अब तक...
रागिनी को अपनी दादी की संदूक से एक पुराना नक्शा और पत्र मिला, जिसमें हवेली के अंदर छिपे रहस्य की बात थी। वह जिज्ञासा से हवेली पहुँचती है, और वहाँ दीवार पर बने अजीब चित्रों के बीच उसे एक गुप्त दरवाज़ा दिखाई देता है — जिस पर सिर्फ एक शब्द लिखा है: "सत्य"। जैसे ही वह उसे छूती है, उसकी टॉर्च बंद हो जाती है… और कोई उसका कंधा छूता है...
अब आगे .....
अंधेरे में उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, बस वही बांसुरी जैसी आवाज़, जो अब और नज़दीक से सुनाई दे रही थी — मानो कोई ठीक उसके कानों के पास बजा रहा हो।
उसके कंधे पर जो स्पर्श था, वह ना ठंडा था ना गर्म — जैसे कोई परछाई खुद को छू रही हो।
रागिनी घबरा गई, लेकिन चीखी नहीं। वह साँस रोककर एक पल के लिए खड़ी रही। फिर टॉर्च के बटन को ज़ोर से दबाया — और सौभाग्य से वह फिर से जल उठी।
रोशनी जली तो सामने कुछ नहीं था… खाली दीवार।
लेकिन उसकी उँगलियाँ अब भी काँप रही थीं। उसे अपनी पीठ पर अब भी किसी की उपस्थिति महसूस हो रही थी — जैसे कोई अब भी उसे देख रहा हो।
उसने धीरे से गहरी साँस ली, और सामने दीवार की ओर देखा — वही रहस्यमय दरवाज़ा।
दरवाज़े पर चमकती हुई एक लिखावट उभर आई थी, जैसे किसी अदृश्य रोशनी ने उसे रेखांकित कर दिया हो:
“जो भीतर देखे, वही बाहर का सत्य जान पाए।”
रागिनी ने टॉर्च से दरवाज़े के हैंडल की ओर रोशनी डाली। हैंडल जंग खाया हुआ था, लेकिन जैसे ही उसने उसे छुआ — दरवाज़ा खुद-ब-खुद कर्कश आवाज़ के साथ खुल गया।
एक ठंडी हवा का झोंका आया, और उसके साथ ही उसकी टॉर्च की रोशनी कांपने लगी।
वह धीरे से अंदर गई। यह कमरा बाकी कमरों से अलग था — यहाँ की दीवारें काली थीं, और फ़र्श पर किसी ने चॉक से गोल घेरे खींच रखे थे। कमरे के बीचों-बीच एक पुराना लकड़ी का बॉक्स रखा था।
रागिनी उस बॉक्स के पास गई, और धीरे से ढक्कन खोला।
अंदर एक पुरानी किताब, कुछ चिट्ठियाँ और एक लाल रंग की माला थी — जिसे देखकर उसकी आँखें चौंधिया गईं।
उसने किताब निकाली। उस पर धूल की मोटी परत थी, लेकिन नाम साफ़ दिख रहा था:
“दिव्या चौधरी — मेरा अंतिम संकल्प”
रागिनी चौंक गई। दिव्या उसका दादी का नाम था।
उसने जल्दी-जल्दी किताब के पन्ने पलटे। शुरुआत में लिखा था:
> “अगर ये किताब किसी को मिले, तो जान लो — इस हवेली के भीतर छुपा सच, सिर्फ मेरे परिवार से जुड़ा नहीं, बल्कि पूरे गाँव की आत्मा से जुड़ा है। मैं अकेली नहीं हूँ यहाँ… और जो है, वो अब भी जाग रहा है।”
रागिनी की आँखें भर आईं। उसकी दादी, जो हमेशा शांत और सरल लगती थीं, उनके भीतर इतना बड़ा रहस्य दफ़न था — वह सोच भी नहीं सकती थी।
जैसे ही उसने आखिरी पन्ना पलटा — अचानक कमरे की दीवारें हिलने लगीं। किताब में एक पृष्ठ अलग होकर ज़मीन पर गिरा। उस पृष्ठ पर सिर्फ एक स्केच बना था — हवेली का नक्शा और उसमें छिपा एक “कमरा” जो नक्शे में कहीं नहीं था।
और उस कमरे के ऊपर लिखा था —
"तहखाना – रक्त द्वार"
रागिनी ने पृष्ठ उठाया ही था कि कमरे की छत से एक धीमी सी आवाज़ आई — जैसे किसी ने अपने नाखून खरोंच दिए हों लकड़ी पर।
वह तुरंत बाहर की ओर भागी। दरवाज़ा अब बंद हो चुका था।
उसने ज़ोर लगाया, लेकिन वह नहीं खुला। फिर किताब की माला उसके बैग से बाहर गिर गई। जैसे ही माला ज़मीन पर गिरी — दरवाज़ा खुद-ब-खुद फिर खुल गया।
रागिनी समझ गई — यह कोई साधारण जगह नहीं थी। हर वस्तु, हर चिन्ह, हर शब्द — किसी न किसी रहस्य की कुंजी थी।
वह दौड़ती हुई हवेली के बाहर निकल आई।
सूरज अब ढल रहा था। चारों ओर नारंगी रोशनी फैल रही थी, और हवेली के ऊपर बैठा एक कौआ उड़ गया।
🌙 उसी रात...
रागिनी अपने कमरे में बैठी किताब पढ़ रही थी। हर पन्ने पर एक नई बात — दादी के जीवन की अनकही कहानियाँ, हवेली में गूँजती आत्माओं का जिक्र, और एक तांत्रिक जिसका नाम बार-बार आ रहा था —
“भैरव नाथ”
उसने लिखा था कि 60 साल पहले इस हवेली में एक तांत्रिक साधना अधूरी रह गई थी। उसकी आत्मा अब भी किसी रक्त बलिदान की तलाश में है — और जो इस कोठरी में घुसेगा, उसका भाग्य उस आत्मा के हाथ में होगा।
रागिनी की उंगलियाँ काँपने लगीं।
लेकिन आखिरी पन्ने में लिखा था:
> “अगर तुम मेरी वारिस हो, तो याद रखना — ये रहस्य तुम्हारे लिए नहीं, तुम्हारे जैसे पूरे समाज के लिए है। अगर तुम चाहो, तो इसे रोक सकती हो... लेकिन केवल अगर तुम उस ‘दरवाज़े के उस पार’ जाने का साहस रखती हो।”
रागिनी अब समझ गई थी — वो सिर्फ एक जिज्ञासु लड़की नहीं, बल्कि एक रहस्य की वारिस है।
अब सवाल था:
क्या वह "रक्त द्वार" तक जाएगी?
क्या वो भैरव नाथ से टकरा पाएगी?
या हवेली उसे अपने भीतर समा लेगी… हमेशा के लिए?