Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 5 in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 5

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Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 5

अग्निवेश अब दूसरी लड़की रूपा को भी अपने प्रेमजाल में फंसा कर गुफा में ले जाकर बेरहमी से मार देता है। लेकिन रूपा जया से ज़्यादा समझदार थी, वो भागने की कोशिश करती है, अग्निवेश का सच समझती है, और जान जाती है कि वही असली पिशाच है। मगर वैंपायर की ताकत के आगे उसकी कोशिश नाकाम रहती है। गांव में अब डर स्थायी रूप ले चुका है।

गांव की हवा अब जहरीली हो चली थी।
हर घर की खिड़कियाँ शाम से पहले बंद हो जाती थीं, और मां-बाप अपनी बेटियों को दिन में भी घर से निकलने नहीं देते थे।

जया… गयाप्रसाद… रूपा…
तीनों की रहस्यमय मौतों ने गांव को खून और डर के दलदल में धकेल दिया था।

अब यह केवल एक गांव की समस्या नहीं रही थी—यह एक साम्राज्य की मानवता की हार बन चुकी थी।

रतनपुर गांव, राज्य की राजधानी ‘महेंद्रगढ़’ के अधीन आता था। वहां के राजा वीरभान सिंह, न सिर्फ बहादुर और तेज़ बुद्धि के धनी थे, बल्कि अंधविश्वास और डर के खिलाफ लड़ने वाले भी थे।

जब उन्हें गांव से संदेश भेजा गया कि कोई "शैतानी ताकत" गांव की युवतियों को मार रही है। राजा ने पहले तो हंसी में उड़ा दिया।

"भूत-प्रेत नहीं होते… ये किसी हत्यारे की साजिश है। मैं खुद जाऊँगा, और सच सामने लाऊँगा।"

उनके साथ गए: राजकवि अच्युतानंद, जो सब घटनाएं दर्ज करते थे। राजगुरु विभाकर, जो आध्यात्मिक ताकतों के ज्ञाता थे। और सात घुड़सवार, जो सुरक्षा के लिए थे।

राजा वीरभान जब रतनपुर पहुंचे, तो पूरा गांव झुका हुआ मिला। लेकिन आंखों में सिर्फ डर।

राजा ने गांव वालों से एक-एक कर बात की।
भीमा, वह बच्चा जिसने अग्निवेश को हत्या करते देखा था, उससे भी बात हुई।

राजा को पहली बार किसी की बातों में सच्चाई का कंपन महसूस हुआ।

"यदि ये बात झूठ है तो डर इतना गहरा क्यों है? और अगर सच है... तो अग्निवेश इंसान नहीं, शैतान है।"

राजा ने अग्निवेश को बुलवाया। राजदूत अग्निवेश को उसके घर से लेकर राजा के पास आया....

अग्निवेश राजा के सामने आया, तो राजकवि उसकी सुंदरता और करिश्मे से चकित रह गया।

ऊंचा, गोरा, नीली आंखें, शांत चेहरा, और भारी पर मधुर आवाज़।

"महाराज, ये सब मेरे खिलाफ झूठी अफवाहें हैं… लोग किसी को दोष देना चाहते हैं, और मुझ पर निशाना साधते हैं। मैं तो बस एक साधारण वैद्य हूँ।"

राजा कुछ देर चुप रहे, फिर बोले:
"अगर तुम निर्दोष हो, तो रात के समय हमारे साथ जंगल चलो। गुफा दिखाओ जहां तुम जाया करते हो।"

अग्निवेश चौंका…
"गुफा?"

राजा मुस्कराए –"हां, वही गुफा जिसके बारे में गांव वाले कहते हैं कि तुम अक्सर वहां जाते हो।"

अग्निवेश अब समझ चुका था कि खेल अब उसके हाथ से निकल रहा है।

रात ढल चुकी थी। दीवान के जंगल की ओर राजा, राजगुरु, अच्युतानंद, और चार सैनिक निकल पड़े। दो सैनिक पीछे रहे ताकि गांव की रक्षा बनी रहे।

अग्निवेश खुद को शांत रखने की कोशिश कर रहा था पर उसकी आंखें अब काली पड़ने लगी थीं।

गुफा के पास पहुंचते ही हवा भारी हो गई।
राजगुरु ने मंत्र पढ़ना शुरू किया, और जैसे ही उन्होंने चांदी की तावीज़ निकाली जिस पर ॐ कार था… अग्निवेश बेचैन होने लगा।

"ये… ये क्या है… दूर रखो… ये जलाता है!"

राजा चौंक गए। अब कोई शक नहीं रहा।

"तू इंसान नहीं… तू वाकई राक्षस है!"

अग्निवेश ने अब और झूठ नहीं बोला।

उसने जंगल की जमीन पर लोटकर खुद को हवा में उठाया—उसका शरीर जलने लगा, आँखें आग की तरह चमकने लगीं, दांत बाहर आ गए, और उसके चारों ओर काली धुंध फैलने लगी।

"अब कोई मुझे नहीं रोक सकता!"

उसने एक सैनिक का गला नोंच दिया और उसका शरीर वहीं गिर पड़ा।

राजा ने तलवार निकाली, लेकिन अग्निवेश की गति इतनी तेज़ थी कि उसका वार हवा में छूट गया।

राजगुरु ने चिल्लाया –
"महाराज! उसका अंत तभी संभव है जब चांदी की कटार उसके दिल में उतारी जाए, और फिर गुफा को जलाया जाए!"

राजा ने चांदी की कटार ली जो राजमहल में एक प्राचीन ताबीज़ के साथ रखी जाती थी, और जो सिर्फ अलौकिक प्राणियों को नष्ट करने के लिए बनी थी।


अग्निवेश ने राजा को दीवार से दे मारा।
उसकी पसलियां टूट गईं पर उसने हार नहीं मानी।

उसी समय, जैसे चमत्कार हो गया राजगुरु ने एक मंत्र पढ़ा और पूरी गुफा में हल्की नीली रोशनी फैल गई। अग्निवेश कुछ पल के लिए स्थिर हो गया।

राजा ने मौका देखा और पूरी ताकत से चांदी की कटार अग्निवेश के सीने में घोंप दी।

"तू अमर नहीं है… तेरी अमरता एक अभिशाप है!"

अग्निवेश चीखा, चिल्लाया, और धधकते हुए जलने लगा।

लेकिन मरते-मरते उसने राजा की गर्दन पर वार कर दिया।

राजा ज़मीन पर गिर पड़े और कुछ ही क्षणों में उनकी साँसे थम गईं।

अग्निवेश राख बन चुका था।
राजगुरु ने गुफा में आग लगाई जो सात दिन तक जलती रही।

राजा वीरभान सिंह का पार्थिव शरीर पूरे राज्य में ले जाया गया लोगों ने उन्हें “वैंपायर विनाशक” की उपाधि दी।

रतनपुर के लोगों ने पहली बार चैन की सांस ली।

पर उन्हें ये नहीं पता था…

…ये कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी। अग्निवेश की राख से उठती एक और भयानक साजिश की परत।