The mystery of the mountain cave in Hindi Horror Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | पहाड़ी गुफा का रहस्य

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पहाड़ी गुफा का रहस्य




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पहाड़ी गुफा का रहस्य 

✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी


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प्रस्तावना

हिमाचल की वादियों में बसे छोटे-से गाँव देवकुंड को लोग बाहर की दुनिया से "जन्नत" कहते थे। ऊँचे-ऊँचे देवदार के पेड़, झरनों का संगीत और बर्फ़ से ढकी चोटियाँ—सब मिलकर मानो चित्रकार की बनाई हुई कोई अद्भुत तस्वीर लगते थे। लेकिन इस गाँव के लोगों की आँखों में एक अनकहा डर भी बसा था।

कहते थे, पहाड़ की ऊँचाई पर स्थित कालेश्वर गुफ़ा में एक ऐसा रहस्य छिपा है, जिसे जानने की हिम्मत किसी इंसान ने नहीं की। रात होते ही वहाँ से अजीब-सी आवाज़ें आतीं, लाल रोशनी चमकती और कई बार लोगों के गाय-बकरी तक ग़ायब हो जाते। गाँव के बुज़ुर्ग कहते थे—
“उस गुफ़ा में कोई इंसान नहीं, बल्कि पहाड़ की आत्मा बसती है।”


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पहला अध्याय – आगमन

दिल्ली से तीन दोस्त—अर्जुन, कबीर और सिया—गर्मी की छुट्टियाँ बिताने के लिए देवकुंड पहुँचे। तीनों कॉलेज में साथ पढ़े थे और हमेशा एडवेंचर के शौक़ीन थे।

गाँव पहुँचते ही अर्जुन ने चारों ओर देखा और बोला—
“वाह! ऐसा नज़ारा तो मैंने सिर्फ़ पोस्टकार्ड में देखा था।”

सिया ने कैमरा निकालते हुए कहा—
“आज तो मेरी फोटोग्राफी की दावत है। हर तस्वीर कला बनेगी।”

कबीर, जो थोड़ा मज़ाकिया स्वभाव का था, मुस्कुराकर बोला—
“बस पगली, इतना मत खींच, कहीं ये पहाड़ तुझे ही खींच न लें।”

तीनों हँसते हुए आगे बढ़े। गाँव में ठहरने के लिए उन्होंने एक बुज़ुर्ग गोविंद काका का छोटा-सा गेस्ट हाउस चुना।


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दूसरा अध्याय – रहस्यमयी चेतावनी

रात को जब तीनों दोस्त गाँव के चौपाल में घूम रहे थे, तो उन्होंने गाँववालों को धीरे-धीरे बातें करते सुना।
एक बूढ़ी औरत कह रही थी—
“कल फिर कालेश्वर गुफ़ा से अजीब आवाज़ें आईं। मैंने अपनी आँखों से लाल रोशनी देखी।”

दूसरा आदमी बोला—
“ये पहाड़ हमें चेतावनी दे रहे हैं, वहाँ जाने की कोशिश मत करना।”

अर्जुन ने सिया और कबीर की ओर देखा।
“लगता है यही वही रहस्य है, जिसकी हमें तलाश थी।”

कबीर ने डरते-डरते कहा—
“पागल है क्या? लोग डर के मारे पास नहीं जाते और तू जिज्ञासा दिखा रहा है।”

सिया बोली—
“मुझे लगता है सच्चाई जाननी चाहिए। हो सकता है कोई वैज्ञानिक कारण हो।”

गोविंद काका ने पास आकर तीनों से कहा—
“बेटा, गुफ़ा की तरफ़ मत जाना। कई लोग गए, लेकिन लौटकर नहीं आए।”

तीनों ने चुपचाप सिर हिलाया, मगर मन में तय कर लिया—उन्हें उस गुफ़ा का रहस्य जानना ही है।


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तीसरा अध्याय – रहस्यमयी रास्ता

अगली सुबह तीनों बैग, कैमरा और टॉर्च लेकर पहाड़ की ओर निकल पड़े। रास्ता बेहद कठिन था।

पेड़ों के बीच से गुजरते हुए सिया बोली—
“सुनो, ये हवा अजीब-सी सीटी क्यों बजा रही है?”

कबीर हँसते हुए बोला—
“ये तो पहाड़ों का म्यूज़िक सिस्टम है।”

लेकिन अर्जुन का चेहरा गंभीर था। उसे सच में कुछ अजीब लग रहा था।
चलते-चलते उन्हें एक पुरानी टूटी-फूटी झोपड़ी दिखी। अंदर एक फटी डायरी पड़ी थी।

अर्जुन ने उसे उठाया और पढ़ा—
“मैं प्रोफेसर दत्तात्रेय हूँ… वर्षों से कालेश्वर गुफ़ा का रहस्य खोज रहा हूँ… मैंने वहाँ लाल रोशनी देखी… मुझे लगता है ये कोई ऊर्जा-शक्ति है… शायद कोई प्राचीन यंत्र…”

पन्ना यहीं पर फटा हुआ था।

सिया ने फुसफुसाकर कहा—
“तो इसका मतलब कोई वैज्ञानिक भी इसमें शामिल था।”

कबीर का चेहरा पीला पड़ गया—
“यानी यहाँ कुछ तो है।”


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चौथा अध्याय – कालेश्वर गुफ़ा

शाम तक तीनों गुफ़ा के द्वार पर पहुँच गए।
गुफ़ा के आसपास का माहौल अजीब-सा था—पेड़ जैसे झुककर रास्ता रोक रहे हों, और हवा में बर्फ़ीली ठंडक थी।

अर्जुन बोला—
“दोस्तों, अब वापस जाने का कोई सवाल ही नहीं। रहस्य यहीं मिलेगा।”

टॉर्च की रोशनी में वे अंदर बढ़े। गुफ़ा की दीवारों पर अजीब-सी नक्काशियाँ बनी थीं—मानव आकृतियाँ, तांत्रिक चिन्ह और बीच में एक बड़ा-सा पत्थर, जिस पर हल्की-सी लाल चमक उठ रही थी।

अचानक गुफ़ा में गूंजती हुई आवाज़ आई—
“कौन हैं तुम? क्यों आए हो यहाँ?”

तीनों सहम गए।
सिया चीखी—
“क… कौन है?”

आवाज़ फिर आई—
“यह स्थान मनुष्यों के लिए नहीं है। लौट जाओ।”

लेकिन अर्जुन ने हिम्मत दिखाई।
“हम सच जानने आए हैं। हमें रोक नहीं सकते।”

तभी पत्थर से तेज़ लाल रोशनी निकली और पूरा गुफ़ा जगमगा उठा।


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पाँचवाँ अध्याय – सच का पर्दाफ़ाश

रोशनी के बीच एक आकृति उभरने लगी। यह कोई आत्मा नहीं थी, बल्कि इंसान।
वह एक बूढ़ा वैज्ञानिक था—प्रोफेसर दत्तात्रेय।

अर्जुन चौंककर बोला—
“आप…? लेकिन डायरी में तो…”

प्रोफेसर ने कहा—
“हाँ, मैं ज़िंदा हूँ। इस गुफ़ा का रहस्य मैंने खोज लिया था। यह गुफ़ा दरअसल प्राचीन काल में बनाए गए ऊर्जा स्तंभ की जगह है। यहाँ धरती की चुंबकीय शक्ति इतनी प्रबल है कि लाल रोशनी के रूप में बाहर निकलती है।”

सिया ने आश्चर्य से पूछा—
“तो लोगों के ग़ायब होने का कारण?”

प्रोफेसर बोले—
“जो भी बिना तैयारी यहाँ आता है, वह उस ऊर्जा-चक्र में फँस जाता है और बेहोश होकर घाटी में गिर जाता है। लोग समझते हैं कि आत्मा खा गई। असल में यह विज्ञान है।”

कबीर ने काँपते स्वर में कहा—
“तो आप इतने साल यहाँ अकेले…”

प्रोफेसर की आँखें नम हो गईं—
“सत्य को साबित करने के लिए। पर लोग डर के कारण मेरी बात मानते ही नहीं।”


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छठा अध्याय – सच्चाई सामने

तीनों दोस्तों ने प्रोफेसर की मदद से कई तस्वीरें और वीडियो बनाए।
अर्जुन बोला—
“अब हम ये सच दुनिया के सामने रखेंगे। लोगों का डर मिटेगा।”

सिया मुस्कुराई—
“अब ये पहाड़ रहस्य नहीं, विज्ञान का मंदिर कहलाएँगे।”

प्रोफेसर की आँखों में चमक आ गई।
“बच्चो, यही मेरी सबसे बड़ी जीत होगी।”


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सातवाँ अध्याय – गाँव में हलचल

गाँव लौटकर तीनों ने चौपाल में सबको इकट्ठा किया। उन्होंने कैमरे से गुफ़ा की रिकॉर्डिंग दिखाई।
लाल रोशनी, ऊर्जा-चक्र और प्रोफेसर की व्याख्या—सब कुछ गाँववालों ने अपनी आँखों से देखा।

पहले तो लोग स्तब्ध रह गए, फिर धीरे-धीरे डर की जगह उत्साह ने ले ली।
गोविंद काका बोले—
“तो ये आत्मा नहीं, धरती की शक्ति है!”

बूढ़ी औरत ने हाथ जोड़कर कहा—
“सच में, बच्चों, तुमने हमें अंधविश्वास से बचा लिया।”


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आठवाँ अध्याय – नई सुबह

कुछ ही महीनों में देवकुंड का नाम मशहूर हो गया।
वैज्ञानिक दल गुफ़ा का अध्ययन करने आने लगे, और गाँव पर्यटन स्थल में बदल गया।

अर्जुन, कबीर और सिया को लोग ‘देवकुंड के रक्षक’ कहने लगे।
प्रोफेसर दत्तात्रेय अब गाँव के सम्मानित सदस्य बन गए।

सिया बोली—
“कभी सोचा भी नहीं था कि छुट्टियों का सफ़र हमें इतिहास का हिस्सा बना देगा।”

कबीर हँसते हुए बोला—
“और मैंने तो सोचा था पहाड़ हमें खींच लेंगे।”

अर्जुन ने पहाड़ों की ओर देखते हुए कहा—
“रहस्य जब खुलते हैं, तो डर मिट जाता है। और यही इंसानियत की सबसे बड़ी जीत है।”


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उपसंहार

देवकुंड की वादियाँ अब भी उतनी ही खूबसूरत थीं, लेकिन अब वहाँ डर नहीं था।
लोग गुफ़ा देखने आते, विज्ञान को समझते और आश्चर्य से कहते—
“पहाड़ों का रहस्य अब सबके सामने है।”

और सचमुच, यह कहानी इस बात का प्रमाण बनी कि अंधविश्वास चाहे जितना गहरा क्यों न हो, सच की रोशनी एक दिन सब पर जीत हासिल करती है।


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