस्पी रही —
खासकर “हवेलियों और श्रापों के किस्से” में।
उसने अपनी दोस्त सिमी से कहा,
“तुम जानती हो, रमाकांत बाबू कल एक जली हुई किताब लेकर विश्वविद्यालय आए थे। उन्होंने कहा वो दरभंगा हवेली के खंडहर से मिली है।”
सिमी ने हँसते हुए कहा, “तू भी न! सबको भूत-प्रेत दिखते हैं तुझे। कोई पुरानी किताब होगी।”
लेकिन आर्या ने हल्के स्वर में कहा —
“नहीं सिमी… वो किताब सांस लेती है।”
सिमी हँसी रोकते हुए बोली, “क्या मतलब?”
आर्या ने मेज़ पर किताब रखी — राख में सनी, पर अंदर के पन्ने जैसे किसी ने अभी लिखे हों।
कवर पर नाम था —
> “अधूरी किताब – भाग तीन”
और नीचे किसी ने खून जैसे रंग में लिखा था —
> लेखक – अज्ञात।
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3. किताब का पहला संकेत
आर्या ने जब पहला पन्ना खोला, तो भीतर से एक हल्की हवा निकली।
कमरे में मौजूद दीपक की लौ काँपने लगी।
पहला पन्ना पूरी तरह खाली था,
सिवाय एक छोटे से शब्द के —
> “लिखो…”
आर्या ने पेन उठाया और जैसे ही उस शब्द के नीचे “कौन?” लिखा —
सारी लाइट्स एक साथ बुझ गईं।
कमरे में सन्नाटा छा गया।
और फिर किताब के अंदर से वही फुसफुसाहट आई —
“जिसने तुझे चुना है, वही जवाब देगा…”
आर्या का हाथ काँप गया।
पन्ने पर अपने आप नई लकीरें बनने लगीं।
धीरे-धीरे शब्द उभरने लगे —
> “मैं आर्यन हूँ… और कहानी अब भी अधूरी है।”
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4. आर्यन की वापसी
आर्या ने हैरानी से किताब को देखा।
“आर्यन? वही जो अनामिका की कहानी में था?”
किताब में अब तस्वीरें उभर रही थीं —
एक लड़की का चेहरा, जो धीरे-धीरे धुएँ से बन रहा था —
वही अनामिका।
वह मुस्कुरा रही थी, पर आँखों में गहराई थी।
“तू कौन है?” किताब से उसकी आवाज़ निकली।
आर्या ने धीरे से कहा, “मैं आर्या… शायद अब तुम्हारी कहानी लिखने आई हूँ।”
अनामिका बोली, “कहानी नहीं… मुक्ति देने आई है। क्योंकि राख का सौदा पूरा नहीं हुआ।”
आर्या की आँखें फैल गईं।
“मतलब अनामिका मर नहीं गई?”
किताब में धुंधली लकीर बनी —
> “कुछ रूहें मर नहीं पातीं, जब तक उनकी कहानी अधूरी रहे…”
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5. हवेली की वापसी
उसी रात, आर्या ने सपना देखा।
वह उसी हवेली के सामने खड़ी थी जो अब राख में मिल चुकी थी —
पर सपने में वह फिर से खड़ी थी, उसी भव्यता के साथ।
मुख्य द्वार खुला, और भीतर से वही नीली लौ झिलमिलाई।
सीढ़ियों पर कोई खड़ा था — आर्यन।
“तुम अब मेरी कहानी का हिस्सा हो,” उसने कहा।
“लेकिन मैं तो बस रिसर्च कर रही थी…”
“नहीं आर्या,” आर्यन ने कहा, “अब तू उस किताब की नई लेखिका है — और जब तक तू इसे खत्म नहीं करेगी, तू भी मुक्त नहीं होगी।”
आर्या चौंकी, “क्या मतलब?”
आर्यन की परछाई पीछे हटने लगी —
“हर लेखक को कहानी की कीमत देनी पड़ती है…”
जैसे ही उसने यह कहा, नीली लौ ने उसे घेर लिया और आर्या नींद से जाग गई —
किताब उसके सीने पर रखी थी, खुली हुई, और उसी पन्ने पर लिखा था —
> “सपना नहीं था।”
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6. सिमी की गुमशुदगी
अगले दिन कॉलेज में हड़कंप मच गया —
सिमी गायब थी।
आखिरी बार उसे रात में आर्या के कमरे के बाहर देखा गया था।
पुलिस आई, सवाल हुए, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
आर्या ने घर लौटकर किताब खोली —
एक नया पन्ना खुला, जिस पर लिखा था:
> “हर नई कहानी अपने पहले बलिदान से शुरू होती है।”
नीचे एक नाम खुदा था —
> “सिमी।”
आर्या की आँखों से आँसू निकल पड़े।
“नहीं… ये सच नहीं हो सकता।”
किताब से फिर वही आवाज़ आई —
“सच वही होता है जो लिखा जाए।”
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7. श्राप की वापसी
रात के बारह बज रहे थे।
खिड़की के बाहर हवाएँ काँप रही थीं, और दीवार पर राख-सी परछाइयाँ दौड़ रही थीं।
आर्या ने किताब को मेज़ पर रख दिया।
“अगर तू सच में जिंदा है, तो सामने आ,” उसने कहा।
अचानक कमरा ठंडा हो गया, साँसें धुंधली दिखने लगीं।
आर्यन की परछाई धीरे-धीरे दरवाज़े से भीतर आई।
“मैं गया नहीं था,” उसने कहा, “बस तेरा इंतज़ार कर रहा था।”
“क्यों?”
“क्योंकि अधूरी किताब को पूरा करने के लिए, नई आत्मा चाहिए थी — और वो तू है।”
आर्या की आँखों में डर और आकर्षण एक साथ था।
“तो क्या मुझे मरना होगा?”
आर्यन ने हल्के से मुस्कुराया,
“नहीं… तुझे लिखना होगा। लेकिन जो तू लिखेगी, वही घटेगा।”
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8. मौत की इबारत
किताब खुद ही खुलने लगी।
नया पन्ना —
> “अगली आत्मा, जो नाम लिखेगी, उसकी किस्मत तय करेगी।”
आर्या काँपते हुए बोली, “अगर मैं कुछ न लिखूँ?”
किताब से राख का धुआँ निकला और हवा में आकार बनने लगा —
सिमी की परछाई।
“तूने लिखा था… अब मैं नहीं हूँ।”
आर्या चीख पड़ी — “नहीं!”
आर्यन ने कहा, “अब देर हो चुकी है। हर शब्द का असर होता है।”
आर्या ने कलम फेंक दी — “मैं ये नहीं करूँगी।”
किताब ज़ोर से बंद हो गई, और पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया।
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9. अगली सुबह – रहस्य गहराता है
सुबह जब आर्या जागी, उसके कमरे में राख के निशान थे।
मेज़ पर किताब खुली थी —
अब शीर्षक बदल चुका था —
> “अधूरी किताब – भाग चार (आर्या की कहानी)”
उसने पढ़ा —
> “लेखक वही, जो खुद को मिटाने को तैयार हो।”
आर्या ने डर के साथ फुसफुसाया — “क्या अब मैं अगली हूँ?”
दीवार से एक हल्की हँसी आई, वही अनामिका की —
“हाँ… क्योंकि अधूरी किताब कभी खत्म नहीं होती, बस हाथ बदलती है।”
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10. अंतिम दृश्य — अनामिका की वापसी
रात को फिर हवेली के खंडहरों से नीली लौ उठी।
दूर, एक लड़की वहाँ खड़ी थी — आर्या।
उसने किताब हाथ में ली, और धीमे स्वर में कहा,
“अगर ये श्राप तुझे चाहिए, तो ले ले… लेकिन मैं तुझे खत्म करके रहूँगी।”
नीली लौ ने उसे घेर लिया, और आसमान में राख का बवंडर उठा।
रमाकांत जो दूर से ये दृश्य देख रहा था, उसकी आँखें फैल गईं।
“फिर से… कहानी शुरू हो गई…”
किताब हवा में उड़ते हुए उसके पैरों के पास गिरी।
कवर पर अब लिखा था —
> “अधूरी किताब – कभी खत्म नहीं होगी।”
और नीचे, नए अक्षरों में नाम चमक रहा था —
> लेखक – आर्या घोष।
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🌘 एपिसोड 20 का अंत
लेकिन कहानी नहीं — क्योंकि “अधूरी किताब” अब एक नए अध्याय की मांग कर रही है…
ट्विस्ट / हुक लाइन (एपिसोड 21 की झलक):
> “जब आर्या गायब हुई, तो विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में किसी ने उसकी कुर्सी पर राख पाई —
और उस राख से फिर वही फुसफुसाहट आई —
‘अब लिखेगा कौन?’”