Haunted Bridge in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | Haunted Bridge

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Haunted Bridge

कभी–कभी इंसान सोचता है कि रास्ते सिर्फ जगहों को जोड़ते हैं, मगर कुछ रास्ते ऐसे भी होते हैं जो सीधे मौत और डर की दुनिया से जुड़ जाते हैं। 

गाँवके बुजुर्ग अक्सर कहा करते थे कि पुराना टूटा हुआ पुल, जो सूखी नदी के ऊपर बना था, उस पर अंधेरा होते ही कोई नहीं जाता। कहते थे कि उस पुल से गुज़रने वाले अक्सर वापस नहीं लौटते या लौटते भी हैं तो उनकी आँखों में ऐसा डर होता है कि फिर कभी जुबान नहीं खोलते।

सालों पहले उस पुल पर एक औरत ने अपनी जान दे दी थी। वजह किसी को नहीं पता, मगर यह ज़रूर कहा जाता था कि उसने चीखते हुए नदी में छलाँग लगाई और तब से हर रात उसकी सिसकियाँ और पायल की छनक उस सूखे नदी के किनारे सुनाई देती हैं। गाँव के लड़के कई बार हिम्मत दिखाने के लिए रात को वहाँ गए, मगर कोई भी ज्यादा देर नहीं टिक पाया।

गाँव के चार नौजवानों एक रात उसी पुल पर से गुज़र रहे थे। चाँदनी रात थी, आसमान पर बादल मंडरा रहे थे और ठंडी हवा चल रही थी। वे चारों लालटेन लेकर पुल की ओर चले। जितना पास आते गए, उतनी ही खामोशी गहरी होती गई। अचानक हवा ठंडी नहीं, बल्कि बर्फ जैसी जमती हुई ठंड महसूस होने लगी। जैसे किसी ने उनके कानों में धीरे-धीरे कराहना शुरू कर दिया हो।

पुल पर कदम रखते ही लकड़ी की चरमराहट गूँज उठी। एक लड़के ने हँसते हुए कहा, “देखा, कुछ नहीं है।” तभी दूसरी ओर से पायल की बहुत धीमी छनक सुनाई दी। सबके चेहरों का रंग उड़ गया। उन्होंने लालटेन ऊपर उठाई, पर वहाँ सिर्फ खाली पुल था। फिर भी छनक नज़दीक आती जा रही थी। अचानक लालटेन की लौ ज़ोर से फड़फड़ाई और बुझ गई। अब चारों सिर्फ अंधेरे में खड़े थे।

काले सन्नाटे में एक औरत की परछाई दिखाई दी, सफ़ेद साड़ी में, लंबे खुले बालों के साथ। उसकी आँखें लाल अंगारों की तरह चमक रही थीं। उसने धीरे-धीरे गर्दन घुमाई, और पुल पर खड़े लड़कों की ओर देखने लगी। एक लड़के ने डर के मारे भागने की कोशिश की, मगर उसके पैर जैसे लकड़ी के हो गए थे। औरत अचानक हँसी, वह हँसी नहीं बल्कि टूटते शीशे जैसी आवाज़ थी।

अगली सुबह गाँववालों ने पुल के पास खून से लथपथ तीन लालटेन पड़ी देखीं। मगर चौथे लड़के का कोई पता नहीं चला। बाकी तीनों जो घर लौटे थे, उनकी हालत पागल जैसी हो गई। वे चुपचाप दीवार को देखते रहते और बार-बार यही बड़बड़ाते “वो अभी भी देख रही है… वो अभी भी यहाँ है।”

लोगों ने पुल को तोड़ने की कोशिश की, मगर हर बार मजदूरों के साथ कोई न कोई अनहोनी हो जाती। किसी का हाथ कट जाता, किसी की साँसें बंद हो जातीं। गाँव के पंडित ने कहा कि वह पुल उस औरत की आत्मा का घर बन चुका है और जब तक वह आत्मा शांति नहीं पाएगी, पुल ज्यों का त्यों खड़ा रहेगा।

कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। सालों बाद जब किसी अजनबी यात्री ने उस पुल पर से रात को गुज़रने की कोशिश की, उसने अपने पीछे पायल की वही आवाज़ सुनी। 

उसने सोचा कोई और भी चल रहा होगा, मगर जब उसने मुड़कर देखा तो वहाँ सिर्फ अंधेरा था। तभी उसे लगा कि किसी ने उसके कंधे पर बर्फ़ जैसे ठंडे हाथ रखे हैं… और फिर उसकी चीख रात के सन्नाटे को चीरती हुई नदी के किनारे गूँज उठी।

गाँववालों का कहना है कि उस चीख के बाद पुल पर पायल की आवाज़ और भी तेज़ हो गई है। शायद उस औरत की आत्मा अब अकेली नहीं रही।

रातोंरात गाँव में खौफ की चादर और गहरी हो गई थी। लोग अब सूरज ढलने से पहले ही दरवाज़े बंद कर लेते और बच्चों को घर से बाहर कदम रखने भी नहीं देते। उस पुल की तरफ़ तो कोई देखने तक नहीं जाता था, मगर डर की हवा पूरे गाँव में महसूस होती थी।

एक बूढ़ी दाई, जिसने अपनी जवानी में उस औरत को जिंदा देखा था, धीरे से गाँववालों को बताती थी “वो औरत कोई आम इंसान नहीं थी… वो किसी तांत्रिक की रखैल थी। कहते हैं, उस तांत्रिक ने उसकी बलि देनी चाही, मगर वो भाग निकली और उसी पुल पर मर गई। मरते वक़्त उसने कसम खाई थी कि उसका खून व्यर्थ नहीं जाएगा। जो भी यहाँ से गुज़रेगा, वो उसकी मौत का साथी बनेगा।”

गाँव के कुछ साहसी लोग पंडितों और तांत्रिकों को बुलाने लगे। एक रात पाँच तांत्रिक नदी किनारे मंत्रजाप करने बैठे। उन्होंने अग्नि जलाई, ढोल बजने लगे, और हवाओं में धुएँ की गंध भर गई। शुरुआत में सब सामान्य था, मगर अचानक नदी का सूखा किनारा गीला होने लगा, जैसे पानी खुद ज़मीन को फाड़कर बाहर निकल रहा हो। आग की लपटें नीली हो गईं और एक तेज़ करुण चीख चारों ओर गूँज उठी।

अचानक उस पुल पर वही औरत दिखाई दी बाल हवा में उड़ते हुए, आँखों से खून की धार बहती हुई। उसके पैरों से पायल की आवाज़ नहीं, बल्कि लोहे की जंजीरों की खनक आ रही थी। उसने हाथ फैलाए और देखा कि तांत्रिकों का मंत्र टूट चुका था। उनमें से एक तड़पते हुए ज़मीन पर गिर पड़ा, जैसे उसका गला किसी अदृश्य हाथ ने दबा दिया हो। बाकी डरकर भाग खड़े हुए।

गाँववाले दूर से ये सब देख रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि उस औरत के पीछे अब एक और परछाई खड़ी थी। वही चौथा लड़का, जो सालों पहले गायब हुआ था। उसका चेहरा काला पड़ा था, आँखें धंसी हुईं, और होंठ फटे हुए। मगर उसके गले से एक अजीब आवाज़ निकली “अब हम अकेले नहीं… अब ये पुल हमारा है।”

उस रात के बाद से पुल की दहशत दोगुनी हो गई। अब वहाँ सिर्फ पायल की आवाज़ नहीं आती, बल्कि लोगों को ऐसा लगता है जैसे सैकड़ों कदमों की गूँज एक साथ सुनाई दे रही हो। गाँव के बुजुर्ग कहते हैं कि वो पुल अब सिर्फ एक आत्मा का घर नहीं, बल्कि दर्जनों आत्माओं का कैदखाना बन चुका है।

कुछ रातों को जब आसमान बिल्कुल साफ़ होता है, चाँद की रोशनी पुल पर गिरती है। अगर कोई दूर से खड़ा होकर देखे, तो उसे ऐसा लगेगा जैसे पुल पर सफ़ेद कपड़ों में कई परछाइयाँ एक-दूसरे से बातें कर रही हों। लेकिन जैसे ही कोई पास जाने की कोशिश करता है, वे सब अचानक चीखते हुए नदी में छलाँग लगा देते हैं… और फिर अंधेरा गहरा हो जाता है।