रहे तेरी दुआ मुझ पर - पहला हिस्सा in Hindi Fiction Stories by MASHAALLHA KHAN books and stories PDF | रहे तेरी दुआ मुझ पर - पहला हिस्सा

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रहे तेरी दुआ मुझ पर - पहला हिस्सा

ये कहानी एक काल्पनिक कहानी है  इस कहानी का वास्तविता से कोई सम्बन्ध नही है ये कहानी केवल मनोरंजन के लिए है इसमे बताये गये सभी किरदार काल्पनिक है . . . .


मै अभी सीढियो पर बैठा था एक आवाज मुझे मेरा नाम लेकर मुझे अपनी ओर बुलाये जा रही थी 

शा  हि द   शा  हि द   शाहिद मेरे बेटे इधर आओ  मै कब से तुम्हारा इन्तेजार कर रही हूं  इधर आओ .

मै उस आवाज का पिछा करते हुए सीढ़ियो से नीचे उतर कर उस आवाज की ओर जाने लगा मै घबरा रहा था और डर भी बहुत लग रहा था मै पसीने से भीगा पड़ा था लेकिन मेरे पैर ना जाने क्यू उस आवाज की ओर बढ़े जा रहे थे .

मुझे  सीढ़ियो  नीचे एक दरवाजा दिखाई दिया  दिखने मे बहुत पुराना लग रहा था मै किसी तरह उस दरवाजे तक पहुंचा पर वो दरवाजा एक बड़े ताले से बन्द था  अब मै आगे नही बड़ सकता था लेकिन वो आवाज मुझे ही पुकारे जा रही थी अब मैने उस दरवाजे के ताले को तोड़ने का सोचा मगर मुझे वहा ऐसा कुछ नही दिखा जो उस ताले को तोड़ सके मैंने चारो तरफ नजर दौड़ाई मगर कुछ हाथ नही लगा अंत मे मै वही उन सीढ़ियो की आखरी पेहड़ी पर बैठ गया .

फिर मै वही बैठा उस दरवाजे को देखने लगा कुछ वक्त बाद  उस दरवाजे के सबसे उपर यानी चोखट पर मुझे कुछ रखा हुआ नजर आया  तो मेने उसे थोड़ा ध्यान से देखा तो  एक चाबी जैसी ही  कोई चीज थी मेरा उस तक नही पहुंच पा रहा था फिर भी मै उस तक किसी तरह पहुचा और मैने उसे अपने हाथो मे उठाया तो वो वाकेही एक चाबी थी मैंने उस चाबी को उस ताले मे डाला और फिर उसे घुमाया और वो काम कर गई ताला खुल गया .

फिर मैने अपने दोनो हाथो से उस दरवाजे को खोला तो वह दरवाजा खुल गया दरवाजे के उस तरफ सिर्फ अन्धेरा ही दिखाई दिया फिर मै उस दरवाजे से अन्दर दाखिल हुआ 

लेकिन जैसी ही अन्दर दाखिल हुआ अन्दर का नजारा बदल गया अन्दर का वो कमरा जो काफी बड़ा था एक एक करके जगमागने लगा उस कमरे का अन्धकार मानो गायब हो गया और वो कमरा रोशनी से रोशन हो गया  वो कमरा देखकर ऐसा लग रहा था मानो किसी महल का कमरा हो .

मैने उस कमरे को ध्यान से देखा उस कमरे का संगमरमर फर्श उसके उपर बिछा हुआ खुबसुरत कालिन उस कालिन के दोनो ओर रखे बड़े बड़े सोफे और उसके सफेद और लाल जालीदार कवर और उनके उपर उसी रंग के कुशन और उन सोफो की बीच रखी एक बड़ी टेबल जिसके उपर वो ही सफेद लाल रंग का जालीदार कवर और उसके उपर  चांदी की एक बड़ी ट्रे उसके उपर चांदी  के गिलास और जग था  उसी साइड पर ताजे स्वादिस्ट फल रखे हुए थे .

उस कमरे की छत पर दो छोटे झूमर के बीच एक बड़ा झूमर मोजूद था जो बहुत जगमगा रहा था उस कमरे मे फूलो के कई बड़े बड़े पोटस थे जिनमे फूलो को बड़ी खुबसुरती से सजाया गया था उस कमरे की दिवारो पर कई खुबसुरत तस्वीर थी .

उस कमरे की दूसरे छोर पर एक बड़ा ही शाही किस्म बेड मोजूद था उस बेड़ के के एक तरफ एक डेरेसिंग था उस बेड के दोनो ओर लेम्प लगे थे जो जगमगा रहे थे .

उस बेड़ से पहले एक बड़ा सा जालीदार परदा था उस पर्दे से परे उस डरेसिंग पर मैने किसी को बैठा पाया जो दिखने मे कोई औरत लगी .

जो आवज मुझे अब तक आ रही थी अब वो आना बन्द हो गई 

मैने उस पर्दे के बैठी और से पूछा क्या आप ही मुझे बुला रही थी पर उधर से कोई जवाब नही आया तो मै उस पर्दे के पिछे बैठी औरत की ओर बढ़ा मै पर्दै के करीब गया तो उस औरत ने मुझे पुकारा .

औरत : आ गये बेटा मै तुम्हारा कब से इन्तेजार कर रही थी आखिर एक माँ कब तक इन्तेजार करे अपने बच्चे का कब तक .

मै उस औरत की बात  सुनकर वही रूक गया मेरे पेर वही जम गये मेरी आंखो मे पानी भर आया जिस मां का चेहरा भी मुझे याद नही जिस मां की मोहब्बत को कभी नही मिली जिस मां को वो देखने के लिए तड़पता हू क्या ये औरत सच मे मेरी अम्मी है 

मैने जल्दी से उस पर्द को हटाया डरेसिंग के सामने बैठी उस औरत को पाया उस औरत ने मेरी तरफ देखा उस औरत के चेहरे पर नूर बरस रहा था उस औरत का लिबास बहुत अलग था मगर उसमे वो बहुत खुबसुरत लग रही थी मै उस औरत के पास गया और  उससे  से पूछा .

शाहिद : क्या आप सच मे मेरी अम्मी हो ?

उस औरत ने हां मे  जवाब दिया उस औरत की आंखो से बहने आंसू बहने लगे .

औरत : हां मेरे बच्चे मे ही तेरी अम्मी हूँ आ मेरे गले लग जा .

वो औरत मेरे करीब आयी उसने मेरे सर पर हाथ फेरा और फिर मुझे गले लगाया और मुझसे लिपटकर रोने लगी और उसके साथ मे भी रो रहा था .

मुझे मेरी अम्मी का चेहरा याद नही था मगर उनकी खुशबु अच्छी तरह याद इस औरत आती खुशबु वैसी ही थी जैसी जब मै छोटा तब आती थी मै उनसे लिपटकर रोने लगा वो भी मेरे साथ रोये जा रही थी .

मै उनसे यू हमे छोड़ जाने के बारे मे पूछता उससे पहले  उस कमरे मे हलचल होना शुरू हुई उस कमरे की सारी लाईटे जल बुज होना शुरू हो गई उस कमरे मे जलजला सा आ गया वहा मोजूद सारी चीजे तबाह होने लगी बहुत तेज हवाएं चलने लगी वहा की जमीन धसने लगी और तेज तेज आवजे आने लगी और फिर  मुझे दो बड़े बड़े काले साये हमारी तरफ आते दिखाई दिये मैने इन सायो को पहले भी देखा था और  उनको फिर से देखकर मेरी रूह काप गई .

वह साये हमारी पास आये  उन सायो ने मुझ पर हमला कर दिया और मुझको वहा से दूर फैक  दिया और फिर  मेरी अम्मी की पास गये एक अजीब सी लाल रंग की रोशनी जो उनके हाथो से निकल रही थी उसे अम्मी पर छोड़ने लगे उस रोशनी की वजाह से उनका  शरीर जलना शुरू हो गया वो मुझे देखकर बस रो जा रही थी उनके मुंह से आवाज तक नही निकल रही थी .

मै यह सब देखकर उनके पास जाना चाह रहा था मगर नही जा पा रहा था मै छोड़ दो मेरी अम्मी को छोड़ दो चिल्लाये जा रहा था लेकिन उन सायो पर कोई असर नही पड़ रहा था वो साये उन पर लगातार वो रोशनी छोड़ रहे थे और अंत मे वो जलकर राख हो गई और मै ये देखकर बहुत तेज चिल्लाया अम्मी अम्मी अम्मी . . .

शाहिद शाहिद क्या हुआ तुम्हे तुम्हारी तबीयत तो ठीक है और तुम्हे पसीना क्यू आ रहा इतना तुम इतना घबराये हुए क्यू हो ?  क्या तुमने आज भी कोई बुरा ख्वाब देखा क्या .

मै ये आवाज सुन होश मे आया मै इस वक्त अपने कमरे मे अपने बेड पर था रात के लगभग 2 बज रहे थे मेरी बाये तरफ मेरी बीवी रुकसार मोजूद थी जो मेरा हाल बार बार पूछ रही थी मेरा शरीर पुरा पसीने से भीगा हुआ था मेरा शरीर पीला पड़ गया था मेरा सर इस वक्त बहुत तेज दुख रहा था मेरा बदन आग की तरह तप रहा था . 

रुकसार : तुम ठीक तो होना शाहिद मै डॉक्टर को फोन करती हूँ .

मेने रुकसार की तरफ देखा जो बहुत घबरायी हुई थी 

शाहिद : ( मेने धीरे से कहा )रुक जाओ रुकसार मै ठीक हूं किसी को बुलाने की जरूरत नही है .

रुकसार : तो मै अम्मा को बुलाती हूँ 

शाहिद : नही उन्हे तकलीफ मत दो इतनी रात को उन्हे परेशान करना ठीक नही है .

रुकसार : तो मै अब्बू को बुलाती हूं

रुकसार के मुह से अब्बू लफ्ज सुनकर मुझे गुस्सा आ गया ये मेरी जिन्दगी के वो शक्स है जो मुझसे बहुत नफरत करता थे जिसने मुझे कभी एक बाप का प्यार नही दिया मेरी जिन्दगी मेरी अम्मी नही थी लेकिन सच तो यह है कि मेरी जिन्दगी मे बाप होकर भी बाप का प्यार नही था मै इस जहां मे बिना मा बाप की जिन्दगी जी है ये ही चीज मुझे गुस्सा दिलाती थी .

शाहिद : ( गुस्से ) मेने तुम्हे कहा ना किसी को बुलाने की जरूरत नही है तुम एक बार मै सूनती क्यू नही तुम्हारी समझ नही आता क्या एक बार मे हमेशा बात को अन सूना क्यू कर देती हो .

मेने उसे गुस्से मे डांट तो दिया था पर मुझे बहुत बुरा लगा उसके लिए .

मेरा गुस्सा देखकर रुकसार चूप बैठ गई फिर उसने मेरी ओर देखा मेरी हालत देख कर उसे बहुत चिन्ता हो रही थी उसने मेरा हाथ पकड़ा और फिर माथे पर हाथ रखा जो इस वक्त तप रहा था मेरा पूरा शरीर आग की भट्टी बना पड़ा था वह बेड से उठी अलमारी की दराज से एक सफेद कपड़ा उठाया फिर बाथरूम मे गयी वहा से जग मे पानी भर कर मेरे माथे पर वो गिली पट्टी रखने लगी .

मैने उसे आगे कुछ नही कहा मै बस खामोश पड़ा उसे ही देख रहा था वो भी चूप चाप अपना काम किये जा रही थी उसने एक शब्द नही बोला फिर कुछ वक्त बाद मेरे माथे पर फिर से हाथ रख कर जायजा लिया शायद मेरा बुखार थोड़ा कम हुआ था फिर वह उठकर कमरे से बाहर गई .

फिर कुछ वक्त बाद एक कटोरे मे कुछ लेकर आयी यह एक काड्हा था उसने मेरे तरफ देखा और कहा 

रुकसार : शाहिद अपना मुंह खोलो जरा .

मैने उसकी तरफ देखा और फिर मैंने अपना मुंह खोला तो उसने अपने  हाथो से चमच पर फूंक मार मार कर वो काड्हा मुझे पिलाने लगी काड्हा पिलाकर उसने एक कम्बल मुझ पर ओढ़कर बेड के एक साइड बैठ गई .

अब मै काफी नोरमल हो गया था मेरा बुखार भी चला गया था मेने करवट बदली रुकसार की ओर वो अभी भी बेड से टेक लेकर बैठी थी उसने अपनी आंखे बंद कर रखी थी 

मै उठ कर बैठ गया मैने रुकसार का हाथ पकड़ा उसने अपनी आंखे खोल ली मगर बोली कुछ नही मेने उसके चेहरे को देखा उसके चेहरे पर रोने के निशान मोजूद थे मैने उसकी आंखो मे देखकर कहा .

शाहिद : रुकसार मुझे माफ कर दो प्लीज मेने तुम्हे गुस्से मे ज्यादा ही बोल दिया जबकि मे जानता हूं कि तुम इस तरह घबरा जाती हो लेकिन तुमने फिर भी मेरा ख्याल रखा मै तुमसे माफी मांगता हूं तुम तो जानती हो ना मुझे क्यू गुस्सा आया था .

रुकसार : (गुस्से से ) हा अच्छी तरह जानती हूं शाहिद तुम क्यू गुस्सा हुये थे तुम्हारे गुस्से का कारण क्या है बीवी हूँ तुम्हारी तुम्हे अच्छी तरह समझती हूं आखिर कब तक चलेगा ये शाहिद कब तक खुद को यू परेशान करोंगे 

जानते हो अभी थोड़ी देर पहले कैसी हालत थी तुम्हारी सांसे तेज चल रही थी तुम्हारा बदल आग से जल रहा था तुम्हारे दिल की  धड़कने धीमी चल रही थी तुम मर सकते थे शाहिद और तुम्हारे बाद मेरा क्या होता और हमारे इस बच्चे का क्या जो अभी तक इस दुनिया मे नही आया क्या कभी सोचा है इस बारे मे .

तुम बता क्यू नही देते सबको तुम्हारे ये ख्वाब तुम्हारी जान ले रहे है आखिर क्या है उन ख्वाबो मे और क्यू दिखते है तुम्हे और फिर ऐसी हालत क्यू हो जाती है तुम्हारी बताओ प्लीज आज तुम्हे बताना होगा शाहिद .

मैने रुकसार की ओर देखा उसका चेहरा सवालो से घिरा था  मै उसे डराना नही चाहता था मगर वक्त आ गया था उसका सच जानने का मेने उसे बताने का फैसला किया .

शाहिद : रुकसार ये ख्वाब मुझे काफी वक्त से आ रहे ये तो तुम जानती ही हो ये  ख्वाब जो मुझे डराते है वो इतने डरावने होते है कि मुझे हर बार मोत का अहसास कराते है वो ख्वाब मुझे हमेशा  उस कमरे तक लेकर जाते है उस कमरे तक मे बड़ी मुश्किल से पहुंच पाता हूं  मगर वो खूंखार काले साये मुझे उस कमरे मे जाने से रोक लेते है उनका भयानक रूप मुझे डरा देता है उनके हाथो से निकलती वो लाल रंग की रोशनी सब कुछ तबाह कर देती है सब चीज को मिटा देती है वो हर बार मुझे जिन्दा जला देती है और फिर मै उस ख्वाब से बाहर आ जाता हूं और फिर मेरी हालत ऐसी हो जाती है .

रुकसार मेरी मेरी बाते सुनकर सदमे मे आ गई थी उसे मेरे लिए डर सताने लगा था वो मुझे कभी भी बुरे हाल मे नही देख सकती थी और ये ख्वाब तो मेरी जान ले रहे है तो उसका डरना जायज था उसने मुझसे घबराते हुए पूछ .

रुकसार : तो क्या वो भयानक साये तुम्हे ख्वाब मे मार डालते है .

शाहिद : हा हर बार वो मुझे जलाकर राख कर देते है लेकिन इस बार नही इस बार उन्होंने किसी और को जलाया है किसी और को मार डाला है  वो भी मेरी आंखो के सामने उस औरत को जलाया है.

शाहिद : जानती हो रुकसार इस बार वो जलने वाली औरत कौन थी ?

रुकसार : कौन थी वो औरत ?

शाहिद : वो औरत मेरी अम्मी थी रुकसार .

जिसका मुझे चेहरा तक याद नही है जिसे मेने शायद बचपन मे देखा हो पर उसके बारे मे मुझे कुछ याद नही है वो औरत जो मेरी मां है उसका प्यार आज तक नही मिला जिसको मेने आज तक छू कर नही देखा जिसके हाथो का एक निवाला खाने के लिए मे तरसता हूँ जिसकी एक झलक पाने को मे अरसे से बेताब जिसकी गोद मे सर रखकर सोना चाहता हू जिसकी लोरी सुनकर मै सोना चाहता हू वो मेरी अम्मी थी वहा उस कमरे मे रुकसार  लेकिन उन शतानो ने उसे जलाकर राख कर दिया .

इतना सब बता कर मेरे आंसू बहने लगे रुकसार ने मुझे अपने सीने से लगा लिया मेरी कमर पर आहिस्ता से हाथ फेरने लगी वो मेरे इस गम से मुझे बाहर निकालना चाह रही थी .


रुकसार मेरे साथ हर हालात मे खड़ी थी मुझे हर परेशानी से बाहर निकाला है उसने उसके जैसी बीवी को पाकर मै खुदा का बहुत शुक्र गुजार था .

रुकसार : शाहिद अब क्या तुम ठीक हो ?

शाहिद : पता नही 

रुकसार : ख्वाब वाली औरत क्या वा केही तुम्हारी अम्मी थी

जबकि तुमने उन्हे कभी देखा नही क्या तुम्हे यकिन है वो ही तुम्हारी अम्मी थी .

शाहिद : हा रुकसार मुझे पुरा यकिन है वो औरत मेरी अम्मी थी मेने उस औरत को देखा है मै उनके गले लगा हूँ मुझे उनके अन्दर मां का प्यार अपने बच्चे के लिए मां की तड़प अपने बच्चे के लिए  उनके आंखो से बेहते आंसू सब बया कर रहे थे कि वो मेरी अम्मी है उनकी खुशबु जो शयद मेरे इस दुनिया मे आने के बाद मुझे महसूस हुई थी वो मेने महसूस की उनमे मै यकिन से कह सकता हूं कि वो मेरी अम्मी ही थी .

रुकसार : ये तो अच्छी बात है ना शाहिद तुमने अपनी अम्मी को देख लिया जिसके लिए तुम इताना तरसते थे .

शाहिद : लेकिन रुकसार अब वो नही है उन काले सायो ने उन्हे जलाकर राख कर दिया .

रूकसार : मगर वो महज एक ख्वाब था शाहिद तुमने ही तो कहा ना कि तुम्हे भी उन काले सायो ने जलाया है तुम भी तो अभी तक जिन्दा हो तो हो सकता है तुम्हारी अम्मी भी अभी जिन्दा हो और कई अपनी जिन्दगी बसर कर रही हो और अगर तुम उनसे मिलना चाहते हो तो हम उन्हे मिलकर ढूंढेंगे .

शाहिद : मगर ये कैसे हो सकता है रुकसार मुझे तो ये भी नही पता वो जिन्दा है या मर गई मुझे तो उनका नाम भी नहीं पता मुझे आज तक किसी ने कुछ नही बताया उनके बारे मे .

रुकसार : तो फिर हम आज चलकर पूछेंगे उनसे .

शाहिद : किनसे से पूछेंगे रुकसार फूम्पो से जो मुझसे नफरत करती है या अब्बू से जिसने आज तक मुझसे बात नही की या फिर अम्मा से जो हमेशा मुझसे प्यार करती है जो मेरी हर बात मानती है बेहन्ताह लाड करती है मगर अम्मी के बारे मे मुझे आज तक कुछ नही बताया तो बताओ किससे पूछूं मै भला कौन बतायेगा मेरी अम्मी कहा है  वो जिन्दा भी है या मर चूकि है .

रुकसार : उनके  मरने की बात मत करो , मेने कहा ना हम साथ मिलकर पता लगायेंगे आखिर क्या हुआ उनके साथ और वो कहा है .

शाहिद : वो कैसे करेंगे हम रुकसार ?

रुकसार : वो तुम मुझ पर छोड़ दो अब सुबाह होने को है तुम आराम करो बाकी मे देख लूंगी .

शाहिद : ठीक है पर तुम्हे भी तो आराम करना चाहिए तुम रात भर सोई भी नही मेरी वजाह से और अभी तो टाइम है सुबह मे .

रुकसार : नही मुझे अब निन्द नही आयेगी मै दोपहर मे अपनी निन्द पूरी कर लूंगी .

फिर वो अपनी नोवल उठाकर पढ़ने लगी , मै जानता था वो इस वक्त मुझे लेकर बहुत परेशान है और वह मुझे  बतायेगी नही लेकिन उसका आराम करना जरूरी है उसके लिए और हमारे होने वाले बच्चे के लिए इसलिए मेने मै उठ बैठा उसके हाथ से नोवल लिया उसको एक साइड रखा अपने दोनो हाथो से उसे अपनी बाहो मे लेकर उसे  बेड पर लेटाया अब मेरा बाया हाथ उसके सर के नीचे था और दाये हाथ से मेने उसके बालो को सहलाया अब मेने उसकी आंखो मे देखा और कहा .

शाहिद : चूपचाप  आराम करो  और सो जाओ  मेरे लिए ज्यादा परेशान होने की जरूरत नही है मुझे पता है तुम कुछ ना कुछ करके मुझे इस  उलझन से निकाल ही लोगी हमेशा की तरह मुझे पूरा यकीन है तुम पर मगर तुम्हे आराम चाहिये 

अपने लिये भी और हमारे बच्चे के लिए भी तो तुम अब आराम करो .

उसने मेरी आंखो मे देखा और आंखो से ही इसारे मे हा कहा फिर अपने बायां हाथ मेरे चेहरे थोड़ी देर  सहलाया और आंखे बन्द करी और थोड़ी ही देर मे वो सो गई और मैं भी सो गया .

कहानी जारी ...