आशीर्वाद अनाथालय धुंधली शाम का वक्त था। आसमान में सूरज अपने आखिरी किरणों को बिखेर रहा था। अनाथालय के आंगन में हल्की-हल्की ठंडक महसूस हो रही थी। आज शांति जी की तेरहवीं थी। अनाथालय के बच्चों और वहां के लोगों के दिलों में भारी उदासी थी। शांति जी सबके लिए माँ समान थीं। ऐसा लग रहा था जैसे उनके बिना, अनाथालय अपना आधार खो चुका था।
तेरहवीं की विधि पूरी हो चुकी थी। मेहमान एक-एक कर अपने घरों को लौट रहे थे। चारों ओर एक गहरी खामोशी पसरी हुई थी। इस खामोशी के बीच, पावनी अपने कमरे में अकेली बैठी थी। उसके हाथों में वही सिल्वर कलर का बॉक्स था जिसे उसने कुछ दिन पहले गलती से खोल दिया था लेकिन उसके अंदर क्या है ये देखने की हिम्मत उससे नहीं हो पाई थी। इसवक्त पावनी ने खुद को समझाते हुए कहा-“डर क्यों रही हो तुम ? तुम्हें ये करना होगा पावनी तुम इस तरह एक suspenseful लाइफ नहीं जी सकती, तुम ये कर सकती हो, तुम्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि इसमें क्या रखा है। बस एक बार देखना है और वापस रख देना है, सिंपल।” इतना कहकर उसने एक गहरी सांस लेकर छोड़ दी और आंखे बंद करके उसने तुंरन्त उस बॉक्स को खोल दिया। फिर धीरे धीरे आंखे खोलकर वो उस बॉक्स के अंदर झांकने लगी। अंदर एक पुराना गोल्डन कलर का लॉकेट था। उसकी चमक अब भी वैसी ही थी, मानो वक्त ने इसे छूआ ही न हो। लॉकेट के बीचों-बीच एक डायमंड का पेंडेंट था, जैसे ही पावनी ने उस पेंडेंट को खोलकर देखा तो उसमें एक तस्वीर लगी हुई थी। उस तस्वीर देखते ही पावनी का दिल जोर से धड़क उठा। “ये तस्वीर... ये तो बिल्कुल मेरी तरह लग रही है!” पावनी ने हल्की आवाज में कहा। इसके साथ ही उसने उस लॉकेट को हाथ में कसकर पकड़ लिया। तस्वीर में उस लड़की की मुस्कान और उसकी आँखों की गहराई जैसे कुछ कहना चाह रही थी। पावनी की आँखों में एकाएक ही आँसू आ गए थे। उसने खुद को थोड़ा शांत किया और जल्दी से उसके साथ जो रेड एनवलप था उसे उठा लिया। उसके अंदर उसके लिए एक लेटर रखा था। जिसे छूते ही उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने काँपते हाथों से उसने लेटर को खोला। उसमें लिखा था।
मेरी नन्हीं जान, जब तुम यह खत पढ़ रही होगी, मैं शायद तुम्हारे पास नहीं रहूंगी। मैं तुम्हें छोड़कर जाने के लिए माफी चाहती हूँ। यह मेरा सबसे बड़ा दर्द है कि मैंने तुम्हें अपने साथ नहीं रखा। लेकिन जो हालात थे, उनमें तुम्हें मैं चाहकर भी अपने पास नहीं रख सकती थी। लेकिन मुझे उम्मीद है तुम शांति जी के पास हमेशा सुरक्षित रहोगी ।
यह लॉकेट तुम्हारे लिए तुम्हारी इस अभागी माँ की आखरी निशानी है बच्चा तुम्हारे पास वो शक्ति है जो तुम्हें इससे आगे अपना रास्ता खोजने में मदद करेगी। शांति जी का आशीर्वाद और तुम्हारी माँ का प्यार हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा। अपनी ताकत को पहचानो, मेरी बच्ची। तुम्हारी माँ।
ये सब पढ़ते ही पावनी के हाथ से खत छूटकर गिर गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वो बुदबुदाई- “माँ… मतलब उन्हें पता था कि मैं आगे किनके पास ग्रो करने वाली हूँ? वो जानती थी माँ को? माँ क्या आप सच में उन्हें नहीं जानती थी? ये क्या था?” उसने खुद से कहा। उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि अचानक से उसकी लाइफ में इतने सारे सस्पेंस क्यों आ रहे थे? इतना यू टर्न उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने लॉकेट को अपनी मुट्ठी में कस लिया। उसे लगा जैसे उसकी जन्मदेने वाली उस माँ की आत्मा ने उसे छू लिया हो। "लेकिन उन्होंने उसके साथ ये सब क्यों किया? ऐसी भी क्या मजबूरी रही होगी उनकी की उंन्होने अपने छोटे से बच्चे को इस तरह से त्याग दिया? "एक मेरी वो माँ है जिन्होंने मुझे पैदा नहीं किया लेकिन मेरी परवरिश में कभी कोई कसर नहीं छोड़ा और एक वो माँ है जिन्होंने किसी मजबूरी के चलते मुझे ऐसे ही रास्ते में छोड़ दिया।" ये सोचते ही उसका मन बहुत ज्यादा हेवी हो गया था और उसके आंखों से आंसू की धारा बहने लगी थी।
उसे अंदर से कुछ टूटने की आवाज आ रही थी। वो शायद खुद को ही टूटा हुआ महसूस करने लगी थी।
पावनी बहुत ज्यादा उदास थी और सुबक रही थी। तभी रमा जी कमरे में आईं। उन्होंने पावनी को रोते हुए देखा तो वह चुपचाप आकर उसके पास बैठ गईं और उसका सिर अपने कंधे पर रख लिया। “पावनी, मैंने शांति से वादा किया था कि तुम्हारे हर फैसले में तुम्हारे साथ रहूंगी, तुम प्लीज ऐसे रोना बन्द करो ऐसे कब तक चलेगा बेटा? तुम आज भी ऐसे रो रही हो? उन्हें तुम्हें इस तरह से रोते देखकर कितना अधिक दुख हो रहा होगा, सोचा है तुमने?"रमा जी ने नरमी से कहा। वो इसवक्त धीरे धीरे उसके कंधे को सहला रही थी। पावनी ने आँसू पोंछते हुए कहा, “काकी मुझे अचानक से पता चलता है कि मेरी एक नहीं बल्कि कान्हा की तरह दो दो माँ थी एक जन्म देने वाली और दूसरी पालने वाली। ऐसे सिचुएशन में मुझे क्या करना चाहिए आप ही बताइए? मैं रोऊँ नहीं तो क्या करूँ? जन्म देने वाली ने मुझे त्याग दिया था लेकिन पालने वाली भी इतने सारे सवालों के साथ मुझे ऐसे छोड़कर चली गई।” फिर वो आगे काफी इमोशनल होकर रमा जी को उस खत को दिखाते हुए बोली-” ये देखिए आप काली मेरी जन्म देने वाली माँ जानती थी कि मैं कहाँ ग्रो होने वाली हूँ। लेकिन उन्होंने एक बार भी पलटकर मेरा हालचाल पूछना तक जरूरी नहीं समझा? सबकुछ स्क्रिप्टेड था काकी ऐसे थोड़ी होता है। " रमा जी ने एक नजर पावनी को देखा फिर धीरे धीरे करके उस पूरे खत को पढ़ा और पढ़कर उन्हें भी काफी हैरानी हुई। लेकिन फिर उन्होंने सोच विचार कर पावनी के कंधे पर हाथ रखकर उसे समझाते हुए कहा-” पानु बच्चा उनकी मजबूरी क्या थी ये तो मैं नहीं जानती लेकिन शांति जैसी माँ के हाथों उंन्होने तुम्हारा परवरिश चुना मतलब वो तुम्हारा भला ही चाहती थी बच्चा ।” पावनी मायूस होकर बोली-” बेशक माँ जितना प्यार मुझसे कभी कोई नहीं कर सकता काकी लेकिन फिर भी ये सब मुझे अब क्यों पता चल रहा है? आप जानती हैं उंन्होने मुझे छोड़ने के लिए माफी मांगी है। उन्होंने यह लॉकेट और यह खत मेरे लिए छोड़ा है। माँ भी तो यहीं चाहती थी कि मैं अपने परिवार को खोजूं लेकिन मैं नहीं जानती कि मैं अपने उस नाम के परिवार को कैसे खोजूं, क्या ये करना इतना जरूरी भी है?" रमा जी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोली-“ पानु शांति ने तुम्हें हमेशा सही रास्ता दिखाया है। सबसे पहले, तुम्हें अपनी पढ़ाई और सपने पूरे करने होंगे। तुमने 12वीं में पूरे कंट्री में टॉप रैंक हाशिल किया है पानु। कई सारे टॉप यूनिवर्सिटी तुम्हे स्कॉलरशिप ऑफर कर रहे हैं। तुम्हें अब अपने नए सफर की तैयारी पूरे जोश के साथ करना चाहिए, ऐसे शोक में पूरी जिंदगी नहीं गुजारी जाती बच्चा। ”
पावनी धीरे से बोली-“पर मैं कहाँ से शुरू करूँ काकी? ” “पहले अपने सपनों को पूरा करो। शांति यही चाहती थीं। और मैं यहाँ हूँ, तुम्हारी हर मदद के लिए, ये समय ना बहुत बलशाली है पानू सबकुछ इस वक्त पर छोड़ दो , वक्त के साथ सबकुछ हील हो जाएगा। ” रमा जी ने उसे आश्वासन दिया।
पावनी ने शांति जी के बारे में सोचा। कैसे वो हमेशा उसे आगे बढ़ने के बारे में समझाती रहती थी। फिर गहरी सांस ली और बोली- “ मैं कोशिश करूँगी काकी। माँ का प्यार हमेशा मेरे साथ रहेगा । उनकी यादें मुझे जीने की ताकत देंगी।” रमा जी मुस्कुराईं। “बिल्कुल। और तुम तो हमारी पानु हो। तुमने हमेशा मुश्किलों का सामना हिम्मत से किया है। आगे भी करोगी। मुझे तुमपर पूरा विश्वास है बच्चा।” तभी पावनी का फोन बजा। और जब उसने फोन उठाया । “हैलो, क्या मैं पावनी से बात कर सकता हूँ?” दूसरी ओर एक गंभीर आवाज थी। “जी, मैं पावनी वात कर रही हूँ। लेकिन आप कौन?” पावनी ने रमा जी को देखते हुए हड़बड़ाते हुए फोन पर कहा। “मैं द डिवाइन यूनिवर्सिटी मुंबई से बात कर रहा हूँ। आपको यह बताने के लिए कॉल किया गया है पावनी जी कि आपने 12वीं में पूरे भारत में टॉप किया है। पहले तो उसके लिए आपको कोंग्रेचुलेशन। "
" आपका फ्यूचर बहुत ब्राइट है और हमारी यूनिवर्सिटी आपको स्कॉलरशिप और एक विशेष अवसर प्रदान करना चाहती है। अगर आपको कोई आपत्ति नहीं है तो कृपया तीन दिन में यूनिवर्सिटी में आकर अपने सारे डॉक्युमेंशन्स सम्मीट करवा दीजिए।” लेकिन ये सुनकर भी पावनी को कोई इतनी खुशी महसूस नहीं हुई थी। बेशक से इस यूनिवर्सिटी में पढ़ना उसका हमेशा से सबसे बड़ा ख्वाब रहा था। लेकिन फिर भी न जाने क्यों उसे आज ये सब सुनकर कोई इतनी खुशी नहीं हो रही थी। अभी भी सामने से लगातार "हेलो पावनी जीक्या आप सुन रहे हैं मुझे। "ये आवाज आ रही थी। लेकिन पावनी अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी। तभी रमा जी ने उसके हाथ से फोन लिया और बोली-”जी मैं सुन रही हूँ ।" धन्यवाद सर! मैं उसकी आँटी बात कर रही हूँ, जी पावनी जल्द ही पहुँचेगी।” फोन रखते ही रमा जी पावनी की ओर देखा। और गहरी सांस लेकर बोली- “पावनी, होनी को कोई नहीं टाल सकता और अब तुम्हें मुंबई जाना होगा बच्चा । यही अब तुम्हारी नई शुरुआत है। माँ का सपना पूरा करने का पहला कदम।” मुंबई जैसे बड़े शहर में पढ़ाई करने का सपना हमेशा से था, ये सपना उससे ज्यादा शांति जी का रहा था। लेकिन ये अनाथालय और रमा जी को छोड़ने का ख्याल उसके दिल को बोझिल कर रहा था।
उसने रमा जी से कहा-” लेकिन काकी मैं इन हालातों में आपको और यहां सबको छोड़कर कैसे जा सकती हूं? नहीं मैं ये नहीं कर सकती, मुझसे ये नहीं होगा काकी, मैं यहीं किसी नज़दीकी यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लूंगी।”
रमा जी ने पावनी को अपने फैसले पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया वो बोली- “देखो पानु, तुम्हें अपनी माँ के सपनों को जीना है। शांति हमेशा चाहती थीं कि तुम बड़े सपने देखो और उन्हें पूरा करो। तुम्हारे जाने से मैं अकेली नहीं हो जाऊंगी, बल्कि तुम्हारी सफलता मेरी ताकत होगी, तुम एक काम करो निशान को भी अपने साथ ले चलो।” लेकिन इस बात के लिए पावनी ने साफ इंकार कर दिया था। क्योंकि अगर निशान भी उसके साथ चला गया तो फिर यहांपर सबका क्या होगा। आगे रमा जी उसे उस बड़े शहर के बारे में समझाने लगी कि वो शहर मासूमों के लिए कितना जालिम हो सकता है। और उसे वहांपर कैसे रहना है।
अगले दिन निशान, पावनी को रेलवे स्टेशन तक छोड़ने आया था। वैसे तो रमा जी चाहती थी पावनी बाय एयर जाए लेकिन पावनी को ऊँचाई से फोबिया था तो वो ऐसे नहीं जा सकती थी। खैर ट्रेन पर चढ़ने से पहले निशान ने मजाकिया लहजे में उससे कहा, “ पानु महानगरी मुंबई शहर जाकर भूल मत जाना कि तुम्हारे पास एक पागल दोस्त भी है जो तुम्हारी हर बात मानता है।” पावनी ने मुस्कराते हुए कहा, “तुम्हें भूल पाना मुमकिन नहीं है, निशान। तुम हमेशा से मेरे साथ रहोगे, चाहे दूरियां जितनी भी हों। ये सब बस मजाक था ओके?” निशान सैड फेस बनाकर बोला-” यार पानु मैं भी तुम्हारे साथ आना चाहता था यार तुम्हें यूं अकेले भेजने का बिल्कुल मन नहीं है मेरा लेकिन मैं क्या करूँ अभी माँ को रिहा को और सभी बच्चों को मेरी जरूरत है यहांपर। लेकिन तुम चिंता मत करना जब भी मेरी जरूरत पड़े फ़ौरन बुला लेना मुझे ओके?” पावनी उसके सिर पर हाथ घुमाते हुए बोली-” मेरा समझदार गधा देखो तो कितनी समझदारी वाली बातें करने लगा है। तुमने तो मुझे आज गर्व से भर दिया पगले। जाओ अब मेरे ट्रेन का टाइम हो गया है।”
ट्रेन की हॉर्न बजने लगी थी तो वो जल्दी से ट्रेन में चढ़ गई। और वो दोनों आंखों में नमी लिए और होठों पर मुस्कान लिए एक दूसरे को देखकर तब तक बाय करते रहे जबतक कि एक दूसरे के नजरों से ओझल नहीं हो गए।
इसवक्त पावनी अपने VIP सीट पर बैठी हुई थी। उसकी vip टिकट निशान ने खुद से करवाई थी। अचानक इस शहर को छोड़कर जाने के ख्याल से ही उसके आंखों में अपने पुराने जीवन की यादें झिलमिलाने लगीं। उसने उस लॉकेट को जिसे उसने इसवक्त अपने नेक में पहन रखा था। अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़ लिया, जैसे यह उसके बीते और आने वाले जीवन के बीच का पुल हो।
"क्या वह अपनी माँ के पीछे छिपे सच को खोज पाएगी? क्या अनाथालय से जुड़ी यादें उसे अपने नए सफर में मदद करेंगी? कैसा होने वाला था पावनी का ये नया सफर? आखिर कैसे होने वाली थी सिर्वेश से उसका ऑफिशियल मीटिंग?