🕯️ पीपल का बदला – छाया अभी बाकी है...
(हॉरर )
गांव नरकटिया के दक्षिण कोने में एक पुराना पीपल का पेड़ था, जिसके नीचे कोई नहीं जाता था। उसकी शाखाएं आसमान से बातें करती थीं, और हवा से फुसफुसाती थीं। लोग कहते थे, “वो पीपल नहीं... वो क़ैद है — एक रूह की, जो आज भी बदला मांग रही है।”
छाया।
बीस साल पहले गांव की सबसे सुंदर और निडर लड़की। जिसकी मुस्कुराहट पर सारा गांव फिदा था। लेकिन छाया की एक गलती थी — उसने इंसाफ़ माँगा था। ठाकुर गोवर्धन और उसके चार साथियों ने गांव की पंचायत में ताकत का दुरुपयोग करते हुए उसके साथ दरिंदगी की, और फिर सबूत मिटाने के लिए उसे जिंदा उसी पीपल से बांधकर आग लगा दी।
कह दिया गया — छाया पागल थी। उसने खुद आत्मदाह कर लिया।
लोग डर गए, चुप रहे। और समय बीत गया… लेकिन छाया नहीं गई।
वर्तमान समय।
जावेद, गांव का एक सीधा-सादा लड़का, मेहनती, ईमानदार, और मां के साथ झोंपड़ी में रहता है। वो पीपल के पास से रोज़ गुजरता है, लेकिन कभी डरता नहीं। उसे लगता है कि जो आत्मा सताई गई हो, वो किसी को सताएगी नहीं।
इसी बीच, रुखसाना, जो बचपन में जावेद की दोस्त थी, शहर से गांव लौटती है — अपनी दादी की मौत पर। दादी की आखिरी सांस में निकला शब्द था — “जावेद… पीपल… बचा लेना…”
पहले तो दोनों हैरान होते हैं, लेकिन फिर अजीब घटनाएं शुरू हो जाती हैं:
गांव का पोस्टमास्टर बिना आग के जला हुआ पाया जाता है
पंडित दौलत कुएं में गिरकर मर जाता है, लेकिन उसके शरीर पर जले हुए धागे बंधे होते हैं
और हर मौत के पहले — गांववालों को रात को पीपल की शाखाओं से हँसी की आवाज़ आती है
जावेद और रुखसाना सच्चाई जानने के लिए मास्टर रमज़ान के पास जाते हैं — जो गांव का इकलौता बुज़ुर्ग है जिसने सब देखा था, लेकिन डर के मारे चुप रहा।
वो बताता है:
“छाया ने पंचायत में शिकायत की थी ठाकुर गोवर्धन के खिलाफ़।
ठाकुर, हवेली का मालिक हरेंद्र, पंडित दौलत और दो और — इन सबने उसे चुप करने के लिए उसी पीपल से बांधकर आग लगा दी… और गांव को झूठा डर दिखाकर चुप करा दिया।”
रुखसाना सिहर जाती है… और कहती है:
“तो ये आत्मा बदला लेने आई है?”
मास्टर बोले —
“नहीं, ये आत्मा अब इंसाफ़ की देवी बन गई है। वो चुनती है… केवल उन्हीं को जो दोषी हैं… या जो रोकने की कोशिश करें।”
अगली रात, जावेद को सपना आता है:
वो पीपल के सामने खड़ा है।
छाया की जली हुई देह पेड़ से लटक रही है।
वो बोलती है:
"मैं तुझसे कुछ नहीं चाहती…
बस सच को सामने लाने में मेरी मदद कर…
नहीं तो अगला धागा तेरे नाम का होगा।”
जावेद नींद से चौंकता है। अब वो डरता है नहीं, खड़ा होता है।
अब गांव में डर और मौत का सिलसिला शुरू होता है।
ठाकुर का बेटा जो शहर से लौटा था, पेड़ से उल्टा लटका मिला।
हवेली का हरेंद्र पागल होकर भाग गया, चीखते हुए “छाया मुझे छोड़ दे!”
गांव में दहशत है।
पंचायत बैठती है, लेकिन कोई कुछ कहने को तैयार नहीं।
अब छाया का निशाना बनती है — रुखसाना।
एक रात, रुखसाना अपने कमरे में होती है — तभी खिड़की अपने आप खुलती है… एक ठंडी हवा चलती है… और शीशे पर खून से लिखा होता है:
तेरी दादी ने चुप्पी तोड़ी थी,
अब तेरी बारी है…”
रुखसाना बेहोश हो जाती है।
अब जावेद अंतिम फ़ैसला लेता है — वो गांव के मंदिर में जाता है, और सबको बुलाकर कहता है:
जिस गांव में एक लड़की को ज़िंदा जलाकर भूत बना दिया गया…
वहां अब कोई इज्ज़तदार नहीं बचा।
इंसाफ़ या तो आज होगा… या सब जलेंगे।”
वो ठाकुर गोवर्धन को खींचकर पीपल के नीचे लाता है —
ठाकुर डर से कांप रहा होता है — छाया की आत्मा अब सामने प्रकट होती है।
धुंए में से एक औरत की आकृति निकलती है, जले हुए लिबास में, बाल बिखरे, आंखों में आग।
मैं तुझसे सिर्फ़ एक सवाल पूछने आई हूँ — क्यों?”
ठाकुर गिरता है, रोता है… लेकिन छाया की आंखें अब सिर्फ़ इंसाफ़ देखती हैं।
अगले ही पल, ठाकुर की छाती फट जाती है, और वो वहीं मर जाता है।
छाया की आत्मा रुखसाना के पास जाती है…
उसे छूती है… और एक पल में शांति का प्रकाश फैलता है।
पीपल के पेड़ से सभी धागे अपने आप खुल जाते हैं…
और हवा में एक आखिरी आवाज़ गूंजती है:
अब मैं जा रही हूँ…
लेकिन अगर किसी छाया को फिर जलाया गया…
तो ये पेड़ फिर जागेगा।”
अंतिम डायलॉग (Climax):
जिस समाज में सच को जला दिया जाए,
वहाँ भूत नहीं — इंसाफ़ भटकता है।”