ठीक है। मैं आपको “मृतकों का घर” पर आधारित एक लंबी, भावनात्मक और संवादों से भरी हुई कहानी लिखता हूँ, लगभग 2500 शब्दों में। इसमें रहस्य, दर्द, रिश्तों की कसक और जीवन का गहरा संदेश होगा। लेखक का नाम भी आपके अनुसार दूँगा।
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मृतकों का घर
लेखक – विजय शर्मा एरी
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1. अजीब गाँव और वीरान हवेली
सर्दियों की धुंध से ढका एक गाँव—भौरनपुर।
गाँव की सीमा पर एक पुरानी हवेली थी। हवेली इतनी बड़ी थी कि दूर से देखने वाला सोचता कि यह कभी किसी राजा-महाराजा का महल रहा होगा। लेकिन गाँव के लोग उसे “मृतकों का घर” कहते थे।
कहते थे वहाँ रात को अजीब आवाज़ें आती हैं। कभी बच्चों के रोने की, कभी औरतों के चीखने की। कोई आदमी उस हवेली के पास भी नहीं जाता।
गाँव के बुज़ुर्ग बूढ़े रामदास हर बच्चे को डराने के लिए कहते—
“देखो, जो बच्चा शरारत करेगा, उसे हवेली में बंद कर देंगे। वहाँ सब मरे हुए लोग रहते हैं।”
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2. कहानी की शुरुआत – आरव का आगमन
दिल्ली का रहने वाला आरव, एक लेखक, गाँव आया। उसका इरादा था – किसी शांत जगह पर जाकर अपनी नई किताब पूरी करे।
आरव ने जब उस हवेली के बारे में सुना तो उसकी जिज्ञासा जाग उठी।
“अगर सब लोग डरते हैं, तो ज़रूर इसमें कोई रहस्य होगा। यही तो मेरी कहानी की तलाश है।”
वह गाँव के सरपंच से बोला—
आरव: “मुझे वहीं रहना है… उस हवेली में।”
सरपंच (घबराते हुए): “नहीं बाबूजी, वो घर अपशगुन है। वहाँ कोई नहीं टिक सकता।”
आरव (मुस्कुराते हुए): “मैं लेखक हूँ, भूतों से नहीं डरता।”
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3. हवेली की पहली रात
आरव जब शाम को हवेली पहुँचा, दरवाज़े पर ज़ंग लगी जंजीरें थीं। उसने उन्हें खोला। अंदर घुप अँधेरा था। छत से मकड़ी के जाले लटक रहे थे।
पहली रात वह अपनी टॉर्च लेकर हवेली के बीच वाले हॉल में सोया।
आधी रात को उसे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी।
आवाज़: “क्यों आए हो यहाँ? ये हमारा घर है…”
आरव हड़बड़ा कर उठा।
आरव: “कौन है? सामने आओ।”
लेकिन सामने कोई नहीं आया। बस एक ठंडी हवा चली और उसके कान में किसी औरत की धीमी हँसी गूँज उठी।
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4. गाँव की लड़की – सिया
अगले दिन गाँव में उसकी मुलाक़ात सिया नाम की लड़की से हुई।
सिया ने कहा—
सिया: “तुम्हें उस हवेली में नहीं रहना चाहिए। मेरी दादी बताती थीं कि वहाँ कभी बड़ा कांड हुआ था।”
आरव: “कौन-सा कांड?”
सिया: “कहते हैं, उस घर के मालिक ने अपनी ही बीवी और बच्चों को मार डाला था… तब से उनकी आत्माएँ वहीं भटकती हैं।”
आरव को कहानी और रोचक लगी। उसने ठान लिया कि सच का पता लगाएगा।
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5. हवेली का रहस्य खुलना शुरू
दूसरी रात आरव ने टॉर्च की जगह मोमबत्ती जलाई। रात को अचानक हवेली का पुराना पियानो अपने आप बजने लगा।
धीमी-धीमी धुन गूँज रही थी।
आरव (डरते हुए): “कौन है? सामने आओ… मैं तुम्हें चोट नहीं पहुँचाऊँगा।”
तभी सामने एक धुँधली आकृति दिखी—एक औरत, सफेद साड़ी में। उसकी आँखों से खून की धार बह रही थी।
औरत (करुण स्वर में): “हमसे हमारी ज़िंदगी छीन ली गई… हमारे छोटे-छोटे बच्चे भी…”
आरव काँप गया, लेकिन उसने हिम्मत करके पूछा—
आरव: “सच बताओ, तुम्हारे साथ क्या हुआ था?”
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6. आत्मा की दास्तान
औरत ने अपना नाम बताया – अनामिका।
अनामिका:
“यह हवेली कभी हँसी-खुशी से गूँजती थी। मेरे पति राघव एक अमीर ज़मींदार थे। लेकिन वो शक़ी मिज़ाज के थे।
एक दिन उन्हें शक हुआ कि मैं किसी से प्यार करती हूँ। गुस्से में उन्होंने पहले मेरे बच्चों को जहर दिया और फिर मुझे जला दिया।
हम सब यहीं कैद हो गए… मौत के बाद भी।”
अनामिका रो रही थी। उसकी चीख सुनकर हवेली की दीवारें काँप रही थीं।
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7. आरव और सिया की कोशिश
आरव ने यह बात सिया को बताई।
आरव: “ये आत्माएँ बुरी नहीं हैं, बस शांति चाहती हैं।”
सिया: “तो हमें इनकी आत्मा को मुक्त करना होगा।”
दोनों ने गाँव के पंडित से सलाह ली। पंडित ने कहा—
पंडित: “यह काम आसान नहीं। तुम्हें इन आत्माओं की आख़िरी इच्छा पूरी करनी होगी। तभी ये मुक्त होंगी।”
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8. बच्चों की इच्छा
उस रात हवेली में फिर से बच्चों की रोने की आवाज़ आई।
आरव ने पूछा—
आरव: “बच्चो, तुम्हें क्या चाहिए?”
एक नन्हीं आत्मा बोली—
आवाज़: “हमें खेलना है… हमें माँ चाहिए।”
आरव और सिया रो पड़े। उन्होंने अगले दिन गाँव के बच्चों को हवेली में बुलाया और वहाँ खेलकूद का आयोजन किया।
पहली बार हवेली में हँसी की गूँज सुनाई दी।
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9. माँ की आख़िरी कसक
अनामिका फिर प्रकट हुई।
अनामिका: “मेरी आख़िरी इच्छा है कि मुझे और मेरे बच्चों को इज़्ज़त के साथ दफ़नाया जाए। आज तक हमारी हड्डियाँ हवेली के तहख़ाने में पड़ी हैं।”
आरव और सिया ने साहस जुटाकर तहख़ाना खोला। सचमुच वहाँ कंकाल पड़े थे।
सिया की आँखों से आँसू झरते जा रहे थे।
सिया: “ये कितनी बड़ी नाइंसाफी है…”
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10. आत्माओं की मुक्ति
गाँववालों की मदद से आरव और सिया ने उन सबका सामूहिक अंतिम संस्कार कराया। दीयों और मंत्रों से वातावरण पवित्र हुआ।
चिता की आग उठी, और उसी पल हवेली के अंदर से दर्द भरी चीखें गूँजीं।
धीरे-धीरे हवेली का अंधेरा छँट गया।
अनामिका और उसके बच्चों की आत्माएँ मुस्कुराते हुए आरव के सामने खड़ी हुईं।
अनामिका: “धन्यवाद… हमें अब शांति मिल गई।”
और फिर वे प्रकाश में विलीन हो गईं।
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11. नया जीवन
हवेली अब वीरान नहीं रही। आरव ने वहाँ “स्मृति भवन” बनवाया, जहाँ गाँव के बच्चे पढ़ने और खेलने आते।
गाँव वाले अब उसे “मृतकों का घर” नहीं कहते थे। वह बन गया—“जीवंत घर”।
सिया ने कहा—
सिया: “तुम्हारी वजह से ये हवेली नया जीवन पा गई।”
आरव (मुस्कुराते हुए): “नहीं… ये आत्माओं की दुआ थी, जिसने हमें सही रास्ता दिखाया।”
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12. संदेश
कहानी यही बताती है कि—
जिन्हें हम मृत मानते हैं, उनकी यादें और उनके सपने जीवित रहते हैं। हमें उनका सम्मान करना चाहिए, तभी जीवन सच्चा और सुंदर बनता है।
-लेखक – विजय शर्मा एरी
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