रानी रतनकँवर का संताप
महाराणा रायमल ने अपने पैरों में पड़े जयमल को आश्चर्य से देखा, जो फूट-फूटकर रो रहा था। समीप ही गंभीरता की प्रतिमूर्ति बना खड़ा सूरजमल जैसे भरसक प्रयास से अपने आँसू रोक रहा था।
‘‘कुमार जयमल! क्या बात है, तुम...तुम इतने अधीर क्यों हो? कुमार सूरज, तुम अवश्य कुछ जानते होगे कि क्या हुआ है? तुम्हारे द्वारा ही हमें इस गुप्त कक्ष में बुलाया गया है।’’ महाराणा ने कहा।
‘‘महाराज, जब अपनों में घोर वैमनस्य हो जाए और उसकी परिणति राज्य के संकट के रूप में हो तो किसकी जिह्वा पर शब्द आ सकते हैं।’’ सूरजमल ने अपनी आलंकारिक भाषा में कहा, ‘‘आज मेवाड़ के भविष्य को नए आयाम देने वाले तीनों कुमार अपने ही बुने जाल में ऐसे उलझ गए हैं कि मेवाड़ का उत्तराधिकार संकट में आ गया है।’’
‘‘कुंवर , सारी बातें स्पष्ट करो!’’ महाराणा व्यग्रता से बोले।
‘‘महाराज, राजकुमार पृथ्वीराज अपने हृदय में पाल चुके शत्रुभाव का दमन नहीं कर सके और अवसर की प्रतीक्षा में पश्चात्ताप का नाटक कर रहे थे। मेवाड़ के दुर्भाग्य से कुमार पृथ्वी ने कुमार जयमल को भी कुँवर साँगा के प्रति द्वेषी बना दिया था। उस दिन यह बात कुमार जयमल जानते थे। पृथ्वी के साथ कुछ विश्वासपात्र सैनिक भी थे, जो उनके षड्यंत्र में शामिल थे। उनकी पहचान भी कर ली गई है। उन्हीं के द्वारा मुझे पता चला है कि जंगल में कुमार पृथ्वी और उनके साथियों ने कुँवर साँगा पर आक्रमण कर दिया और उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया।’’
‘‘हे माता चारणी!’’ महाराजा रायमल दो कदम पीछे हट गए।
‘‘किसी तरह कुमार साँगा वहाँ से प्राण बचाकर लहूलुहान होकर सेवंतरी गाँव पहुँच गए और वहाँ मारवाड़ के राठौर बींदा ने उनकी रक्षा और उपचार किया, परंतु कुमार और उनके रक्तपिपासु सैनिक वहाँ भी पहुँच गए और सरदार जैतमलोट और उनके सभी सैनिक और परिवारजनों की हत्या कर दी, परंतु कुँवर साँगा वहाँ नहीं मिले। आशा है कि वे अवसर पाकर वहाँ से भी प्राण बचाकर चले गए हैं।’’
‘‘आह! मेरा प्रिय साँगा, दुष्ट पृथ्वी, कुलद्रोही, भातृघाती। अरे जयमल, तू तो मुझे कुछ बता सकता था!’’ राजा ने बिफरकर कहा।
‘‘अपराध-बोध महाराज! अपराध बोध!!’’ सूरजमल ने कहा, ‘‘इस भोले कुमार को कुँवर साँगा से द्वेष नहीं था, अपितु वह तो इनके हृदय में बोया गया था, जो क्षणिक था। कुँवर साँगा के साथ हुए अत्याचार की बात सुनकर ही इनका भातृप्रेम जाग उठा और इन्होंने रो-रोकर मेरे सामने बताया कि क्या हुआ था? मैंने तत्काल कुमार पृथ्वी के दो साथियों की पहचान कर उन्हें बंदी बनाया और सारी बात जान ली। अब कुँवर जयमल अपने अपराध की क्षमा माँगने के लिए ही आपके चरणों में पड़े हैं और इनका अपराध यह है कि इन्हें कुमार पृथ्वी के कुटिल इरादों के बारे में पता था, परंतु ये मौन रहे। एक प्रकार से ये भी अपराधी ही हैं, परंतु क्षमायोग्य हैं।’’
‘‘पिताजी!’’ जयमल विलाप कर उठा, ‘‘मुझ अधर्मी को क्षमा कर दीजिए। मैं नहीं जानता था कि भाई पृथ्वी का द्वेष इतना कठोर था। मैंने तो उस द्वेष को अनुज साँगा की चहुँओर प्रशंसा से उपजा समझा था और ऐसी ही भावना मेरे हृदय में उठती थी, परंतु साँगा की श्रेष्ठता पर मुझे गर्व भी होता था। पृथ्वी ने अपने द्वेष को इतना बड़ा कर लिया, मुझे ज्ञात भी नहीं हुआ। रोज आखेट पर मुझे अपने साथ ले जानेवाला पृथ्वी उस दिन मुझे न ले गया, अन्यथा मेरे प्राण भले चले जाते, परंतु मैं कुँवर साँगा पर आँच न आने देता। हाय! मेरा दुर्भाग्य कि मैं तनिक सी भूल से ऐसा दोषी बना।’’
‘‘कभी-कभी इतना भोलापन भी ठीक नहीं होता!’’ सूरजमल ने कहा, ‘‘तुम नहीं जानते तुम्हारी भूल से मेवाड़ का राजमहल उदास हो गया। कुँवर साँगा जैसा वीर योद्धा जाने किस हाल में होगा?’’
‘‘क्या...क्या मेरा पुत्र जीवित होगा?’’ राजा रायमल बड़बड़ाए।
‘‘ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं महाराज और माता चारणी उनकी रक्षक हों, शीघ्र ही उनकी खोज सफल हो जाएगी। मैंने चारों ओर गुप्तचर भेज दिए हैं। कुँवर जहाँ भी होंगे, मिल जाएँगे? परंतु इस समय जो राजसंकट है, उसमें क्या करना है, यह आप बताएँ? यह ऐसा विषय है, जो चित्तौड़ से बाहर गया तो शत्रु प्रबल हो जाएँगे। तीनों कुमारों के पराक्रम की कीर्ति ने शत्रुओं को भयभीत किया था और इस स्थिति में शत्रु प्रसन्न ही होंगे।’’
‘‘कुमार सूरज हम तुम्हारी बात समझ रहे हैं! इस कुलघाती पृथ्वीराज ने हमारे कुल को जो दाग लगाया है, उसने हमें व्यथित कर दिया है। हमने समझा था कि अब मेवाड़ को कीर्ति शिखर पर ले जाने का शेष कार्य ये तीनों करेंगे, परंतु इन्होंने तो उस शक्ति को ही खंडित कर दिया। मेवाड़ फिर से दुर्दिनों के कुचक्र में फँसने जा रहा है।’’
‘‘जब तक कुँवर साँगा हैं, तब तक मेवाड़ की ओर कोई कुदृष्टि नहीं डाल सकता।’’
‘‘ईश्वर कुँवर की रक्षा करें। कुमार जयमल, यद्यपि तुमने अक्षम्य अपराध किया है, परंतु तुम्हारे पश्चात्ताप और परिस्थितियों को देखते हुए हम तुम्हें क्षमा करते हैं।’’ महाराणा ने जयमल को कंधे पकड़कर उठाया, ‘‘तुमने समय रहते हमें या कुमार सूरज को पृथ्वी के इरादे बताए होते तो यह संकट न आता। हमारा प्रिय साँगा ऐसे संकट में न फँसा होता।’’
‘‘मुझे दंड दीजिए पिताश्री, अंधकूप में डाल दीजिए। फाँसी पर लटका दीजिए।’’
‘‘उससे क्या लाभ होगा कुँवर जयमल, मेवाड़ पहले ही तुम्हारे मौन और पृथ्वी की क्रूरता से संकट में है। अब तुम्हें भी खो देना ठीक ऐसे होगा, जैसे अपने ही हाथों से अपनी भुजाएँ काट देना। तुमसे भूल हुई और उसका अब यही प्रायश्चित्त है कि तुम कुँवर साँगा की खोज में प्राणपण से जुट जाओ।’’ सूरजमल ने कहा, ‘‘रही बात, कुमार पृथ्वी की तो उसका निर्णय तो महाराज ही करेंगे।’’
‘‘उस दुष्ट को तो हम मृत्युदंड ही देंगे। सूरजमल, इस सारे प्रकरण को जितना भी गुप्त रखा जा सके, मेवाड़ की सुरक्षा के हित में उतना ही अच्छा है, तुम कुँवर की खोज में निकल जाओ।’’ महाराणा ने आदेश दिया।
सूरजमल और जयमल ऊपर से अत्यंत दुःखी, परंतु मन-ही-मन प्रफुल्लित हो उठे। सूरजमल की योजना सफल हो रही थी। किस कुटिलता से उसने मेवाड़ की युवा शक्ति का लगभग विनाश कर दिया था। यदि पृथ्वी को मृत्युदंड, साँगा की मृत्यु हो जाती तो मूर्ख जयमल को अपने मार्ग से हटाना सूरजमल के लिए क्या दुष्कर कार्य था? जयमल अपनी सफलता पर प्रसन्न था। पृथ्वी को मृत्युदंड देने का निर्णय हो चुका था, वह साँगा को खोजकर जीवित छोड़ने वाला नहीं था और...और सूरजमल को तो वह समय आने पर बताएगा कि मूर्ख कौन था? वह उसे ऐसी जगह ले जाकर मारेगा, जहाँ पानी की बूँद भी मिलना असंभव होगा। घात-प्रतिघातों, षड्यंत्रों की यह परंपरा राजकुलों में सदैव से ही चली आ रही थी और यही कारण था कि तुर्क-अफगान आदि शासक भारतवर्ष में अपनी जुड़ें जमा चुके थे।
‘‘पिताश्री, आपने मुझे क्षमा कर दिया, यह मेरे लिए एक सीख की भाँति है। अब मैं आपको कभी शिकायत का अवसर नहीं दूँगा। मेवाड़ की सेवा में अपना जीवन लगा दूँगा। अनुज साँगा की खोज में जमीन-आसमान एक कर दूँगा, तभी मेरा प्रायश्चित्त पूर्ण होगा।’’
‘‘जाओ कुँवर, यदि कुँवर साँगा को जीवित खोज लाए तो यह भी मेवाड़ पर तुम्हारा बहुत बड़ा उपकार होगा। इससे बड़ी राष्ट्रसेवा और क्या होगी? इससे अधिक माता-पिता को तुम और क्या खुशी दोगे?’’
जयमल ने पिता के चरण छुए और सूरजमल के साथ वहाँ से चला गया। महाराणा रायमल कई क्षण वहीं खड़े रहे और फिर अपने नेत्रों में अश्रुबिंदु आए जानकर उन्हें पोंछा। पृथ्वी पर उन्हें इतना क्रोध आ रहा था कि यदि वह सामने होता तो उनकी तलवार उसे दंड देती। उस निर्दयी ने अपनी माता के आँसू भी न देखे और स्वयं कितना नाटक कर रहा है। उनके जबड़े क्रोध से फूलने-पिचकने लगे थे, परंतु उन्हें इस क्रोध पर अंकुश लगाना था।
महाराणा ने स्वयं को संयत किया और गुप्त मंत्रणा कक्ष से निकलकर उस कक्ष में पहुंचे , जहाँ महारानी रतनकँवर थीं। महाराणा को आता देखकर उन्होंने चुनरी के पल्लू से अपने अश्रू पोंछे। स्पष्ट था कि वे पिछले काफी समय से रोती रही थीं। महाराणा उनके पलंग पर बैठ गए।
‘‘राणाजी, कुछ...कुछ पता चला कुँवर का?’’ रानी ने पूछा।
‘‘महारानी, इस कुल को किसी की नजर लग गई। तुम्हारा कपूत पृथ्वी सिंहासन के लिए अपने भाई की हत्या का प्रयास कर बैठा।’’
‘‘राणाजी!’’ महारानी के नेत्र आश्चर्य से फैले।
महाराणा ने सविस्तार सारी बात सुनाई तो रानी रोने लगी।
‘‘अब उस कुलघाती को मृत्युदंड देकर उसके अक्षम्य पाप का दंड देते हैं।’’
‘‘राणाजी, रानी ने रोते हुए कहा,’’ मुझ अभागिनी ने अवश्य पूर्वजन्म में कोई पाप किए होंगे, जो पृथ्वी जैसा कपूत मेरी कोख से पैदा हुआ। मेरा प्रिय पुत्र साँगा जाने किस दशा में होगा? मैं अब कभी देख भी पाऊँगी या नहीं? पृथ्वी ने जो किया, उसे सोचकर उसकी सूरत देखना भी मुझे स्वीकार नहीं, मेरा हृदय उस कपूत को भी मृत्युदंड देने के नाम से कंपित हो रहा है। कुँवर साँगा के पश्चात् मेरा मातृत्व तो रसहीन ही हो गया, परंतु अब इसे पुत्रविहीन न करें। आप उस पापी पृथ्वी को उसके पाप के लिए दंड के रूप में देश-निकाला की सजा देकर उसे जीवन भर पछताने के लिए छोड़ दें। जीवित रहकर उसे अपने पाप पर क्षोभ होगा। संसार में इस अभागिनी का कपूत ही सही, एक पुत्र तो जीवित रहेगा।
‘‘महारानी, तुम्हारी पीड़ा हम समझ रहे हैं।’’ महाराणा सांत्वनापूर्ण स्वर में बोले, ‘‘किंतु हम तुम्हें अधिक पीडि़त नहीं होने देंगे। हम पृथ्वी को देश-निकाला दे देंगे। ईश्वर ने चाहा तो हमारा साँगा भी शीघ्र ही मिल जाएगा और सभी संताप समाप्त हो जाएँगे।
महाराणा रायमल ने यही निर्णय लिया। पृथ्वी जैसे कपूत को त्याग देने का निर्णय उचित है।