Chhaya Pyaar ki - 29 in Hindi Women Focused by NEELOMA books and stories PDF | छाया प्यार की - 29

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छाया प्यार की - 29

(नित्या के अपहरण के बाद इंस्पेक्टर ठाकुर उसे बचाकर घर लौटाते हैं। नित्या डर और सदमे में होती है, जबकि छाया उसकी देखभाल करती है। अगले दिन कॉलेज में रिज़ल्ट आने पर छाया और काशी के अच्छे अंक आते हैं, और वे खुशी में पार्टी करती हैं। लेकिन पार्टी के बाद छाया को याद आता है कि वह इंस्पेक्टर ठाकुर को बुलाना भूल गई। जब वह उनसे मिलने जाती है, तो पता चलता है कि रघु की मौत के बाद भी बक्सीर ज़िंदा है और अब उसकी नज़र नित्या पर है। यह सुनकर छाया समझ जाती है कि खतरा अभी टला नहीं है। अब आगे)

बास्केट बाॅल और काशी

छाया इंस्पेक्टर ठाकुर के पास जाकर बोली —“किसकी नज़र नित्या दीदी पर है? कौन है वो? बोलिए।”

मिहिका ने झट से बात काटी —“कोई नहीं, छाया! तुम गलत समझ रही हो। नित्या नाम की दूसरी लड़की है, वही बात चल रही थी।”

छाया ने दोनों को संदेह भरी नज़रों से देखा —“आप लोग सच तो कह रहे हैं ना?”

इंस्पेक्टर ठाकुर ने हल्की सी झूठी मुस्कान देकर सिर हिलाया। लेकिन छाया की तेज़ नज़रें उनके चेहरे से झूठ भांप चुकी थीं।

छाया ने विषय बदलते हुए कहा —“दरअसल मेरे बी.ए. फर्स्ट ईयर में अच्छे मार्क्स आए हैं, तो मम्मी-पापा ने छोटी सी पार्टी रखी है। अगर आप आ जाएं तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।” इतना कहकर वह वहां से चली गई।

मिहिका और इंस्पेक्टर ठाकुर ने एक-दूसरे की ओर देखा —दोनों जानते थे कि छाया को अब शक हो गया है।

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शाम को छोटी सी पार्टी शुरू हुई। माहौल खुशनुमा था — केशव और नित्या तरह-तरह के खेल रखे थे जिनसे सबका मन बहल रहा था। दोनों घरों के लोग मिलकर खुश थे, तरह-तरह के पकवान बने थे। लेकिन छाया की आंखें किसी और को तलाश रही थीं।

वो हर थोड़ी देर में इंस्पेक्टर ठाकुर की ओर देखती — और ठाकुर बार-बार नज़रें चुराते रहे।

काशी ने यह नोटिस किया। वह छाया के पास आई, उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली — “क्या बात है? तू किसी गहरी सोच में लग रही है।”

छाया ने झट से चेहरा सीधा किया — “कुछ नहीं… सब ठीक है। क्यों?”

काशी मुस्कुराई — “बस ऐसे ही पूछा।”

थोड़ी देर बाद पार्टी खत्म हुई। सब अपने-अपने घर लौट गए।

रात को जब सब सो गए, छाया काफी देर तक अपनी दीदी नित्या को देखती रही। उसके चेहरे पर चिंता और कुछ अनकहा डर तैर रहा था।

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छाया अब सेकंड ईयर में थी। पर उसके चेहरे की पुरानी चमक गायब थी।

जतिन ने पूछा — “मार्कशीट कब मिल रही है?”

छाया ने उदासी भरे स्वर में कहा — “एक हफ्ते में मिल जाएगी।”

मां ने उसकी थकी आंखें देख लीं। सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा — “क्या बात है बेटा? कुछ परेशान लग रही है।”

छाया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा — “कुछ नहीं मां, बस नए सेशन में कितनी किताबें पढ़नी पड़ेंगी, वही सोच रही थी।”

घरवाले हंस दिये।

छाया भी मुस्कुरा दी — पर उसकी मुस्कान आंखों तक नहीं पहुंची।

.....

आज कॉलेज का पहला दिन था।

सुबह की हवा में एक अजीब-सी ताजगी थी। गलियारों में पुराने दोस्तों की हंसी गूंज रही थी, और नए चेहरों में हल्की झिझक तैर रही थी।


छाया और काशी दोनों अब सेकंड ईयर में पहुंच चुकी थीं। टाइम टेबल मिल गया था, क्लास भी तय हो चुकी थी। दोनों अपनी फाइलें पकड़े क्लासरूम में बैठी थीं, तभी विनय सर अंदर आए।


उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ कहा —

“देखो, तुम दोनों के मार्क्स ठीक-ठाक हैं, लेकिन अगले साल अगर अच्छे ग्रेड चाहिए तो अभी से मेहनत शुरू करनी होगी।”


छाया और काशी ने सिर हिलाया — बिल्कुल आज्ञाकारी स्टूडेंट्स की तरह।


क्लास खत्म होने के बाद छाया ने कहा —

“काशी, एक बात कहूं? मुझे लगता है हमें अपने ग्रुप के बाकी बच्चों की तरह 100% लाने की कोशिश करनी चाहिए।”


काशी हंस पड़ी —

“बिलकुल! और इस बार तैयारी हम आज से ही शुरू करेंगे, कल से नहीं।”

दोनों की हंसी गूंज उठी। उसी जोश में वे लाइब्रेरी की ओर निकल गईं। वहां पहुंचकर उन्होंने लाइब्रेरी कार्ड के लिए फॉर्म भरा, पर उन्हें बताया गया कि अगले एक हफ्ते तक सिर्फ पीएचडी स्टूडेंट्स को एंट्री मिलेगी।

छाया ने थोड़ा निराश होकर कहा —“चलो, फिर किसी और दिन आएंगे।”

दोनों निकलने ही वाली थीं कि अचानक काशी रुक गई।

“रुको ज़रा…” उसने कहा।

छाया ने पूछा — “क्या हुआ?”

काशी ने मैदान की ओर इशारा किया —“देखो ना, बास्केटबॉल मैच चल रहा है!”

दोनों सामने की सीट पर जाकर बैठ गईं।

मैदान में जोरदार मैच हो रहा था — एक ओर आग्रह, दूसरी ओर विशाल।

सूरज की रोशनी में पसीने की चमक उनके चेहरों पर दमक रही थी।

कभी आग्रह स्कोर कर जाता, तो कभी विशाल उसकी चाल काट देता। दर्शकों के बीच सीटियां और तालियां गूंज रही थीं।

काशी उत्साहित होकर बोली —“वाह! क्या खेल रहा है आग्रह… पर विशाल भी कम नहीं!”

छाया बस चुपचाप देखती रही।

कभी आग्रह की तरफ, तो कभी विशाल की ओर।

उसे खुद नहीं पता था कि क्यों, लेकिन उसकी निगाहें हर पल विशाल पर जाकर ठहर जाती थीं।

मैच खत्म हुआ तो दोनों उठकर चली गईं।

लेकिन रास्ते भर छाया का मन कहीं और अटका रहा — जैसे उस बास्केटबॉल के साथ उसका दिल भी बार-बार विशाल की ओर उछल रहा था।

मैदान में मैच खत्म होने ही वाला था जब अचानक काशी के बगल में एक लड़की आकर बैठ गई।

उसके बाल हल्के से पसीने से गीले थे, और आंखों में एक चमक थी।

“बास्केटबॉल का खेल तुम्हें पसंद है?” उसने मुस्कराते हुए पूछा।

काशी ने बिना उसकी तरफ देखे जवाब दिया —“बहुत ज़्यादा।”

“तो बास्केटबॉल की गर्ल्स टीम में शामिल होना चाहोगी?” उस लड़की की आवाज़ में उत्सुकता थी।

काशी ने थोड़ा झेंपते हुए कहा —“लेकिन मुझे इतना खेलना नहीं आता।”

छाया तुरंत बोल पड़ी —“तो सीख लो न!”

काशी ने उसे आंखों से इशारा किया — ‘चुप रह, ज़रा भी मौका नहीं छोड़ती।’

छाया ने मुस्कराकर हाथ बढ़ाया — “हाय! हम दोनों बी.ए. सोशल वर्क सेकंड ईयर में हैं। मैं छाया… और ये काशी।”

लड़की ने मुस्कराते हुए उसका हाथ थामा — “मैं मुक्ति। बी.ए. हिस्ट्री की स्टूडेंट हूं। मैसूर से स्कूलिंग की है, पापा का ट्रांसफर होकर दिल्ली आई हूं। वहां बास्केटबॉल टीम में थी, लेकिन यहां गर्ल्स प्लेयर्स की कमी है… इसलिए खेलना छूट गया।”

काशी की आंखें चमक उठीं। “मतलब… मैं खेल सकती हूं?”

मुक्ति ने सिर हिलाया —“बिलकुल। हमें बस कुछ नए खिलाड़ियों की जरूरत है।”

छाया ने ताली बजाते हुए कहा —“अरे वाह! फिर तो बहुत मज़ा आएगा।”

काशी भी मुस्करा उठी —“ठीक है, तो हम दोनों कानाम रजिस्टर कर दो।”

छाया ने झट से कहा — “अरे! मेरा क्यों? मैं तो बस—”

काशी ने नखरे से कहा —“अगर तू नहीं जाएगी तो मैं भी नहीं जाऊंगी।”

छाया ने भौंहें चढ़ाकर कहा —“चुप कर, ज़िद्दी।”

फिर उसे एक कोने में खींच ले गई और धीमे स्वर में बोली —“देख, यह खेल मैं विशाल को देखने के लिए पसंद करती थी… पर तुझे सच में बास्केटबॉल से लगाव है। तू इस मौके को छोड़ मत देना। तू प्लेयर बन सकती है, मैं नहीं। समझी?”

काशी ने कुछ कहना चाहा, पर छाया की आंखों में जो सच्ची दोस्ती थी, उसने उसे चुप करा दिया।

छाया ने पीछे मुड़कर मुक्ति से कहा — “लिखो — काशी वर्मा, बी.ए. सोशल वर्क सेकंड ईयर।”

मुक्ति मुस्कराई — “बहुत बढ़िया! अगले हफ्ते से पीछे वाले ग्राउंड में प्रैक्टिस है। और हां… प्लीज़ आना, दोनों आना।”

काशी ने सिर हिलाया, पर छाया बस मुस्कराकर रह गई।

उसे खुद भी नहीं पता था कि उसने अभी अपनी दोस्त के लिए क्या रास्ता खोल दिया है —

और उसी रास्ते पर, आगे चलकर, विशाल और छाया की किस्मत भी टकराने वाली थी।

1. क्या बास्केटबॉल की इस नई शुरुआत से काशी का जीवन सच में बदल जाएगा — या यह खेल उसे किसी अनजाने खतरे के और करीब ले जाएगा?

2. क्या छाया विशाल के लिए अपने दिल में उठ रहे अनकहे भावों को पहचान पाएगी, या वही भाव उसकी दोस्ती की परीक्षा बनेंगे?

3. क्या बक्सीर की छाया अभी भी उनके जीवन के आसपास मंडरा रही है — और क्या यह खेल, किसी नए संघर्ष की शुरुआत साबित होगा?

जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की"