Lalit - The Master of Thikri - 2 in Hindi Thriller by salman khatik books and stories PDF | ललित - The Master of Thikri - 2

Featured Books
Categories
Share

ललित - The Master of Thikri - 2

 "कभी-कभी छोटी-छोटी घटनाएँ किसी बड़े तूफान की आहट होती हैं। इंसान समझता है कि वह हालात पर काबू पा रहा है, मगर किस्मत के खेल में मोहरे कब बदल जाएँ, यह कोई नहीं जानता। जो दूसरों के लिए जाल बुनता है, कभी-कभी वही खुद उसमें फँस जाता है।"

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

          फोन की लगातार बजती आवाज़ ने माहौल में एक अजीब सी घबराहट घोल दी थी। ऐसा लग रहा था मानो कोई अनहोनी दस्तक दे रही हो। ललित की उंगलियाँ काँप रही थीं, माथे पर पसीने की महीन बूंदें उभर आई थीं, और दिल की धड़कनें तेज़ हो गई थीं। फोन की घंटी किसी चेतावनी की तरह गूँज रही थी, जैसे किसी आने वाले तूफान का संकेत हो।

          वह कुछ देर तक हिचकिचाता रहा, लेकिन आखिरकार, भारी मन से उसने धीरे-से फोन उठाया।

          "हैलो, ललित भाई!" दूसरी तरफ से सोनू भाई की सामान्य आवाज़ आई। ललित को थोड़ा सुकून मिला, मगर दिल में अब भी अजीब सा तनाव था।

          "हाँ, सोनू भाऊ?" ललित ने संयमित आवाज़ में जवाब दिया।

          "शरद को भेजकर चने का सैंपल निकलवाओ और उसे मेरे ऑफिस में रखवाने को कह दो। मैं थोड़ी देर में आ रहा हूँ," सोनू भाई ने सहज लहजे में कहा।

          ललित ने राहत की सांस लेते हुए जवाब दिया, "ठीक है, सोनू भाऊ। मैं अभी शरद को बुलाकर सैंपल निकलवाता हूँ।"

          फोन रखते ही ललित ने कुछ क्षणों के लिए कुर्सी पर सिर टिका दिया, जैसे किसी भारी बोझ से मुक्त हुआ हो। मगर ये राहत क्षणिक थी। तभी अचानक उसे याद आया—सैंपल के लिए शरद की जरूरत थी, और शरद का अब तक कोई अता-पता नहीं था।

          ललित की पेशानी फिर से तनावग्रस्त हो गई। उसने झट से अपनी कैबिन में रखे छोटे से कागज को उठाया और उस पर लिखा:

          "लॉट -328, गाला नंबर C-4:53, मार्का - O, डॉलर चना।"

          उसने पर्ची को जेब में रखा और कुर्सी से उठकर तेजी से बाहर आ गया।

          बाहर कोल्ड स्टोरेज के गलियारे में हलचल थी। मशीनों की गूँजती आवाज़ें कानों में पड़ रही थीं, ठंडे वातावरण में भी कामगारों की तेज़ गतिविधियाँ जारी थीं। हर कोई अपने काम में व्यस्त था, लेकिन शरद का कहीं कोई नामोनिशान नहीं था।

          ललित के चेहरे पर गुस्सा और खीज का मिला-जुला भाव था। वह तेजी से इधर-उधर देखने लगा, मानो किसी शिकार की तलाश कर रहा हो। उसके दिमाग में एक ही बात घूम रही थी—"ये कामचोर शरद! हर बार सबसे लेट आता है। आज तो इसे सबक सिखाकर ही रहूँगा। सोनू भाऊ को आते ही इसकी शिकायत करूँगा। अगर इसे काम से नहीं निकलवाया, तो मेरा नाम भी ललित नहीं!"

          उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखी। सोनू भाई कभी भी आने वाले थे और सैंपल निकालने का काम अभी तक रुका पड़ा था। ललित का गुस्सा अब धीरे-धीरे बढ़ने लगा था। वह कोल्ड स्टोरेज के पिछले हिस्से की ओर बढ़ा, जहाँ कुलदीप कुछ मजदूरों के साथ ट्रक में बैग्स लोड कर रहा था।

          "अरे कुलदीप, जरा इधर आ ना," ललित ने तेज आवाज़ में कहा।

          कुलदीप, जो अभी-अभी एक भारी बोरी ट्रक में रखकर सीधा खड़ा हुआ था, हड़बड़ाकर बोला, "का भइया, का बात होई?"

          "शरद दिखा कहीं?" ललित ने अपनी तीखी नजरें घुमाते हुए पूछा।

          कुलदीप ने माथे पर पड़े पसीने को गमछे से पोंछते हुए जवाब दिया, "ना ललित भइया, ऊ तो नाहीं दिखा। पता ना कहाँ मर गइल है आज!"

          ललित के माथे की सलवटें और गहरी हो गईं। उसने होंठ भींचे और कुलदीप को घूरते हुए बोला, "बब्बू को बुलाओ, देखो उसे कुछ पता है क्या?"

          कुलदीप ने सिर हिलाया और गाड़ी के दूसरी तरफ खड़े बब्बू को आवाज़ लगाई, "अरे ओ बब्बू! सुन बे, इधर आओ। ललित भइया पूछत हैं, शरदवा का कहीं देखा है का?"

          बब्बू, जो ट्रक के किनारे बैठा हुआ तंबाकू को हथेली में रगड़ रहा था, आँखें मिचमिचाते हुए बोला, "अरे ललित भइया, हम तो कब से यहीं बइठे हैं, कौनो शरद-वरद नाहीं देखे। ऊ ससुरा लगता है आज फिर से लेट हो गइल!"

          यह सुनकर ललित की भौंहें तन गईं। "हर बार की तरह आज भी देर से! ऐसे कामचोर लोग यहाँ काम करने लायक नहीं हैं। मैंने दस साल तक 'ठिकरी' में काम किया है। ऐसे कितने ही कामचोरों को अपने शातिर दिमाग से नौकरी से निकलवाया है। ये शरद किस खेत की मूली है!"

          ललित कोल्ड स्टोरेज में कुख्यात था—कर्मचारियों के लिए एक डर और परेशानी का कारण। उसकी चुगलखोरी की आदत पूरे स्टोरेज में मशहूर थी। वह दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर मालिकों के सामने पेश करता था और अपनी चालाकी से कई लोगों की नौकरी खा चुका था।

          इसी आदत के कारण अधिकतर लोग उससे दूरी बनाए रखते थे। कामगार उसे देखकर कतराते थे, मगर शरद ही था जो उसकी हरकतों का सबसे बड़ा निशाना बन चुका था।

          ललित सैंपल निकालने की पर्ची हाथ में लिए कोल्ड स्टोरेज के मुख्य गेट के पास खड़ा हो गया। उसकी आँखें लगातार गेट पर टिकी थीं, और चेहरे पर गुस्सा और खीज साफ झलक रही थी।

          कुछ देर बाद, उसने गेट पर खड़े आन्ना से पूछा, "शरद आया क्या?"

         आन्ना ने सिर हिलाते हुए कहा, "अभी तक नहीं, ललित भाई।"

          ललित ने गुस्से में ज़मीन पर पैर पटका और बड़बड़ाने लगा, "सोनू भाऊ के आते ही इसका खेल खत्म। आज इसे सबक सिखाकर ही रहूँगा!"

          कुछ मिनट बाद, कोल्ड स्टोरेज के गेट से एक नीली शर्ट और खाकी पैंट पहने आदमी अंदर दाखिल हुआ। उसके हाथ में एक पुराना बैग था, और चेहरा थका हुआ लग रहा था। मगर उसकी आँखों में वही पुरानी बेपरवाही झलक रही थी।

          ललित ने उसे देखते ही तेज़ आवाज़ में कहा, "अरे शरद! ये कोई काम पर आने का समय है क्या? जब देखो, लेट आते हो! सोनू भाऊ को पता चला तो तुम्हारी नौकरी गई समझो।"

          शरद ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "अरे ललित भाई, आप तो हर बार मुझे ही निशाना बनाते हो। बाकी लोग भी देर से आते हैं, लेकिन आपको तो बस मेरा ही नाम लेना है!"

          ललित तमतमा गया। "तुम जैसे कामचोर बस बहाने बनाते हो! ये लो पर्ची, और जल्दी से सैंपल निकालकर सोनू भाऊ के ऑफिस में रखवाओ।"

          शरद ने पर्ची ली और मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, ललित भाई। मैं अभी सैंपल निकालता हूँ।"

          ललित ने उसकी बात को अनसुना कर दिया और फिर से बड़बड़ाने लगा, "सब बावन बावन हो गया! ये कामचोर मेरे सिर का दर्द बन गए हैं।"

          कोल्ड स्टोरेज में फिर से हलचल शुरू हो गई थी। शरद सैंपल निकालने चला गया, लेकिन ललित के चेहरे पर अब भी गुस्सा और बेचैनी साफ नजर आ रही थी। उसके दिमाग में बस एक ही ख्याल घूम रहा था—"सोनू भाऊ के आने के बाद शरद का खेल खत्म!"

लेकिन क्या सच में ऐसा होगा?

क्या शरद की देरी के पीछे कोई और वजह थी?

          क्या ललित इस बार भी किसी साजिश में सफल होगा, या फिर इस बार खुद किसी बड़ी चाल का शिकार बनने वाला था?

         यह दिन सिर्फ ललित और शरद के लिए नहीं, बल्कि कोल्ड स्टोरेज के पूरे माहौल के लिए तनाव से भरा था। लेकिन आने वाले पलों में कुछ ऐसा होने वाला था, जो किसी ने भी नहीं सोचा था...


जारी है.......