(नित्या की शादी में दहेज की मांग पर उसका भाई केशव पुलिस लेकर पहुंचता है और दोषियों को गिरफ्तार करवा देता है। परिवार नित्या को दहेज लोभियों से बचाकर राहत महसूस करता है। विपिन को अपनी बहन गुंजन की पढ़ाई छुड़वाने का पछतावा होता है और वह नित्या की आगे की पढ़ाई के लिए जतिन को जिम्मेदारी सौंपता है। जतिन पहले ही अपनी बेटी छाया की पढ़ाई के लिए घर गिरवी रख चुका है। विपिन जतिन की मदद का वादा करता है। छाया यह सुनकर भावुक हो जाती है और खुद को बदलने का संकल्प लेती है।) अब आगे
छाया भूल चुकी थी कि वह पापाजी को गुडनाइट कहने गई थी। वह लौटकर चुपचाप नित्या दीदी के पास लेट गई। रात भर वह सोचती रही — क्या वह इतनी अंधी हो गई थी कि अपने मां-बाप का दुख भी नहीं देखा? सोचते सोचते नींद कब आ गई, उसे भी नहीं पता चला।
सुबह जब आंख खुली, तो देखा नित्या दीदी पूरी तरह तैयार थीं। छाया के मन में अपराधबोध था, पर उसने चेहरे पर जरा भी भाव नहीं आने दिए। आदत के मुताबिक, शरारती अंदाज़ में सीटी बजाकर बोली, "ओय होय! कित जा रही है घणी सुंदर छोरी?"
तभी बाहर से ताई की आवाज आई — "ये सीटी कौन बजा रहा है?"
छाया ने झटपट चादर ओढ़ ली, और सोने का नाटक करने लगी। नित्या दीदी हंसते-हंसते लोटपोट हो गईं।
"उठ जा, 12 बजे शहर के लिए ट्रेन है," नित्या ने खींचते हुए कहा।
"जाने दो यार..." कहकर छाया फिर आंखें मूंद ली।
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भावनात्मक दृश्यों में परिपक्वता:
घर में सब तैयारियाँ कर रहे थे। विपिन ने चिंतित होकर पूछा — "केशव कहीं दिख नहीं रहा?"
नम्रता ने सिर पर पल्लू रखते हुए कहा, "भैया, वह नित्या की तत्काल टिकट लेने गया है। सुबह-सुबह ही निकल गया।"
गौरी ने सबको ढाढ़स बंधाया, "चिन्ता मत करो। दूर है पर अलग नहीं। जरूरत पड़ी तो बस याद करना, हम आ जाएंगे।"
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ट्रेन यात्रा और नई शुरुआत:
शहर पहुंचने के बाद सब थक गए थे। नम्रता ने नित्या को छाया के कमरे में रुकवा दिया। रात को दोनों बहनें चुपचाप अपने ख्यालों में खोई रहीं।
सुबह एक नई ऊर्जा के साथ आई थी। छाया जो हर सुबह विशाल के ख्यालों में खोई रहती थी, आज कुछ और ही सोच रही थी।
"सब ठीक है?" केशव की आवाज़ ने उसे ख्यालों से बाहर निकाला।
"सब ठीक है भैया," कहकर वह कॉलेज के लिए तैयार हो गई।
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कॉलेज जीवन और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम:
आज छाया ने बस से कॉलेज जाना चुना। रास्ते में विशाल की कड़वी बातें याद आईं —
"तुम्हें शर्म नहीं आती? औकात नहीं कि बात करूं, प्यार तो दूर की बात है।"
छाया मन्द मन्द मुस्कुराई और क्लास की ओर बढ़ गई — अब वह कोई जवाब नहीं देना चाहती थी, बस खुद को साबित करना चाहती थी।
क्लास में विनय राठौड़ से पढ़ाई में मदद मांगने का उसका तरीका उसकी नयी सोच को दर्शाता है।
"क्या मुझ आलसी को मेहनती बनाने में मदद करोगे?"
विनय ने हामी भरी — लेकिन शर्त भी जोड़ दी — "लापरवाही की तो देख लेना।"
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छात्र जीवन, संघर्ष और दोस्ती का मेल:
विनय के स्टडी सर्कल, पुराने प्रश्न पत्र, और सेल्फ स्टडी की सलाह से छाया और काशी दोनों की पढ़ाई में सुधार आने लगा।
काशी, जो छाया से अलग पर समान संघर्षों से जूझ रही थी, अब उसकी सच्ची साथी बन चुकी थी।
1. क्या एक लड़की टूटे दिल और अपमान को पीछे छोड़कर खुद को फिर से गढ़ सकती है?
2. जब परिवार साथ हो तो क्या एक बेटी हर हार को जीत में बदल सकती है?
3. क्या छाया का यह बदलाव स्थायी है, या फिर से भावनाओं में बह जाएगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए ''छाया प्यार की''