अग्निवेश, जो अब एक खूबसूरत लेकिन खतरनाक वैंपायर बन चुका है, गांव की एक 18 वर्षीय लड़की जया को अपने प्रेम-जाल में फंसाकर दीवान के जंगल की गुफा में ले जाता है। वहाँ वह अपने असली रूप में आकर उसका खून पीकर उसकी हत्या कर देता है।
गांव में जया की गुमशुदगी से सनसनी है पर अग्निवेश, मासूम बनकर सबके बीच घूम रहा है।
वक्त धीरे-धीरे बीत रहा था। जया की गुमशुदगी को अब पांच दिन हो चुके थे। गांव में तनाव बढ़ रहा था, और माता-पिता अपनी बेटियों को अकेले बाहर भेजने से डरने लगे थे।
पर अभी तक किसी को भी नहीं पता था कि इस साजिश के पीछे अग्निवेश ही है।
लेकिन किस्मत की एक चाल ने एक ऐसा मोड़ लिया…जिसने वैंपायर की दुनिया में सनसनी पैदा कर दी।
गांव का सबसे बूढ़ा और सनकी समझा जाने वाला व्यक्ति था गयाप्रसाद। उम्र लगभग 65 साल, कमज़ोर शरीर, लेकिन आँखें तेज़ और पैनी।
लोग कहते थे कि वो बचपन से ही दीवान के जंगल से मोहित था। उसके अनुसार, “जंगल में आत्माएं हैं, परछाइयाँ हैं… और शायद कुछ ऐसा भी, जो इंसान नहीं है।”
गयाप्रसाद को सब पागल समझते थे—पर वो था नहीं।
उसकी आदत थी रात को जंगल के किनारे बैठकर चाँदनी देखना, पेड़ों से बातें करना, और प्रकृति के संकेतों को पढ़ना।
उसी आदत ने उस रात… उसे बना दिया गवाह।
जया की मौत के दो दिन बाद की बात थी। पूर्णिमा जा चुकी थी, लेकिन चांद की रौशनी अब भी जंगल को हल्की चमक देती थी।
गयाप्रसाद अपनी लकड़ी की छड़ी लेकर दीवान के जंगल के एक ऊँचे टीले पर बैठा था, दूर से गुफा की दिशा को देखता।
अचानक, उसने देखा एक परछाई गुफा से बाहर निकल रही है।
वह सोचने लगा, "इतनी रात को कोई उधर क्या कर रहा है?"
पर छाया रुकती नहीं थी। वो धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी।
और फिर… चांदनी में उसका चेहरा साफ़ दिखा।
वो अग्निवेश था।
पर उसका चेहरा वो नहीं था, जो गांव में दिखता था।
उसके नुकीले दांत खून से सने थे। आँखें लाल और चमकती हुई। उसके कपड़े काले, और एक धुआँ सा उसके चारों ओर मंडरा रहा था।
गयाप्रसाद की साँसें रुक गईं। उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
"हे भगवान… ये इंसान नहीं… ये तो पिशाच है!"
गयाप्रसाद डर के मारे पीछे हटने लगा, लेकिन उसकी छड़ी एक पत्थर से टकरा गई और आवाज़ हो गई।
अग्निवेश रुक गया।
उसने गर्दन घुमा कर उस दिशा में देखा जहाँ गयाप्रसाद छिपा था।
पलक झपकते ही वो गयाप्रसाद के सामने था।
"किसने देखा मुझे?" अग्निवेश की आवाज़ अब भारी और गूंजती हुई थी।
गयाप्रसाद कांपता हुआ बोला, "मैं… मैं तो बस… कुछ नहीं देखा… कुछ नहीं देखा…"
पर अग्निवेश जानता था कि वैंपायर का नियम था कि, "यदि कोई इंसान पिशाच के असली रूप को देख ले… और जीवित बचे… तो वही उसका अंत कर सकता है।"
वो खतरा बन चुका था।
अग्निवेश ने कोई देर नहीं की।
उसने गयाप्रसाद को ज़मीन पर गिराया, और उसकी गर्दन अपने पंजों से कस दी।
गयाप्रसाद की आँखों से आँसू बहने लगे।
"तू… तू इंसान नहीं… तू शैतान है… लेकिन मेरी मौत तुझे छुपा नहीं सकेगी…"
अग्निवेश ने उसका खून पीया नहीं।
बल्कि उसकी गर्दन तोड़ दी, ताकि शरीर में खून बना रहे।और किसी को लगे कि मौत प्राकृतिक थी।
उसने लाश को पास के तालाब में फेंक दिया।
पर उसे नहीं पता था कि एक छोटा लड़का, जो रात को मछली पकड़ने आया था, तालाब के पास ही झाड़ियों में था।
उसने सब देखा… और बिना कुछ कहे गांव भाग गया।
सुबह होते ही गांव में शोर मच गया। गयाप्रसाद की लाश तालाब में तैरती मिली। और सबके ज़हन में ताज़ा था जया की गुमशुदगी।
अब लोगों को लगने लगा कि कुछ तो गड़बड़ है।
दो मौतें… और कोई सुराग नहीं?
कुछ लोगों ने कहना शुरू किया, "ये आम बात नहीं है। गांव में कुछ अनहोनी हो रही है।"
वो छोटा लड़का जिसका नाम था भीमा डरा हुआ था, कांप रहा था, लेकिन अंततः उसके पिता ने जब ज़ोर दिया, तो वह फूट पड़ा।
"मैंने देखा… वो आदमी… अग्निवेश… गयादादा को उठा रहा था… और फिर पानी में फेंक दिया।"
गांव में सन्नाटा छा गया।
"अग्निवेश…? नहीं नहीं… वो तो सबसे नेक है…"
"पर अगर बच्चा झूठ नहीं बोल रहा…?"
अब शक की सुई पहली बार अग्निवेश की ओर घूमी।
उस रात अग्निवेश गुफा में बैठा हुआ था। उसकी आंखें बंद थीं, पर उसका मन अशांत।
"एक बच्चा… एक बूढ़ा… और अब शक… बहुत जल्द यह गांव मेरी असलियत जान जाएगा।"
लेकिन उसका पिशाच-मन कहता था,
"तो क्या? जो सामने आए… उसे मिटा दो। अमरता के लिए हर कीमत चुकानी ही पड़ेगी।"