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सच का सामना
वो पन्द्रह दिन भी परिवार ने जैसे तैसे काट लिये। रमा जब पुनः आ गई, फिर वही चहल-पहल। माँ अब पहले से अधिक खुश। तब एक शाम पिताजी ने रागिनी से कह मंजीत को बुलवा लिया। हॉल में बैठे माँ और पिताजी के चेहरों पर फिर वही गंभीरता, लेकिन आँखों में एक नरमी भी झलक रही थी।
पिताजी ने कहा, ‘मंजीत, तुमने रमा की शादी के लिए जो त्याग किया, उसे हम भूल नहीं सकते। तुमने साबित कर दिया कि तुम सिर्फ रागिनी की नहीं, हमारे पूरे परिवार की भलाई चाहते हो। अब हमें कोई एतराज नहीं है।’
माँ ने आगे बढ़कर रागिनी का हाथ थामा और बोलीं, ‘बेटी, हमने तुम्हारी खुशी को समझने में थोड़ा वक्त लिया, लेकिन अब हम तैयार हैं। मंजीत अच्छा लड़का है। बस, समाज की बातें हमें थोड़ा डराती हैं।’
तब मंजीत ने रागिनी की ओर देखते विनम्रता पूर्वक कहना शुरू किया, ‘माँ जी, समाज की बातें तो चलती रहेंगी। लेकिन मैं वादा करता हूँ कि रागिनी को कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगा। और हाँ, मैं अपने परिवार को भी मना लूँगा। वो थोड़े पुराने ख्यालों के हैं, पर रागिनी से मिलने के बाद वो भी मान जाएँगे।’
रागिनी की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए। क्योंकि वह मंजीत से कोई सात-आठ साल छोटी थी, तब भी मंजीत उसे भरपूर सम्मान देता था। उसने मंजीत की ओर देखा, जिसके चेहरे पर भी एक सुकून भरी मुस्कान थी। क्योंकि तलाक के लिए वह छह महीने के सेपरेशन का समय चाहता था और वह रमा की शादी के बहाने मिल गया था।
एक दिन पिताजी ने माँ से कहा, ‘रमा हँसी-खुशी अपने घर जा चुकी है। अब रुकने की कोई वजह नहीं। जैन पंचाग के अनुसार अगले महीने की पन्द्रह तारीख शुभ है। उस दिन हम रिश्ता पक्का कर देंगे।’ माँ की सहमति के बाद पिताजी ने जब यह बात मंजीत को फोन पर बताई तो वह यकायक चौंका और उसने पूछ धरा, ‘अंकल जी, क्या जैन पंचांग भी आता है?’ दरअसल, वह अभी और समय लेना चाहता था, क्योंकि अभी तो नताशा से बात ही नहीं हुई थी और न केस फाइल... फिर कैसे कोई तिथि तय की जा सकती थी! पर रागिनी के पापा ने उसकी उलझन से अनभिज्ञ उत्साह में उतराते हुए कहा:
‘हाँ, जैन धर्म में भी अपना एक पारंपरिक कैलेंडर है, जो जैन पंचांग कहलाता है। जैन पंचांग में भी विभिन्न त्योहारों, व्रतों और मुहूर्तों का उल्लेख होता है, जो जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
जैसे- पर्व और त्योहार... जैसे कि पर्युषण, दिवाली जो भगवान महावीर की निर्वाण तिथि के रूप में मनाई जाती है, और अन्य महत्वपूर्ण दिन। व्रत और उपवास। मुहूर्त-शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त समय, जैसे कि पूजा, अनुष्ठान, और अन्य धार्मिक कार्य।’
फिर वे उत्साह के अतिरेक में और भी गहराई से बताने लगे, ‘जैन पंचांग चंद्र और सौर चक्रों पर आधारित होता है और इसमें विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए समय और तिथियों का निर्धारण किया जाता है।’
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घर में फिर से तैयारियों का दौर शुरू हुआ। इस बार माहौल में न तनाव था, न डर। बस एक परिवार था, जो अपनी बेटी की नई शुरूआत के लिए एकजुट हो रहा था। रमा लोकल में थी, उसे फिर बुला लिया गया था। रागिनी और मंजीत की कहानी, जो कभी छुप-छुपकर शुरू हुई थी, अब सबके सामने एक खूबसूरत मोड़ ले रही थी।
मगर अभी एक अहम सच्चाई से तो रूबरू होना ही था। न तो तलाक हुआ था और न रागिनी और मंजीत दोनों में से ही किसी ने यह सच्चाई बयान की थी!
पर एक दिन तो सामना होना ही था। पिताजी ने खुद फोन करके मंजीत को बुला लिया और बता दिया कि, ‘हमारी बड़ी बेटी अपने घर-वर की हो चुकी है। अब रुकने की कोई वजह नहीं। आने वाली पन्द्रह तारीख शुभ है। उस दिन हम रिश्ता पक्का कर देंगे। तुम अपने घरवालों को भी बुला लेना।’
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मंजीत ने हिम्मत जुटाई और बोलना शुरू किया, ‘अंकल जी, आंटी जी, मैं आपसे कुछ छुपाना नहीं चाहता। सच ये है कि.... मेरी शादी हो चुकी है। मेरी पत्नी का नाम नताशा है।’
उसके मुँह से ये शब्द निकलते ही कमरे में सन्नाटा छा गया। माँ का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा, पिताजी की भौंहें सिकुड़ गईं, और रमा ने हैरानी से रागिनी की ओर देखा। रागिनी की आँखें नीचे झुक गईं, जैसे वो इस पल का सामना करने को तैयार नहीं थी।
‘क्या?!’ माँ चीख पड़ीं, ‘तुम पहले से शादीशुदा हो, और हमारी बेटी के साथ ये सब कर रहे हो? ये क्या तमाशा है, रागिनी? तुम्हें पता था ये सब?’
माँ की नजर अब रागिनी पर थी, जो जवाब में सिर्फ सिर हिलाकर ‘ना’ कह पाई थी।
पिताजी ने गहरी साँस ली और मंजीत से पूछा, ‘फिर ये सब क्या है? तुम अपनी पत्नी को छोड़कर हमारी बेटी के साथ क्यों हो?'
मंजीत ने धीरे से कहा, ‘अंकल जी, नताशा से मेरी शादी कई साल पहले हुई थी, लेकिन हमारा रिश्ता अब सिर्फ कागजों तक सीमित है। साल भर से तो वह मुझे एकदम अकेला छोड़ विदेश चली गई है... और ह-ह, ह-मारा कोई संपर्क भी नहीं है...।’
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रागिनी ने यह सब पहली बार सुना था, उसे गश आ गया। लेकिन मंजीत ने कहा कि- हम एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं। नताशा हमारी जिंदगी का हिस्सा नहीं है।’
पर यह सुनते ही माँ ने तीखे स्वर में कहा, ‘हुँह, सच्चा प्यार... ये सब बातें हैं! नताशा जब वापस आएगी तब क्या होगा, कभी सोचा? वो अपनी जगह छोड़ेगी? या रागिनी उसकी सौतन बनकर रहेगी?’
रागिनी को होश आया गया था, पर उसके पास इस सवाल का जवाब नहीं था। उसने मंजीत की ओर देखा, जिसके चेहरे पर भी अनिश्चितता थी। सच तो ये था कि नताशा के वापस आने की संभावना पर मंजीत ने गहराई से नहीं सोचा था। लेकिन अब ये सवाल उसके सामने एक पहाड़ की तरह खड़ा था।
पिताजी ने कहा, ‘मंजीत, अगर तुम्हारी पत्नी वापस आई और उसने तुम्हें छोड़ने से इनकार कर दिया, अपनी जगह माँगी, तो रागिनी का क्या होगा? और नहीं आई मगर उसे पता चला कि तुम किसी और के साथ हो, तो वो क्या करेगी? हमें अपनी बेटी का भविष्य सुरक्षित चाहिए।’
मंजीत नर्वस हो गया, पर उसने कहा, ‘अंकल जी, मैं नताशा से तलाक लेने की कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन वो अभी संपर्क में नहीं है। मैं वादा करता हूँ कि रागिनी को कभी तकलीफ नहीं होगी।’
रमा, जो अब तक चुप थी, बोली, ‘मंजीत भैया, आपको ये सब पहले ही सुलझा लेना चाहिए था। रागिनी का दिल बहुत नाजुक है। अगर नताशा वापस आई और उसने हंगामा किया, तो छोटी इसे सह नहीं पाएगी।’
उसी वक्त, मंजीत के फोन पर एक मैसेज आया। उसने स्क्रीन देखी और उसका चेहरा सफेद पड़ गया। रमा ने पूछा, ‘क्या हुआ?’
मंजीत ने धीरे से कहा, ‘नताशा का मैसेज है। वो अगले हफ्ते वापस आ रही है।’
ये सुनते ही रागिनी का दिल बैठ गया। माँ ने व्यंग्य से कहा, ‘लो, अब शुरू होगा असली ड्रामा, अब भी समय है, रागिनी! इस गलती को सुधार ले।’ पिताजी चुप रहे, लेकिन उनकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी कि आगे क्या होगा?
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