The Weeping House in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | रोती हुई हवेली

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रोती हुई हवेली

अँधेरी रात थी, जब चाँद भी अपने आप को बादलों के पीछे छुपा रहा था। गाँव के लोग, अपनी-अपनी झोपड़ियों में डर से काँपते हुए, खामोश हो जाते थे। ये वो समय था जब पुरानी कहानियों से निकली आत्माएँ और प्रेत, हवा में नाचते थे, और पूरे गाँव में डर की एक लहर दौड़ जाती थी।

उस अँधेरी रात में, मैं अर्णव, अपनी टीम के साथ एक पुराने और वीरान पड़े किले के पास, जहाँ एक पुरानी हवेली थी, डेरा डाले हुए था। हमारी टीम का मकसद था इस वीरान जगह का सर्वेक्षण करना।

मेरे साथ मेरा दोस्त आलोक, जो भूतों पर यकीन नहीं करता था, और नेहा, जो डरावनी कहानियों से हमेशा डरती थी। हवेली के चारों ओर की हवा में एक अजीब सी ठंडक थी, जो हमारी रीढ़ में सिहरन पैदा कर रही थी।

जैसे ही रात गहराने लगी, हमने अलाव जलाया। आलोक ने मेरी तरफ़ देखते हुए मज़ाक में कहा, "आज रात देखते हैं, कौन सा भूत हमारी रिपोर्ट पर अपनी छाप लगाता है।" नेहा घबराकर बोली, "आलोक, ऐसी बातें मत करो।" मैंने उसे शांत करने की कोशिश की, "डरने की कोई बात नहीं है, ये सब सिर्फ़ कहानियाँ हैं।"

तभी, हवेली के अंदर से एक सिसकने की आवाज़ आई। हम सब चुप हो गए। आलोक ने कहा, "शायद कोई जानवर होगा।" लेकिन वो आवाज़ किसी जानवर की नहीं थी। वो एक औरत के रोने की आवाज़ थी।
हवेली का डर

आवाज़ सुनकर नेहा ने मुझसे कहा, "अर्णव, हमें वापस लौट जाना चाहिए।" आलोक ने उसे डाँटते हुए कहा, "नेहा, तुम डरपोक हो। मैं जाकर देखता हूँ।" उसने अपनी लालटेन उठाई और हवेली की ओर चल पड़ा। मैं भी उसके पीछे चला गया, क्योंकि मैं उसे अकेला नहीं छोड़ सकता था।

हवेली के अंदर एक अजीब सी बदबू थी, जैसे कुछ सड़ रहा हो। हवेली की सीढ़ियाँ पुरानी और टूटी हुई थीं। जैसे ही हम ऊपर चढ़े, सीढ़ियों से चर-चर की आवाज़ आने लगी।

हमने देखा कि हवेली के एक कमरे से हल्की सी रोशनी आ रही थी। हम उस कमरे में गए। अंदर, एक पुराना झूला था जो अपने आप हिल रहा था, और एक पुरानी गुड़िया फर्श पर पड़ी थी, जिसकी आँखें काली और बेजान लग रही थीं।

तभी, आलोक की लालटेन बुझ गई। हम पूरी तरह अँधेरे में थे। सन्नाटे में, नेहा की चीख की आवाज़ आई, "अर्णव, आलोक, कहाँ हो तुम?" हम दोनों घबरा गए। आलोक ने ज़ोर से पुकारा, "नेहा, हम यहाँ हैं!" लेकिन कोई जवाब नहीं आया।

हवा तेज़ हो गई और खिड़की के शीशे से टकराने लगी। कमरे का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। मुझे लगा जैसे कोई हमारे पीछे खड़ा हो। मैंने अपनी टॉर्च जलाई और देखा कि मेरे सामने एक बड़ा सा आईना था। उस आईने में, मैंने आलोक की शक्ल देखी, लेकिन उसकी आँखों में कोई रोशनी नहीं थी, वो पूरी तरह से सफ़ेद हो गई थीं। उसके चेहरे पर एक भयानक मुस्कान थी।

और अचानक, आलोक का शरीर हवा में उठने लगा। मैंने देखा कि एक काली परछाई उसके चारों ओर घूम रही थी। आलोक का शरीर बुरी तरह से हिलने लगा। उसकी हड्डियाँ टूट रही थीं। आलोक ने मुझे देखते हुए भयानक रूप से हँसना शुरू कर दिया। उसकी हँसी किसी इंसान की नहीं, बल्कि किसी शैतान की लग रही थी।

उस पल, मुझे एहसास हुआ कि हम किसी साधारण भूत से नहीं, बल्कि किसी भयानक आत्मा से लड़ रहे थे। तभी, पीछे से एक ठंडी आवाज़ आई, "तुम सब यहाँ क्यों आए?" मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मैंने नेहा को देखा, लेकिन उसकी आँखें भी आलोक की तरह सफ़ेद हो गई थीं। उसके शरीर से एक भयानक गंध आ रही थी। वो धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ने लगी।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। तभी, मेरे सामने की दीवार पर एक पुराना शिलालेख दिखा। उस पर लिखा था, "जो यहाँ आएगा, वो सिर्फ़ तभी बचेगा, जब वो अपने सबसे प्रियजन की बलि देगा।"

मुझे याद आया कि यह हवेली एक तांत्रिक की थी, जिसने अपने शिष्य की बलि दी थी। उसकी आत्मा यहाँ भटक रही थी और हर उस व्यक्ति को पकड़ लेती थी जो उस हवेली में प्रवेश करता था।

यह सब देखकर मैंने भागने का फैसला किया। जैसे ही मैं भागा, मैंने देखा कि आलोक का शरीर फर्श पर गिर गया और वो सिर्फ़ हड्डियों का ढेर बन गया था। नेहा मेरे पीछे से दौड़ रही थी, लेकिन उसकी गति एक इंसान की नहीं थी, वो हवा में तैर रही थी। मैंने चिल्लाकर कहा, "नेहा, ये तुम नहीं हो!" वो हँसी, "अब मैं वो हूँ जो तुम नहीं देख सकते।"

मैं बाहर की ओर भागा। मैंने जैसे ही हवेली से बाहर कदम रखा, तो मैं हैरान रह गया। हम जिस अलाव के पास बैठे थे, वह अलाव भी अँधेरे में तब्दील हो गया था। मैंने चारों ओर देखा और पाया कि मैं हवेली से बहुत दूर नहीं आ पाया था, मैं अभी भी उसी जगह पर था।

मेरी आँखें खुलीं। मैंने देखा कि मैं अपने घर में हूँ। मैंने सोचा कि यह सब एक बुरा सपना था। मैं उठा और पानी पीने के लिए रसोई में गया। तभी, मैंने अपने पीछे एक ठंडी हवा महसूस की। मैंने पीछे मुड़कर देखा।

रसोई में आलोक और नेहा खड़े थे। उनकी आँखें सफ़ेद थीं। आलोक के हाथ में एक छुरा था। नेहा ने कहा, "तुम यहाँ से कहीं नहीं जा सकते।"

तभी, मैंने देखा कि मेरे हाथ पर भी एक निशान उभर रहा था - वही निशान जो हवेली की दीवार पर था। मैं समझ गया कि मैं अभी भी उस श्राप से बंधा हुआ हूँ। यह एक ऐसा डर है जो कभी खत्म नहीं होगा।