"अगर तुम्हें रात में कोई धीमे स्वर में तुम्हारा नाम पुकारे, तो पलटकर मत देखना... वो शायद 'वो' हो सकती है। कर्ण पिशाचिनी... जो आवाज़ों से खेलती है, और आत्माओं से..."
शहर से दूर, पहाड़ों के नीचे एक पुराना गांव था — द्रोणपुर। लोग कहते थे कि वो गांव सूरज ढलते ही साँस लेना छोड़ देता था। वहाँ की हवाएं भी अजीब थीं — जैसे फुसफुसाकर कुछ कह रही हों। गांव के बीचों-बीच एक टूटा-फूटा कुआं था, जिसके पास कोई नहीं जाता था। कहते हैं, उस कुएं से एक औरत की आवाज़ आती है, जो कान में धीरे से कुछ कहती है… और वो जो भी सुनता है, उसका दिमाग़ धीरे-धीरे पिघलने लगता है।
कहानी शुरू होती है श्रुति से — एक 24 वर्षीय पत्रकार, जो ऐसे रहस्यों के पीछे पड़ने के लिए जानी जाती है। उसे द्रोणपुर के बारे में एक पुराना अख़बार मिला, जिसमें सिर्फ इतना लिखा था:
"कर्ण पिशाचिनी लौट आई है।"
श्रुति ने इसे एक मिथक समझकर गांव जाने की ठान ली। गांव पहुंचते ही, उसे अहसास हुआ कि यहाँ कुछ भी सामान्य नहीं है। लोग उसे देख मुस्कुरा रहे थे पर उनकी आँखें खाली थीं, जैसे उनमें कोई आत्मा ही न हो।
उस रात, वो गांव के पुराने कुएं के पास गई। हवा अचानक ठंडी हो गई। झाड़ियों के बीच से फुसफुसाहट आने लगी। उसने सुना — कोई उसका नाम ले रहा था।
"श्रुति... श्रुति..."
उसने चारों ओर देखा, पर कोई नहीं था। और फिर — एक अंधेरी छाया उसके कान के पास आई, और उसने धीमे से कुछ कहा। इतना धीमे, कि शब्द समझ नहीं आए — मगर आवाज़ सीधे उसकी नसों में उतर गई।
अगली सुबह, गांव का एक बच्चा लापता था। गांववालों ने कहा कि ये 'वो' ही ले गई होगी।
श्रुति का दिमाग अब शंका से भर गया था। लेकिन उसी रात, उसे एक बूढ़ा मिला — पंडित गदाधर, जो गांव छोड़कर पास की पहाड़ियों में छुपकर रहता था।
उसने कहा,
"वो सिर्फ उन्हीं को मारती है, जो उसकी बात सुन लेते हैं। वो कान से घुसती है… और दिमाग में घर बना लेती है। कर्ण पिशाचिनी... जो एक श्रापित आत्मा है।"
गदाधर ने बताया कि बरसों पहले गांव में एक स्त्री थी — चंद्रिका। बहुत सुंदर, पर उसे सुनने की शक्ति का श्राप था। वो हर इंसान का झूठ, मन की बात और छिपी नीयत सुन सकती थी। जब उसने गांव के पंडित की सच्चाई सबके सामने रखी, तो उसे डायन कहकर कुएं में फेंक दिया गया। मरते वक्त उसने श्राप दिया —
"अब मैं सिर्फ कान से जाऊंगी… और जब कोई मेरी बात सुनेगा, उसका सत्य उसके ही विरुद्ध हो जाएगा।"
श्रुति अब डरने लगी थी, क्योंकि उसने ‘उसकी’ बात सुन ली थी। अब उसे हर रात अलग-अलग आवाज़ें सुनाई देतीं — कुछ उसकी माँ की, कुछ उसके बचपन की... पर हर आवाज़ उसे आत्महत्या के लिए उकसाती थी।
एक रात उसने खुद को कुएं के पास पाया — नंगे पैर, बिना होश के। उसकी रिकार्डिंग मशीन खुद-ब-खुद चालू हो गई थी और उसमें एक अजीब सी आवाज़ रिकॉर्ड हो रही थी —
"तू अब मेरी है… तेरे शब्द मेरे हैं… तेरे कान मेरी गूंज हैं…"
इसी दौरान उसे पता चला — गांव में हर वो इंसान जो कभी चंद्रिका के खिलाफ गवाही देने गया था, सब के कान कटे हुए मिले थे। कोई बाहर से नहीं काटता था… वो खुद अपने कान नोच देते थे।
श्रुति को अब बस एक ही रास्ता दिखा — वो खुद को पागल घोषित करवा कर गांव से भागना चाहती थी। लेकिन तभी, एक पुरानी डायरी हाथ लगी — चंद्रिका की। उसमें लिखा था:
"मैं जानती थी, एक दिन कोई आएगा जो मेरी आवाज़ को समझेगा… जो सच को लिखेगा, मिटाएगा नहीं। मैं उसे छोड़ दूंगी… या शायद नहीं।"
श्रुति को एहसास हुआ कि चंद्रिका उसे छोड़ना नहीं चाहती, बल्कि उसे अपनाना चाहती है। और धीरे-धीरे, उसकी आवाज़ में भी एक बदलाव आने लगा — अब वो फुसफुसाकर दूसरों से बातें करती थी… उनके कानों में।
कुछ हफ्तों बाद, एक नया रिपोर्टर गांव आया। श्रुति का कोई नाम-ओ-निशान नहीं था। लेकिन गांव के स्कूल के पास एक छोटी लड़की उसके पास आई और धीरे से उसके कान में बोली:
"श्रुति दीदी ने कहा, अब आपकी बारी है…"
रिपोर्टर ने चौंककर देखा — उस बच्ची की आँखें बिलकुल सूनी थीं… और उसके एक कान से खून बह रहा था।
"कर्ण पिशाचिनी अब एक नहीं रही… वो हर उस इंसान में है, जो किसी की आवाज़ को बिना सोचे-समझे सुनता है। अगली बार जब कोई धीमे से तुम्हारा नाम ले… पलटना मत। क्योंकि अब वो सिर्फ तुम्हें नहीं देख रही… वो तुम्हारे भीतर आ रही है।"