Those mysterious deaths of Kaali Kothi in Hindi Thriller by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | वो काली कोठी की रहस्यमय मौतें

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वो काली कोठी की रहस्यमय मौतें

कहानी शीर्षक: वो काली कोठी की रहस्यभरी मौतें✍️ लेखक: विजय शर्मा एरीशब्दसंख्या: लगभग 2000प्रस्तावनाउत्तर भारत के एक छोटे शहर राजपुरके बाहरी इलाके में एक पुरानी कोठी थी — ‘श्याम निवास’। आलीशान होने के बावजूद, वहाँ कोई भी किरायेदार एक सप्ताह से ज़्यादा नहीं टिकता था। कारण? एक डरावनी परंपरा—हर किरायेदार के परिवार का एक सदस्य पहले हफ्ते में रहस्यमय मौत का शिकार हो जाता था।लोगों ने इस कोठी को 'मनहूस', 'भूतहा' और 'मौत की कोठी' तक कहना शुरू कर दिया था। लेकिन तीन जांबाज़ युवा — आदित्य, करण और रघु — इस रहस्य से पर्दा उठाने की ठान चुके थे।अध्याय 1: मौत की कोठीराजपुर के चर्चित चाय स्टॉल पर बैठा था रघु, एक पत्रकार जिसने रहस्य की कहानियाँ लिख-लिख कर लोकल पेपर में नाम कमाया था।रघु बोला — “कोई तो राज़ है उस कोठी का... सात किरायेदारों में से हर एक के घर से कोई न कोई मरा है। वो भी पहले हफ्ते में ही।”करण, जो एक टेक्निकल एक्सपर्ट था, गंभीरता से बोला — “भूत प्रेत में तो मैं यकीन नहीं करता, लेकिन यह बहुत सस्पिशियस है। या तो कोई इंसानी खेल है या कोई ज़हरीली गैस या रेडिएशन?”आदित्य, एक लोकल पुलिस कॉन्स्टेबल, जो अक्सर अपने अफसरों से अलग जाकर जाँच करता था, बोला — “चलो इस बार हम तीनों उस कोठी में बतौर किरायेदार शिफ्ट होते हैं। और सच्चाई का पता लगाते हैं।”तीनों ने मिलकर फर्जी पहचान से श्याम निवास में किराए पर एक कमरा लिया। कोठी के मालिक, बुज़ुर्ग सेठ गुलशनलाल, ने सिर्फ़ इतना कहा — “सावधान रहना, बेटा। ये कोठी इंसानों के लिए नहीं बनी।”अध्याय 2: पहली रात की आहटेंकोठी बहुत बड़ी थी। दीवारों पर पुराने जमाने की पेंटिंग्स, लकड़ी की खिड़कियाँ और कोनों में बिखरी सीलन से एक अजीब-सा डर का माहौल बनता था।रात को जब तीनों सोने लगे तो एकाएक घर की छत से किसी औरत के चीखने की आवाज़ आई।“तुमने सुना?” — रघु चौक पड़ा।“हाँ, किसी औरत की कराहने की आवाज़... छत पर!” — आदित्य ने अपनी टॉर्च उठाई।तीनों दौड़कर छत पर पहुँचे, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। बस एक टूटा-फूटा झूला हिल रहा था। नीचे की मंज़िल में एक कमरा बंद मिला, जिस पर ताला जड़ा था।करण ने कहा — “वहीं से रहस्य शुरू होता है।”अध्याय 3: गुप्त तहखानाअगली सुबह करण ने अपने डिटेक्टर डिवाइस से पूरे घर में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्कैनिंग की। उसने पाया कि उस बंद कमरे के नीचे एक खाली जगह है — शायद कोई तहखाना।सेठ गुलशनलाल से पूछने पर उन्होंने मुकरते हुए कहा — “उस कमरे में तो कोई जाता नहीं, बेटा। बहुत पुराना है, अंदर कुछ नहीं।”लेकिन तीनों युवाओं ने रात को ताले की डुप्लीकेट चाबी बनाकर दरवाज़ा खोला।कमरे के अंदर एक गुप्त दरवाज़ा था जो तहखाने की ओर जाता था। नीचे सीढ़ियों से उतरते ही एक अजीब गंध आई — खून और नमी की। दीवारों पर पुराने झंडू-से ताबीज़ टंगे थे। बीचों-बीच एक लोहे का मेज था, जिस पर खून के धब्बे अभी भी मौजूद थे।अध्याय 4: दर्द भरा अतीतरघु ने तहखाने में पड़े पुराने दस्तावेजों और एक डायरी को पढ़ा।डायरी किसी "रंजना" नाम की औरत की थी, जिसे 1980 में गुलशनलाल सेठ के बेटे ने शादी का झांसा देकर बलात्कार किया था। जब उसने विरोध किया, तो उसे इसी तहखाने में कैद कर मार दिया गया। उसकी आत्मा अब भी बदला चाहती थी — लेकिन वो सिर्फ़ बेगुनाहों को मार रही थी।करण बोला — “शायद उसकी आत्मा बदले में भटक रही है, पर सही इंसान तक नहीं पहुँच पा रही।”आदित्य ने तय किया — “हमें उस आत्मा को इंसाफ़ देना होगा। तभी यह सिलसिला रुकेगा।”अध्याय 5: आत्मा से संवादरघु ने एक स्थानीय तांत्रिक बाबा "त्रिलोकीनाथ" से संपर्क किया।बाबा बोले — “वो आत्मा सिर्फ़ अपने कातिल का नाम चाहती है। उसे यह बताओ कि गुलशनलाल और उसका बेटा अब ज़िंदा नहीं हैं। उसके नाम पर ये कोठी चल रही है — यही कारण है कि वह हर नए किरायेदार को उस आदमी का समझती है।”रात को तीनों ने एक हवन किया और आत्मा से संवाद की कोशिश की। एक ठंडी हवा चली, दरवाज़े खुद-ब-खुद बंद हो गए और एक स्त्री की कराहती आवाज़ आई —“मुझे इंसाफ चाहिए... गुलशन... गुलशन...”आदित्य ने ज़ोर से कहा — “गुलशन और उसका बेटा अब मर चुके हैं। तुम्हें गलत लोगों से बदला नहीं लेना चाहिए। हम तुम्हें इंसाफ़ दिलाएँगे, तुम्हारा नाम रंजना हमेशा सम्मान से लिया जाएगा।”धीरे-धीरे हवा शांत हो गई। एक गुलाब की खुशबू चारों तरफ फैल गई।अध्याय 6: कोठी का नया नामअगली सुबह तीनों ने नगर परिषद में जाकर कोठी का नाम बदलवाने की अर्जी दी — अब उसका नाम रखा गया ‘रंजना सदन’। कोठी के बाहर एक बोर्ड लगाया गया जिसमें लिखा था:"यह कोठी उस औरत की याद में है जिसने अन्याय के खिलाफ़ खामोश लड़ाई लड़ी।"अब वह कोठी दोबारा किरायेदारों से भरी रहने लगी। कोई अनहोनी नहीं हुई। वो डरावनी कोठी अब एक प्रेरणा बन गई।समाप्ति संवादरघु: “हमने सिर्फ़ एक आत्मा को मुक्त नहीं किया, बल्कि समाज को यह भी दिखा दिया कि सच्चाई, साहस और इंसाफ़ से बड़े से बड़ा रहस्य भी सुलझाया जा सकता है।”करण: “कभी-कभी भूत नहीं, हमारा अतीत ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन होता है।”आदित्य: “और जब इंसाफ़ हो जाता है, तो आत्माएँ भी चैन से सो पाती हैं।”गीत पंक्ति समर्पण"तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनके मैं खिल जावां..."रंजना की आत्मा की मुक्ति को समर्पित...✍️ लेखक: विजय शर्मा एरीयदि आपको यह कहानी पसंद आई हो या आपके मन में कोई सवाल हो — कमेंट में अपनी राय ज़रूर दें।आपका सुझाव हमारे लिए अमूल्य है।