गाँव के पुराने चौक पर शाम की आरती खत्म हो चुकी थी। हवा में अब भी अगरबत्ती की खुशबू थी, लेकिन अनन्या के दिल में डर और सवालों का तूफान मचा था। उसकी आँखों के सामने बार-बार वही मंजर घूम जाता – उसकी माँ सरोज का खून से लथपथ चेहरा और माथे पर लगा हुआ वो खून का टीका।
उस रात के बाद से अनन्या की जिंदगी बदल गई थी। लोग कहते थे कि हवेली में आत्मा भटकती है, लेकिन अनन्या को लगता था कि ये सब किसी इंसान का खेल है। उसकी माँ की मौत एक हादसा नहीं, बल्कि किसी गहरी साज़िश का हिस्सा थी।
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पुराने तहखाने का रहस्य
अनन्या ने ठान लिया कि अब वो डरकर नहीं रहेगी। वो उस हवेली के तहखाने में जाएगी जहाँ उसकी माँ का कत्ल हुआ था। आधी रात को, जब सब सो चुके थे, वो चुपचाप हवेली की ओर निकली।
दरवाज़ा अब भी टूटा हुआ था, और अंदर जाते ही उसे ठंडी हवा का झोंका लगा। टिमटिमाते दीयों की रोशनी में दीवारों पर जमे खून के धब्बे अब भी साफ दिख रहे थे। जैसे ही उसने नीचे सीढ़ियाँ उतरीं, एक अजीब सन्नाटा छा गया। हर कदम पर फर्श चरमराने लगा।
नीचे पहुँचकर उसने देखा – कोने में एक पुरानी अलमारी रखी थी। अलमारी का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था और अंदर से कुछ चमकती हुई चीज़ झलक रही थी।
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खत और सच्चाई की झलक
अनन्या ने डरते-डरते अलमारी खोली। अंदर उसे माँ की पुरानी चिट्ठियाँ और एक डायरी मिली। डायरी के पन्नों पर लाल स्याही में लिखा था –
"अगर ये पन्ने मेरी बेटी अनन्या के हाथ लगें, तो समझ जाना मेरी मौत का सच हवेली की दीवारों में छिपा है। मेरा कत्ल किसी अजनबी ने नहीं, बल्कि उसी ने किया जिस पर हम सबसे ज्यादा भरोसा करते थे।"
ये पढ़कर अनन्या के रोंगटे खड़े हो गए।
“सबसे ज्यादा भरोसा…” – आखिर ये किसके बारे में लिखा था? उसके दिमाग में कई चेहरे घूमने लगे – उसका चाचा, उसका मंगेतर, यहाँ तक कि उसका अपना पिता!
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रहस्यमयी परछाई
तभी अचानक पीछे से कदमों की आहट सुनाई दी। अनन्या ने पलटकर देखा – दरवाज़े पर एक काली परछाई खड़ी थी। उसके हाथ में जलती हुई लालटेन थी।
"क…कौन हो तुम?" अनन्या ने काँपती आवाज़ में पूछा।
परछाई धीरे-धीरे आगे बढ़ी। उसकी साँसों की आवाज़ गूँज रही थी।
"सच जानने का समय आ गया है, अनन्या," उस परछाई ने कहा।
अनन्या का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। “कौन सा सच?”
"वही सच… जो तेरी माँ की जान ले गया। और अब… तेरी बारी है!”
इतना कहते ही परछाई ने घूँघट हटाया। अनन्या के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
"तुम…!!!"
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वो शख्स कोई और नहीं, बल्कि उसका अपना पिता था – राघव। वही राघव, जिसने हमेशा अपनी बेटी को सुरक्षा का भरोसा दिया था, आज उसके सामने कातिल बनकर खड़ा था।
"पिता जी… आपने माँ को क्यों मारा?" अनन्या की आँखों से आँसू बह रहे थे।
राघव ने ठंडी हँसी के साथ कहा –
"क्योंकि तेरी माँ ने वो राज़ जान लिया था… जो अगर दुनिया के सामने आता, तो हमारा नाम मिट जाता। अब तू भी सच जान चुकी है… और इसीलिए, तुझे भी मरना होगा।"
अनन्या पीछे हटने लगी। लेकिन तभी पीछे से एक और आवाज़ आई –
"नहीं राघव… अब सच सामने आएगा!"
दरवाज़े पर पुलिस खड़ी थी। किसने पुलिस को बुलाया? ये सवाल अनन्या के चेहरे पर साफ दिख रहा था।
राघव पुलिस की ओर झपटा, लेकिन तभी गोली की आवाज़ गूँज उठी। सबकुछ सन्नाटे में बदल गया।
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(अगले भाग में – क्या राघव मारा गया या भाग निकला? पुलिस को किसने बुलाया? और क्या सच में सरोज की आत्मा हवेली में है?)