🎵 एपिसोड 22 – जब साज़ ने सुर छेड़े
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1. एक सुबह – और अजीब सी खिंचाव
नैना चाय बनाते हुए किसी पुराने गाने की धुन गुनगुना रही थी:
> “तेरे बिना ज़िंदगी से कोई… शिकवा तो नहीं…”
उसने खुद भी महसूस किया —
उसकी आवाज़ में कुछ बदल रहा था।
जैसे कोई भीतर बैठा सुर हल्के-हल्के साँस ले रहा हो।
आरव ने सुनते ही रुककर कहा:
"तुम्हारी आवाज़… आज बहुत अलग सी लगी।"
नैना मुस्कराई:
"शायद कुछ पुराने राग जाग गए हैं…"
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2. पुराने बक्से – और दबी हुई डायरी
दोपहर में अलमारी की सफाई करते हुए
नैना को एक पुराना बक्सा मिला।
उसमें उसकी कॉलेज की डायरी थी।
डायरी का पहला पन्ना:
> "अगर कभी ज़िंदगी दोबारा मौका दे,
तो मैं संगीत के रास्ते पर चलूँगी…"
उसका हाथ रुक गया।
आँखें कुछ पलों तक उसी पन्ने पर ठहर गईं।
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3. एक निर्णय – और एक भय
शाम को उसने आरव से कहा:
"क्या तुम बुरा मानोगे अगर मैं…
कुछ घंटों के लिए हर हफ्ते संगीत की क्लास जॉइन करूँ?"
आरव थोड़ी देर चुप रहा।
"बुरा?
नैना… ये तो बहुत अच्छा है।
पर क्या तुम थकोगी नहीं?"
"नहीं…
ये थकावट नहीं होगी।
ये वो ऊर्जा होगी जो मुझे और हमारे बच्चे को भीतर से पोषित करेगी…"
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4. पहली क्लास – और फिर से गाने की हिम्मत
नैना ने पास के ही एक म्यूजिक स्टूडियो में एडमिशन ले लिया।
पहली क्लास…
वही हारमोनियम, वही सरगम…
"सा… रे… गा… मा…"
उसने अपने आप को फिर से एक छात्र की तरह पाया।
टीचर ने उसकी आवाज़ सुनी और कहा:
"बहुत महीन सुर हैं तुम्हारे पास।
माँ बनने वाली हो,
तो सुर और भी कोमल हो जाते हैं।
इन्हें संभालो…"
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5. घर में पहला रियाज़ – और बच्चे की प्रतिक्रिया
नैना घर आकर धीमे सुर में अभ्यास कर रही थी।
तभी उसने पेट में एक हल्की सी हरकत महसूस की।
वो ठिठकी…
और फिर धीरे से बोली:
"क्या तुम्हें ये धुन पसंद आ रही है?"
एक और हलचल —
जैसे कोई सुर पर ताल दे रहा हो।
आरव मुस्कराया:
"लगता है संगीत उसे भी अच्छा लग रहा है।"
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6. बचपन की याद – माँ का सुर और नैना की प्रेरणा
रात को नैना ने आरव से कहा:
"मुझे याद है, मेरी माँ सोने से पहले लोरी गाती थीं।
शायद उसी सुर ने मेरे भीतर संगीत बो दिया था।
और अब…
मैं भी उस बीज को फिर से सींच रही हूँ।"
आरव ने उसकी पीठ थपथपाई:
"तुम्हारे सुर में अब दो दिल धड़कते हैं —
एक तुम्हारा, एक उसका।"
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7. म्यूजिक टीचर की बात – और सुरों का अर्थ
तीसरी क्लास में म्यूजिक टीचर ने कहा:
"हर सुर का अपना भाव होता है, नैना।
‘रे’ में श्रद्धा है,
‘ग’ में करुणा…
और ‘प’ में ममता।
जब एक माँ गाती है,
तो सुर सिर्फ आवाज़ नहीं होते —
वो आत्मा से निकलती लोरी बन जाते हैं।"
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8. पहली परफॉर्मेंस – सिर्फ अपने लिए
एक रविवार, नैना ने पहली बार आरव के सामने
पूरा एक गीत गाया — बिना रुके, बिना झिझके।
> "लग जा गले…
कि फिर ये हसीं रात हो न हो…"
आरव की आँखें भर आईं।
"तुम सिर्फ अच्छा नहीं गाती,
तुम गाकर जीती हो, नैना।"
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9. डायरी की पंक्तियाँ – जब सुर जीवन बन गया
> "आज मैंने खुद को फिर से पाया।
वो नैना, जो एक दौर में सपनों की रागिनी थी —
आज फिर से जागी है।
और अब जब मैं माँ बन रही हूँ,
मुझे लगता है मे
रा बच्चा मेरी साँसों में सुर बनकर सांस ले रहा है।
संगीत अब मेरे लिए शौक नहीं —
वो मेरी और मेरे बच्चे की भाषा है…"
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🔚 एपिसोड 22 समाप्त – जब साज़ ने सुर छेड़े