JANVI - Rakh Se Uthti Loa - 5 in Hindi Motivational Stories by Luqman Gangohi books and stories PDF | JANVI - राख से उठती लौ - 5

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JANVI - राख से उठती लौ - 5

✨रिजल्ट का दिन✨

"जब मंजिल मिलती है, तो वो सिर्फ सफलता नहीं होती वो हर अपमान का उत्तर बन जाती है।"

पिछले कुछ हफ्ते जैसे तपस्या के अंतिम चरण थे। दिन और रात में कोई अंतर नहीं रहा था। जानवी के लिए वक्त का मतलब सिर्फ दो चीजें थीं-"प्रीलिम्स से पहले" और "इंटरव्यू से बाद"।

उसका कमरा अब एक रणभूमि बन चुका था। दीवार पर देश का नक्शा टंगा था। टेबल के सामने स्टिकी नोट्स चिपका था-
"ध्यान केन्द्रित करो", "कोई विकर्षण नहीं", "आप यह कर सकते हैं" I

और दिल में सिर्फ एक नाम "IAS JANVI" I

दरवाजा उस मंजिल का

कमरे की दीवार पर टॅगी एक पुरानी घड़ी की टिक-टिक के साथ ही मोबाइल पर अचानक एक ईमेल नोटिफिकेशन उभरा।

विषय: यूपीएससी व्यक्तित्व परीक्षण कॉल लेटर

जानवी की नजरें कुछ पल के लिए स्क्रीन पर जमी रहीं। उंगलियां कंपकंपाई, और सांस अटक गई। "क्या ये वही है जिसका मैंने अपने पापा से वादा किया था?"

उसने काँपते हाथों से मेल खोला, और जब शब्दों ने उसकी आंखों के आंसुओं के रास्ते खोज लिए, तो उसने एक ही काम किया-फोन उठाकर शौकीन भइया को वीडियो कॉल मिलाई। स्क्रीन पर भाई का चेहरा उभरा-थोड़ा थका, लेकिन हमेशा की तरह हौसला भरा।

जानवी (कांपती आवाज़ में):

"भैया... आ गया। कॉल लेटर... मैं इंटरव्यू देने जा रही हूं।"

शौकीन (सन्न कुछ पल के लिए, फिर मुस्कुराते हुए):

"बोल बहना... बोल ना... क्या कहा तूने?" (उसकी आंखें भीग चुकी थीं।)

"आज जो तूने किया है, ये किसी चमत्कार से कम नहीं। ये सिर्फ एक कॉल लेटर नहीं है, ये उस हर लड़की की उम्मीद है जिसे दुनिया ने कहा था कि तू अकेली क्या कर लेगी। जानवी... अब सिर्फ इंटरव्यू देने मत जाना... अब तू उस कमरे में इस विश्वास के साथ जाना कि तू वहाँ सिर्फ सवालों के जवाब देने नहीं, अपनी पूरी जर्नी का इम्पैक्ट छोडने जा रही है।"

"तू किसी पोस्ट की मोहताज नहीं, वो पोस्ट तेरे नाम की मोहताज है अब।"

इंटरव्यू की तैयारी - मानसिक युद्ध का मैदान

उस दिन के बाद, जानवी ने इंटरव्यू की तैयारी वैसे की जैसे कोई योद्धा अंतिम युद्ध के लिए तलवार तेज करता है। उसने खुद से 'मॉक इंटरव्यू लिए।

हर दिन खुद को आईने में देखकर सवाल पूछती "तुम्हारे लिए देश सेवा का क्या मतलब है?"

उसने शौकीन भइया से लगातार प्रैक्टिस की फोन कॉल्स, वीडियो कॉल्स, सबकुछ एक तैयारी का हिस्सा बन गया।

एक बार भाई ने कहाः

"सिर्फ जवाब मत तैयार कर, अपना नजरिया बनाओ। इंटरव्यू लेने वाले तुम्हारे शब्द नहीं, तुम्हारा आत्मविश्वास पढ़ेंगे।"

इंटरव्यू का दिन - आत्मा की परीक्षा

दिल्ली की हवा थोड़ी भारी थी उस दिन। इंटरव्यू सेंटर के बाहर खड़े लोग जैसे एक ही सांस में सबकुछ जी लेना चाहते थे-डर, उम्मीद, घबराहट, और यकीन।
जानवी ने फॉर्मल साड़ी पहनी थी-पापा की पसंद की। माथे पर हल्का सा टीका, और आंखों में दृढ़ता।

वो कमरे में दाखिल हुई। और पैनल के सभी सवालों का बाखूबी जवाब दिया, ऐसा लग रहा था जैसे कोई आत्मविश्वास से परिपूर्ण लड़की पैनल को हल्की मुस्कान के साथ निडर होकर जवाब दिए चली जा रही थी। इंटरव्यू खत्म हुआ और वह खुशी खुशी कमरे से बाहर निकली। अब उसके चेहरे पे वो सुकून साफ झलक रहा था जैसे कुछ जीत लिया हो, भले ही परिणाम बाकी था।

एक सामान्य दिन, जो असाधारण बनने वाला था

परिणाम आने वाला था- UPSC FINAL RESULT DAY| जानवी ने मोबाइल ऑफ कर दिया था। कोई सोशल मीडिया नहीं, कोई बाहरी शोर नहीं सिर्फ एक मौन प्रार्थना।

उसने कंप्यूटर खोला। धड़कनों की गति बढ़ गई थी। अक्सर ऐसा होता है कि जब हम अपनी किस्मत का सामना करने वाले होते हैं, तो हमें अपना अतीत याद आता है। उसे याद आया....

वो दिन जब पंकज ने कहा था "पहले IAS बनो, फिर शादी करेंगे"

वो रात जब पापा की तस्वीर को देखकर बोली थी - "मैं हार नहीं मानूंगी"
और वो आवाज़, जो हर बार टूटने से पहले कहती थी "तेरे पीछे मैं हूं बहना" - शौकीन भैया की।

स्क्रीन पर लोडिंग... और फिर

जानवी ने रोल नंबर डाला... क्लिक किया... स्क्रीन थोड़ी देर तक लोड होती रही... और फिर... लिखा आया-

AIR-52 | Name: JANVI KUMARI Service: IAS

उस एक पल में सब कुछ रुक गया। जैसे पूरी कायनात उसकी आंखों में समा गई हो।

खुशी के आंसू और सन्नाटा

उसने कुछ देर कुछ नहीं कहा। फिर चुपचाप जाकर अपने पापा की तस्वीर के सामने बैठ गई और तस्वीर को छूते हुए सिर्फ इतना कहाः "आपने कहा था ना पापा, एक दिन सब कहेंगे- 'मुझे जानवी जैसी बेटी चाहिए'।"

भैया को फोन - सबसे पहला कॉल

उसने फोन ऑन किया और सिर्फ एक नंबर डायल किया- "शौकीन भैया"

फोन उठाते ही बोली-
"भैया... हो गया... IAS बन गई मैं।"

उधर से आवाज आई-
"मैंने कहा था ना बहना, तू सिर्फ जानवी नहीं... तू मिसाल है। आज तूने सिर्फ अपना नहीं, हर उस लड़की का सपना पूरा किया है, जो हालातों से डरती है।"

गांव में शोर, शहर में खबर

गांव में ढोल बजने लगे। टीवी चैनलों पर नाम आया-

"IAS JANVI - छोटे गांव से बड़ी उडान"

पत्रकार आए, पड़ोसी आए, रिश्तेदार आए। और हां... पंकज भी।

पंकज की नजरें - पछतावे से भरी

जब जानवी के सम्मान में एक फंक्शन कार्यक्रम रखा गया, तो पंकज भी रिश्तेदारों के साथ शामिल हुआ। भीड़ में खड़ा होकर, वो बस जानवी को देखता रहा, जिसे उसने कभी इग्नोर किया था, वो अब स्टेज पर खड़ी थी- सम्मान के साथ, आत्मविश्वास के साथ।

उसने जानवी की ओर देखा आशा से, पछतावे से, और शायद माफी के इंतज़ार में।

जानवी की नजरें उस तक पहुंचीं... वो शिष्टता से मुस्कुराई और कैसे हो भैया... बोलकर आगे बढ़ गई।

क्योंकि अब उसका सफर किसी के साथ या बिना साथ के नहीं था, अब उसका सफर उसकी खुद की पहचान था।

लबासना की तैयारी - एक नई शुरुआत

कुछ ही हफ्तों में उसकी ट्रेनिंग शुरु होने वाली थी- LBSNAA, मसूरी में।

देश के सबसे तेज़ और होनहार दिमागों के बीच, अब जानवी भी थी एक अफसर, एक प्रेरणा, और सबसे बड़ी बात एक मिसाल बनकर।

अब ये देखना बड़ा सुखदायक होगा कि जानवी लबासना की वादियों से सिर्फ एक अच्छी प्रशासक बनकर ही नहीं लौटेगी, बल्कि खुद का सच्चा हमसफर भी चुनकर लाएगी। एक रिश्ता, जो भरोसे पर बना होगा बिना शर्त, बिना अपेक्षा के।