कहते हैं कि प्यार मौत से भी बड़ा होता है, लेकिन जब वही प्यार मौत के बाद भी किसी इंसान को चैन से जीने ना दे, तो वह प्यार नहीं, एक अभिशाप बन जाता है।
पुरानेज़माने के एक गाँव की बात है, जहाँ रात के अंधेरे में सन्नाटा इतना गहरा होता था कि इंसान की धड़कनें भी डर से तेज़ सुनाई देती थीं। वहीं पर घटित हुई थी ऐसी कहानी, जिसे सुनकर गाँव के लोग आज भी कांप उठते हैं कहानी एक ऐसे प्रेम की, जो इंसान को नहीं बल्कि शैतान को जन्म दे गई।
अंशुल और सोनिया एक-दूसरे से बेहद प्यार करते थे। कसमें-वादे, साथ जीने-मरने की बातें सब उनके रिश्ते का हिस्सा था। लेकिन किस्मत ने अंशुल को बीच रास्ते में ही छीन लिया। एक भयानक हादसे में उसकी मौत हो गई। सोनिया रोती रही, तड़पती रही, लेकिन घरवालों ने उसकी शादी गाँव के ही एक इंसान, अनुज से कर दी। सबको लगा सोनिया अब नई ज़िंदगी शुरू कर देगी, लेकिन असली डर तभी शुरू हुआ।
शादी की पहली ही रात सोनिया ने महसूस किया कि कोई परछाई उसके कमरे की दीवार पर रेंग रही है। हवा बासी खून की तरह सड़ांध मार रही थी। अचानक खिड़की खुद-ब-खुद खुल गई और उसने एक फुसफुसाहट सुनी "तुम मेरी हो सोनिया… सिर्फ मेरी…” उसकी रूह काँप गई, क्योंकि वो आवाज़ अंशुल की थी।
धीरे-धीरे अंशुल की आत्मा ने घर में कदम जमाना शुरू कर दिया। पहले छोटे-छोटे डरावने संकेत मिले, दीवारों पर खून जैसे निशान, आधी रात को किसी का दरवाज़ा पीटना, अनुज के बिस्तर के पास काले हाथों के निशान। सोनिया जान गई कि अंशुल मरने के बाद भी उसे नहीं छोड़ना चाहता। पर अब वो उसका प्यार नहीं, एक शैतान बन चुका था।
कुछ ही दिनों में अंशुल की आत्मा ने अनुज को निशाना बनाया। रात के अंधेरे में वह अनुज के गले को दबाता, उसकी साँसें रोक देता। कई बार अनुज बेहोश हो जाता और उसकी धड़कनें थमने लगतीं। डॉक्टर नहीं, बल्कि पूरे गाँव ने कहना शुरू कर दिया “अनुज शैतान की पकड़ में है।” सोनिया की आँखों के सामने उसका पति मौत की ओर बढ़ रहा था।
तभी एक साधु गाँव में आया, जिसे लोग तांत्रिक बाबा कहते थे। सोनिया उसके पास भागी और सब कुछ बता दिया। तांत्रिक ने उसकी आँखों में झाँककर कहा “ये प्यार नहीं, पागलपन है। अगर दो दिन में इसे वश में नहीं किया, तो तुम्हारा पति कभी सुबह का सूरज नहीं देख पाएगा।”
उस रात तांत्रिक ने अनुष्ठान शुरू किया। काले धुएँ से भरा कमरा, मंत्रों की गूंज और खून से खींचा गया त्रिकोण। सोनिया उस घेरे के बीच बैठी थी और चारों ओर तेल के दीये जल रहे थे। अचानक हवा का एक तेज़ झोंका आया और अंशुल की आत्मा प्रकट हो गई। उसका चेहरा अब इंसान का नहीं रहा था आँखें लाल अंगारों की तरह जल रही थीं, और उसके मुँह से सड़ांध भरी साँस निकल रही थी। उसने चीखकर कहा “सोनिया, तुम मेरी हो… मैं तुम्हें कभी किसी और का नहीं होने दूँगा।”
तांत्रिक ने मंत्र पढ़ना शुरू किया और लोहे की जंजीरों से उस आत्मा को बाँधने की कोशिश की। आत्मा बेकाबू होकर दीवारों से टकराने लगी, ज़मीन फटने लगी। सोनिया रोती रही, लेकिन उसकी मजबूरी थी। घंटों की जद्दोजहद के बाद तांत्रिक ने अंशुल की आत्मा को वश में किया और लोहे के कलश में कैद कर दिया।
आधी रात को वह कलश गाँव के बाहर पुराने तालाब में फेंक दिया गया। सबको लगा कि अब सब खत्म हो गया। सोनिया ने राहत की सांस ली और अनुज धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।
कहते हैं, उसी तालाब के पास रात को अब भी किसी के कराहने की आवाज़ आती है “सोनिया…” कई बार गाँव वाले देखते हैं कि पानी में बुलबुले उठते हैं, मानो कोई अंदर से छूटने की कोशिश कर रहा हो। और सबसे डरावनी बात कुछ ही हफ्तों बाद अनुज ने सपना देखा कि कोई उसके कान में कह रहा है “दो दिन तो तुम बच गए… लेकिन मैं लौटूँगा…”
असल डर यही है शैतान अभी मरा नहीं है, वह बस इंतज़ार कर रहा है आजाद होने का…