समय पथ का यात्री
✍️ लेखक : विजय शर्मा एरी
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प्रस्तावना
कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे रहस्यों से रूबरू करा देती है, जो हमारी सोच से परे होते हैं।
कहते हैं कि समय सबसे बड़ा शिक्षक है, पर अगर किसी के पास समय में यात्रा करने की शक्ति हो तो?
यह कहानी है अभय नाम के एक युवक की, जिसे एक पुरानी डायरी मिलती है और वही डायरी उसे समय यात्री बना देती है।
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पहला अध्याय – रहस्यमयी डायरी
दिल्ली का एक पुराना इलाक़ा था कश्मीरी गेट। यहाँ पर सैकड़ों साल पुराने हवेलियाँ और जर्जर मकान खड़े थे।
अभय, जो इतिहास का छात्र था, अक्सर इन खंडहरों में घूमता और पुरानी वस्तुओं को खोजता। एक दिन बारिश से बचने के लिए वह एक टूटे हुए हवेली में घुसा।
कोने में एक पुरानी लकड़ी की अलमारी रखी थी। जंग लगे ताले को धक्का देते ही वह खुल गया। अंदर से एक काली चमड़े की जिल्द वाली डायरी गिरी।
डायरी पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था –
“समय यात्री की गाथा”
अभय ने पन्ने पलटे। हर पन्ने पर तारीखें लिखी थीं – कुछ 1800 की, कुछ 1500 की और कुछ तो 2100 की!
वह चौंक गया –
“ये कैसे संभव है? क्या यह किसी पागल लेखक की कल्पना है या सच?”
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दूसरा अध्याय – पहला अनुभव
डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था –
“जो भी इस डायरी को खोलेगा, उसे समय में यात्रा करने की शक्ति मिलेगी। बस तारीख लिखो और पन्ना पलटो।”
अभय ने हँसते हुए पन्ने पर लिखा –
“1857 – क्रांति का वर्ष”
जैसे ही उसने पन्ना पलटा, अचानक चारों ओर अंधेरा छा गया। तेज़ हवा चली और उसकी आँखें बंद हो गईं।
जब उसने आँखें खोलीं तो देखा – वह एक बिल्कुल अलग जगह पर है। चारों ओर सिपाही, तलवारें और तोपों की गड़गड़ाहट। लोग “वीर मंगल पांडे की जय!” के नारे लगा रहे थे।
अभय को समझ आ गया – वह सचमुच 1857 की क्रांति के बीच पहुँच चुका है।
वह काँप गया, पर रोमांच से उसकी धड़कन तेज़ हो गई। उसने इतिहास की किताबों में जो पढ़ा था, वह अब उसकी आँखों के सामने था।
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तीसरा अध्याय – ख़तरनाक मुठभेड़
अभय भीड़ में छुपकर खड़ा था, तभी एक अंग्रेज़ सिपाही ने उसे पकड़ लिया –
“Who are you? यहाँ क्या कर रहे हो?”
अभय घबरा गया। तभी एक क्रांतिकारी युवक ने पत्थर फेंका और अंग्रेज़ का ध्यान भटका दिया।
उस युवक ने अभय का हाथ पकड़कर कहा –
“भाई, भागो यहाँ से!”
अभय उसके साथ दौड़ा और एक गली में जाकर रुका। युवक ने पूछा –
“तुम हमारे जैसे लगते नहीं। कौन हो तुम?”
अभय कुछ जवाब नहीं दे पाया। तभी अचानक उसकी जेब में रखी डायरी चमकी और उसने पन्ना पलटा।
पल भर में वह फिर से उसी टूटी हवेली में लौट आया।
वह हाँफते हुए सोचने लगा –
“हे भगवान! ये डायरी सचमुच समय यात्रा कराती है।”
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चौथा अध्याय – भविष्य की ओर
अगले दिन जिज्ञासा उसे चैन न लेने देती। उसने डायरी खोली और लिखा –
“2050 – भारत का भविष्य”
पन्ना पलटते ही वह एक हाई-टेक शहर में पहुँच गया। चारों ओर उड़ने वाली कारें, होलोग्राम स्क्रीन और मशीनों से काम करते इंसान।
पर सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि लोग बहुत अकेले लग रहे थे। किसी के पास हँसी नहीं, सब मोबाइल जैसे उपकरणों में खोए हुए थे।
एक रोबोट ने आकर उससे पूछा –
“आपका पहचान कोड कहाँ है?”
अभय घबरा गया और डायरी खोलकर वापस लौट आया।
उसका दिल काँप उठा –
“अगर भविष्य ऐसा होगा, तो इंसानियत कहाँ जाएगी?”
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पाँचवाँ अध्याय – डायरी का बोझ
धीरे-धीरे अभय इस डायरी का आदी हो गया। कभी वह अकबर के दरबार चला जाता, कभी महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में।
वह हर बार लौटकर अपने नोटबुक में अनुभव लिखता।
पर एक दिन उसकी माँ ने देखा कि अभय अक्सर रातों को गायब हो जाता है और सुबह थका-हारा लौटता है।
“बेटा, सब ठीक तो है?”
अभय मुस्कुराकर टाल देता।
पर उसके मन में सवाल उठने लगे –
“क्या मुझे ये रहस्य सबको बता देना चाहिए? या फिर इसे छुपाकर रखना होगा?”
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छठा अध्याय – समय का न्याय
एक रात अभय ने डायरी में लिखा –
“1947 – स्वतंत्रता की घड़ी”
वह कराची के एक मोहल्ले में पहुँच गया। वहाँ दंगे हो रहे थे। हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे का ख़ून बहा रहे थे।
अभय ने पहली बार इंसानियत का सबसे डरावना चेहरा देखा।
वह रो पड़ा –
“इतिहास की किताबों में ये दर्द मैंने पढ़ा था, पर आँखों से देखना कितना भयानक है।”
उसने सोचा, काश वह लोगों को रोक सके। पर डायरी में लिखा था –
“समय यात्री कभी अतीत को बदल नहीं सकता। वह केवल गवाह बन सकता है।”
अभय असहाय खड़ा रहा।
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सातवाँ अध्याय – आखिरी पन्ना
एक दिन उसने डायरी के अंतिम पन्ने पर लिखा देखा –
“अगस्त 2025 – समय यात्री का अंत”
अभय चौंक गया।
“2025? तो इसका मतलब मैं ही वो समय यात्री हूँ जिसकी कहानी इस डायरी में लिखी है?”
उसके हाथ काँप गए।
क्या वाकई उसका अंत होने वाला है?
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आठवाँ अध्याय – सच्चाई की पहचान
अभय ने अंतिम साहस जुटाकर डायरी का आखिरी पन्ना पलटा।
वह अपने ही कमरे में पहुँचा, पर सामने खड़ा था – उसका ही दूसरा रूप, एक बूढ़ा अभय।
बूढ़े अभय ने कहा –
“हाँ बेटा, ये डायरी मेरी थी… और अब तेरी है।
समय यात्री का बोझ कोई साधारण इंसान नहीं उठा सकता। मैंने सारी ज़िंदगी इतिहास और भविष्य में घूमकर बिताई, पर अंत में समझा कि असली सुख वर्तमान में है।
इसलिए अब तुझे ये शक्ति छोड़नी होगी।”
युवा अभय की आँखों से आँसू बह निकले –
“पर अगर मैं समय यात्रा छोड़ दूँ तो?”
बूढ़े अभय ने मुस्कुराकर कहा –
“तब तू सच्चा यात्री बनेगा – वर्तमान का यात्री। क्योंकि असली जीवन यही है।”
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उपसंहार
अगली सुबह अभय ने डायरी को उसी हवेली में जाकर वापस अलमारी में रख दिया।
उसने आखिरी बार लिखा –
“समय यात्रा का सबसे बड़ा सबक – भविष्य की चिंता और अतीत का बोझ छोड़कर, वर्तमान में जीना ही असली आज़ादी है।”
डायरी बंद हुई और जैसे ही उसने उसे रखा, अलमारी अपने आप बंद हो गई।
अभय घर लौटा, चेहरे पर शांति और आँखों में चमक थी।
अब वह जान चुका था कि समय यात्री होना कोई वरदान नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है।
और यही उसकी सबसे बड़ी खोज थी।
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🌟 संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे अतीत कितना भी गौरवशाली क्यों न हो और भविष्य कितना भी आकर्षक लगे, जीवन का सच्चा आनंद वर्तमान में जीने में है।
समय यात्री की डायरी सिर्फ़ एक प्रतीक थी – जो हमें यह एहसास दिलाती है कि हर इंसान अपने वर्तमान का यात्री है।