caged bird in Hindi Motivational Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | पिंजरे में बंद पक्षी

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पिंजरे में बंद पक्षी

मैं इस कहानी “पिंजरे में बंद पंछी” को विस्तार दूँगा ताकि यह लगभग 2000+ शब्दों की बड़ी, भावनात्मक और प्रेरणादायक कहानी बन जाए। इसमें संवाद, भावनाओं की गहराई, प्रकृति का चित्रण और पात्रों की आंतरिक पीड़ा का विस्तार होगा।पिंजरे में बंद पंछी

लेखक – विजय शर्मा एरी1. प्रस्तावना

जीवन में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें हम अपने पास बाँधकर रखना चाहते हैं—कभी प्यार के नाम पर, कभी डर के नाम पर, कभी अकेलेपन से बचने के लिए। लेकिन सच तो यही है कि प्यार कभी बंधन नहीं होता। प्यार में आज़ादी होती है, खुलेपन की खुशबू होती है।

इस कहानी का हर शब्द हमें यही सिखाता है कि चाहे वह इंसान हो या पंछी—हर दिल का हक़ है अपनी उड़ान।2. सुनहरा पिंजरा

अमृतसर शहर के पुराने मोहल्ले की एक हवेली की खिड़की पर रखा था एक बड़ा-सा सुनहरा पिंजरा। पिंजरे में बंद था एक हरा-नीला रंग-बिरंगा तोता। उसकी आँखों में गहराई थी, मगर चेहरा हमेशा उदास रहता।

मोहल्ले के बच्चे जब भी वहाँ से गुजरते, कहते—“वाह! क्या सुंदर तोता है।”कुछ बच्चे उसके सामने रोटी का टुकड़ा रखते, कोई उसे अपनी आवाज़ में बोलने की कोशिश करता—“राजू... राजू...”

हाँ, उसका नाम राजू था।3. तोते की दुनिया

तोते की आँखों से अगर कोई देखता तो पता चलता—उसका दिल बाहर उड़ते पंछियों में बसता है।सुबह-सुबह जब कबूतरों का झुंड आकाश में गोता लगाता, जब गौरैया छज्जों पर चहचहाती, जब मैना अपने साथी के साथ बैठकर दाना चुगती, तो राजू की आँखों में कसक उठती।

वह सलाखों से चिपककर देखता और मन ही मन कहता—“काश! यह सलाखें टूट जाएँ... और मैं भी आसमान की हवा में घुल जाऊँ।”

लेकिन हर बार उसकी चाहत सलाखों से टकराकर टूट जाती।4. मालिक राघव की कहानी

तोते का मालिक था—राघव।करीब सत्तर साल का बूढ़ा आदमी। उसके माथे की झुर्रियाँ उसकी लंबी उम्र की थकान बताती थीं। उसकी पत्नी का देहांत हुए दस साल बीत चुके थे। बेटे-बेटियाँ विदेश में जाकर अपनी-अपनी दुनिया में खो गए थे।

राघव का दिन राजू के साथ ही शुरू होता और उसी के साथ ख़त्म होता।सुबह वह खिड़की के पास बैठकर राजू से कहता—“राजू बेटा... तू ही मेरा साथी है। तू नहीं होता तो यह घर कब का वीरान हो जाता।”

वह पिंजरे के पास बैठकर अख़बार पढ़ता, कभी बातें करता, कभी उसे दाना-पानी देता।उसे लगता—राजू उसकी तन्हाई का इलाज है।

मगर यह सोचने की फुर्सत कभी नहीं हुई कि शायद राजू की भी कोई तन्हाई हो सकती है।5. मोहल्ले की बच्ची – सिया

इसी मोहल्ले में रहती थी आठ साल की चंचल लड़की—सिया।उसकी आँखों में हमेशा जिज्ञासा झलकती।जानवरों और पंछियों से उसे बहुत लगाव था।

एक दिन वह राघव के दरवाज़े पर आई और बोली—“बाबा जी, राजू बहुत अच्छा है, लेकिन आप इसे पिंजरे में क्यों रखते हैं? यह बाहर उड़कर और अच्छा लगेगा।”

राघव मुस्कुराया और प्यार से उसके सिर पर हाथ रखकर बोला—“बेटी, बाहर यह मर जाएगा। बिल्लियाँ हैं, बाज़ हैं, भूखा रह जाएगा। यहाँ यह सुरक्षित है। मैं इसे अपना बेटा मानता हूँ।”

सिया चुप हो गई। मगर उसके नन्हें दिल में सवाल गहरे हो गए।6. पंछी की पीड़ा

हर रात जब मोहल्ला सो जाता, तो राजू पंख फड़फड़ाता और सलाखों से टकराता।कभी ज़ोर से चिल्लाता, कभी आँखें बंद कर लेता।

एक रात खिड़की से चाँदनी अंदर आ रही थी। कुछ गौरैयाँ बारिश से बचने के लिए खिड़की पर आ बैठीं। उन्होंने राजू से कहा—“भाई, तू यहाँ क्यों कैद है? चल हमारे साथ। हवा कितनी मीठी है, आकाश कितना विशाल है।”

राजू रोते हुए बोला—“मेरे पंख हैं, पर बेकार। मेरे सपने हैं, पर अधूरे। मेरे पास आकाश की चाहत है, मगर यह लोहे की सलाखें मुझे रोकती हैं। मैं चाहकर भी तुम्हारे साथ नहीं जा सकता।”

गौरैयाँ कुछ पल चुप रहीं और फिर उड़ गईं।राजू की आँखों से आँसू टपकने लगे।7. बीमार मालिक

दिन बीतते गए। एक दिन राघव अचानक बीमार पड़ गया। खाँसी, बुखार और कमजोरी ने उसे अस्पताल पहुँचा दिया।घर सुनसान हो गया।

पिंजरे में बंद राजू का हाल बुरा था। दाना-पानी देने वाला कोई न था।दो दिन तक वह भूखा-प्यासा रहा।उसकी आँखों की चमक जाती रही, पंख झुक गए।8. सिया का निर्णय

तीसरे दिन सिया आई। उसने देखा—राजू बहुत कमजोर हो चुका है।उसका दिल भर आया।वह धीरे-धीरे पिंजरे के पास गई और बोली—“राजू, तुझे यहाँ नहीं रहना चाहिए। तू आज़ाद है, पिंजरे में बंद नहीं।”

उसने हिम्मत जुटाई और पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया।

राजू पहले तो काँप गया। उसकी आँखों में सवाल थे—“क्या सचमुच मैं आज़ाद हूँ?”

उसने पंख फैलाए। कुछ क्षण तक रुका, फिर तेज़ी से उड़ गया।पहली बार उसने आसमान को छुआ।पहली बार हवा ने उसके पंखों को सहलाया।

सिया की आँखों से आँसू बह निकले। वह मुस्कुराई और धीरे से बोली—“जा... अब तू सचमुच पंछी है।”9. राघव की वापसी

कुछ दिनों बाद राघव अस्पताल से लौटा। जैसे ही उसने खिड़की पर नज़र डाली, पिंजरा खाली था।उसका दिल धक से रह गया।“राजू... मेरा राजू कहाँ गया?”वह बैठ गया और रोने लगा।

तभी सिया आई। उसने साहस करके कहा—“बाबा जी, राजू अब आसमान में आज़ाद है। पंछी का घर पिंजरा नहीं, आकाश होता है। आप अकेले नहीं हैं, हम सब आपके अपने हैं।”

राघव पहले बहुत नाराज़ हुआ। मगर कुछ देर बाद जब उसने खिड़की से बाहर देखा, तो पास के पेड़ पर राजू बैठा था।राजू ने एक मीठी सी टेर लगाई, जैसे कह रहा हो—“बाबा जी, मैं चला तो गया हूँ, मगर आपको छोड़ा नहीं है।”

राघव की आँखें नम हो गईं। उसने कहा—“सही कहती हो बेटी... सच्चा प्यार कैद नहीं करता। सच्चा प्यार उड़ने देता है।”10. नया रिश्ता

उस दिन से राघव पिंजरे को खाली रखता।सिया रोज़ उसके पास आती, उससे बातें करती।अब राघव को लगा कि उसके पास सचमुच अपना परिवार है।

राजू अब आसमान का पंछी था, लेकिन वह अक्सर खिड़की पर आकर बैठता।राघव दाना डालता, और राजू कुछ दाने खाकर फिर उड़ जाता।

अब सलाखों और उड़ान में कोई दूरी नहीं थी।प्यार अब बंधन नहीं, आज़ादी का नाम था।11. कहानी का संदेश

पिंजरे में बंद पंछी हमें यह सिखाता है—कि प्यार का मतलब बंधन नहीं, स्वतंत्रता है।कि अकेलेपन से लड़ने का उपाय किसी और की आज़ादी छीनना नहीं होता।कि इंसान हो या पंछी—हर किसी का हक़ है अपने सपनों और अपनी उड़ान पर।12. अंतिम दृश्य

शाम ढल रही थी। सूरज की आख़िरी किरणें आकाश को लाल कर रही थीं।राघव खिड़की पर बैठा था। पास में सिया खेल रही थी।पेड़ पर राजू बैठा था।

राघव ने आसमान की ओर देखकर कहा—“ज़िंदगी का असली सुख उड़ान में है, बंधन में नहीं।”

और उस दिन से पिंजरा सिर्फ़ एक निशानी बनकर रह गया—उस सच्चाई की, कि आज़ादी से बढ़कर कोई सुख नहीं।

✍️ कहानी समाप्त – लेखक विजय शर्मा एरी