shapit fatak in Hindi Thriller by Mohd Ibrar books and stories PDF | शापित फाटक

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शापित फाटक

यह कहानी काल्पनिक है। इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति, स्थान या घटना से कोई समानता मिलती है तो वह मात्र एक संयोग है।"

                   वर्ष 2004

एक आदमी रेलवे फाटक पर काम करता है। उसका काम फाटक को बंद करना होता है।
एक दिन उसका बेटा आता है।
बाप और बेटा दोनों दारू पीते हैं, मुर्गा खाते हैं, आपस में हँसी-मज़ाक करते हैं और सोने चले जाते हैं।

रात क़रीब 2 या 3 बजे होंगे।
तभी उसका बेटा उठता है और सामने से फावड़ा उठाता है और बाप के चेहरे पर मार-मारकर दो टुकड़े कर देता है।
बाप मर जाता है।

सुबह 4 बजे ट्रेन आती है।
उसे सिग्नल नहीं मिलता।
तब ड्राइवर उतरकर आता है और देखता है कि स्टेशन मास्टर मर चुका है।
वह पुलिस को फोन करता है।
पुलिस आती है, शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज देती है और ट्रेन को सिग्नल देती है।
ट्रेन चल देती है।

पुलिस जाँच में लग जाती है लेकिन कोई सबूत नहीं मिलता।

कुछ दिन बाद, रात में एक आदमी उस फाटक के पास से आ रहा था।
वह किसी का साया देखकर डर गया और भागते हुए अपने घर गया और सो गया।
सुबह हुई तो उसका बर्ताव बहुत अजीब था।
वह पागलों जैसी हरकत करने लगा।
तभी उसे एक बाबा के पास ले जाया गया।
बाबा ने उसे ताबीज़ दी। उसकी तबीयत ठीक हो गई।
लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आया।

कुछ दिनों बाद फिर से एक आदमी वही फाटक के पास से गुज़र रहा था।
उसके साथ भी वही हुआ।
ऐसे 6-7 आदमियों के साथ हुआ।
लोग बहुत परेशान हो गए।
वे पुलिस के पास गए, सारी कहानी बताई और बोले —
"जब से स्टेशन मास्टर की मौत हुई है, तब से जो भी उधर से गुज़रता है, उसके साथ यही होता है।"

पुलिस को ये बातें बहुत अजीब लगीं।
लेकिन सबको यह कहकर टाल दिया कि ऐसा कुछ नहीं है।

दो दिन बाद फिर से एक आदमी वही फाटक से गुज़र रहा था।
उसके साथ भी वही सब हुआ।
उसके अंदर इतनी शक्ति आ गई थी कि वह अकेला तीन-चार आदमियों को उठाकर फेंक देता था।

पुलिस आई। ये सब देखकर हैरान हो गई।

उसे भी बाबा के पास ले जाया गया।
बाबा ने अपने मंत्र से यह पता लगाया कि —
"ये वही स्टेशन मास्टर है जिसकी मौत हो चुकी थी।"

पुलिस ने फिर से ऐक्शन लिया और जाँच और तेज़ी से शुरू कर दी।
जिस पर शक था उसे उठाती और लॉकअप में बहुत मारती, लेकिन कोई सबूत नहीं मिल रहा था।

तभी पुलिस उस स्टेशन मास्टर के घर गई।
वहाँ घरवालों से एक-एक करके बात की।

जैसे:

"जिस दिन तुम्हारे बाबा का मर्डर हुआ — तुम कहाँ थे?"

सबने जवाब दिया —
किसी ने कहा "घर पर थे", किसी ने कहा "काम पर थे"।

तभी छोटे बेटे से सवाल किया गया:
"तुम कहाँ थे?"

छोटा बेटा बोला:
"सर, मैं अपने ससुराल में था।"

पुलिस ने उसके ससुराल फोन किया और पूछा:
"क्या मर्डर वाली रात ये वहाँ था?"
उधर से जवाब आया:
"नहीं।"

पुलिस को शक हुआ।
दो थप्पड़ लगाए और कहा:
"सच-सच बताओ, कहाँ थे?"

छोटे बेटे को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
तभी उसके कमरे की तलाशी ली गई।
वहाँ पुलिसवालों को जूता मिला जिस पर खून के धब्बे लगे थे।

पुलिस उसे लॉकअप में ले आई।
बहुत मारने के बाद उसने अपना मुँह खोला और बोला:

"बाबा कुछ दिनों में रिटायर होने वाले थे।
मैंने सोचा अगर मैं अपने बाप को मार दूँ, तो मुझे उनकी नौकरी मिल जाएगी।"

पुलिसवालों ने उसे और मारा।

उसे कोर्ट में ले जाया गया, जहाँ उसे उम्रकैद की सज़ा मिली।

अब उस फाटक पर शांति रहती है।

मैंने सोचा था कि बाप को मारकर मैं उसकी जगह ले लूंगा...
लेकिन आज समझ आया —
बाप सिर्फ नौकरी नहीं छोड़ता...
वो अपना सब कुछ छोड़ जाता है।
उसकी जगह न कोई ले सकता है...
न कभी ले पाएगा।"