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( >💜💜💜Next ep लेकर हाजिर हूं यारों और उनकी बहनों बेटियों चलो पढ़ लो वरना वरना वरना चोटी पकड़ के पढ़ाऊंगा 🤪😂💜💜💜"
वही उन्हे एक दूसरे में खोए देख मस्ती रियू और प्रिंसीबल सर मन ही मन मुस्कुराए जा रहे थे तो वही विजेंद्र सर के कलेजे में आग सुलग रही थी। अब आगे,,,
पर वो अपने जलन भरे भाव को छुपाते हुए अपने आप को शांत कर प्रिंसिबल सर के बगल वाली चेयर पर बैठ गए।
तभी विजेंद्र सर उनकी नैन मटकका में विघ्न डालते हुए बोले "मेम बैठ जाइए कब तक खड़ी रहेंगी" पर उनकी बात तो जैसे उन दोनो के कान में पहुंचने से पहले ही छू मंतर हो गया।
मस्ती उनको शरारत भरी नज़रों से देखते हुए जोर से
बोली "वाह मेम मेरी पसंद की गई साड़ी में तो आप गजब ढा रही एकदम खूबसूरत तितली रानी लग रही संभल कर रहिएगा भवरे के तेज नजरों से"
उसकी बात सुन दोनो हड़बड़ाते हुए होश में आए और इधर उधर देखने लगे। मोहिंता मेम को ना जाने क्यूं बहुत शर्म आने लगी थी उनके चेहरे पर हया की लाली छा गई थी जो किसी से छुपी न रह सकी
तभी पांचों भी नहा धोकर तैयार भागते हुए आ गए। और चेयर खिंचकर बैठ गए।
प्रिंसीबल सर उन सबको घुरकर बोले "आराम से आराम से,,खाना कही गांव नही भागा जा रहा जो ऐसे गिरते पड़ते आ रहे"
उसी समय सुनिता जी भी पराठे लिए आ गई बोली "मेम आप खड़ी क्यू है बैठ जाइए"
दूसरी बार ये बात सुन मोहिंता मेम वही ज्ञानेद्रीय सर के बगल वाली चेयर खिंचकर बैठ गई। उनको वहा बैठते देख विजेंद्र सर की मुट्ठियां कस गई। जिसपर चार लोगों की नज़र पड़ी और वो थे ज्ञानेद्रीय सर,, प्रिंसीबल सर,,मस्तानी और रियुमा तीनो आखें छोटी कर विजेंद्र सर को घुर रहे थे।
इससे अनजान विजेंद्र सर सिर्फ मोहिंता मेम और ज्ञानेद्रीय सर को घुर रहे थे।
सुनिता जी बाकी का खाना किचन से लेकर आई और टेबल पर रख सबको सर्व करने लगी।
खाने की महक पहले ही सबकी भूख बढ़ा चुकी थी। और अब खाना अपने आखों के सामने प्रकट देख सभी ललचाई नजरों से देखने लगे।
चिकन बिरयानी,वेज पुलाव,आलू के पराठे, और दाल मखनी, साथ ही मीठे में खीर वाह क्या खाना बनाया था सुनिता जी ने सभी मजे से भर पेट और तारीफो के पुल बांध बांध कर खाना ठूसे जा रहे थे।
फिर सभी टीचर्स और गर्ल्स हॉल में आई और वो पांचों नमूने टेबल और बर्तन साफ करने में लग गए।
क्युकी ये काम साक्षात ज्ञानेद्रीय सर करने को बोले थे।
पांचों अपना काम खत्म कर हॉल में आकर पसर गए ।
ज्ञानेद्रिय सर पूछे "हो गया काम खत्म"
पांचों साथ में बोले "हो गया सर"
ज्ञानेद्रिय सर बोले "गुड,,अब जाओ टॉयलेट भी साफ कर दो"
पांचों आखें फाड़े उनको देखे। तो वही बाकि सबकी हसीं छुट गई।
ज्ञानेद्रिय सर बेपरवाही से बोले "मजाक था आखें अंदर ही रखो"
उनकी बात सुन पांचों लड़के राहत की सास लिए फिर घबराए हुए उनको देखने लगे।
स्ट्रॉन्ग बोला "आपका मजाक बड़ा खतरनाक होता हैं सर"
समजीत बोला "हमको लकवा मार देगा ऐसा फिल होता है"
मनीष बोला "हा सर प्लीज ऐसा मज़ाक मत किया कीजिए"
तो उत्साह बोला "हा आप सिरियस ही ठीक हो"
वही राहुल बोला "हा हम आपको ऐसे ही झेल लेंगे"
उनकी इस हरकत से सभी उन्हे घूरने लगे।
मस्ती मुंह बनाते हुए बोली "अबे बस भी करो यार इतना ओवरएक्ट कर दिया"
रियू भी लड़को को घूरती हुई बोली "और क्या,,,ऐसे बिहेव कर रहे जैसे जान ही निकालने की धमकी दे दी हो"
पांचों का मुंह बन गया। तो ज्ञानेद्रीय सर को छोड़ सभी हस पड़े।
तभी सुनीता जी और मोहिंता मेम अपनी हसीं कंट्रोल कर साथ बोली "अब बस भी करो कितना परेशान करोगे बिचारे बच्चों को"
तभी प्रिंसीबल सर बोले "बच्चे बड़े भी होते है सुनीता जी"
तो वही ज्ञानेद्रीय सर सख्ती से बोले "सही कहा प्यार देना अच्छी बात है लेकिन ज्यादा लाड प्यार में उन्हे सर पर नहीं चढ़ाना चाहिए"
सभी लड़के और दोनो गर्ल एक दूसरे को इशारों में पूछने लगे की "सर पे कैसे चढ़ा जाता है कोई बताएगा?"
सबके दिमाग में यही सवाल घूम रहा था पर जवाब उनमें से किसी के पास नही।
इसी तरह बेफिजूल गप्पे लड़ाने से दिन बीत गया सूरज जमीं में छुपते हुए अपनी लालिमा आसमा में बिखेरने लगा तो वही खूबसूरत शाम में हल्की हल्की बूंदा बांदी बारिश उस शाम को और ज्यादा खुबसूरत नजारा बना रही थी। हर कोई बाहर निकल उस शाम को इंजॉय कर रहा था तो फिर हमारे हिरोइन काहे को पीछे हटते
रियू मस्ती सबको गार्डन में खींचते हुए ले आई सभी उस खुबसुरत शाम में खो गए थे लेकिन सुनिता जी मोहिंता मेम और तीनों सर इसकदर खो गए की बच्चो की तरह गोल गोल घूमने लगे।
अपने बड़ो को ऐसे देख सभी खिलखिलाकर हंस पड़ें।
राहुल मस्ती को ताड़ते हुए हंसकर बोला "वाह यार क्या रंगीन शाम है"
कोई ना समझ पाया लेकिन रियू मस्ती जान समझ कर भी इग्नोर कर दी और गुस्से का घुट पीकर मन में बोली "डर कलमूहे हर जगह राम राम है"
उनकी खिलखिलाहट सुन सभी बड़े होश में आए और झेप गए और वही लकड़ी के छोटे छोटे चेयर थे वहा बैठ गए।
बूंदा बांदी बारिश भी थम गई। और धीरे धीरे रात की काल छाया हर तरफ़ अपनी छाया बिखेरने लगी तो चांदनी भी उसका साथ देते हुए अपने गोलीय आकार में प्रकट होकर अपनी प्रकाश संसार में फैलाने लगी।
समय 8 बजे
वही सभी रात का डिनर कर हॉल मे पसरे कहा सोएंगे डिसाइड कर रहे थे।
"तीन बेड रूम और 13 लोग,, हे भगवान केसे होगा सब डिसाइड?" सुनिता जी टैंशन के मारे बोली। उन्हे टैंशन हो रही थी कैसे सोएंगे सब गर्मी का मौसब होता तो कुछ और ही बात थी लेकिन इस बिन मौसम बरसात वाली ठंड में सोना ज्यादा लोगो के होते हुए सबके लिए टैंशन बन ही जाती हैं।
सब उन्हे शांत करने में लगे थे।
"सुनिता जी आप बेकार में इतनी टैंशन ले रही ये हम सब है ना कुछ न कुछ सोच ही लेंगे" मोहिंता मेम उनको शांत करते हुए बोली तो
विजेंद्र सर कहा पीछे हटते चिपका दिए अपना घिसा पिटा झूठा फिक्र मंद डायलॉग "बिल्कुल,, मोहिंता मेम बिल्कुल सही कह रही अपने दिमाग को आराम दीजिए ज्यादा टैंशन लेना ठीक नहीं "
तो वही उनकी ये बात सुन ज्ञानेद्रीय सर उन्हे घूरते हुए मन में "साले का खुद का दिमाग ठिकाने पर नहीं है और चला हैं ज्ञान पेलने टुच्चा कही का"
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( >💜💜💜😂 क्या होगा आगे जानेंगे हम next ep में आ जाना जानने मिलते हैं जल्द ही 😁💜💜💜