कहानी का शीर्षक: "आशीर्वाद का मूल्य"लेखक: विजय शर्मा एरीछोटे से कस्बे रतनपुर में मजदूरी कर अपना जीवन यापन करने वाला एक जोड़ा रहता था—रामू और सीता। रामू ईंट भट्टे पर काम करता था और सीता कभी घरों में झाड़ू-पोंछा करती, कभी सिलाई-कढ़ाई से थोड़ा बहुत कमा लेती।उनकी शादी को अब पंद्रह साल हो चुके थे, परंतु उनकी झोली में संतान का सुख नहीं था। गांव के बाबाओं, शहर के डॉक्टरों, दवाइयों और पूजा-पाठ—सब कुछ आजमा चुके थे। पर कहीं भी कोई आस नहीं दिखी।हर रात, रामू अपने सीने से सीता को लगाकर कहता—“सीते, भगवान ने अगर हमें अब तक कुछ नहीं दिया, तो इसका मतलब ये नहीं कि वो देंगे नहीं। हमें बस भरोसा रखना है।”सीता चुपचाप उसकी छाती पर सिर रखकर आंसू पी जाती।संकल्पएक दिन सीता ने पास के गांव के मंदिर में सुना कि बद्रीनाथ की यात्रा करने से और वहाँ विष्णु जी के चरणों में नारियल चढ़ाने से संतान की प्राप्ति होती है। बस, फिर क्या था। दोनों ने निश्चय कर लिया कि अबकी बार वो पैसे बचाकर बद्रीनाथ की यात्रा करेंगे।उन्होंने दिन-रात मेहनत करना शुरू कर दिया। रामू ने एक साथ दो भट्टों पर काम करना शुरू किया और सीता ने पांच घरों में काम पकड़ लिए। दो साल तक उन्होंने एक-एक पैसा जोड़कर ₹50,000 जमा कर लिए।उनके सपनों में अब एक छोटा सा बच्चा आने लगा था। सीता हर रोज भगवान को धन्यवाद कहती और रामू उस बच्चे के लिए छोटी सी लकड़ी की गाड़ी बनाता।माँ की चीखपर यात्रा पर निकलने से एक दिन पहले, उनके पड़ोस में रहने वाली एक बूढ़ी अम्मा, जो बेहद गरीब थीं, अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गईं। उनका शरीर कांप रहा था, सांसें टूटती-सी लग रही थीं।उनके बेटे, जो खुद एक रिक्शा चालक था, दौड़ते हुए रामू के पास आया—“भैया, माँ की हालत बहुत खराब है, डॉक्टर ने तुरंत अस्पताल ले जाने को कहा है, पर मेरे पास पैसे नहीं हैं... मैं उन्हें बचा नहीं पाऊंगा।”रामू ने सीता की तरफ देखा। दोनों की आंखों में सवाल थे—क्या करें?सीता कुछ पल चुप रही, फिर उसने धीरे से वो बटुआ उठाया जिसमें वो ₹50,000 रखे थे और रामू की हथेली में रख दिया।“एक माँ की जान बचाना... शायद भगवान के दरबार जाने से बड़ा काम है। चलो रामू।”त्याग और तपस्यारामू ने बिना एक शब्द बोले वो सारे पैसे पड़ोसी के हाथ में दे दिए। अम्मा को शहर के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। कुछ ही दिनों में उनकी हालत में सुधार आ गया।जब रामू उन्हें देखने अस्पताल गया तो अम्मा ने कांपते हाथों से उसका सिर सहलाते हुए कहा—“बेटा, तूने माँ को बचाया है, भगवान तुझे जरूर अपना वरदान देंगे... मेरा आशीर्वाद तुझे संतान देगा।”रामू और सीता ने बिना किसी पछतावे के अपना त्याग स्वीकार कर लिया। अब उन्हें बद्रीनाथ जाने का कोई ग़म नहीं था।चमत्कारउस घटना के कुछ महीने बाद, सीता को अचानक चक्कर आने लगे, जी मिचलाने लगा। वो सोची कि ज़्यादा काम कर लिया होगा, पर जब रामू उसे गांव के स्वास्थ्य केंद्र ले गया, तो डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा—“बधाई हो! सीता माँ बनने वाली है!”रामू के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसने डॉक्टर से दो बार पूछा, “क्या... क्या सच में?”सीता की आंखों में आंसू छलक आए। उसके हाथ जुड़ गए, और वह मंदिर की ओर भागी।गांवभर में ये खबर जंगल में आग की तरह फैल गई। सब लोग बोले—“ये किसी चमत्कार से कम नहीं! किसी को संतान नहीं थी पंद्रह साल तक... और अब जब उन्होंने अपना सपना छोड़ किसी और की जान बचाई, भगवान ने उन्हें वही तोहफा दे दिया।”नवजीवनसीता ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया। अम्मा ने खुद अपने हाथों से नाम रखा—"कृपा"।क्योंकि वो भगवान की कृपा ही तो था।रामू हर दिन अपने बेटे को सीने से लगाकर कहता—“तू मेरे त्याग का फल है, मेरे विश्वास की जीत है। तुझमें माँ का आशीर्वाद बसता है।”अब रामू और सीता पहले से भी ज़्यादा मेहनत करते, पर चेहरे पर तृप्ति की रेखाएं थीं। उन्हें अब किसी मंदिर, किसी यात्रा की ज़रूरत नहीं थी।उनका भगवान अब उनकी गोद में मुस्कुराता था।संवेदनशील संदेशकहानी सिर्फ एक दंपत्ति की नहीं थी। ये उस मानवता की कहानी थी जो दूसरों के दुख में अपने स्वार्थ को भुला देती है।रामू और सीता ने साबित कर दिया कि सच्ची तीर्थयात्रा वो नहीं होती जहां आप जाते हैं, बल्कि वो होती है जो आप भीतर से करते हैं—दूसरों के लिए, बिना स्वार्थ के।गीत की पंक्तियाँ जो इस कहानी से मेल खाती हैं:🎵 “तेरे दर पे आया हूँ कुछ करके जाऊँगा,तेरी रहमतों का दरिया बहा के जाऊँगा...”— फिल्म: Veer-Zaara🎵 “जो भेजी थी दुआ, वो जा के आसमाँ से यूँ टकराई,कि आ गया है लौट के सदा...”— फिल्म: Delhi-6समाप्त✍️ कहानीकार: विजय शर्मा एरी