✨अनकहे रिश्ते✨
"कभी-कभी जो हमें सहारा लगता है, वही हमारी सबसे बड़ी सीख बन जाता है।"
यह वह दौर है जब जानवी के जीवन में पंकज आता है, एक ऐसा रिश्ता बनकर जो शुरुआत में तो सुकून देता है, पर धीरे-धीरे आत्मबोध की राह बन जाता है।
यूपीएससी की तैयारी अब जानवी के जीवन का केंद्र बन चुकी थी। हर सुबह 5 बजे उठना, स्टडी शेड्यूल बनाना, कोचिंग की क्लास अटेंड करना, और रात को नोट्स तैयार करते हुए नींद में ही किताबों पर सिर रखकर सो जाना यही उसकी दिनचर्या थी।
लोगों की भीड़ से अलग-थलग सी रहने वाली वो लड़की खुद को कभी अकेला नहीं समझती थी, क्योंकि उसे हर वक्त अपने पापा की आवाज़ सुनाई देती थी-
"बेटा, फोकस कभी भी डगमगाए तो याद करना, तेरा सपना बहुतों का सपना है।"
जानवी पढ़ाई में पूरी तरह डूब चुकी थी दुनिया से लगभग कटी हुई।
एक शादी, एक नजर...
ऐसे ही एक दिन, जानवी किसी गांव में करीबी रिश्तेदार की शादी में शामिल होने गई। वो भी कई महीनों बाद। जहां बाकी लड़कियां सज-धज कर झूम रही थीं, वहीं जानवी सादे सलवार-कुर्ते में किसी कोने में बैठी मुस्कुरा रही थी शांति से, जैसे वहां का हिस्सा होकर भी उससे अलहदा(अलग-थलग) हो।
वहीं से किसी ने उसे देखा बहुत ध्यान से। उसका नाम था पंकज । एक वकील, जो कानपुर में ही प्रैक्टिस कर रहा था। जानवी का दूर का रिश्तेदार, लेकिन असल में आज तक दोनों ने कभी एक-दूसरे से ठीक से बात तक नहीं की थी। पर उस दिन...
कुछ बदल गया। वो एक नज़र... जब पंकज की नजर जानवी पर टिकी रह गई। वो बाकी लड़कियों से बिल्कुल अलग थी। ना मेकअप, ना कोई दिखावा बस सादगी, और एक गहराई। उसे वो लड़की 'अनकही सी कोई कविता' लगी। पहली बार किसी को देखकर उसे लगा, "शायद यही है जो मैं ढूंढ रहा था..."
लेकिन जानवी इससे अंजान थी। उसकी नजरें सिर्फ अपने आने वाले प्री-क्लियरेंस टेस्ट के नोट्स पर टिकी थीं। शादी हुई सब अपने-अपने घर लौट आए।
फिर हुआ लड़के का पहला इजहार
कुछ दिनों बाद, एक और पारिवारिक कार्यक्रम में जब पंकज को दोबारा जानवी से बात करने का मौका मिला, तो उसने हिम्मत जुटा ही ली। भीड़ से थोड़ा दूर जाकर उसने कहा-
"जानवी, मुझे तुम पसंद हो। काफी समय से फॉलो कर रहा हूं। तुम बाकियों से अलग हो।"
जानवी ठिठक गई। पहले तो कुछ पल जैसे उसके दिमाग ने सुना ही नहीं। फिर सीधा जवाब दिया -
"अचानक ऐसे ही किसी को भी कुछ भी बोल देते हो क्या? मैंने तो कभी ऐसा कुछ फील नहीं किया..."
और बिना और कुछ कहे, वहां से चली गई।
सुनसान में एक 'Hi'
कुछ दिनों तक दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई। जानवी ने फिर से खुद को पढ़ाई में झोंक दिया। लेकिन फिर एक दिन अचानक उसका मोबाइल वाइब्रेट हुआ -
"Hi" - नाम था पंकज ।
पहले तो जानवी ने देखा और अनदेखा कर दिया। उसकी लाइफ में अब प्यार और इमोशन्स के लिए जगह नहीं थी। पर पंकज रुकने वाला नहीं था।
"कैसी हो?"
"पढाई कैसी चल रही है?"
"कभी थक जाती हो तो बता देना, बात करेंगे।"
फिर धीरे-धीरे... जानवी ने रिप्लाई देना शुरू किया।
ध्यान भटकाव या साथी?
वैसे तो जानवी किसी पर जल्दी विश्वास नहीं करती है, लेकिन पंकज उसे धीरे-धीरे इतने विश्वास में ले आया कि अब जब भी वो थकती, और फोन में पंकज का मैसेज होता, तो चेहरा मुस्कुरा जाता।
धीरे-धीरे, उनकी बातचीत देर रात तक चलने लगी। जानवी को लगने लगा -
"शायद मैं अकेली नहीं हूं। कोई है जो मुझे समझता है, जो साथ है।"
अब वो पंकज की बातों में सुकून ढूंढने लगी थी। कभी-कभी लगता, "क्यों न इसके साथ भविष्य की कल्पना करू?"
पर वो जानती थी-
"सपनों से पहले, मंजिल जरूरी है। और मेरी मंजिल अभी दूर है।"
फिर एक दिन कुदरत ने भी जानवी का इम्तेहान लिया। और एक ऐसा झकझोड़ देने वाला दिन विक्राल रूप लेकर आया जिसने जानवी की हिम्मत तोड़ दी। वो सहारा भी छूट चुका था, जो हर परिस्थिति में कहता था कि बेटा तू आगे बढ़ तेरे पीछे मैं खड़ा हूं। हां मैं उसी पिता की बात कर रहा हूं जो जानवी की हिम्मत था, वो भी आज उसको संघर्ष मझधार में तन्हा छोड़कर चल दिए क्योंकि आज उनका दिहांत हो गया। जानवी अंदर से टूट चुकी थी।
कुछ दिनों तक कोई पढ़ाई नहीं हुई, फिर उसने धीरे धीरे खुद को संभालना शुरू किया। अभी पूरी तरह से संभल भी नहीं पाई थी कि फिर एक और गहरा आघात पहुंचा.....
फिर टूटी उम्मीद
अभी तक पिता के सदमे से बाहर भी नहीं आई थी कि समय ने एक बार फिर करवट ली। एक दिन खबर आई कि पंकज किसी लड़की से शादी करने जा रहा है। जानवी ने खुद से लड़ते हुए उससे मिलने का फैसला किया। और मिलकर पूछा कि -
"क्या तुम सच में शादी कर रहे हो?"
पंकज का जवाब था -
"नहीं... मैं तुमसे ही शादी करना चाहता हूं, लेकिन पहले तुम IAS बनो। फिर करेंगे।"
जानवी ने फिर पूछा -
"अगर मैं UPSC क्लियर नहीं कर पाई तो?"
....कोई जवाब नहीं। उस चुप्पी ने सब कह दिया। उसने महसूस किया कि पंकज उसकी मेहनत से प्यार करता है, उससे नहीं। उसने उम्मीद की थी कि वो उसका सहारा बनेगा, लेकिन वो तो उसकी "सफलता की शर्त" रख रहा था।
अकेली, लेकिन अब टूटने को नहीं तैयार
उस दिन जानवी वापस लौटी चुप थी, लेकिन बहुत कुछ समझकर आई थी। अब उसके लिए सिर्फ दो चीजें थीं-
एक अधूरा रिश्ता... और एक अधूरी मंज़िल ।
पर वो जानती थी कि-
"किसी के जाने से जिंदगी खत्म नहीं होती, लेकिन किसी को लेकर रुक जाने से जिंदगी चलना बंद जरूर कर देती है।"
बाकी आगे..........