"बोलो त्रिशा तुमने क्या सोचा फिर।।।।।।। क्या हम मना कर दे उन्हें नीचे जाकर??????" अपने मन की आवाजों को सुनने में चुपचाप खड़ी त्रिशा की खामोशी को उसकी ना समझ कर कल्पना ने उसका हाथ पकड़ कर हिलाते हुए पूछा।
अपनी मां के इस तरह हाथ पकड़ कर हिलाने पर त्रिशा अपने विचारों से बाहर आई और उसने अपनी मां की ओर देखा जो उससे पूछ रही थी कि क्या करना है?? क्या वह मना कर दें??? त्रिशा ने इस बार ज्यादा ना सोचते हुए और अपनी मां और अपने मन की आवाजों के बारे में फिर से सोचा।
उसे अभी भी यूं ही चुप देख कल्पेश ने कहा," चलो कल्पना उन्हें मना कर दो। देख नहीं रहीं हो वो अभी भी हिचक रही है मतलब की अभी भी उसके मन में शंका है मतलब की वह पूरी तरह से इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है तो उस पर ज्यादा जोर ना दो कहीं ऐसा ना हो कि वह हमारे दवाब में आकर फैसला ले। "
"हम्ममम!!! सही कह रहे हो जी आप।।।।। हम मना ही कर देते है चलकर नीचे।" कल्पना ने कल्पेश की हां में हां मिलाई और फिर दोनों कमरे से बाहर जाने लगे।
कल्पना ने दरवाजा खोलने ही जा रही था कि तभी त्रिशा बोली,
" पापा!!!!!! मम्मी!!!!!!"
"आप हां कर दो।।।।।।।"
"मैं तैयार हूं।।।।।।।"
"क्या कहा तुमने??????
तुम तैयार हो????
हम हां कर दे?????" कल्पना ने चौंकते हुए पूछा क्योंकि उन्हें लगा नहीं था कि उन्हें हां सुनने को मिलेगी।
"बेटा तूने अच्छे से सोच लिया है ना?????? मतलब किसी दवाब में तो फैसला नहीं किया ना????? या फिर हमारे लिए, मतलब हमारी सोच के तो हां नहीं कर रहीं है ना तू?????" कल्पेश ने भी त्रिशा से तस्सली करने के लिए फिर से पूछा।
"जी पापा मैनें सोच के ही जवाब दिया है।।।।।। और मैने किसी दवाब में यह फैसला नहीं किया है इसलिए आप परेशान ना हो।।।।।।।" त्रिशा ने उन्हें आश्वासन देकर कहा।
त्रिशा का आश्वासन सुनकर उसके माता पिता खुशी खुशी उसके कमरे से निकल कर बाहर चले गए। जाते जाते कल्पेश ने प्यार से त्रिशा के सिर पर हाथ फेरा और कल्पना भी प्यार से अपनी लाड़ली के माथे को चूमकर नीचे मेहमानों के पास चले गए।
"तुम यहीं रहना।।।। हम नीचे जाकर महक को भेजते है तुम्हारे पास।।।।।। तुम आराम करो जबतक। बहुत घबराहट थी ना तुम्हें अब तुम सारी चिंता छोड़ कर बैठो। नीचे जो भी होगा वो महक आकर बता देगी तुम्हें। ठीक।।।। पर तुम बिल्कुल चिंता ना करना। अगर हां हुई तो भी अच्छा है और ना हुई तो भी कोई बुराई नहीं है बच्चा।।।।।।।" त्रिशा को दिलासा देते हुए उसकी मां ने कहा और वह चली गई।
उन दोनों के जाने के बाद एक बार फिर अपने कमरे में त्रिशा अकेली रह गई। उसने फिर से अलमारी में उन झुमकियों को निकाला और उसे हाथ में पकड़ कर देखने लगी। अलमारी में लगे शीशे में त्रिशा को अपना प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था। त्रिशा ने उस प्रतिबिंब को देखा और खुद को देख कर खुद से ही पूछते हुए बोली,
" मैनें सही फैसला तो लिया ना????"
"अब ले लिया ना।।।।। हां कर दी ना।।।।।। तो जो होगा देख लेगे।" त्रिशा के मन से आवाज आई।
त्रिशा ने एक लंबी सांस ली और अपने पेट में घबराहट और डर से होने वाली गुड़गुड़ को भुलाने की कोशिश की पर कोशिश नाकामयाब रही। अपनी नाकामयाब कोशिश के बावजूद त्रिशा अपने बैड पर दीवार से टेक लगा बैठ गई। वह अभी भी अपने हाथों में राजन की दी हुई उन झुमकियों को देखे जा रही थी। फिर उसने उन झुमकियों को अपनी हथेलियों में बंद कर मुट्ठी बनाई और फिर वह आंख बंद कर वहीं टेक लगा बैठी रही।
ना जाने वह कल रात सोई ना थी इस कारण या कल से वह स्ट्रेस और तनाव में थी इस कारण पर उसकी आंख लग गई और उसे खुद भी पता ना चला कि वह कब सो गई।
त्रिशा हल्की सी नींद में सोई ही थी कि तभी उसे दरवाजा खुलने कि आवाज आई। और उस आवाज से वह उठ बैठी। उसने आंखे खोलकर देखा तो भाभी, महक और मामी जी खड़े थे।
उनके आते ही त्रिशा बैड से उठ खड़ी हुई। वह जैसे ही खड़ी हुई उसकी मामी ने आकर उसे गले से लगा लिया और बोली," अरे मेरी लाड़ो रानी मुबारक हो।।।।।।।।।।।।"
"अब तो तू बस इस घर से जाने कि तैयारी कर ले अपने राजन के साथ।।।।।।।। "
त्रिशा अभी नींद में ही थी, उसे शुरु में तो मामी की बाते ज्यादा समझ नहीं आई। पर उन्हें यूं इतना खुश देखकर वह समझ गई कि क्या हुआ है और फिर मामी की आखिर लाईन ने तो सारा कन्फयूजन ही दूर कर दिया। वह समझ गई कि राजन ने भी शादी के लिए हां कर दी है।
हां को सुनार त्रिशा भी कहीं ना कहीं खुश तो हुई। "चलो अच्छा है आखिर सबके मन की हो तो गई। " मन ही मन त्रिशा बोली।