बरसात की एक ठंडी रात थी, आसमान में बादल ऐसे गरज रहे थे जैसे किसी गहरे अंधेरे रहस्य को छुपाने की कोशिश कर रहे हों। अर्चना ने पुराने शहर की एक जर्जर एंटीक दुकान से एक अजीब-सी गुड़िया खरीदी थी, जिसे दुकानदार ने बेचते समय सिर्फ इतना कहा था, "इसे घर मत ले जाना... यह किसी की नहीं होती।" लेकिन अर्चना ने उसकी बात को हंसी में टाल दिया। गुड़िया का नाम दुकानदार ने बताया था "Labubu" बड़ी काली आँखें, टूटी हुई दाँतों जैसी सफेद धारियां, और एक अजीब मुस्कान जो देखने वाले के रोंगटे खड़े कर दे।
पहली ही रात अर्चना को अजीब चीजें महसूस होने लगीं। कमरे का तापमान अचानक कम हो जाता, दीवारों पर साये ऐसे हिलते जैसे कोई वहाँ चल रहा हो। जब भी वह सोने जाती, उसे कानों में धीमी-सी हंसी सुनाई देती "हा... हा... हा..."। एक रात उसने आधी नींद में देखा कि Labubu गुड़िया बिस्तर के पास खड़ी है, उसकी काली आँखें सीधे उसकी आँखों में घूर रही हैं, और उसके छोटे-छोटे हाथों से बिस्तर की चादर खींच रही है।
अगले दिन अर्चना ने गुड़िया को अलमारी में बंद कर दिया, लेकिन शाम को जब वह वापस आई, तो Labubu फिर से ड्रॉइंग रूम के बीचोंबीच रखी थी, उसकी मुस्कान और भी चौड़ी थी, जैसे वह अर्चना की डर की गंध को पी रही हो। घर में अब लगातार अजीब आवाज़ें आने लगीं कभी किसी के पैरों की आहट, कभी फर्नीचर के खिसकने की चरमराहट, और कभी-कभी बच्चों की धीमी फुसफुसाहट, जबकि घर में कोई बच्चा नहीं था।
एक रात, बाहर तेज़ बारिश हो रही थी, अर्चना को लगा जैसे कोई उसके कमरे का दरवाजा खटखटा रहा हो। दरवाजा खोला तो वहाँ कोई नहीं था, लेकिन फर्श पर पानी के छोटे-छोटे गीले निशान थे, जो सीधे उसके बिस्तर तक जाते थे। बिस्तर पर Labubu बैठी थी, उसकी आँखों में अब खून जैसा लाल रंग भर आया था। तभी बिजली चमकी और अर्चना ने देखा – Labubu के पीछे एक काली परछाई खड़ी थी, जो इंसान जैसी तो थी, लेकिन उसका चेहरा गायब था।
अर्चना चीखते हुए बाहर भागी, लेकिन जैसे ही दरवाज़ा खोला, उसने खुद को उसी कमरे के बीच में खड़ा पाया जहाँ Labubu थी। अब चारों तरफ दीवारों पर उसका चेहरा ही चेहरा दिखाई दे रहा था – मुस्कुराता हुआ, दाँत दिखाता हुआ। तभी Labubu ने धीमी आवाज़ में कहा "अब तुम मेरी हो..." और अंधेरा छा गया।
सुबह पड़ोसी दरवाजा तोड़कर अंदर आए, लेकिन घर खाली था। न अर्चना थी, न कोई सामान, सिर्फ कोने में रखी Labubu की गुड़िया थी, जिसकी मुस्कान अब पहले से भी ज्यादा डरावनी थी।
और आज भी, कहते हैं कि जो भी इस गुड़िया को घर ले जाता है, वो बिना कोई निशान छोड़े गायब हो जाता है। पिछली बार, किसी ने रात में इस गुड़िया की आँखें झपकते देखी थीं... और फिर उनके घर से भी एक-एक कर लोग गुम होने लगे।
बरसों बाद, शहर के बाहरी इलाके में एक पुराना, जर्जर मकान मिला, जिसकी खिड़कियां टूटी हुई थीं और अंदर घुप्प अंधेरा पसरा था। कुछ लोग जिज्ञासा में वहां गए, कहते हैं उन्होंने अंदर एक कमरे में पुराने अखबार, धूल से ढके फर्नीचर और एक लकड़ी का बक्सा देखा। बक्से पर मोटे ताले लगे थे, लेकिन ताले जंग खा चुके थे। जैसे ही उन्होंने उसे खोला, अंदर वही Labubu गुड़िया बैठी थी – वही बड़ी काली आँखें, वही डरावनी मुस्कान, पर इस बार उसके कपड़े खून से सने थे।
गुड़िया के साथ एक पुरानी डायरी भी मिली। उसमें अर्चना की लिखावट थी "यह सिर्फ एक गुड़िया नहीं... यह एक आत्मा का कैदखाना है। जो भी इसे छूता है, उसकी आत्मा इस में फंस जाती है, और उसका शरीर Labubu के पीछे खड़ी उस काली परछाई का हिस्सा बन जाता है। मैं भी अब जा रही हूँ... लेकिन अगली बारी तुम्हारी होगी।" आखिरी पन्ना आधा फटा हुआ था, लेकिन किनारे पर लाल रंग में लिखा था "मुस्कुराहट से बचो।"
अचानक, कमरे का दरवाजा अपने आप बंद हो गया, खिड़कियों से बाहर का उजाला गायब हो गया। उन लोगों को दीवारों पर परछाइयाँ रेंगती हुई दिखीं, और बीच में Labubu की आँखें लाल चमकने लगीं। एक-एक कर उनके गले में ठंडी साँसें महसूस हुईं, जैसे कोई उनकी गर्दन को सूंघ रहा हो। तभी अंधेरे में वही फुसफुसाहट आई – "अब तुम मेरी हो..."
कुछ मिनट बाद, मकान से कोई आवाज़ नहीं आई। बाहर खड़े लोगों ने दरवाजा तोड़ा, तो अंदर सिर्फ खाली कमरा था। फर्श पर बिखरे पड़े थे एक कैमरा, कुछ मोबाइल, और कमरे के बीच में रखी वही Labubu गुड़िया, जिसकी मुस्कान अब कान से कान तक खिंच चुकी थी।
आज भी, रात के सन्नाटे में कभी-कभी उस मकान की टूटी खिड़कियों के पीछे से, किसी गुड़िया की परछाई झलकती है... और जो उसकी आँखों में देख लेता है, वो फिर कभी सूरज की रोशनी नहीं देख पाता। डर खत्म नहीं हुआ... बल्कि अभी तो उसने शुरुआत की है।