“शांत रातों में जो गूंजती है,
वो कोई सादा प्रार्थना नहीं...
हर चूड़ी की खनक में छिपा है,
उसकी साँसों का आह्वान कहीं…”
ना देखो इन आँखों में… इनमें यक्षिणी बसती है,
जो सौंदर्य में डुबो दे… वो मौत से भी सस्ती है।
तेरा नाम पुकारे जो… वो पूजा नहीं, शाप है,
तेरी हर धड़कन पर अब… उसका ही अधिकार है।
तांत्रिक की जंजीरों से, जो आज़ाद हो गई,
तेरी आत्मा की कीमत पर, फिर आबाद हो गई।
तेरा चेहरा अब उसका नक़ाब बन गया है,
तेरा जीवन अब उसका हिसाब बन गया है।
"ना मंत्र बचा, ना ताबीज़ काम आया,
जिसने उसे बुलाया, खुद मिट्टी में समाया।
वो नहीं मरती… वो जन्म लेती है…
हर आईने में… अब वो दिखती है…!"_
मंदिर की मूर्ति अब उसकी आँखें बन गई,
हर भटकती आत्मा उसकी दासी बन गई।
जागो… या सो जाओ… फर्क अब कोई नहीं,
तुम्हारे भीतर अब वो, धीरे-धीरे समाई है कहीं…
"मौत से भी खतरनाक वो सौंदर्य है... जो तुम्हारी आत्मा निगल जाए।"
सालों से बंद पड़ा था वो शिव मंदिर, जो गाँव के दक्षिणी छोर पर पुराने पीपल के पेड़ों की छाया में खंडहर बन चुका था। वहाँ अब कोई नहीं जाता था... सिवाय उन चीख़ों के, जो रात के तीसरे पहर हवाओं के साथ बाहर आती थीं। गाँववालों का मानना था कि वहाँ अब कोई "मूर्ति" नहीं, कोई "मौत" विराजती है।
और फिर...एक रात, अचानक एक लड़की गायब हो गई।
तीन दोस्तों — विवेक, सोहम और प्रज्ञा — ने तय किया कि वे गाँव की इन अफवाहों की सच्चाई पता लगाएंगे। वे पत्रकारिता के छात्र थे, और अपनी डॉक्यूमेंट्री के लिए इस प्राचीन मंदिर को चुना था।
मंदिर तक पहुँचने वाला रास्ता कांटों, टूटे हुए पत्थरों और सड़ी हुई लकड़ियों से भरा था। चारों ओर धुंध थी, पेड़ों की शाखाएं मानो किसी अदृश्य डर को छू रही थीं।
जैसे ही वे मंदिर के भीतर पहुँचे, उन्होंने देखा — एक टूटी मूर्ति, जिसके आगे लाल चूड़ियाँ और सिंदूर रखे थे। दीवारों पर किसी स्त्री की आकृति उकेरी गई थी, जिसके बाल जमीन तक फैले थे और आँखें… बिना पलक की थीं।
और तभी... एक हल्की सी मुस्कान गूंजती है। कोई स्त्री... कोई यक्षिणी... मंदिर में नहीं, उनके बीच में थी।
अगली सुबह विवेक बदहवास अवस्था में अपने घर लौटा। उसकी आँखों में खून था, होंठ सूजे हुए, और वो बस एक ही बात बड़बड़ा रहा था —
“वो मुझे देखती रही… और मैं खुद को भूल गया…”
सोहम और प्रज्ञा गायब थे।
गाँव में हलचल मच गई। विवेक की बातों से पता चला कि उन्होंने एक गुप्त तहखाना खोला था, जहाँ एक यक्षिणी की समाधि थी। वो सौंदर्य की देवी मानी जाती थी, लेकिन जो भी उसकी आँखों में देख ले, वो अपने आप को खो बैठता है।
प्रज्ञा की एक रिकॉर्डिंग मिली, जिसमें उसकी काँपती आवाज़ थी: "हमने जिस दरवाज़े को खोला… वो दरवाज़ा नहीं था… वो तो मुंह था… उस यक्षिणी का। वो हँस रही थी… वो हमसे बात कर रही थी… और फिर वो… सोहम को चूम कर… राख बना गई।"
गाँव के पुरोहित ने बताया कि इस यक्षिणी को सदियों पहले एक तांत्रिक ने कैद किया था क्योंकि वो राजाओं की आत्मा चुरा लेती थी। लेकिन अब... वो जाग गई थी।
प्रज्ञा किसी तरह बच गई, लेकिन उसकी आँखें अब यक्षिणी की थीं — बिना पलक की, ठंडी, और गहराइयों से भरी।
विवेक ने फैसला किया कि वो उस मंदिर को आग लगा देगा।
जब वो मंदिर में पहुँचा, उसने देखा — प्रज्ञा वहाँ पहले से मौजूद थी।
उसके बाल हवा में उड़ रहे थे, और वह गा रही थी वही गीत…
जो कभी समाधि के पास गूंजा करता था।
“तुमने मुझे देखा… अब मैं तुम्हें कभी नहीं जाने दूँगी…”
तभी विवेक की आँखों से खून टपकने लगा।
आग लगाई गई… मंदिर धू-धू कर जला… लेकिन चीख़ें… रुक नहीं रही थीं।
अगली सुबह, गाँव में एक अजीब दृश्य था —
विवेक, सोहम और प्रज्ञा — तीनों मंदिर की मूर्ति के पास बैठे थे। तीनों की आँखें खुली थीं, लेकिन कोई ज़िंदा नहीं था।
और उस दिन से…
मूर्ति की आँखें हर दिन किसी और दिशा में घूम जाती हैं।
गाँव में कोई भी अब मंदिर का नाम तक नहीं लेता।
लेकिन रात के तीसरे पहर, जब हवा से चूड़ियों की खनखनाहट आती है —
लोग दरवाज़े बंद कर लेते हैं।
कहते हैं, वो यक्षिणी सौंदर्य की देवी नहीं, अभिशप्त आत्माओं की रानी है।
वो अभी भी किसी की आत्मा की तलाश में है...
और अगली बार जब तुम आईने में खुद को देखो…
ध्यान से देखना… कहीं वो तुम्हारी आँखों से झाँक तो नहीं रही?
"जिसने भी उसे प्रेम से देखा… उसने मृत्यु को चूमा।
पर मृत्यु उसका अंत नहीं थी… बल्कि यक्षिणी की भक्ति की शुरुआत थी।"
मंदिर की आग बुझ चुकी थी… लेकिन विवेक, सोहम और प्रज्ञा की आत्माएं कहीं मुक्त नहीं हुई थीं।
अब वे जीवित नहीं थे… लेकिन मृत भी नहीं।
अब वे यक्षिणी के “भक्त” बन चुके थे — वो जो प्रेम में पड़ने वालों को शिकार बनाकर लाते थे।
गाँव में अजीब मौतें होने लगीं — जवान लड़के रातों को गायब हो जाते, और सुबह उनकी लाशें मंदिर के पीछे पाई जातीं…
चेहरे पर मुस्कान, पर आँखें… पूरी तरह काली।
आरव, एक शहर से आया हुआ लेखक, गाँव में रिसर्च के लिए आया था। वो इन घटनाओं पर किताब लिखना चाहता था।
वो तर्कवादी था, किसी भूत या आत्मा में विश्वास नहीं करता था।
एक रात मंदिर के पास बैठे हुए उसने पहली बार उस स्त्री को देखा।
सफ़ेद साड़ी में… पीठ तक खुले बाल… नंगे पाँव, जिनसे कोई आहट नहीं होती थी…
और उसकी आँखें… मानो चाँदनी में डूबे हुए अनंत जल की गहराई हों…
होंठों पर हल्की मुस्कान… और हर मुस्कान में ऐसा आकर्षण,
जैसे आत्मा खिंचती चली जाए।
“तुम कौन हो?” आरव ने पूछा।
उसने बस इतना कहा —
“प्रेम करती हूँ… पर हर प्रेमी मेरी गोद में सो जाता है… हमेशा के लिए।”
आरव… पहली बार डरा नहीं था।
वो उस पर मोहित हो चुका था।
आने वाले दिनों में आरव ने उस स्त्री को हर रात मंदिर के पास देखा।
वो उसे कहानियाँ सुनाती, गीता के श्लोक गाती, और कभी-कभी सिर्फ उसे देखती…
आरव को लगने लगा कि वो प्रेम में पड़ गया है।
वो स्त्री अब उसका सपना नहीं, उसका अस्तित्व बन गई थी। पर गाँव के पुजारी ने उसे चेतावनी दी —
"वो यक्षिणी है। वो प्रेम नहीं करती… वो आत्मा की भूखी है।
जो भी उसके प्रेम में डूबता है… वो मरता नहीं… वो गुलाम बन जाता है।"
पर आरव ने हँस कर कहा — "अगर मौत भी उसकी बाहों में आए… तो वो सज़ा नहीं, वरदान है।
उस रात, पूर्णिमा थी। आरव ने मंदिर में उस स्त्री से मिलने का निर्णय किया… आखिरी बार।
उसने यक्षिणी के सामने खड़े होकर कहा — "तुम जो भी हो… मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।" यक्षिणी मुस्कराई… उसकी आँखें चमकने लगीं… और उसने आरव को चूमा।
और उसी क्षण…आरव की आँखों से खून बहने लगा। हृदय ने धड़कना बंद कर दिया। चेहरा शांत हो गया। वो गिर पड़ा — लेकिन चेहरे पर एक सुखद मुस्कान थी।
पर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई…अब मंदिर के बाहर एक और मूर्ति थी…आरव की।
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी, और आँखें… काली और गहराई से भरी, अब वो भी यक्षिणी के लिए शिकार ढूँढता था। हर बार जब कोई युवा गाँव में आता है, वो मंदिर की ओर खिंचा चला जाता है।
और कोई आवाज़ फुसफुसाती है…
"प्रेम करोगे मुझसे…?"
और तब से…
हर पूर्णिमा को एक नई आत्मा यक्षिणी की सेवा में जुड़ जाती है।
“वो प्रेम नहीं करती…
वो आत्मा को चूमती है…
और फिर उसे अपने भीतर कैद कर लेती है…”
अभी भी जब पूर्णिमा की रात होती है… मंदिर से चूड़ियों की खनक, स्त्री की हँसी और एक पुरुष की सिसकियाँ आती हैं।
और अगर तुम कभी मंदिर के पास से गुज़रो…
और कोई सुंदर स्त्री मुस्कराकर पूछे —
"प्रेम करोगे मुझसे?"
तो याद रखना…
वो यक्षिणी है… और अब तुम कभी वापस नहीं आओगे।