Taam Zinda Hai - 16 in Hindi Detective stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | टाम ज़िंदा हैं - 16

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टाम ज़िंदा हैं - 16

  टाम ज़िंदा है.......... (16) धारावाहिक

" साहब ! पता चला है रिपोटरो को वो जो दो हमारे ख़ुफ़िया थे। मार दिए बड़े गैंग ने। " ये समाचार उड़ गया था, सब कही। दो अपराधी जो प्रबदक की शाखा मे थे मारे गए।

त्रिपाठी ने कहा था :- "कौन ऐसा घातक तीर छोड़े गा। "

"न कोई गेंगबार, न कोई उन तक पहुंच, फिर कयो उनको मार दिया गया। " त्रिपाठी ने सोचा ही था।

तभी दूर से उसने गाड़ी से उतरते नीली कोट पेंट मे अमरीश बाबू दिखे "

"आज सुख है। " ये कह पाना ही काफ़ी था।

तभी दूर से ---- हसते हुए " त्रिपाठी जी आपके लडके का सुना बहुत दर्द हुआ, आँखे नमी से भर गयी। " तभी त्रिपाठी ने कहा ----" चार पांच बढ़िगार्ड से बिचौबीच, " जनाब आपने कयो जहमत उठाई हम ही आ जाते। " जोर से हसा ----" तुम हमें समझते हो, हम भी तुम्हे समझते है। " फिर रुक कर त्रिपाठी ने चेयर उनकी और की, बैठा, बोला ---" नये कभी चीता आ जाते है, बस त्रिपाठी उनको समझना होता है... कि ऐसा मत कर भाई, जो हमें देगा, हम भी वही लुटाएगे। "

"बहुत खूब " भवानी सिंह ने कहा। वो अंदर रूम से बाहर आ गया था।

" खबर लगी कि दो जानदार पुलिस की भी हिरासत मे मारे गए, नहीं तो , तो चलो जा कर जश्न करे। " अमरीश को ये बात खलबल कर गयी।

" क़ानून सुनने नहीं आया मै " अमरीश ने उठ कर चेयर से कहा।-----" इतनी लम्बी छलाग मत मारो, कि तुम्हारा वजूद ही ढूढ़ते रहे... "

"हाहाहा ----- धमकी दें रहे हो, तो अभी अंदर करू। " गिरेबान तक आ गया था, भवानी सिंह।

" अगर दूध पिया, तो यही रखना, पानी का पानी --- दूध का दूध कर दुगा। " अमरीश को पता नहीं इतना कयो खटका.... वो चूप चाप निकल गया.....

त्रिपाठी ने कहा ----" सुनो, भवानी सिंह इतना गर्म कयो हुए उस पर। "

" उसका हाथ है सब काम के पीछे। "

"मै मानता हूँ, पर मोके का मंत्री है। "  त्रिपाठी ने कसपके से कहा।

"हाँ जानता हूँ।" तभी फोन की घंटी वज उठी।

ये फोन सस पी का था। " हेलो सर ... "

कया सुन रहा हूँ, जेल से बाहर दो तुमाहरे ख़ुफ़िया बंदो को मारा गया। " फिर एक दम चूप  पसर गयी।

" जी सर "

"पहले अभी तुम ये बताओ, तुम कब से ख़ुफ़िया एजट बन गए। "

"सर, मै कोई ऐसा काम नहीं करता, ये तो आप ने ही कहा ----मैंने नहीं। "

"---मुझे अभी जस्ट ए बी प्रफार्मा चाहिए। "

"---जिसमे पता चले, तुम कया सोचते हो -----"

"ओके सर "

त्रिपाठी रूम से निकल कर बाहर आ गया था। एक सिगरेट जलायी, उसने लायटर से।

वो कुछ सोच रहा था।

तभी भवानी सिंह ने त्रिपाठी को मोहरा बनाने की सोची।

" त्रिपाठी तुमाहरा केस भी जबरदस्त है, तुम ही एसएस पी के पेश हो जाओ। "

"--मैं तुमाहरे ही केस के लिए टूट चूका हूँ..... ऐसा करे घर चले। बेटे को भी मिल लुगा.... बाद मे वैसात ऐसी विचाऊंगा, कि अमरीश खुद कबूल करेगा.... गिरजा साली दो कोड़ी की, किसी को छोडोगा नहीं... त्रिपाठी --"

त्रिपाठी की आँखे भरी भरी थी। चूप था। इतना की जैसे बारूद अभी भी फटा अभी भी फटा।

ये कर्मो की जंग थी। नसीब  की जो लेखनी। वो ही मिलेगा जो ---------?? ?