🌹 माही... रूह 🌹
कभी-कभी ज़िंदगी में ऐसा रिश्ता मिल जाता है, जो सिर्फ़ जिस्मों का नहीं होता, बल्कि रूहों का होता है। वही रिश्ता माही और आरव की कहानी है।
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पहली मुलाक़ात
दिल्ली की भीड़-भाड़ वाली मेट्रो में, एक लड़की सफ़ेद सूट और खुले लंबे बालों के साथ किताब पढ़ रही थी। नाम था उसका माही।
आरव, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट था, उसी मेट्रो में रोज़ सफ़र करता। लेकिन उस दिन उसकी नज़र पहली बार माही पर पड़ी।
वो नज़रों का मिलना बहुत आम था, लेकिन आरव के लिए वो जैसे दिल की धड़कन रुक जाने जैसा था।
माही की मुस्कान में कुछ ऐसा था कि उसे लगा – "ये लड़की मेरे सफ़र की हमसफ़र होनी चाहिए।"
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दोस्ती की शुरुआत
आरव ने बहाना बनाकर किताब के बारे में पूछा –
“Excuse me… ये किताब अच्छी है क्या? मैं भी पढ़ने का सोच रहा था।”
माही मुस्कुराई,
“किताब नहीं, इसमें छिपी भावनाएँ अच्छी हैं। पढ़ लोगे तो समझ आ जाएगा।”
बस, वही पहली लाइन दोस्ती की शुरुआत थी। मेट्रो के सफ़र छोटे लगने लगे।
धीरे-धीरे दोनों ने नंबर एक्सचेंज किए, और देर रात तक बातें करना उनका रूटीन बन गया।
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दिल की बात
आरव को माही पसंद आने लगी थी।
एक शाम इंडिया गेट पर, हवा में झूमते पेड़ों के बीच आरव ने हिम्मत जुटाई –
“माही, तुम्हारे साथ वक्त बिताकर लगता है जैसे मैं अधूरा नहीं रहा। क्या तुम मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बनोगी?”
माही चुप रही। उसकी आँखों में हल्की नमी थी।
“आरव… तुम बहुत अच्छे हो, लेकिन मैं प्यार में यक़ीन नहीं करती। मुझे लगता है ये सब बस कहानियाँ हैं।”
आरव ने मुस्कुराकर कहा –
“तो फिर मेरी ज़िंदगी को एक कहानी बनने दो, जिसमें तुम मेरी नायिका हो।”
माही ने पहली बार उसके हाथ को थामा… और वही पल उनकी मोहब्बत की शुरुआत था।
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रूहानी रिश्ता
महीनों गुजरते गए। माही और आरव एक-दूसरे में खोने लगे।
माही अक्सर कहती –
“आरव, तुम्हारे साथ होने पर लगता है जैसे मेरी रूह को सुकून मिलता है।”
आरव जवाब देता –
“तुम सिर्फ़ मेरी मोहब्बत नहीं, मेरी रूह हो माही।”
उनकी मोहब्बत का रंग इतना गहरा था कि उन्हें दुनिया की कोई परवाह नहीं थी।
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तूफ़ान
लेकिन हर कहानी में एक मोड़ आता है।
एक दिन माही की तबियत अचानक बिगड़ गई। टेस्ट के बाद पता चला कि उसे हार्ट की गंभीर बीमारी है।
आरव को लगा जैसे उसकी दुनिया बिखर गई हो।
“डॉक्टर, कोई रास्ता तो होगा?”
डॉक्टर ने सिर झुका दिया –
“बस कुछ महीने की ज़िंदगी है।”
माही ने आरव से कहा –
“तुम रोओ मत। मैं चली भी गई तो तुम्हारी रूह में ज़िंदा रहूँगी।”
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आख़िरी शाम
लोधी गार्डन में, माही और आरव आख़िरी बार मिले।
सूरज ढल रहा था, और माही ने धीरे से कहा –
“आरव, जब मैं ना रहूँ, तो मुझे अपनी कहानियों में जिंदा रखना। मैं तुम्हारी किताब की वो पंक्ति बनना चाहती हूँ, जो कभी मिटे नहीं।”
आरव ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया।
उसकी आँखों से बहते आँसू माही के आँसुओं से मिल गए।
कुछ ही दिनों बाद… माही हमेशा के लिए चली गई।
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रूह का एहसास
आरव बिखर गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
उसने माही पर एक किताब लिखी – “माही… रूह”।
किताब में उसने वही लिखा –
"मोहब्बत जिस्म से नहीं, रूह से होती है। और मेरी रूह में हमेशा माही बसी रहेगी।"
लोग किताब पढ़कर रोते, मुस्कुराते, और महसूस करते कि सच्चा प्यार आज भी ज़िंदा है।
आरव हर शाम उसी बेंच पर बैठता जहाँ वो माही से मिला था। हवा में उसे आज भी माही की खुशबू आती।
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अंत में
मोहब्बत कभी ख़त्म नहीं होती।
वो जिस्म से निकलकर रूह में उतर जाती है।
माही चली गई, लेकिन उसकी रूह हर वक्त आरव के दिल में जिंदा रही।
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