दीवान के जंगल की उस शापित गुफा में अब हर रात खून की प्यास भड़कती थी। अग्निवेश, जो अब एक आम इंसान नहीं रहा था, अपने भीतर के उस राक्षसी पिशाच को नियंत्रण में रखने का अभिनय करता, पर भीतर से वह अब केवल एक चीज़ के लिए जीवित था – लहू।
पर उसे मालूम था कि अगला शिकार किसी जानवर का नहीं होगा… अब समय था इंसानी लहू का… और वो भी एक युवा, सुंदर लड़की का।
गांव में एक लड़की थी "जया"।
उम्र 18 साल, नाम के जैसे ही जीवन से भरी हुई। उसके लंबे काले बाल, चमकती आँखें और मासूम मुस्कान ने न जाने कितने दिलों को धड़काया था। लेकिन जया, पढ़ने-लिखने की शौकीन और अकेलेपन में खोई रहने वाली लड़की थी। उसका मन हमेशा गांव की सीमाओं से बाहर की दुनिया जानने को करता था।
अग्निवेश भी कुछ कम नहीं था असाधारण रूप से सुंदर युवक था, जिसे देख हर नजर ठहर जाती थी। उसकी त्वचा दूध सी उजली, बिलकुल नर्म और चमकदार थी, मानो चाँदनी खुद उस पर ठहरी हो। उसकी आँखें बादामी रंग की थीं, जो गहराई में उतरकर किसी के भी दिल को बांध लेती थीं। जब वह मुस्कराता, तो ऐसा लगता मानो समय थम गया हो—लड़कियों के दिलों की धड़कनें अनजाने में तेज़ हो जाती थीं। पर लड़कियों ये नहीं जानती थी ये जवानी उनके खून की ही बदौलत निखर रही थी।
अग्निवेश की नजरें कई दिनों से जया पर थीं।
वो जानता था, अब उसका अगला शिकार जया ही होगी।
अग्निवेश ने चालाकी से अपने जाल बुनने शुरू किए।
वो रोज़ मंदिर के बाहर खड़ा मिलता, मीठे शब्दों में बात करता, कभी-कभी फूल देता, तो कभी कोई कहानी सुनाता। उसके शब्दों में एक अजीब सी मोहिनी थी। जिसे सुनते ही इंसान सबकुछ भूल जाए।
जया पहले तो हिचकी, लेकिन धीरे-धीरे वो भी अग्निवेश के व्यक्तित्व में खोने लगी।
वो सोचती, "इस गांव में सब एक जैसे हैं, लेकिन ये इंसान… कुछ अलग है। समझदार भी है, पढ़ा-लिखा भी लगता है… और फिर, वो मेरी परवाह भी तो करता है।"
कुछ हफ्तों में जया और अग्निवेश अकेले मिलने लगे। गांव की गलियों में, नदी किनारे, मंदिर के पीछे। लोग बातें बनाने लगे, पर अग्निवेश की छवि इतनी सधी हुई थी कि कोई भी शक नहीं कर सका।
और फिर आई वो रात पूर्णिमा की रात, जब चाँद पूरा था, लेकिन जंगल की ओर काले बादल मंडरा रहे थे।
अग्निवेश ने जया से कहा,
"आज मैं तुम्हें एक ऐसी जगह ले चलूंगा जो इस गांव में किसी ने नहीं देखी। वो जगह मेरी है… सिर्फ मेरी… और आज, मैं चाहता हूं कि तुम उसे देखो।"
जया थोड़ी झिझकी, पर दिल से वो उस पर पूरी तरह से भरोसा कर चुकी थी।
वो बोली, "ठीक है अग्नि… आज रात, मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।"
जैसे-जैसे दोनों दीवान के जंगल की ओर बढ़े, पेड़ों की शाखाएं और ज़मीन की नमी डर पैदा करने लगी। जया का मन बार-बार विचलित हो रहा था।
"क्या यह सही है? क्या मुझे इतनी दूर आना चाहिए था?"
लेकिन अग्निवेश का साथ उसे हिम्मत देता रहा।
अंततः, वे उस गुफा तक पहुँच गए।
जया बोली, "ये तो बहुत अंधेरा है… क्या हम वापस चलें?"
अग्निवेश धीमे स्वर में बोला, "तुम मुझ पर भरोसा करती हो ना?"
जया ने सिर हिलाया… और कदम बढ़ा दिए।
गुफा में प्रवेश करते ही हवा ठंडी और भारी हो गई। अंदर की दीवारों पर कुछ विचित्र चित्र थे पिशाचों, चीखती आत्माओं, और काले जादू के प्रतीक।
जया ने भयभीत होकर पूछा, "अग्नि… ये सब क्या है? कौनसी जगह है ये?"
अग्निवेश की आंखें अब धीरे-धीरे लाल हो रही थीं। उसकी आवाज भारी और गूंजदार हो गई।
"ये अंधेरों की जगह है जहां आने का रास्ता है पर यहां से वापस जाने का कोई रास्ता नहीं है। तुमने मुझसे प्रेम किया… अब समय है कि मैं तुम्हें अपना असली प्रेम दिखाऊं।"
उसने अपना सिर उठाया… और जया के सामने अब वो सुंदर पुरुष नहीं, बल्कि एक भयानक वैंपायर खड़ा था।
उसके लंबे नुकीले दांत, खून से सनी जीभ, और आग सी जलती आंखों को देखकर जया की चीख निकल गई।
"नहीं… ये नहीं हो सकता! अग्नि! तुम ऐसा नहीं कर सकते!"
अग्निवेश धीमे से मुस्कराया,
"मैंने तुम्हें चुना है… क्योंकि तुम्हारा लहू मुझे अमर रखेगा। हो सके तो मुझे माफ करना"
जया भागने लगी… पर गुफा से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था।
अग्निवेश ने पलक झपकते ही उसे पकड़ लिया।
उसने जया की गर्दन पकड़कर ऊपर उठाया, और धीरे से उसके गले पर अपने दांत गड़ा दिए।
जया की आंखें फटी रह गईं… कुछ क्षणों तक वो तड़पती रही… फिर शांत हो गई।
अग्निवेश ने उसका सारा खून पी लिया। उसके होठों से खून टपक रहा था।
वो अब पहले से भी अधिक शक्तिशाली और युवा लग रहा था।
लेकिन जया की मृत देह देखकर उसके भीतर एक अजीब सी बेचैनी उठी।
"क्या ये सही है? क्या मैं राक्षस बन गया हूं?"
पर ये सोच ज़्यादा देर नहीं टिकी उसके भीतर का पिशाच ज़्यादा ताकतवर था।
उसने जया की लाश को गुफा के बाहर एक पेड़ के पीछे दफना दिया। गुफा में अब केवल शांति थी और खून की गंध।
अग्निवेश ने अपने कपड़े बदले, चेहरा धोया… और वापस गांव लौट आया… उसी मासूमियत के साथ।
लोगों ने पूछा – "जया कहां है?"
वो बोला – "मैंने तो उसे शाम को मंदिर की ओर जाते देखा था। शायद अपने घर गई हो।"
गांव वालों ने तलाश की, पर जया कभी नहीं मिली।