one heart to face in Hindi Drama by Mohd Ibrar books and stories PDF | एक दिल दो चेहरे

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एक दिल दो चेहरे

डिस्क्लेमर:
यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर कोई समानता मिलती है तो वह मात्र संयोग है। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन है, किसी वर्ग, लिंग या व्यक्ति विशेष को ठेस पहुँचाना नहीं।


कुसमी गाँव — एक शांत और हरा-भरा गाँव, जहाँ रिश्तों की मिठास मिट्टी की सोंधी खुशबू की तरह रची-बसी थी।
इसी गाँव का एक सीधा-सादा, ईमानदार और मेहनती नौजवान था — उस्मान। और उसी गाँव की पढ़ी-लिखी, सौम्य, खूबसूरत लड़की थी — आयशा।

उनकी पहली मुलाकात एक छोटे से कस्बे के कॉलेज की लाइब्रेरी में हुई थी।
आयशा की किताबें गिर गई थीं और उस्मान ने तुरंत झुककर उन्हें उठाया।
उस दिन दोनों के बीच कोई शब्द नहीं बदले — लेकिन नज़रें कुछ कह गईं।
वो पहली नज़र का पहला एहसास था।

उसके बाद लाइब्रेरी में मुलाक़ातें बढ़ती गईं।
कॉफ़ी की चुस्कियाँ, नोट्स शेयर करना, लाइब्रेरी से निकलते वक्त एक-दूसरे को देख मुस्कुराना —
इन छोटी-छोटी बातों में एक नई मोहब्बत जन्म ले रही थी।

वो कॉल पर बातें करते-करते रात गुज़ार देते —
“जान, नींद नहीं आ रही…”
“सुनो ना, तुम हो तो सब अच्छा लगता है…”
इस तरह के अल्फाज़ दिल में जगह बना रहे थे।

कुछ ही समय में, उनके रिश्ते को दोनों परिवारों ने मंज़ूरी दे दी।
गाँव में शहनाइयाँ बजीं, हल्दी की खुशबू फैली, और उस्मान और आयशा शादी के बंधन में बंध गए।

गाँववालों ने कहा —
"क्या जोड़ी बनाई है अल्लाह मियाँ ने। आसमान और धरती का मिलन है ये!"

शादी के शुरुआती दिन सपनों जैसे थे।
लेकिन जैसे ही हक़ीक़त की ज़िंदगी शुरू हुई, मोहब्बत की मिठास में धीरे-धीरे कड़वाहट घुलने लगी।

उस्मान ने महसूस किया कि आयशा अब बदल रही है।
जहाँ पहले हर बात बताने वाली आयशा अब बात-बात पर चुप रहने लगी थी।
फोन बार-बार बिज़ी आने लगा — और जवाब होता, "मम्मी से बात कर रही थी।"

एक दिन, बाज़ार से लौटते समय उस्मान ने आयशा को देखा।
सड़क किनारे खड़ी, मुस्कुराते हुए फोन पर किसी से बात कर रही थी।
वो मुस्कान जो कभी सिर्फ उस्मान के लिए हुआ करती थी — आज किसी और के लिए थी।

उस्मान ने उस दिन कुछ नहीं कहा।
पर उसके अंदर एक तूफ़ान उठ चुका था।

उसने धीरे-धीरे सारे सबूत इकट्ठा किए —
कॉल डिटेल्स, चैट्स, फोटो, मेसेजेस।
और फिर एक नाम सामने आया — "जानू"।

उस्मान का दिल टूट चुका था।
उसने आयशा को शांत स्वर में कहा,
"मैं सब जानता हूँ। लेकिन क्यों किया ऐसा?"

आयशा का चेहरा तमतमा उठा।
वो डरने के बजाय और भी ठंडी हो गई।
उसने कहा,
"तुम्हें क्या लगा था? मैं ज़िंदगी भर सिर्फ तुम्हारे साथ रहूँगी?"

फिर एक दिन, जानू और आयशा ने मिलकर एक भयानक योजना बनाई।
उन्हें डर था कि अगर उस्मान ने सब सार्वजनिक कर दिया, तो उनकी बदनामी हो जाएगी।
इसलिए उन्होंने फैसला किया — उस्मान को ही खत्म कर देते हैं।

एक रात…
उस्मान घर के कमरे में गहरी नींद में था।
गाँव में बिजली नहीं थी। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था।

आयशा ने धीरे से किचन में जाकर चाकू उठाया।
जानू बाहर पहले से मौजूद था।

दरवाज़ा खोला गया।
और फिर —
एक के बाद एक चाकू उसके जिस्म में उतरते चले गए।

उस्मान की नींद टूटी,
उसने आँखें खोलीं —
सामने वही चेहरा था जिसे “जान” कहा था।
और हाथ में वही चाकू था — जो उसकी जान ले रहा था।

उसके मुँह से बस यही निकला —
"तुम भी? आयशा?"

और फिर...
अँधेरा।

सुबह लाश मिली।
पुलिस आई।
सबूत भी थे — कॉल रिकॉर्ड्स, गवाही, हथियार।

कुछ ही दिनों में आयशा और जानू गिरफ़्तार हो गए।
कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सज़ा सुनाई।

लेकिन गाँव की गलियों में,
चाय की दुकानों पर,
मज़दूरों की महफिल में आज भी उस्मान का नाम लिया जाता है —
एक ऐसा आशिक जिसने मोहब्बत को पूजा समझा,
पर उस पूजा की मूरत ने ही उसका अंत कर दिया।

अंतिम शब्द:

"कभी किसी को इतना मत चाहो कि वो तुम्हारी जान बन जाए — क्योंकि जब वो बदलता है, तो जान भी ले जाता है।"