Adhura Sach - 2 in Hindi Detective stories by Gaurav Pathak books and stories PDF | अधूरा सच - 2

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अधूरा सच - 2

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अध्याय 2 – पत्रकार की जिज्ञासा

सुबह का सूरज निकल चुका था, लेकिन आरव की आँखों में अब भी पिछली रात के मंज़र घूम रहे थे। वह हत्या की जगह से लौट तो आया था, मगर उसका दिमाग बार-बार उसी कागज़ पर अटक जा रहा था, जिस पर सिर्फ एक नाम लिखा था—“सिद्धार्थ”।

वह अपने छोटे से कमरे में बैठा था। सामने टेबल पर खुला हुआ लैपटॉप, बगल में अधूरी चाय और दीवार पर टंगी हुई घड़ी जिसकी टिक-टिक मानो उसे याद दिला रही थी कि समय बीत रहा है। पत्रकार होने के नाते उसने कई क्राइम स्टोरीज़ कवर की थीं, लेकिन इस बार कुछ अलग था।

“आख़िर क्यों किसी को मारकर, उसका नाम छुपाने की कोशिश की जा रही है? और यह ‘सिद्धार्थ’ कौन है?” – उसने खुद से बुदबुदाते हुए कहा।

वह जानता था कि उसका संपादक, मिस्टर शुक्ला, बस सतही खबर चाहता है—हत्या, पुलिस की कार्रवाई और लोगों की प्रतिक्रिया। लेकिन आरव की नज़र हमेशा सतह के नीचे छुपी चीज़ों पर जाती थी। उसकी यही आदत उसे दूसरों से अलग बनाती थी, और कई बार खतरे में भी डाल देती थी।


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आरव दफ्तर पहुँचा। वहाँ पहले से हलचल थी। रिपोर्टर्स कॉफी पीते हुए अपनी खबरों पर चर्चा कर रहे थे। जैसे ही आरव अंदर आया, उसका दोस्त और सहकर्मी रजत बोला –

“तो भाई, तू तो रात को सीधे वारदात वाली जगह पहुँच गया था! क्या नया मिला?”

आरव ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया –
“कुछ बातें पुलिस ने छुपाई हैं। मुझे शक है कि ये हत्या किसी आम झगड़े का नतीजा नहीं है।”

रजत ने भौंहें चढ़ाईं –
“यार, तू हमेशा साजिश ढूँढने लगता है। कभी-कभी चीज़ें सीधी-सादी होती हैं।”

आरव ने गंभीर स्वर में कहा –
“नहीं रजत, इस बार मामला सीधा नहीं है। और हाँ, मैंने एक सुराग भी पाया है… पर अभी किसी को बताना सही नहीं होगा।”


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दफ्तर के कैबिन में बैठा संपादक शुक्ला अखबार के अगले एडिशन की प्लानिंग कर रहा था। उसने आरव को बुलाया।

“आरव, कल रात की हत्या पर तेरी रिपोर्ट चाहिए। ज्यादा गहराई में मत जाना। बस इतना लिख कि हत्या रहस्यमयी है, पुलिस जांच कर रही है और लोग डरे हुए हैं। समझा?”

आरव ने सिर हिलाया, लेकिन मन में सोचा –
“अगर मैं भी सबकी तरह सिर्फ सतही लिखूँगा तो सच कभी सामने नहीं आएगा। और ये ‘सिद्धार्थ’ नाम हमेशा रहस्य ही रह जाएगा।”


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शाम तक उसने पुलिस स्टेशन जाने का तय किया। वहाँ हत्या की फाइल देखना आसान नहीं था, लेकिन उसके कुछ पुराने सूत्र थे।

थाने में उसके पहचान वाले कांस्टेबल ने धीरे से कहा –
“देख आरव, ये केस ऊपर से दबाया जा रहा है। हमें भी ज्यादा पूछने की इजाज़त नहीं है। लेकिन हाँ, एक बात पता चली है… मृतक के पास से एक डायरी मिली थी। पुलिस ने उसे सबूत के तौर पर रख लिया है। पर उसमें क्या लिखा है, ये कोई नहीं बता रहा।”

आरव का शक और गहरा गया। उसने पूछा –
“और मृतक की पहचान?”

कांस्टेबल ने धीरे से सिर हिलाते हुए कहा –
“अभी तक आधिकारिक रूप से नहीं बताई गई है। लेकिन सुना है, वह शहर में नया था और किसी बड़े धंधे में जुड़ा हुआ था। उसके फोन में कई राजनेताओं के नंबर मिले हैं।”

आरव ने लंबी साँस ली। मामला उसकी उम्मीद से कहीं बड़ा लग रहा था।


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रात को वह घर लौटा। उसने जेब से वह कागज़ निकाला, जिस पर “सिद्धार्थ” लिखा था। उसने कई बार उस नाम को पढ़ा। दिमाग में हज़ारों सवाल घूम रहे थे।

“क्या यह नाम हत्या की वजह है? या फिर इस नाम वाले को संदेश भेजना था?”

उसने गूगल पर शहर के अंदर-बाहर सिद्धार्थ नाम वाले लोगों की खोज शुरू की। सैकड़ों नाम आए, लेकिन कोई मेल खाता नहीं दिखा।

इसी बीच उसका फोन बजा। स्क्रीन पर नंबर अनजान था।
उसने कॉल उठाया।

फोन के दूसरी ओर धीमी और भारी आवाज़ आई –
“जितना पूछा गया है उतना ही लिखो। ज्यादा टांग अड़ाने की कोशिश मत करना। नहीं तो अगली खबर तेरे बारे में होगी।”

आरव के रोंगटे खड़े हो गए। फोन कट चुका था।

उसने खिड़की से बाहर देखा—अंधेरा और गहराता जा रहा था।
अब उसे यक़ीन हो गया कि यह मामला उसके सोच से कहीं ज्यादा खतरनाक है।


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उस रात नींद उसकी आँखों से कोसों दूर रही। वह बिस्तर पर लेटा बस यही सोचता रहा—

“अगर ये खेल इतना बड़ा है, तो आखिर खिलाड़ी कौन है?”


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