📖 अध्याय 5 : मृतक की डायरी
रात का सन्नाटा पूरे हॉस्टल को अपने आगोश में ले चुका था। बाहर पेड़ों की डालियाँ हवा से टकराकर कराहने जैसी आवाज़ कर रही थीं। कमरे की खिड़की से झाँकती पीली स्ट्रीट लाइट की धुंधली रोशनी, आरव के भीतर के डर और बेचैनी को और गहरा कर रही थी।
दिन भर की थकान के बावजूद उसकी आँखों में नींद नहीं थी। दिमाग बार-बार उसी पुराने बंद पड़े कमरे की ओर जा रहा था, जहाँ से उसे डायरी के होने का सुराग मिला था। उसकी छाती धड़क रही थी—कुछ ऐसा जिसे वो समझ नहीं पा रहा था, लेकिन दिल कह रहा था कि डायरी ही उन सारे रहस्यों की चाबी है जिनसे उसकी ज़िंदगी अनजाने में उलझ गई है।
आरव ने तय कर लिया था कि आज रात वो उस डायरी को ढूँढेगा, चाहे कुछ भी हो।
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🔹 पुराना कमरा और डर का साया
धीरे-धीरे उसने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला। हॉस्टल का गलियारा अंधेरे और खामोशी से भरा था। सिर्फ़ कहीं-कहीं बल्ब की टिमटिमाहट जैसे किसी बूढ़े की थकी साँसें। वो दबे पाँव सीढ़ियाँ उतरकर उस हिस्से की ओर बढ़ा जो पिछले कई सालों से बंद था।
दरवाज़े के पास पहुँचते ही उसे अजीब सी ठंडक महसूस हुई। जैसे कमरे के भीतर से किसी अनदेखी नज़र ने उसे देख लिया हो। उसकी हथेलियाँ पसीने से भीग गईं। उसने काँपते हाथों से दरवाज़े का कुंडा पकड़ा और धीरे-धीरे धक्का दिया।
दरवाज़ा चरमराते हुए खुला और अंदर से सड़न की बदबू उसके नथुनों से टकराई। कमरे के कोनों में जाले लटक रहे थे। टूटी खिड़की से आती हल्की चाँदनी कमरे को और डरावना बना रही थी।
लकड़ी की अलमारी, टूटी कुर्सी और एक डेस्क—बस यही कुछ सामान बचा था। डेस्क की दराज़ पर जैसे किसी ने बार-बार हाथ फेरा हो। आरव वहीं रुका। दिल कह रहा था—“यही है… यही पर छुपा है सब कुछ।”
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🔹 डायरी का मिलना
वो डेस्क की ओर बढ़ा। हाथ बढ़ाकर दराज़ खींची। अंदर से पुराने काग़ज़ों की महक और धूल की परत निकली। लेकिन सबसे नीचे, एक मोटी-सी चमड़े की जिल्द वाली डायरी रखी थी।
आरव ने धीरे से उसे उठाया। जैसे ही उँगलियाँ जिल्द पर गईं, उसके पूरे शरीर में सनसनी दौड़ गई। मानो डायरी सिर्फ़ काग़ज़ और स्याही न हो, बल्कि जिंदा हो—एक आत्मा की तरह जो अपनी कहानी कहने को बेचैन हो।
डर और उत्सुकता के बीच आरव ने डायरी खोली। पहले पन्ने पर लिखा था—
"मैं, नील, इस हॉस्टल का आख़िरी सच्चा गवाह हूँ। अगर कोई यह डायरी पढ़ रहा है तो समझ लेना, वो खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ।"
ये पढ़ते ही आरव का दिल जोर से धड़कने लगा। नील…! यही तो वही छात्र था जिसकी रहस्यमयी मौत की कहानियाँ हॉस्टल के सीनियर फुसफुसाकर सुनाते थे।
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🔹 नील की लिखी बातें
डायरी के पन्ने पुराने थे, कुछ जगहों पर स्याही धुंधली। लेकिन हर शब्द जैसे खून से लिखा गया हो।
"पहले-पहल मुझे भी यही लगा कि हॉस्टल सिर्फ़ पढ़ाई और दोस्ती की जगह है। लेकिन धीरे-धीरे मैंने यहाँ छुपी परछाइयों को देखना शुरू किया। लोग कहते हैं ये भ्रम है, पर मैं जानता हूँ यहाँ कुछ है जो इंसानों जैसा दिखता है, पर इंसान नहीं।"
आरव की साँसें रुक-सी गईं। उसने पन्ने पलटे।
"उन्होंने मुझे चेतावनी दी थी कि चुप रहो। लेकिन मैं कैसे चुप रहता जब मैंने अपनी आँखों से देखा था कि रात के तीन बजे हॉस्टल की छत पर कोई खड़ा है, हवा में नहीं, बल्कि शून्य में। और उसकी परछाई दीवार पर नहीं पड़ती थी।"
आरव के रोंगटे खड़े हो गए। कमरे का अंधेरा और गहरा लगने लगा। हर कोना जैसे उसकी नज़र से खेल रहा था।
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🔹 डायरी का रहस्य गहराता है
नील ने लिखा था—
"मैंने सबूत जुटाने की कोशिश की। पर जिसने भी मदद करनी चाही, वो या तो हॉस्टल छोड़कर चला गया या फिर गायब हो गया। मैंने इस कमरे में छुपकर वो सब लिखा है जो मैंने देखा है। अगर कोई आगे इसे पढ़े, तो जान लेना—सच की तलाश की क़ीमत बहुत बड़ी होती है।"
पन्नों पर जगह-जगह खून के धब्बे थे। मानो आख़िरी वक़्त में भी नील इसे लिख रहा था।
आरव ने एक पन्ने पर ध्यान दिया। वहाँ अजीब से चिन्ह बने थे—गोलाकार आकृति, बीच में त्रिकोण और उसके चारों ओर अंकों की तरह कुछ प्रतीक।
उसके मन में सवालों का तूफ़ान उठ गया—ये चिन्ह क्या हैं? नील ने इन्हें क्यों बनाया?
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🔹 अचानक हुई घटना
अचानक पीछे से दरवाज़ा धड़ाम से बंद हो गया। आरव ने झटके से सिर घुमाया। पर कोई नहीं था। उसके सीने में साँसें तेज़ हो गईं।
डायरी अचानक उसके हाथ से फिसली और ज़मीन पर गिरते ही उसका एक पन्ना फड़फड़ाकर खुल गया। उस पन्ने पर लिखा था—
"अगर तुम यह पढ़ रहे हो, तो समझ लो कि अब वो तुम्हें देख रहा है।"
आरव का गला सूख गया। उसने काँपते हाथों से डायरी उठाई और जल्दी से कमरे से बाहर निकल आया। गलियारे में पहुँचते ही उसे महसूस हुआ जैसे कोई परछाई पीछे-पीछे चल रही हो।
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🔹 डायरी का असर
अपने कमरे में लौटकर उसने दरवाज़ा बंद किया और कुर्सी पर बैठ गया। उसके हाथ अब भी काँप रहे थे। उसने डायरी फिर से खोली।
आगे की एंट्रियाँ और भी भयावह थीं।
"मैं अकेला नहीं हूँ। वो हर रात आता है। खिड़की के बाहर खड़ा होकर देखता है। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं, आँखें खाली—जैसे गहराई में खींच ले जाएँ। मैंने दरवाज़ा बंद कर रखा है, पर वो दरवाज़े से नहीं आता।"
आरव के चारों ओर जैसे हवा भारी हो गई थी। घड़ी की टिक-टिक भी डरावनी लग रही थी।
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🔹 डायरी का आख़िरी संदेश
डायरी के अंतिम पन्नों पर नील की लिखावट बिखरी हुई थी। मानो वो जल्दबाज़ी में लिख रहा हो।
"आज रात आख़िरी बार वो आया है। अब मुझे छुपने की जगह नहीं। अगर मैं बचा तो कल फिर लिखूँगा। अगर नहीं… तो समझ लेना कि वो जीत गया।"
उसके बाद पन्ना खाली था।
आरव की आँखें भर आईं। उसे ऐसा लगा मानो नील की आत्मा अब भी वहीं कहीं फँसी है, जो अपनी कहानी पूरी करना चाहती है।
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🔹 आरव का संकल्प
आरव ने डायरी बंद कर दी। उसके भीतर डर के साथ-साथ गुस्सा भी था। अगर ये सब सच है, तो क्यों सबने इसे छुपाया? क्यों किसी ने नील की मदद नहीं की?
उसने मन ही मन ठान लिया—वो इस रहस्य को उजागर करेगा, चाहे इसके लिए उसे जान का ख़तरा ही क्यों न उठाना पड़े।
डायरी उसकी मुट्ठी में कस गई। जैसे वो कह रही हो—“अब तेरी बारी है।”
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कमरे की लाइट टिमटिमाई। बाहर हवा का शोर बढ़ गया। आरव ने महसूस किया कि उसकी ज़िंदगी अब कभी पहले जैसी नहीं रहेगी।
उसकी लड़ाई शुरू हो चुकी थी—एक ऐसी लड़ाई जिसमें दुश्मन इंसान नहीं था, बल्कि कुछ और…
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