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आखिरी निशानी
(लेखक – विजय शर्मा एरी)
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1. प्रस्तावना
सर्दियों की एक धुंधली सुबह थी। सूरज की हल्की किरणें गाँव के कच्चे आँगनों पर उतर रही थीं। परंतु उस छोटे से घर में अंधेरा ही अंधेरा पसरा था। वजह थी – एक तस्वीर का गुम हो जाना।
यह तस्वीर कोई साधारण तस्वीर नहीं थी, बल्कि उस घर की आत्मा थी। तस्वीर में थे – रामप्रसाद जी। गाँव के आदरणीय शिक्षक, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे थे। उनकी मृत्यु के बाद वही तस्वीर दीवार पर टँगी रहती, मानो परिवार को संबल देती।
पर अब तस्वीर गायब थी।
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2. तस्वीर का गुम हो जाना
रामप्रसाद जी की पत्नी सरला देवी ने सुबह उठते ही देखा – वह तस्वीर अपनी जगह से नहीं थी। उनकी आँखें भर आईं।
“हे भगवान! ये कैसा संयोग है? मेरी सारी ताक़त तो इसी तस्वीर से थी।”
उनकी बेटी सुहानी दौड़कर आई।
“माँ, घबराओ मत… शायद गिर गई होगी।”
लेकिन घर को隅-कोने तक तलाशने पर भी तस्वीर नहीं मिली।
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3. परिवार की हालत
रामप्रसाद जी का परिवार पहले से ही आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। सरला देवी ने अपने पति के बाद जैसे-तैसे बच्चों की परवरिश की। बेटे आदित्य की नौकरी की तलाश जारी थी, जबकि बेटी सुहानी पढ़ाई कर रही थी।
उस तस्वीर के गुम हो जाने से परिवार भावनात्मक रूप से टूट गया।
सरला देवी बुदबुदाईं –
“ये तस्वीर नहीं, तुम्हारे बाबूजी की याद थी… अब तो लगता है जैसे वो सचमुच हमें छोड़कर कहीं चले गए।”
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4. खोज की शुरुआत
सुहानी ने गाँव में इधर-उधर पूछताछ शुरू की। पर किसी ने कुछ नहीं देखा। आदित्य ने थाने में शिकायत दर्ज करवाई। पुलिस वालों ने हँसकर कहा –
“भाई साहब, लोग मोटर, मोबाइल चोरी की रिपोर्ट लिखवाते हैं… और आप तस्वीर का केस दर्ज करवा रहे हो?”
आदित्य ने गहरी साँस ली –
“सर, वो तस्वीर हमारे लिए ज़िंदगी से भी बढ़कर है।”
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5. यादों की गहराई
हर शाम जब सूरज ढलता, सरला देवी वही तस्वीर देखकर अपने पति से बातें करतीं।
“आज तुम्हारी बेटी ने परीक्षा में अच्छे नंबर लिए…”
“आदित्य इंटरव्यू देने गया है, तुम दुआ करो…”
अब तस्वीर न होने से उन्हें लगता, जैसे कोई साथी छिन गया हो।
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6. गाँव की फुसफुसाहट
गाँव के लोग तरह-तरह की बातें करने लगे –
“कहीं तस्वीर में लगी सोने की पॉलिश वाला फ़्रेम तो नहीं चुरा लिया किसी ने?”
“या फिर कोई दुश्मन परिवार को तंग करना चाहता है?”
इन फुसफुसाहटों से परिवार और टूटता गया।
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7. प्रेरणा की लौ
एक दिन आदित्य ने माँ से कहा –
“माँ, बाबूजी ने हमेशा कहा था कि तस्वीरें नहीं, इंसान के कर्म याद रहते हैं। अगर हम मेहनत करेंगे, तो बाबूजी की असली याद ज़िंदा रहेगी।”
सरला देवी रोते हुए बोलीं –
“पर बेटा, उस तस्वीर में उनकी मुस्कान थी… जिससे मुझे जीने का सहारा मिलता था।”
आदित्य ने दृढ़ स्वर में कहा –
“तो हम वही मुस्कान अपने जीवन में उतारेंगे, माँ।”
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8. अनपेक्षित मोड़
कुछ दिनों बाद गाँव का एक गरीब बच्चा मुकेश आदित्य के पास आया। उसके हाथ में एक पुराना थैला था।
“भैया, ये थैला मुझे नदी किनारे मिला था। इसमें कुछ था… शायद आपका हो।”
आदित्य ने खोला – उसमें टूटा हुआ फ़्रेम और फटी हुई तस्वीर पड़ी थी। तस्वीर धुंधली हो चुकी थी, पर रामप्रसाद जी का चेहरा साफ झलक रहा था।
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9. तस्वीर की हालत
सुहानी ने तस्वीर को हाथों में लिया। आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
“माँ देखो… बाबूजी मिल गए… भले ही टूटी हालत में।”
सरला देवी ने तस्वीर को सीने से लगा लिया।
“ये टूटी तस्वीर भी मेरे लिए किसी खजाने से कम नहीं।”
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10. असली प्रेरणा
आदित्य ने सोचा – तस्वीर की हालत ने जैसे यह सिखाया हो कि “ज़िंदगी चाहे कितनी भी टूटी-फूटी क्यों न हो, अगर हौसले हों तो इंसान फिर भी खड़ा हो सकता है।”
उस दिन से उसने नौकरी की तलाश में और मेहनत करनी शुरू की। सुहानी ने भी पढ़ाई में दोगुना ध्यान देना शुरू कर दिया।
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11. संघर्ष का रास्ता
कई महीनों की मेहनत के बाद आदित्य को एक सरकारी नौकरी मिल गई। उसकी सफलता ने पूरे गाँव को चौंका दिया।
सरला देवी बोलीं –
“तुम्हारे बाबूजी आज ज़रूर गर्व से मुस्कुरा रहे होंगे।”
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12. गाँव के लिए प्रेरणा
अब आदित्य और सुहानी गाँव के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने लगे। वे कहते –
“तस्वीरें मिट सकती हैं, पर शिक्षा और अच्छे कर्म कभी नहीं मिटते।”
गाँव के लोग समझ गए कि असली विरासत यही है।
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13. नई तस्वीर
आदित्य ने एक कलाकार से अपने बाबूजी का चित्र बनवाया। वह चित्र पहले से भी सुंदर था। पर सरला देवी ने उसे दीवार पर लगाते हुए कहा –
“असल में तस्वीरें तो बस सहारा हैं। असली तस्वीर तो तुम्हारे बाबूजी ने तुम्हारे अंदर बनाई है।”
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14. समापन
गुमशुदा तस्वीर से परिवार टूट गया था, पर उसी ने उन्हें जीने की नई प्रेरणा दी।
अब वह टूटी हुई तस्वीर एक अलमारी में सहेज कर रखी गई। सरला देवी हर बार उसे देख मुस्कुरातीं –
“ये हमें याद दिलाती है कि चाहे हालात जैसे भी हों, यादों और कर्मों से इंसान अमर हो जाता है।”
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संदेश
👉 कभी-कभी जिन चीज़ों को खोना हमें बहुत बड़ा आघात लगता है, वही हमें जीवन का असली अर्थ सिखा जाती हैं।
👉 तस्वीरें मिट सकती हैं, पर यादें और कर्म अमर रहते हैं।
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✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी
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