Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 1 in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 1

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Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 1

रात के तीसरे पहर का समय था। चंद्रमा बादलों की ओट में छुपा था, और पूरा गांव किसी अज्ञात डर की सिहरन में सिमटा पड़ा था। हवा में एक अजीब सी घुटन थी मानो किसी ने अभी-अभी खून बहाया हो।

दीवान के जंगल से रात में चीखों की गूंज सुनाई देती, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती थी वहाँ झाँकने की। कहते हैं वहाँ एक पिशाच है, जो जवान लड़कियों के खून से अपनी जवानी अमर बनाए बैठा है। पर सबसे डरावनी बात ये थी कि वो पिशाच... उसी गांव में रहता था... और कोई नहीं जानता था कि वो कौन है।

गांव का नाम था रतनपुर, एक घना, हरियाली से भरा लेकिन रहस्यमय इलाका, जहाँ ज़िंदगी धीमी थी पर अंधेरा तेज़ी से फैलता था। गांव का हर आदमी सीधा-सादा, मेहनती और धार्मिक था। लेकिन एक इंसान, अग्निवेश, बाकियों से अलग था।

अग्निवेश एक 30 वर्षीय युवक था, गहरा रंग, उबला हुआ चेहरा, गहरी नीली आँखें और ऐसा जादुई व्यक्तित्व, कि जिसे देखो, उसके सामने नतमस्तक हो जाए। महिलाएं उसे देखकर मुस्कराती थीं और पुरुषों को उसमें कुछ अजीब सा डर लगता था।

पर कोई नहीं जानता था कि अग्निवेश का अतीत, उसके चेहरे से भी ज़्यादा रहस्यमय था।

अतीत की परतें खुलती हैं...

15 साल पहले, जब अग्निवेश केवल 15 साल का था, तब वह एक रात दीवान के जंगल में खो गया था। तीन दिन बाद, जब वह लौटा, उसके शरीर पर गहरे ज़ख्म थे, उसकी आँखें काली हो गई थीं और उसके अंदर से एक अलग ही ऊर्जा महसूस हो रही थी। किसी ने कुछ नहीं पूछा—बस यह मान लिया गया कि लड़का ज़िंदा है, यही काफी है।

परन्तु उसके लौटने के बाद गांव में अजीब घटनाएं घटने लगीं।

जानवरों की लाशें खेतों में पड़ी मिलती थीं—बिल्कुल खून-रहित।

रातों को चीखें सुनाई देती थीं।

कुछ लोगों ने दावा किया कि उन्होंने किसी परछाई को खेतों में उड़ते देखा।

लेकिन अग्निवेश अब शांत था, गांव में मंदिर जाता, पुजारी को प्रणाम करता, और दिखावे में नेक इंसान बना रहता।

परंतु हक़ीक़त यह थी कि अग्निवेश अब इंसान नहीं रहा था। उस रात जब वह जंगल में खो गया था, उसने एक प्राचीन गुफा में शरण ली थी। वहाँ, एक हज़ारों साल पुराना वैंपायर मृत शरीर में कैद था, पर उसका आत्मा जीवित थी। अग्निवेश की भूख, डर और असहायता ने उसे आसान शिकार बना दिया।

वह आत्मा अग्निवेश के शरीर में समा गई। और उसी पल, अग्निवेश पिशाच बन गया।

अब वह दिन में एक साधारण मनुष्य की तरह रहता, पर रात को दीवान के जंगल की उसी गुफा में जाकर अपने असली रूप में बदल जाता—धधकती लाल आँखें, नुकीले दांत, और खून की प्यास से तड़पता एक शैतान।

पहली रात का खून...

वह रात जब अग्निवेश ने पहली बार खून चखा, वह उसे कभी नहीं भूल पाता।

एक हिरण उसके सामने आया, उसने अपनी नुकीली उंगलियों से उसका गला काटा और खून पी गया। वो खून जैसे अमृत था उसके लिए। पर वो जानवर का खून था... उसे संतुष्टि नहीं मिली।

उसे चाहिए था मानव खून। वो भी किसी युवा लड़की का क्योंकि वही खून सबसे ज्यादा "ऊर्जा" से भरपूर होता है।

गुफा में उसे एक प्राचीन शिलालेख मिला। उस पर पिशाचों के नियम लिखे थे:

पिशाच केवल रात में अपने असली रूप में आ सकता है। वह मंदिरों, शुद्ध जल या चाँदी से दूर रहेगा। हर 30 दिनों में उसे एक युवा लड़की का खून चाहिए होगा वरना वो खुद राख बन जाएगा। अगर किसी इंसान ने उसे उसके असली रूप में देख लिया, और उसकी जान बच गई—तो वो उसका अंत कर सकता है।

अग्निवेश ने ये सभी नियम ध्यान मैं रखे थे। वो जान गया था कि उसे अब अमरता का स्वाद चखना है, पर छुपकर।

अग्निवेश ने गुफा को अपनी शरणस्थली बना लिया। वह वहां जाकर अपना रूप बदलता, शिकार की योजना बनाता, और इंसानियत का मुखौटा पहनकर गांव में वापस आ जाता।

गांव वालों को वह दिन में दवा बाँटता, गरीबों की मदद करता, और अकेली लड़कियों की ‘फिक्र’ करता। उनको वो सभी मदद करता था जो उन्हें जरूरी होती थी। पर वे नहीं जानती थी कि इस मदद के पीछे एक शैतानी चाल है। 

पर हर नई चाँद की रात, वह गुफा से निकलता…
और अपने अगले शिकार की तलाश करता।