📚 एपिसोड 10 – जब किताबें अपना सच कहें
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1. एक सामान्य सुबह – लेकिन मन बेचैन
नैना आज लाइब्रेरी जल्दी पहुँची थी।
हवा में हल्की नमी थी, जैसे रात की कोई अधूरी बात अब भी तैर रही हो।
आरव का मैसेज आया:
“कुछ ढूँढने का मन है आज — कुछ पुराना, कुछ अधूरा।
लाइब्रेरी चलूँ तुम्हारे साथ?”
नैना ने जवाब नहीं दिया,
लेकिन जब आरव पहुँचा, तो उसे दरवाज़े पर नैना मुस्कुराते हुए मिल गई।
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2. लाइब्रेरी की खामोशी – और दो धड़कते दिल
लाइब्रेरी के पुराने सेक्शन में दोनों पहुँचे।
दीवारों पर धूल जमी थी, किताबों के पन्ने पीले हो चुके थे,
और हर किताब जैसे कोई रहस्य समेटे बैठी थी।
आरव ने एक पुरानी लकड़ी की शेल्फ की ओर इशारा किया:
“यहाँ कुछ छिपा है शायद।”
नैना ने धीरे-धीरे किताबें निकालनी शुरू कीं।
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3. एक अधूरी किताब – नाम था "अनबोलापन"
एक फटी सी किताब हाथ में आई —
जिस पर लिखा था:
"अनबोलापन – एक अधूरी प्रेमकथा।"
किताब के कवर पर कोई लेखक का नाम नहीं था।
नैना ने पन्ने पलटने शुरू किए,
और पढ़ते-पढ़ते दोनों ठहर गए।
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4. किताब के पन्नों में आरव और नैना की परछाई
उस किताब में दो किरदार थे:
आरव, जो चुप रहता था, बहुत sketch बनाता था।
और नायना, जो लाइब्रेरी में काम करती थी, लेकिन खुद को कभी पूरा महसूस नहीं करती थी।
आरव ने पन्ना पलटा और कहा:
“ये… ये तो हम जैसे हैं।”
नैना की उंगलियाँ काँपीं।
कहानी के अगले भाग में लिखा था:
> "नायना को जब पहली बार बुखार आया, आरव उसे अपनी बाँहों में ले गया..."
नैना ने अचानक किताब बंद कर दी।
“ये क्या है, आरव? कोई खेल तो नहीं?”
आरव चुप रहा।
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5. किताब के बीच एक पुराना ख़त
नैना ने किताब को फिर से खोला।
एक पन्ने के बीच एक चिट्ठी फँसी हुई थी —
हाथ से लिखी हुई:
> “अगर कोई कभी इस किताब को पढ़े,
और उसे लगे कि ये उसी की कहानी है —
तो समझ लेना, तुम्हारा प्यार सिर्फ आज का नहीं…
वो कई जन्मों से चलता आ रहा है।”
नैना की आँखें भर आईं।
“क्या ये संभव है आरव? कि हम पहले भी कभी मिले थे?”
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6. आरव की कहानी – पिछले जन्म का एक सपना
आरव ने पहली बार कुछ अनकहा बताया:
“जब मैं छोटा था,
तो मैं अक्सर एक सपना देखता था —
मैं एक पुरानी हवेली में खड़ा हूँ,
और एक लड़की सफेद दुपट्टे में मुझे देख रही है।
मैं उसे आवाज़ देता हूँ…
लेकिन वो सिर्फ मुस्कुराती है और पीछे मुड़ जाती है।”
नैना ने काँपती आवाज़ में कहा:
“मैं भी एक ही सपना बार-बार देखती हूँ —
जहाँ कोई मुझे मेरे नाम से नहीं बुलाता…
बस कहता है — ‘मेरी चुप लड़की’।
क्या तुम…?”
दोनों एक साथ चुप हो गए।
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7. किताब का आखिरी पन्ना – और पहली बार ‘प्यार’ शब्द
उस अधूरी किताब का आखिरी पन्ना खाली था।
आरव ने अपनी जेब से पेन निकाला,
और उस पन्ने पर सिर्फ तीन शब्द लिखे:
> “मैं तुमसे प्यार करता हूँ।”
नैना ने कुछ नहीं कहा —
उसने बस वो किताब बंद की,
और अपनी हथेली आरव की ओर फैला दी।
आरव ने उसकी उंगलियाँ थाम लीं।
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8. लाइब्रेरी के बाहर – किताब की बारिश
जैसे ही दोनों बाहर निकले,
हल्की बारिश शुरू हो गई।
लेकिन वो बारिश अलग थी —
ना तेज़, ना ठंडी…
बस वैसी जैसी किताबों में होती है — जिसका कोई मौसम नहीं,
बस एक इकरार होता है।
नैना ने कहा:
“अगर ये किताब हमारे बारे में थी,
तो हम इसके आखिरी पन्ने को अधूरा नहीं छोड़ेंगे, आरव।”
आरव मुस्कुराया:
“हम हर दिन एक नया पन्ना लिखेंगे —
बिना लेखक बने,
सिर्फ प्रेमी बनकर।”
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9. नैना की डायरी की नई पंक्ति
> "कभी-कभी किताबें हमें वो सच बताती हैं,
जो हम खुद से भी नहीं कह पाते।
और जब दो लोग एक ही किताब में खुद को ढूंढ लेते हैं,
तो वो प्रेम, कहानियों से आगे चला जाता है…"
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🔚 एपिसोड 10 समाप्त – जब किताबें अपना सच कहें