सुबह की हल्की ठंडी हवा शहर के रस्तों से गुजर रही थी। कॉलेज के बाहर अभी भी भीड़ पूरी तरह नहीं आई थी, पर कुछ स्टूडेंट्स कैंटीन और लॉन में नज़र आ रहे थे।
एक लंबी, चमकदार ब्लैक बीएमडब्ल्यू सड़क पर फिसलती हुई जा रही थी। गाड़ी की रफ्तार धीमी थी, लेकिन उसके पीछे काले रंग की फॉर्च्यूनर SUV लगातार चल रही थीं। हर किसी की नज़र उस काफ़िले पर टिक जाती थी।
अबीर चैतन्य, चेहरे पर हमेशा की तरह ठंडा और अहंकारी एक्सप्रेशन लिए, ड्राइविंग सीट पर बैठा था। उसकी आंखें काले सनग्लासेस के पीछे छुपी हुई थीं, होंठों पर हल्की-सी मुस्कान, जैसे उसे पता हो कि लोग उसे देखकर क्या सोच रहे हैं।
उसके पीछे चल रहे चारों बॉडीगार्ड, काले सूट, ईयरपीस और डार्क गॉगल्स में, पूरे प्रोफेशनल अंदाज़ में अपने चारों तरफ नज़रें घुमा रहे थे। उन्हें भेजा था रूद्र चैतन्य ने — अबीर का बड़ा भाई, जो इस शहर के सबसे पावरफुल बिज़नेस टायकून में गिना जाता था। रूद्र जानता था कि कॉलेज में अबीर के दुश्मनों की कमी नहीं है, और उसका छोटा भाई जरा भी उकसावे में आकर पीछे नहीं हटता।
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गाड़ियों का काफिला कॉलेज के पार्किंग लॉट में दाखिल हुआ। जैसे ही बीएमडब्ल्यू रुकी, बाकी SUVs भी उसके पीछे लाइन में लग गईं।
अबीर ने आराम से गाड़ी का दरवाज़ा खोला, अपने महंगे ब्राउन लेदर जैकेट को झटकते हुए बाहर निकला।
उसने जेब से सिल्वर कलर का लाइटर निकाला, और सिगरेट को जलाकर होंठों में दबा ली। धुएं का पहला कश लेते ही उसकी चाल में वही पुराना रौब लौट आया — जैसे यह कॉलेज उसका इलाक़ा हो और बाक़ी सब महज़ किरदार।
वह पार्किंग से कॉलेज बिल्डिंग की तरफ बढ़ ही रहा था कि अचानक—
ठक!
एक तेज़ आवाज़ के साथ एक फुटबॉल उसके ठीक सामने आकर गिरा।
उसने हल्के से आंखें बंद कीं, गहरी सांस ली और चेहरे पर एक "मैं जानता हूं ये किसकी हरकत है" वाला एक्सप्रेशन आ गया।
अबीर ने सिगरेट को होंठ से हटाया, फुटबॉल को हाथ में उठाया और सामने नज़र घुमाई।
वहीं, लॉन के दूसरी तरफ, अपनी पूरी गैंग के साथ खड़ा था सौहार्द — कॉलेज का एक और रईसजादा, और अबीर का पर्सनल दुश्मन।
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कॉलेज के हर स्टूडेंट को पता था कि अबीर राजपूत और सौहार्द चौहान कभी एक-दूसरे को पसंद नहीं कर सकते।
उनकी पहली भिड़ंत एक साल पहले हुई थी, जब दोनों ने एक ही इवेंट में लीड रोल के लिए नाम दिया था, और तब से हर छोटी-बड़ी बात पर तकरार होना तय था।
अबीर की ठंडी निगाहें और सौहार्द की बेबाकी, दोनों का अहंकार टकराता था — और नतीजा हमेशा कॉलेज में चर्चाओं का सबसे बड़ा मुद्दा बनता।
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सौहार्द ने जमीन की तरफ देखा, जहां अबीर के हाथ से सिगरेट गिर चुकी थी।
उसने हंसते हुए अपनी गैंग से कहा —
"अरे देखो, हमारे फुटबॉल के डर से राजा साहब का बैलेंस भी बिगड़ गया।"
उसके दोस्त जोर-जोर से हंसने लगे।
"लगता है पार्किंग में बॉडीगार्ड्स खड़े रखने से बैलेंस नहीं आता, अबीर भैया!" — किसी ने ताना मारा।
अबीर के जबड़े कस गए। वह आगे बढ़ा, कदमों की आवाज़ गूंजती हुई, सीधे सौहार्द की तरफ।
उसने मुट्ठी कस ली, पांच मारने ही वाला था कि सौहार्द ने हाथ उठाकर कहा —
"रुको… भूल गए क्या? प्रिंसिपल सर ने साफ कहा था, फाइट की तो डायरेक्ट सस्पेंशन।"
अबीर ने उसकी बात को इग्नोर किया और एक कदम और आगे बढ़ा।
तभी उसकी नज़र अपने चारों बॉडीगार्ड्स पर पड़ी — सभी उसे ही देख रहे थे, जैसे उसे याद दिला रहे हों कि भाई रूद्र का आदेश है, कॉलेज में किसी तरह का तमाशा नहीं होना चाहिए।
अबीर ने गहरी सांस ली, अपने गुस्से को दबाया और बहुत धीमी लेकिन खतरनाक आवाज़ में बोला —
मुझसे दूर रहो ,यही तुम्हारे लिए अच्छा है, सौहार्द… अगली बार फुटबॉल तेरे सर पर गिरेगा।"
सौहार्द ने बस हंसकर कंधे उचका दिए।
"देख लेंगे, चैतन्य साहब… देख लेंगे।"
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यह सब खत्म होते-होते अबीर का मूड पूरी तरह खराब हो चुका था।
वह तेज़ कदमों से अपनी क्लास की तरफ बढ़ने लगा, गुस्से में उसकी आंखें लाल हो रही थीं।
तभी—
ठक!
किसी ने आकर सीधे उससे टकरा दिया।
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वह एक लड़की थी, हाथ में फोन पकड़े, शायद किसी से बात कर रही थी और जल्दी-जल्दी चल रही थी। टक्कर इतनी तेज़ थी कि उसके फोन के साथ-साथ उसके हाथ में पकड़ी फाइल भी गिर गई।
अबीर ने गुस्से में अपना हाथ उठाया, जैसे उसे धक्का देने वाला हो।
लड़की ने डरते-डरते उसकी तरफ देखा, होंठ हल्के कांप रहे थे।
और तभी —
अबीर की आंखों में एक अजीब-सी पहचान चमकी।
"ये… ये तो वही है…"
उसके मन में झटके से एक याद कौंधी — "चेंजिंग रूम वाली लड़की"।
लड़की की आंखें भी अबीर पर टिक गईं, लेकिन उनमें डर साफ दिख रहा था।
वह कुछ कह पाती, इससे पहले ही पीछे से किसी ने उसका नाम पुकारा
मिस"कियारा… राजपूत।"
अबीर हल्के से बुदबुदाए....."कियारा"
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